(19)
कहानी सुनते हुए दिशा को लग रहा था कि उमा को उस समय अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए थी। हिम्मत करके बद्रीनाथ को समझाना चाहिए था कि अगर विशाल और माया की शादी करा दें तो सब ठीक हो जाएगा। लेकिन उनके चुप रहने का परिणाम आज विशाल भुगत रहा था। उसने कहा,
"सोच रही हूँ तो अजीब लग रहा है। विशाल भइया के मामले में मम्मी कुछ नहीं बोलीं। पर तुम कह रहे थे कि हमारी शादी के लिए उन्होंने ही पापा को मनाया।"
"मुझे भी तब ऐसे ही आश्चर्य हुआ था। पर जल्दी ही समझ गया। उनकी चुप्पी से भइया की ज़िंदगी बर्बाद हुई थी। शायद इसी वजह से हमारे समय पर उन्होंने अपनी बात कहना ही ठीक समझा।"
दिशा को पुष्कर की बात ठीक लगी। उसके मन में एक और सवाल था। उसने पूछा,
"अच्छा अब एक बात बताओ। उस दिन माया के मम्मी पापा अचानक पापा के साथ तालाब पर कैसे पहुँच गए थे ?"
"मम्मी ने बताया था कि उस दिन चाचा और चाची माया के लिए एक लड़का देखने जा रहे थे। शाम तक लौटने वाले थे। इसलिए माया ने भइया को तीन बजे बुलाया था। चाचा चाची घर से निकले। बस अड्डे पर पहुँचे ही थे कि चाचा जी के मोबाइल पर फोन आ गया कि जिनके घर वह जा रहे थे उनके किसी रिश्तेदार की तबीयत बिगड़ गई है। इसलिए वह वहीं जा रहे हैं। चाचा जी फिर कभी आएं। चाचा चाची घर वापस आए तो दरवाज़ा बंद था। उन्होंने पूछताछ की तो सामने वाले मकान में रहने वाली महिला ने बताया कि उसने माया को कहीं जाते देखा है। उसने यह भी बताया कि कुछ दिन पहले बद्रीनाथ सिन्हा का छोटा बेटा उससे मिलकर गया है। चाची फौरन चाचा के साथ हमारे घर पहुँचीं और पापा को सारी बात बताई। चाची को अंदाजा था कि भइया और माया तालाब पर मिलते हैं। वह पापा को लेकर पहुँच गईं और हंगामा खड़ा कर दिया।"
अपनी बात कहकर पुष्कर ने अंगड़ाई ली। उसके बाद खड़े होकर अपने पैर खोले। घड़ी पर नज़र डाली तो एक बजने वाले थे। दिशा ने कहा,
"बहुत रात हो रही है। सुबह जल्दी निकलना है। पर अभी बात छूट गई तो रह जाएगी।"
पुष्कर ने अपने पैर झटकते हुए कहा,
"अब बात शुरू की है तो पूरी करूँगा।"
यह कहकर वह बिस्तर पर आकर बैठ गया। उसने बात आगे बढ़ाई....
बद्रीनाथ नहीं चाहते थे कि विशाल कोई कदम उठाए। इसलिए उसे नौकरी पर जाने से रोक दिया गया था। वह घर पर ही रहता था। कुछ भी सोचने या करने की स्थिति में नहीं था। वह बस पूरा दिन निरुद्देश्य सा पड़ा रहता था। रह रहकर रोता था। पुष्कर अपने भाई की स्थिति पर बहुत दुखी था। उसने उमा को भी कई बार रोते हुए देखा था।
दोपहर का समय था। किसी चीज़ की छुट्टी थी। बद्रीनाथ घर पर थे। अभी कुछ समय पहले ही सबने दोपहर का खाना खाया था। विशाल छत पर टहल रहा था। पुष्कर बैठक में पढ़ाई कर रहा था। किशोरी, बद्रीनाथ और उमा भी वहीं आ गए। पुष्कर एक कोने में जाकर बैठ गया। किशोरी ने कहा,
"जैसा तुम बता रहे हो बद्री रिश्ता तो अच्छा मालूम पड़ता है। पैसे वाला घर है। इकलौती बेटी। सबकुछ अपने विशाल के हिस्से आ जाएगा। हम तो कहते हैं कि देर ना करो। हाँ कर दो।"
"जिज्जी हम भी यही सोच रहे थे। भटनागर बाबू का कहना है कि वह विशाल को भी अपने साथ कारोबार में लगा लेंगे।"
"तो इससे अच्छा क्या होगा भला। अंत में आना तो सबकुछ विशाल के ही हिस्से है। पहले से ही संभाल लेगा।"
किशोरी ने खुशी जताई। उन्होंने उमा से कहा,
"तुम भी कुछ बोलो। तुम्हारे बेटे के लिए रिश्ता आया है।"
उमा ने कुछ संकोच से कहा,
"हम तो कह रहे हैं कि विशाल के मन की कर देते तो। बहुत दुखी रहता है। उसके लिए जीवन काटना मुश्किल होगा।"
उनकी बात सुनते ही बद्रीनाथ गुस्से से बोले,
"तुमको दुनियादारी की समझ नहीं है। विशाल तो बच्चा है। नई जवानी है। इश्क का भूत सवार है। पर हम तो समझदार हैं। हमें तो वह करना चाहिए जो उसके और हमारे लिए सही हो। समाज में हमारी इज्ज़त बढ़े। ना कि लोगों को हंसने का मौका मिले। अभी नई नई बात है इसलिए रोना धोना है। शादी हो जाएगी। ससुराल से पैसा और सम्मान मिलेगा तो सब भूल जाएगा।"
किशोरी ने भी उमा को डांट लगाई,
"हर समय ममता के चलते कोमल नहीं हुआ जाता है। बच्चों की भलाई के लिए कड़ा होना पड़ता है। यह समझ लो कि विशाल की भलाई इसी में है। उसे समझाओ। बेकार की बातें मत करो।"
उमा चुप हो गईं। पुष्कर को बुरा लगा। पर वह कुछ कहने की स्थिति में नहीं था।
शंकरलाल भटनागर की बेटी कुसुम के साथ विशाल की बात पक्की हो गई। विशाल ने एकबार फिर कोशिश की पर कोई लाभ नहीं हुआ। उमा ने भी उससे वही कहा जो उनसे समझाने को कहा गया था। चार दिन बाद शंकरलाल बरीक्षा की रस्म करने आने वाले थे। विशाल दुखी था और असहाय महसूस कर रहा था। पुष्कर उसके पास बैठा था। उसने कहा,
"क्या करें कुछ समझ नहीं पा रहे हैं। हम माया से शादी करना चाहते हैं। पर इस बात के लिए पापा तैयार नहीं हैं। हमारे अंदर इतनी हिम्मत नहीं है कि परिवार से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़कर माया के साथ जोड़ लें। हम अभी इस लायक नहीं हैं कि अपने दम पर सब संभाल लें।"
विशाल बहुत अधिक परेशान लग रहा था। पुष्कर उस छोटी उम्र में भी उसकी मजबूरी समझ रहा था। अचानक दरवाज़े की कुंडी ज़ोर से खटखटाने की आवाज़ आई। पुष्कर बाहर आया। तब तक बद्रीनाथ भी आंगन में आ गए थे। इस बीच कई बार कुंडी ज़ोर से खड़की। बद्रीनाथ ने कहा,
"देखो कौन है जो इतनी जल्दी में है।"
किशोरी और उमा भी आंगन में आ गई थीं। पुष्कर ने जाकर दरवाज़ा खोला। सामने माया खड़ी थी। पुष्कर को एक तरफ करके वह अंदर आ गई। आते ही उसने आवाज़ लगाई,
"विशाल....विशाल....बाहर आओ....."
बद्रीनाथ ने डांटते हुए कहा,
"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की। इस तरह चिल्ला क्यों रही हो ?"
तब तक विशाल आंगन में आ गया था। माया उसके पास जाकर बोली,
"तुम हमसे शादी करना चाहते हो। हम आ गए हैं। पकड़ो हमारा हाथ और ले चलो। अब तो हम अठ्ठारह साल के भी हो गए हैं।"
किशोरी गुस्से से उसके पास आईं। उसका हाथ पकड़ कर खींचते हुए बोलीं,
"कितनी निर्लज्ज लड़की है। ऐसी बेहयाई से खुद को भगा ले जाने की बात कर रही है।"
माया ने झटके से अपना हाथ छुड़ाया। वह फिर विशाल के पास आकर बोली,
"अगर सचमुच शादी करना चाहते हो तो चलो। इन लोगों से कोई उम्मीद मत रखना। इन्हें हमारे प्यार से कोई मतलब नहीं है।"
कुछ देर पहले विशाल पुष्कर को अपनी मजबूरी बता रहा था। अब अचानक माया उसे शादी करने के लिए कह रही थी। वह हक्का बक्का था। तब तक सर्वेश कुमार और मनोरमा भी वहाँ आ गए थे। उन्हें देखते ही किशारी ने कहा,
"अपनी आँखों से अपनी लड़की की बेशर्मी देख लो। विशाल के पीछे पड़ी है कि इसे भगा ले जाए।"
अपने मम्मी पापा को देखकर माया विशाल के सीने से लगकर बोली,
"हम सबकुछ छोड़कर तुम्हारे पास आए हैं। हमारी शादी कहीं और कराई जा रही है। हमें तुमसे शादी करनी है।"
सर्वेश कुमार माया के पास आए। उसे विशाल से अलग करते हुए बोले,
"हमारी इज्ज़त मिट्टी में मिला रही है। घर चल।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"ले जाओ इस बेशर्म लड़की को। हमारे बेटे के लिए हमने भले घर की लड़की चुन ली है।"
माया ने विशाल से कहा,
"तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो विशाल ? हम कितनी उम्मीद से तुम्हारे पास आए हैं। इन लोगों की इतनी बातें सुनकर भी तुम्हारे साथ चलने को तैयार हैं। तुम चुपचाप खड़े हो।"
किशोरी ने कहा,
"क्योंकी वह मर्यादा समझता है तुम नहीं।"
उन्होंने मनोरमा की तरफ देखकर ताना मारा,
"देख लिया संस्कारों का फर्क। हमने विशाल के लिए जिसे चुना है उसमें भी संस्कार हैं। ले जाओ अपनी बेहूदा लड़की को यहाँ से।"
सर्वेश कुमार माया को दरवाज़े की तरफ खींचने लगे। माया ने ताकत लगाई और अपने आप को छुड़ा लिया। उसने विशाल से कहा,
"आखिरी बार कह रहे हैं हमें ले चलो। शादी कर लो हमारे साथ। जैसे भी रखोगे रह लेंगे।"
विशाल सर झुकाए खड़ा था। उसकी हिम्मत माया की तरफ देखने की भी नहीं हो रही थी। माया उसकी तरफ देख रही थी। इस समय उसका जो रूप था वह बहुत डरावना था। सर्वेश कुमार की हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि उसे खींचकर ले जाएं। आंगन में मौजूद सभी लोगों का यही हाल था। माया ने कहा,
"हम लड़की होकर हिम्मत कर यहाँ आ गए। तुम इतनी सी भी हिम्मत नहीं कर पाए कि हमारा हाथ पकड़ सको। पर हमने कहा था कि हमारा प्यार टाइम पास नहीं है। तुमको मेरा होना होगा।"
माया गुस्से से कांप रही थी। उसकी आँखें गुस्से से लाल थीं। उसने कहा,
"आज तुमने चुप रहकर हमारा बहुत अपमान किया है। हम भी इस घर के आंगन में खड़े होकर श्राप देते हैं कि इस घर में कभी खुशियां टिक नहीं पाएंगी। हर खुशी मातम में बदल जाएगी।"
उसने एकबार सबकी तरफ देखा। फिर पैर पटकती हुई चली गई। कुछ देर तक एक सन्नाटा छाया रहा। उसके बाद सर्वेश कुमार और मनोरमा भी निकल गए।