गाँव के एक पक्के मकान के पीछे के दरवाजे से एक मर्द और औरत चोरों की तरह आगे पीछे देखते हुये मकान से बाहर निकले, सामने सूरज ढल रहा था और उसकी किरणें सीधी उनके मुँह पर पड़ रही थीं,मर्द देखने में युवा था और औरत सुन्दर थी, पर दोनों के चेहरों का रंग उड़ा हुआ था,औरत के हाथों में कपड़े में लिपटा हुआ कुछ था, एक-दो पल के लिए वे दूसरी ओर से आ रही आवाजों को सुनने के लिए वहीं रुक गये,लेकिन फिर वे सर्र से गन्ने के खेत में जा घुसे,ये शहाबुद्दीन और उसकी बीवी साहिबजान थे ,उनके गाँव के बहुत से लोग शाम होने से पहले ही गाँव खाली कर के चले गये थे,क्योंकि अफवाहें उड़ रही थीं कि उस गाँव पर दंगाईयों का हमला होने वाला है, वहाँ के बड़े बुजुर्गों ने इस मसले को लेकर बड़ी मस्जिद में एक सभा की और गाँव खाली कर देने का फैसला कर लिया लिया,सारे गाँव में विलाप होने लगा,रोते हुए लोगों ने कुछ जरूरी सामान की गठरियाँ बाँधीं और अफरा-तफरी में घर के दरवाजों को ताले लगाकर, पशुओं को खेतों में खुला छोड़कर, सभी लोग अपने घरों से निकलकर गलियों में इकट्ठे हो गये, ऐसा लग रहा था मानो गाँव की आत्मा अपना शरीर छोड़कर जा रही थी,अपने मकानों की दीवारों की ओर देख-देख कर बूढ़े विलाप कर रहे थे,लेकिन शहाबुद्दीन सबके साथ ना जाया पाया था क्योंकि साहिबजान की तबियत ठीक नहीं थी,उसकी चार महीने की बेटी भी थी जो अभी छोटी थी,लेकिन उसने गाँववालों से कह दिया था कि वो रात होने से पहले यहाँ से निकल जाएगा,
इसलिए शाम होने से पहले शहाबुद्दीन और साहिबजान गाँव छोड़कर भाग जाना चाहते थे,इतने में गाँव से ऐसे शोर आने लगा जैसे वहाँ कोई आसमान टूट पड़ा हो,शोर उनके पास आता जा रहा था,वें अभी गन्ने के खेत में घुसे थे और गन्ने के खेत में बहुत उमस थी,इसलिए साहिबजान को घुटन महसूस होने लगी,उसके हाथों में उसकी चार महीने की बच्ची थी जिसका नाम इनायत था,वो अभी भी साहिबजान की बाँहों में सो रही थीं,तभी इनायत ने अँगड़ाई ली और वो जागने को हुई तभी शहाबुद्दीन बोला......
"बड़ी मुसीबत हो जाएगी अगर ये जाग पड़ी तो ,दंगाई हमें ढ़ूढ़कर खतम कर देगें,"
"तो क्या करने का इरादा है"?,साहिबजान ने पूछा....
तभी दोनों को दूर ही घुडसवारों के आने की आवाज़ सुनाई दी तो शहाबुद्दीन साहिबजान से बोला.....
"साहिबा! ला मैं इनायत को गन्ने के खेत के बाहर जो टेसू का पेड़ लगा है उसके नीचे रखी बैलगाड़ी में लिटा आऊँ,जब दंगाई चल जाऐगें तो मैं उसे उठा लाऊँगा"
"मेरा मन नहीं मानता, हड्डी की तरह इसे कैसे उनके सामने फेंक दूँ",साहिबजान बोली......
"जल्दी कर साहिबा! इसका और हमारा भला इसी में है,अगर ये जाग गयी और उन्होंने इसकी आवाज़ सुन ली तो हम सब मारे जाएँगें",
तभी गाँव में गोली चलने की आवाज आयी तब शहाबुद्दीन बोला.....
"ज्यादा मत सोचो ,इनायत को मुझे दो,मैं इसे टेसू के पेड़ के नीचे रखी बैलगाडी में रखकर आता हूँ"
फिर साहिबजान ने इनायत का मुँह चूमा और शहाबुद्दीन ने जल्दी से उसके हाथों से इनायत को ले लिया और गन्ने के खेत से बाहर आकर उसने उसे टेसू के पेड़ के नीचे रखी बैलगाड़ी में लिटा दिया,फिर उसे "ख़ुदा हाफ़िज" बोलकर वो साहिबजान के पास आ पहुँचा,तभी उन दोनों को इनायत के रोने की आवाज़ आई और साहिबजान रुककर बोल पड़ी...
"हाय!इनायत रो पड़ी,अब क्या होगा"?
"इनायत को अल्लाह के हाथों में सौंप दो और यहाँ से चलो,यहाँ रुकने का समय नहीं",शहाबुद्दीन बोला...
और फिर साहिबजान और शहाबुद्दीन रोती बिलखती चार महीने की इनायत को वहीं छोड़कर आगें बढ़ गए,रात हो चुकी थी और उस रात शहाबुद्दीन के घर की ओर कोई भी दंगाई नहीं आया,वें गाँव के दूसरी ओर ही लूटपाट करते रहे,फिर रात को बादल गरजने लगें,इस दौरान भूखी इनायत कई बार सोई और कई बार जागी, जब अँधेरा काफी गहरा गया तो साहिबजान और शहाबुद्दीन सूखी नदी की ओर चल दिये,अब उनके लिए इनायत को लाना कठिन हो गया था,नदी पर बहुत भीड़ थी,उस इलाके के सभी लोग अपना अपना गाँव छोड़कर जा रहे थे,साहिबजान और शहाबुद्दीन उन्हीं के साथ हो लिए....
फिर बरसात शुरू हो गई,सारी रात बरसात कभी होती तो कभी थम जाती, टेसू के चौड़े पत्तों पर बरसात की बूँदें इकट्ठी होतीं तो जब हवा चलती तो वों बूँदें इनायत के मुँह पर पड़तीं तो वों चौंक जाती और जब कोई बूँद उसके होंठों पर पड़ती तो वो पुच्च-पुच्च करके उसे चाट लेती,ऐसे करके कई बूँदें सारी रात उसके छोटे से मुँह में जातीं रहीं,बादल गरजते तो बच्ची डर के मारे रोने लगती लेकिन वहाँ चुप कराने के लिए भी तो कोई ना बैठा था इसलिए खुद से चुप होकर सो जाती और जब भूख लगती तो फिर रोने लगती,कभी रोती, कभी पानी की बूँदें पीकर पुच्च पुच्च करती, कभी थककर सो जाती ,इसी तरह रात बीत गयी, सूरज की पहली सुनहरी किरण जब इनायत के मुँह पर पड़ी तो उस समय वह हाथ-पैर मारकर खेल रही थी,
रात को दंगाई गाँव के उस तरफ के घरों से बड़ी और कीमती चीजें उठाकर चले गए थे,सूने गाँव की भयावहता दंगाईयों को भी डरा रही थी, दिन होते ही वे फिर वहाँ लौट आये दूसरी ओर का हिस्सा लूटने, शहाबुद्दीन के घर की ओर भी कुछ लोग आए ,तभी एक को बच्चे के रोने की आवाज़ आई और वो उस ओर गया,वो बच्ची के पास पहुँचा तो वो उसे देखकर चौंकी और चुप हो गई,जब उस इन्सान ने बच्ची के गालों पर हाथ फिराया तो वो खिलखिलाकर हँस पड़ी,उसे देखने वाला इन्सान बहुत खुश हुआ,उसने झुककर बाँहें फैलाईं तो बच्ची ने बुरा सा मुँह बनाया,जैसे उसे उस इन्सान पर भरोसा ना हो ,फिर उस इन्सान ने चुटकी बजाई तो बच्ची अब मुस्करा पड़ी, बच्ची के हाथों में चूड़ियाँ और देह पर फ्राँक देखकर उस इन्सान को लग गया कि ये तो लड़की है, फिर वो उसे अपनी गोद में उठाकर वापस आ गया और अपने साथियों से बोला...
"मुझे अब तुम लोग छुट्टी दो, मुझे यहाँ बहुत कुछ मिल गया है"
"क्या मिला है"?,साथी ने पूछा....
"ये बच्ची मिली है,ना जाने कब की भूखी है",वो इन्सान बोला....
"तब तो तेरी मौज हो गयीं",उसका साथी बोला...
"तो अब मैं जाऊँ",उस इन्सान ने अपने साथी से पूछा....
"जैसी तेरी मर्जी,तू तो बेऔलाद है,तेरी बीवी इसे पाकर निहाल हो जाऐगी,बच्ची है भी तो कितनी खूबसूरत है,टमाटर जैसे लाल लाल गाल और नीली आँखें,जा इसे मेरी घोड़ी पर लेजा जा और फिर पहुँचकर घोड़ी मेरी हवेली में बाँध देना",साथी बोला....
जिसे इनायत मिली थी वो रसीद था और उसकी बीवी का नाम था हुस्नाबानो,वो घर पहुँचा और हुस्नाबानो ने दरवाजा खोला और रसीद से बिना कुछ पूछे वह मुँह फुलाकर भीतर चली गई क्योंकि रसीद कई रोज के बाद घर लौटा था,हुस्नाबानो का रुख देखकर रसीद ने पूछा....
"पूछेगी नहीं कि मैं क्या लाया हूँ"?
"लाए होगे कोई बड़ा खजाना,हीरे,मोती जवाहरात और क्या ला सकते हो तुम",हुस्नाबानो बोली...
"ऐसे ही बड़बड़ाती रहेगी,जरा इधर तो देख",रसीद ने बच्ची के शरीर से कपड़ा हटाते हुए कहा....
"हाय! मैं मर जाऊँ, किस बेरहम माँ ने छोड़ दिया इस फूल सी बच्ची को",हुस्नाबानो बोली...
"तुझे कैसें पता कि ये लड़की है"?,रसीद ने पूछा...
"इसकी फ्राँक और चन्दा सा मुँखड़ा देखकर",हुस्नाबानो बोली....
"मुझे ये टेसू के पेड़ के नीचे बैलगाड़ी पर पड़ी मिली",रसीद बोला....
"अल्लाह का लाख लाख शुक्र है कि तू बच गई,तू भूखी होगी ,सारी रात तूने कुछ नहीं पिया होगा", हुस्नाबानो बोली....
फिर हुस्ना ने बच्ची को एक कपड़े का किनारा दूध में भिंगोकर थोड़ा थोड़ा दूध उसके मुँह में टपकाया,तो बच्ची चुक-चुक करके ढ़ेर सारा दूध पी गई,हुस्ना ने उसका नाम मेहर रखा क्योंकि वो अल्लाह की देन थीं...
पर अभी उनके पास मेहर को आए दो हफ्ते भी नहीं बीत पाये थे कि गाँव में उनके बारे में बातें होने लगीं,वे दोनों लाहौर से थे और अब देश का बँटवारा होने के बावजूद भी वें यहाँ पर रह रहे थे,ये खबर गाँव में आग की तरह फैल गई और उसके हिन्दुस्तानी साथियों ने उसे ये गाँव छोड़कर जाने को कहा,क्योंकि अब उनके लिए यहाँ खतरा हो सकता था,दंगा होने का वहाँ भी डर भी था और फिर दोनों मियाँ बीवी वो गाँव छोड़कर चल पड़े,रास्ते में उनके साथ जाने वाले लोगों ने कहा कि बच्ची को यहीं छोड़ दो अगर किसी ने इसके रोने की आवाज़ सुन ली तो हम मुसीबत में पड़ जाऐगें तो इस बात पर हुस्नाबानो कटार लेकर खड़ी हो गई और बोली...
"पहले मुझे मार दो,बाद में बच्ची को हाथ लगाना",
हुस्नाबानो के इरादे के सामने कोई ना टिक सका और फिर वें सभी छुपते छुपाते आखिरकार लाहौर पहुँच ही गये,धक्के खाते वे रिफ्यूजी कैम्प पहुँच गये,वहाँ चारों तरफ सिसकियाँ और आँसू ही थे लेकिन हुस्ना खुश थी कि खतरा टल गया,अब उसकी बच्ची को उससे कोई नहीं छीन सकता,
और फिर उसे किसी औरत के रोने की आवाज़ आई,उसे काफी लोग घेरे खड़े थे,वो औरत सबसे कह रही थी...
"मैं माँ नहीं! मैं तो डायन हूँ !कहीं वो बच्ची रो ना पड़े और हम मारे न जाएँ इसलिए मैं उसे वहाँ जिन्दा फेंक आयी,कोई जंगली जानवर खा गया होगा उसे या तो वो भूखी मर गई होगी,याहअल्लाह ....किसने दफनाया होगा उसे"
उस औरत की बात सुनकर हुस्नाबानो वहाँ से चली आई,वो कोई और नहीं इनायत की माँ साहिबजान थी,उसका विलाप किसी से नहीं सुना जा रहा था,हुस्ना से भी वो सब ना सुना गया और वो बच्ची को कपड़े में छुपाकर अपनी जगह वापस आ गई,साहिबजान का भाई पुलिस में था और उसने दो चार दिनों के भीतर ही सबकुछ पता लगा लिया और हुस्नाबानो और रसीद पकड़ में आ गए,लेकिन हुस्ना ने कहा कि ये तो मेरी बच्ची है,ये कहने पर उसके चेहरे पर कोई घबराहट नहीं थी,ये सुनकर साहिबजान का दिल टूट गया,तब साहिबजान ने हुस्नाबानो से कहा कि मैं तुमसे अकेले में बात करना चाहती हूँ और फिर साहिबजान ने हुस्ना से कहा....
"तू सच कहती है,ये तेरी बच्ची है",
"हाँ! बहन मैं सच कहती हूँ,अल्लाह कसम!",हुस्नाबानो बोली....
और ये सुनकर साहिबजान बेहोश होकर गिर पड़ी,डाक्टर ने देखा तो बोला....
"अब इनका बचना मुश्किल है,बच्ची का ग़म इन्हें जीने नहीं देगा",
ये सुनकर हुस्नाबानो वहाँ से चली गई और कुछ देर बाद वो लौटी और उसने साहिबजान के सीने पर बच्ची को लिटा दिया,बच्ची ने जब साहिबजान के चेहरे पर हाथ फिराए तो वो होश में आ गई और रोते हुए उसने बच्ची के हाथों को चूमना शुरू कर दिया और फिर उसे कलेजे से लगाकर बोली...
"हाय!मेरी बच्ची! मेरी इनायत",
"इसका नाम इनायत है और मैनें इसका नाम मेहर रखा है",हुस्नाबानो बोली...
"बहुत मेहरबानी बहन जो तूने इसे मुझे लौटा दिया",साहिबजान बोली....
तब हुस्नाबानो ने बच्ची को अपनी गोद में लेकर उसे जीभर के चूमा और उसे साहिबजान को वापस करते हुए बोली....
"बहन! ये तुम्हारी इनायत और मेरी मेहर है,तुमने इसे जन्म दिया है और मैनें इसे बचाया है,मैं इसकी माँ और तुम इसकी मौसी बन जाओ,मैं इसे अपने दिन-रात एक करके जैसे तुम कहोगी वैसे पालूँगी, जहाँ कहोगी वहीं इसका निकाह करूँगी जो भी तुम कहोगी मैं मानूँगी,लेकिन मुझे इसकी माँ बनी रहने दो",
अब साहिबजान को हुस्नाबानो फरिश्ता लग रही थी, इनायत पर उसका हक़ उसे अपने हक़ से ज्यादा लग रहा था, उसने इनायत का मुँह चूमकर, हाथ आगे करके उसे हुस्नाबानो की गोद में दे दिया और उससे बोली...
"यह तेरी ही मेहर ही रहेगी और तुम ही इसकी माँ रहोगी और मैं अब इसकी मौसी बनूँगी,पर एक बात तुम भी मेरी मान लो"
तब साहिबजान की बात सुनकर हुस्नाबानो बोली....
"हाँ...बहन! तुम्हारे मुँह से निकली बात मैं कभी नहीं ठुकराऊँगी, तुम बस हुक्म करो,"
हुस्ना ने अपनी पूरी जिन्दगी में खुद को कभी इतना नम्र, इतना अच्छा और अमीर महसूस नहीं किया था,तब साहिबजान उससे बोली....
"मैं ये कहना चाहती हूँ कि अब मेहर और उसके माता-पिता आज से मेरे घर में ही रहेंगे"
और ऐसा कहकर साहिबजान ने हुस्नाबानो के गले में अपनी बाँहें डाल दीं और उस आलिंगन और आँसुओं की धारा में माँ-मौसी का अन्तर भी खतम हो गया,हुस्नाबानो का मेहर की तरफ अटूट प्यार देखकर साहिबजान का दिल पसीज गया था.....
समाप्त.....
सरोज वर्मा....