(18)
पुष्कर ने माया से कहा कि विशाल उससे मिलकर बहुत ज़रूरी बात करना चाहता है। माया भी एकबार विशाल से मिलना चाहती थी। उसने कहा कि आने वाले रविवार को उसके पापा मम्मी कहीं जाने वाले हैं। विशाल दोपहर तीन बजे के करीब उसे तालाब के किनारे मिले। पुष्कर ने यह संदेश विशाल को दे दिया।
माया का संदेश सुनकर विशाल बहुत खुश हो गया था। उसने धीरे धीरे इस बात की तैयारी शुरू कर दी थी कि माया से शादी कर सके। उसने अपने एक दोस्त की मदद से रहने के लिए किराए की जगह भी देख ली थी। उसका सोचना था कि माया से शादी करके कुछ दिन दोनों वहाँ रहेंगे। उसके बाद घरवालों को मना लेंगे। फिर सब ठीक हो जाएगा। विशाल अब माया से मिलकर उसे तैयार करना चाहता था।
रविवार को विशाल तय समय पर तालाब पर पहुँच गया। पुष्कर हमेशा की तरह साथ था। विशाल माया की राह देखने लगा। कुछ देर में माया वहाँ आई। होली की उस घटना के बाद आज बहुत दिनों बाद दोनों मिल रहे थे। एक दूसरॅ को सामने पाकर भावनाओं का आवेग उमड़ पड़ा। दोनों एक दूसरे को गले लगाकर रोने लगे। जब मन हल्का हुआ तो विशाल ने कहा,
"हम दोनों के घरवाले तो ज़िद पकड़ कर बैठे हैं। पर तुम्हारे बिना रह पाना मुश्किल है। हमने नौकरी ढूंढ़ ली है। शादी करने की सारी तैयारी भी कर ली है। तुम्हें हिम्मत दिखानी होगी और हमारे साथ चलना होगा। शादी हो जाने के बाद हम अपने घरवालों को मना लेंगे।"
माया ने कहा,
"हमने तो पहले ही कहा था कि हमें तुम्हारा ही होना है। पापा मम्मी कहीं और हमारी शादी करना चाहते हैं। हम तुमसे ही शादी करेंगे। हम तो कहते हैं अभी ले चलो।"
"चाहते तो हम भी यही हैं पर अभी तुम अठ्ठारह साल की पूरी नहीं हुई हो। एक महीना बाकी है। तब तक हमें इंतज़ार करना पड़ेगा।"
"पर मम्मी पापा तो इंतज़ार नहीं कर रहे हैं। आज कहीं हमारे रिश्ते की बात करने गए हैं। हम बहुत परेशान हैं।"
"सिर्फ बात करने गए हैं ना। समय से पहले तो वह भी तुम्हारी शादी नहीं करवा देंगे। हमने सारी तैयारी कर ली है। बस तुम्हारा अठ्ठारहवां जन्मदिन हो जाए। हम दोनों शादी कर लेंगे।"
माया नहीं चाहती थी कि अभी घर जाए। उसे डर था कि उसकी शादी किसी और से हो जाएगी। वह विशाल के सीने से लगकर बार बार कहने लगी कि उसे इसी समय ले चले और शादी कर ले। विशाल परेशान दिख रहा था। पुष्कर इस चीज़ पर नज़र रखे था कि कोई आ ना जाए। उसकी निगाह तालाब की तरफ बढ़ते लोगों पर पड़ी। ध्यान से देखा तो बद्रीनाथ के साथ सर्वेश और मनोरमा थे। उसने फौरन विशाल और माया को आगाह किया। दोनों संभलते तब तक तीनों वहाँ आ गए। आते ही मनोरमा ने कहा,
"हमने कहा था तो बहुत बुरा लगा था। आज देख लीजिए कैसे मेरी बेटी को बहका रहा है।"
बद्रीनाथ ने आगे बढ़कर विशाल को थप्पड़ मारा। उन्होंने गुस्से से पूछा,
"यहाँ इस लड़की के साथ क्या कर रहे थे ?"
विशाल ने कहा,
"हमने आपसे कहा था कि हम माया को चाहते हैं। उससे ही शादी करेंगे।"
उसने हाथ जोड़कर उन तीनों से विनती की,
"आप लोग मान जाइए। सब अपनी ज़िद पर अड़े हैं। हमारे बारे में कोई नहीं सोच रहा है। हम दोनों एक दूसरे के बिना खुश नहीं रह पाएंगे।"
हिम्मत पाकर माया ने बद्रीनाथ के सामने हाथ जोड़कर कहा,
"ताऊ जी....आप तो समझिए। हम दोनों की खुशी साथ रहने में है। ताई जी भी हमें पसंद करती हैं। हमें विशाल से शादी कर लेने दीजिए।"
सर्वेश अब तक चुप खड़े थे। उन्होंने माया को थप्पड़ मारकर कहा,
"बेशर्म जिन्होंने हमारी बेइज्ज़ती की। तुम्हारे बारे में गलत बातें कीं उनके सामने हाथ जोड़ रही हो। चुपचाप हमारे साथ घर चलो।"
यह कहकर वह माया को खींचकर ले जाने लगे। मनोरमा भी उनके साथ चली गईं। बद्रीनाथ गुस्से से विशाल को घूर रहे थे। पुष्कर डरा सहमा सा खड़ा था। बद्रीनाथ ने अपनी नज़रें उसकी तरफ घुमाकर कहा,
"तुम्हारे भाई ने बहुत कुछ सिखा दिया है तुम्हें। दूत बनकर संदेश ले जाते हो।"
पुष्कर डर के मारे रोने लगा। बद्रीनाथ ने गुस्से से कहा,
"चुपचाप हमारे साथ चलो।"
दोनों भाई उनके पीछे घर चले गए।
रास्ते भर विशाल यह सोचकर परेशान था कि उसके और माया के तालाब के पास होने की सूचना उन लोगों को कैसे मिल गई ? सर्वेश कुमार और मनोरमा तो कहीं गए हुए थे। फिर वापस कैसे आ गए ? बद्रीनाथ को पुष्कर के संदेश ले जाने वाली बात कैसे पता चली ? जब वह और पुष्कर बद्रीनाथ के साथ घर पहुँचे तो सबसे पहले उनका सामना किशोरी से हुआ। किशोरी ने कहा,
"क्या हुआ बद्री ?"
बद्रीनाथ गुस्से से बोले,
"होना क्या था जिज्जी.....मनोरमा की बात सही थी। नाक कटा दी हमारी इस लड़के ने। उस लड़की को गले....."
कहते हुए बद्रीनाथ चुप हो गए। उन्होंने विशाल और पुष्कर को घूमकर देखा। उसके बाद पुष्कर से बोले,
"इनके भी पर निकल रहे हैं। बड़े भाई से बहुत प्यार है इन्हें। उसकी प्रेम कहानी आगे बढ़ा रहे हैं।"
उसके बाद विशाल से बोले,
"ऐसी आशिकी चढ़ी है तुम पर कि छोटे भाई को गलत रास्ते पर भेज रहे हो।"
विशाल और पुष्कर दोनों नज़रें झुकाए खड़े थे। किशोरी ने विशाल से कहा,
"उस लड़की को क्यों बुलाया था ?"
विशाल ने कुछ नहीं कहा। बद्रीनाथ बोले,
"कोई तो बात करनी होगी उससे। ऐसा क्या कहना था कि उसे मिलने बुलाया था ?"
विशाल फिर कुछ नहीं बोला। इस बात से बद्रीनाथ का गुस्सा और बढ़ गया। वह उसे मारने के लिए आगे बढ़े। उमा बीच में आकर बोलीं,
"इतना कुछ हुआ है जिसके कारण परेशान है। अभी रहने दीजिए। हम बात करके आपको बता देंगे। अब आप भी आराम कीजिए।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"सोचा था कि बेटा जवान हो रहा है। पढ़ लिखकर नौकरी करेगा। हमें सुख देगा। पर इन्हें तो आशिकी करनी है।"
कहते हुए वह अपने कमरे में चले गए। किशोरी भी उनके पीछे पीछे चली गईं। उमा ने विशाल और पुष्कर को उनके कमरे में जाने को कहा।
शाम का समय था। विशाल अपने कमरे में उदास लेटा था। जो कुछ हुआ विशाल उसके कारण बहुत परेशान था। वह जानता था कि अब तो वह माया को भगाकर शादी भी नहीं कर पाएगा। पुष्कर वहीं बैठा पढ़ रहा था। लेटे हुए विशाल की आँखों से आंसू बहने लगे। फिर वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। पुष्कर उसे चुप कराने जा रहा था तभी उसकी नज़र उमा पर पड़ी।
विशाल को अपने माथे पर स्पर्श महसूस हुआ। उमा उसके सर के पास खड़ी थीं। वह उठकर बैठ गया। उमा ने उसका सर अपने सीने में छुपा लिया। विशाल रोते हुए बोला,
"हमारी और माया की शादी क्यों नहीं हो सकती है मम्मी ? आप जानती हैं कि माया अच्छी लड़की है। आप लोगों की इज्ज़त करती है। बुआ ना जाने क्यों उसके पीछे पड़ गई हैं। मम्मी हमने और उसने कभी कोई गलत काम नहीं किया। हम प्यार करते हैं एक दूसरे को शादी करना चाहते हैं। ऐतराज़ वाली कोई बात भी नहीं है। फिर भी सिर्फ ज़िद में यह सब हो रहा है।"
उसने माया को अपने पास बैठने को कहा। उन्हें सारी बात बता दी जो उसने माया से कही थी। वह बोला,
"हमने सारी तैयारी कर ली है मम्मी। पर अब तो यह भी संभव नहीं लग रहा है।"
विशाल की बात सुनकर उमा सोच में पड़ गईं। कुछ देर पहले ही वह बद्रीनाथ और किशोरी का फैसला सुनकर आई थीं। उन्होंने तय किया था कि विशाल की शादी कहीं और करवा देंगे। उन्हें चुप देखकर विशाल ने पूछा,
"मम्मी अगर हम और माया शादी कर लें तो आप हमारा साथ देंगी ना ?"
इस सवाल ने उमा की मुश्किल और बढ़ा दी। तभी बद्रीनाथ कमरे में दाखिल हुए। उन्होंने कहा,
"उस लड़की के प्यार में घरवालों के खिलाफ षडयंत्र रचना सीख गए। हमने अभी तुम्हारा सारा प्लान सुना। उमा कोमल ह्रदय की है। इसलिए अपनी मम्मी की भावनाओं के साथ खेल रहे हो। पर हम तुम्हें साफ साफ बता देते हैं कि ऐसा वैसा कुछ किया तो जीवन भर के लिए हमसे रिश्ता टूट जाएगा। फिर उस लड़की के साथ रहना जीवन भर।"
बद्रीनाथ अपनी बात कहकर कमरे से निकलने लगे। उन्होंने रुककर उमा की तरफ देखा। वह भी चुपचाप उनके साथ चली गईं। पुष्कर उनकी तकलीफ समझ रहा था।
उमा रसोई में काम कर रही थीं। पुष्कर पानी पीने गया तो उनकी आँखों में आंसू देखे। वह समझ गया कि जो कुछ हो रहा है उमा को अच्छा नहीं लग रहा है। पर वह कुछ नहीं बोला। पानी पीकर चुपचाप निकल गया।
वह जानता था कि उमा का मन था कि विशाल और माया की शादी करा दी जाए। होली वाले दिन जब बखेड़ा खड़ा हुआ था तो उन्होंने दबी ज़बान यह बात कही थी। लेकिन हमेशा की तरह उनकी बात की अनसुनी हो गई। उसके बाद जब मौका आया तो बात बिगड़ गई। उस दिन पुष्कर सोच रहा था कि शायद मम्मी कुछ कहेंगी। उस समय वह हिम्मत करके अपनी बात कह सकती थीं। पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी यही थी कि वह अपनी बात कह नहीं पाती थीं। बद्रीनाथ को ऐसा लगता था कि जो फैसला उन्होंने किशोरी के साथ मिलकर किया है, उमा उससे सहमत हैं। जबकी उनके अधिकांश फैसले वह बेमन से स्वीकार करती थीं।
आज तो जो हुआ उसने विशाल और माया की शादी के सारे रास्ते बंद कर दिए थे। आज भी किशोरी और बद्रीनाथ ने एक फैसला लिया था। पुष्कर समझ रहा था कि वह सहमत नहीं हैं। लेकिन कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही हैं। असहमत होंने के बावजूद भी वह चुप हैं।
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