(17)
सन्नाटे में झींगुरों की आवाज़ें सुनाई पड़ रही थीं। खिड़की खुली हुई थी। उससे हवा आ रही थी। दिशा को ठंड लग रही थी। पुष्कर ने उठकर खिड़की बंद कर दी। उसे शॉल ओढ़ा दिया। अपने और उसके पैरों पर कंबल डाल लिया। दिशा के दिमाग में माया और विशाल की प्रेम कहानी घूम रही थी। पुष्कर के हिसाब से वह उस प्रेम कहानी का प्रमुख पात्र था। जिसके कारण माया और विशाल की प्रेम कहानी आगे बढ़ी थी। उसने पुष्कर से कहा,
"तुमने तो भइया और माया के प्रेम को बढ़ते देखा था। तुम्हें क्या लगता था ? भइया माया को सचमुच प्यार करते थे ?"
यह सवाल सुनकर पुष्कर सोच में पड़ गया। उसने कहा,
"उस समय प्यार को समझने लायक हो गया था। तब मुझे यही लगता था कि भइया एक दिन माया को मेरी भाभी बनाकर घर लाएंगे। पर जो हुआ उससे मुझे लगता है कि मैं भइया को समझ ही नहीं सका था।"
दिशा कुछ सोचकर बोली,
"मेरी और तुम्हारी शादी में तो घरवालों को बहुत सारे ऐतराज़ के कारण मिले थे। हम दोनों की जाति अलग है। फिर मम्मी का पापा से अलग हो जाना तुम्हारी बुआ के लिए ऐतराज़ करने का सबसे बड़ा कारण था। लेकिन जहाँ तक मैं समझती हूँ कि माया के साथ तो जाति की समस्या नहीं थी। तुम्हारे और उसके परिवार की आर्थिक और सामाजिक दशा भी एक जैसी थी। तो ऐतराज़ करने का कारण सिर्फ इतना ही था कि दोनों ने अपनी मर्ज़ी से प्यार कर लिया।"
आखिरी बात कहते हुए दिशा की आवाज़ में तल्खी थी। पुष्कर ने कहा,
"शुरुआत में तो ऐतराज़ का यही कारण था। पर मम्मी को उमा पसंद थी। उन्हें लगता था कि वह इस घर में आएगी तो सबको साथ लेकर चलेगी। पापा शुरुआत में गुस्सा थे। पर मम्मी ने उन्हें समझाया। वह मान गए। उन दोनों ने बुआ से बात की। बुआ को भी ऐतराज़ का खास कारण नज़र नहीं आया।"
दिशा ने आश्चर्य से कहा,
"इसका मतलब उन दोनों की शादी तय हो गई थी।"
"नहीं दिशा.... एकदम से कोई फैसला नहीं लिया गया। भइया से कहा गया कि कॉलेज पूरा कर नौकरी करने लगो तो सोचेंगे।"
दिशा के दिमाग में एक बात आई। उसने कहा,
"तुम्हारे घर क्या हुआ वह तो पता चल गया। माया के घर भी तो कुछ हलचल हुई होगी।"
"कुछ नहीं बहुत हलचल हुई थी। सुनने में आया था कि होली वाले दिन हमारे घर से जाने के बाद चाचा जी ने माया पर हाथ उठाया था। माया का स्कूल जाना बंद हो गया था। चाचा जी ने बारहवीं का प्राइवेट फार्म भरवा दिया था। मनोरमा चाची उस पर हमेशा नज़र रखती थीं।"
दिशा सब सुनकर गंभीर हो गई। उसने कुछ गुस्से से कहा,
"क्या कहूँ..... अजीब समाज है हमारा। अगर गलती थी तो भइया और माया दोनों की ही थी। पर लड़की होने के नाते सज़ा माया को मिली। पढ़ाई छूट गई। घर में नज़रबंद हो गई। किसी को भी उसकी घुटन का एहसास नहीं हुआ होगा।"
पुष्कर ने दिशा के कंधे पर हाथ रखकर उसकी बात से सहमति जताई। दिशा ने कहा,
"क्या माया के घरवालों की तरफ से रिश्ता जोड़ने की कोई बात नहीं हुई थी ?"
"बिल्कुल हुई थी। जैसे मम्मी को ऐसा लग रहा था कि उमा एक अच्छी लड़की है और घर में सबके साथ मिलकर रहेगी। वैसे ही शायद मनोरमा चाची को भी लगता था कि भइया को दामाद बनाया जा सकता है। उन्होंने भी चाचा जी से बात करके समझाया होगा कि वह गुस्सा छोड़कर इस विषय में बात करें। उनकी बात मानकर चाचा जी तैयार हो गए। यही कारण था कि चाचा चाची एक दिन हमारे घर मिलने आए थे।"
"तो क्या बात हुई ?"
पुष्कर ने कहानी आगे बढ़ाई....
विशाल के कॉलेज के इम्तिहान कुछ दिनों में होने वाले थे। एक दिन सर्वेश कुमार अपनी पत्नी मनोरमा के साथ मिलने आए। बद्रीनाथ, उमा और किशोरी ने बैठक में उनसे बात की विशाल और पुष्कर अपने कमरे में थे। विशाल किताब खोलकर बैठा था। पर उसका मन लग नहीं रहा था। कुछ देर बाद उसने किताब बंद करके पुष्कर से कहा,
"जाकर सुनने की कोशिश करो कि क्या बात हो रही है ?"
पुष्कर दुविधा में था। किशोरी ने उन दोनों को आदेश दिया था कि अपने कमरे में ही रहें। उसकी दुविधा समझ कर विशाल ने कहा,
"जाओ तो सही। अगर किसी के आने की आहट सुनाई पड़े तो रसोई में चले जाना। कहना पानी पीने आए थे।"
विशाल की बात मानकर पुष्कर चला गया। वह बैठक के पास ऐसी जगह जाकर खड़ा हो गया जहाँ से अंदर हो रही बातें सुनाई पड़ सकें। वह ध्यान से सुनने लगा। बद्रीनाथ की आवाज़ उसके कानों में पड़ी,
"देखो भाई सर्वेश.... तुम चाहते हो कि माया और विशाल का रिश्ता हो जाए। पर तुम्हारी पत्नी ने तो बात की शुरूआत ही ऐसे की कि सारा इल्ज़ाम विशाल पर डाल दिया। उसका कहना है कि विशाल ने माया को बहकाया था। अब बदनामी से बचने के लिए उसकी और माया की शादी ही एक रास्ता है।"
सर्वेश कुमार ने कहा,
"भइया जब हमने कहा कि विशाल और माया के बारे में बात करने आए हैं तो जिज्जी ने पहले ही कह दिया कि माया को संभाल कर रखना चाहिए था। इस पर मनोरमा ने कहा था कि संभलना तो विशाल को भी चाहिए था। उस बात को जिज्जी ने बहकाने वाली बात से जोड़ दिया।"
"सर्वेश.... तुमको हम अपना छोटा भाई मानते हैं। माया हमारी बेटी की तरह है। हम उसके बारे में कोई गलत बात तो नहीं कहेंगे। जिज्जी बस इतना कह रही थीं कि उसे ऊँच नीच के बारे में कुछ बताना चाहिए था।"
कुछ पल शांति रही। उसके बाद मनोरमा की आवाज़ आई,
"भाई साहब अब हमारी बेटी से गलती हुई है तो जिज्जी और आप कुछ भी कह सकते हैं। पर बात एकतरफा तो नहीं होती है। विशाल भी तो समझदार है। माया ने अपनी सीमा नहीं समझी थी तो उसे तो समझना चाहिए था। पर अब आप लोग सारा दोष माया पर ही मढ़ रहे हैं।"
इस बार किशोरी ने प्रतिक्रिया देने में देर नहीं की। वह बोलीं,
"मनोरमा.... अब तुम बात बढ़ा रही हो तो कह रहे हैं। सच तो यह है कि लड़की के माँ बाप की ज़िम्मेदारी अधिक होती है। तुमने उसे मर्यादा सिखाई नहीं। अब शादी की बात ऐसे कर रही हो जैसे धमकी दे रही हो।"
इसके बाद आरोप प्रत्यारोप होने लगे। तेज़ आवाज़ में बातें हो रही थीं। उमा को छोड़कर सब बोल रहे थे। कुछ देर बाद सर्वेश कुमार की आवाज़ सुनाई पड़ी,
"मनोरमा चलो....इन लोगों ने माया के बारे में जैसी बातें की हैं उसके बाद हम इनके लड़के से अपनी बेटी की शादी नहीं कर सकते हैं।"
यह बात सुनते ही पुष्कर फौरन वहाँ से भागकर कमरे में आ गया। विशाल बेसब्री से उसका इंतजार कर रहा था। उसे देखते ही बोला,
"कुछ पता चला कि क्या बातें हो रही हैं।"
पुष्कर ने जो सुना था अपने हिसाब से बता दिया। विशाल समझ गया कि बात बनने की जगह बिगड़ गई है। वह उठा और पुष्कर से बोला,
"हम बाहर जा रहे हैं। कोई पूछे तो कह देना कि भइया ज़रूरी काम से गए हैं।"
यह कहकर वह कमरे से निकल गया।
पुष्कर एकबार फिर रुका। उसने दिशा से कहा,
"मैं कुर्सी पर बैठ जाता हूँ। वहाँ आराम रहेगा।"
वह कुर्सी पर बैठ गया। दिशा ने कहा,
"अगर उस दिन किसी ने भी समझदारी से बात की होती तो मामला सुलझ जाता। मम्मी ने कुछ नहीं कहा।"
"दिशा यही बात तो मुझे बुरी लगती है। उन्हें खुद भी ऐसा लगा था कि बात संभाली जा सकती थी। फिर भी कुछ नहीं बोलीं।"
"भइया ने भी सबकुछ स्वीकार कर लिया। कम से कम उन्हें तो कुछ कहना चाहिए था।"
"भइया ने अपनी तरफ से कोशिश की थी। उन्होंने पाया से बात की थी। उनसे कहा था कि उनसे गलती हुई थी। पर वह और माया एक दूसरे को प्यार करते हैं। लेकिन पापा ने साफ कह दिया कि अब माया के साथ शादी के बारे में सोचना भी मत। उन्होंने कहा कि भइया को उनकी मर्ज़ी से चलना होगा।"
दिशा के चेहरे पर गुस्सा था। उसने कहा,
"भइया ने जब माया से प्यार किया था तो उनकी ज़िम्मेदारी थी कि सबको मना लेते। नहीं तो अपने पैरों पर खड़े होकर माया से शादी कर लेते। पर उन्होंने चुपचाप पापा की बात मान ली।"
"नहीं दिशा..... भइया ने कोशिश की थी कि माया से शादी कर लें। उन्होंने कॉलेज पूरा होने के बाद एक नौकरी भी शुरू कर दी थी। पर...."
यह कहकर पुष्कर चुप हो गया। बात अधूरी छोड़कर उसने दिशा की उत्सुकता को और बढ़ा दिया था। दिशा ने कहा,
"ऐसा क्या हो गया कि भइया की कोशिश के बावजूद भी माया से उनकी शादी नहीं हो पाई।"
पुष्कर ने आगे बताया.....
नौकरी ढूंढ़ने के बाद विशाल ने सबसे पहले पुष्कर के ज़रिए माया से संपर्क करने की कोशिश की। सर्वेश कुमार ने बद्रीनाथ का मकान छोड़कर पास में ही दूसरा घर ले लिया था। माया हमेशा घर पर रहती थी। पुष्कर के लिए उसके घर जाना संभव नहीं था। वह मौका देख रहा था कि माया से मिलने का कोई रास्ता मिल जाए।
एक दिन पुष्कर ने मनोरमा को अपने घर से निकलते हुए देखा। दोपहर का समय था। उसे पता था कि सर्वेश कुमार घर पर नहीं होंगे। माया अकेली होगी। वह कोशिश कर सकता है। उसने जाकर दरवाज़ा खटखटाया। माया ने दरवाज़ा खोला। पुष्कर ने सीधे कह दिया कि विशाल का संदेश देना है। माया ने कुछ क्षण सोचा। फिर उसे अंदर बुला लिया।