The Author Charu Mittal Follow Current Read सेवा और सहिष्णुता के उपासक संत तुकाराम - 1 By Charu Mittal Hindi Spiritual Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books શ્રીમદ્ ભગવદ્ ગીતા - સંપૂર્ણ ૐ ઊંધ્ટ્ટ થ્ૠધ્ધ્અૠધ્ઌશ્વ ઌૠધ્ઃ ગરુડ પુરાણ અનુક્રમણિકા ૧. પ્રથમ અધ્યાય निलावंती ग्रंथ - एक श्रापित ग्रंथ... - 1 निलावंती एक श्रापित ग्रंथ की पूरी कहानी।निलावंती ग्रंथ अपराध ही अपराध - भाग 4 अध्याय 4 “मैंने तो शुरू में ही बोल दिया…... My Wife is Student ? - 22 आदित्य की बात सुनकर स्वाति इधर उधर देखन लगती हैं.. ओर उसे सो... आखेट महल - 5 - 1 पाँचपुलिस का आखेट महल रोड के पेट्रोल पम्प पर तैनात सिपाही उस... मेरी दुनिया, तेरा प्यार द्वारावती - 72 72दोनों ने अदृश्य ध्वनि की आज्ञा का पालन किया। जिस बिंदु पर... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Novel by Charu Mittal in Hindi Spiritual Stories Total Episodes : 11 Share सेवा और सहिष्णुता के उपासक संत तुकाराम - 1 (2) 2.5k 5.1k 1 सेवा और सहिष्णुता के उपासक संत तुकारामसंसार में सभी मनुष्यों का लक्ष्य, धन, संतान और यश बताया गया है। इन्हीं को विद्वानों ने वित्तैषणा, पुत्रेषणा और लोकैषणा के नाम से पुकारा है। इन तीनों से विरक्त व्यक्ति ढूँढ़ने से भी कहीं नहीं मिल सकता। संभव है कि किसी मनुष्य को धन की लालसा कम हो, पर उसे भी परिवार और नामवरी की प्रबल आकांक्षा हो सकती है। इसी प्रकार अन्य व्यक्ति ऐसे भी मिल सकते हैं कि जिनको धन के मुकाबले में संतान अथवा यश की अधिक चिंता न हो। पर इन तीनों इच्छाओं से मुक्त हो जाने वाला व्यक्ति किसी देश अथवा काल में बहुत ही कम मिल सकता है।इसका आशय यह नहीं कि इस प्रकार की आकांक्षा रखने वाला मनुष्य निश्चय ही दूषित समझा जाए। संसार में रहते हुए इन वस्तुओं की आवश्यकता मनुष्य को पड़ा ही करती है और यदि इस आवश्यकता को न्यायानुकूल मार्ग से पूरा किया जाय तो उसमें बुराई अथवा निंदा की कोई बात नहीं है। पर देखने में यह आता है कि बहुसंख्यक लोग इनके लिए गलत उपायों का अवलंबन करते हैं, इनकी लालसा में पड़कर अन्य उच्च श्रेणी के लक्ष्यों को त्याग देते हैं, इसीलिए इन तीनों एषणाओं की ज्ञानी व्यक्तियों ने निंदा की है।दूसरी बात यह भी है कि चाहे ये तीनों कामनायें सामान्य दृष्टि से बुरी या हानिकारक न हों, पर जब मनुष्य का ध्यान अधिकांश में इनकी पूर्ति में लग जाता है, तो वह परोपकार, सेवा आदि के अधिक श्रेष्ठ कार्यों की तरफ से प्रायः उदासीन हो जाता है। ऐसी दशा में यदि कोई व्यक्ति सांसारिक एषणाओं की तरफ से चित्त-वृत्तियों को बिल्कुल हटा ले और उनकी अपूर्ति में भी आनंद का अनुभव करे, तो उसको अवश्य ही सच्चा संत कहा जायेगा। तुकाराम इसी श्रेणी के मनुष्य थे। गृहस्थ जीवन के आरंभ में ही जब वे आकस्मिक विपत्तियों के फलस्वरूप सब सांसारिक वस्तुओं से वंचित हो गये, उन्होंने भगवान् को धन्यवाद देते हुए कहा “भगवान् ! अच्छा ही हुआ जो मेरा दिवाला निकल गया। अकाल पड़ा यह भी अच्छा ही हुआ, क्योंकि कष्ट पड़ने से ही तेरा ध्यान आया और सांसारिक लालसाओं से पीछा छूटा। स्त्री और पुत्र भोजन के अभाव से मर गये और मैं भी हर तरह से दुर्दशा भोग रहा हूँ, यह तो ठीक ही है। संसार में अपमानित हुआ, यह भी अच्छा ही हुआ। गाय-बैल, द्रव्य सब चले गये, यह भी अच्छा ही है। लोक-लाज भी जाती रही, यह भी ठीक है, क्योंकि इन्हीं बातों से अंत में तुम्हारी शरण में आया।”सच तो यह है कि भगवान् अपने सेवक को सांसारिक सफलता मिलने ही नहीं देते, वे उसे सब जंजालों से मुक्त रखते हैं। अगर वे उसको वैभवशाली बना दें तो उसमें अभिमान उत्पन्न हो जाय। अगर वे उसे गुणवती स्त्री दें तो मन में उसी की इच्छा लगी रहे। इसलिए वे उसके पीछे कर्कशा स्त्री लगा देते हैं। तुकाराम कहते हैं कि इन सबको मैंने प्रत्यक्ष देख लिया, अब मैं संसारी लोगों से क्या कहूँ ?* * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * › Next Chapter सेवा और सहिष्णुता के उपासक संत तुकाराम - 2 Download Our App