Babita's mother's lap in Hindi Moral Stories by Rajesh Rajesh books and stories PDF | बबीता की मां का आंचल

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बबीता की मां का आंचल

माता-पिता के स्वर्गवास होने के बाद बलवंत को उसकी मुंह बोली बहन पाल पोस कर बड़ा करती है। और बलवंत की सुंदर सुशील घरेलू लड़की सुलोचना से शादी करवा देती है।

बलवंत की रोजी-रोटी थी अपने गांव से दूर साइकिल से सब्जी मंडी पहुंचकर ट्रैकों से सब्जी के बड़े-बड़े भारी-भारी बोरे बोरे उतारना।

जब कभी बलवंत एक दिन भी मेहनत मजदूरी करने सब्जी मंडी नहीं जाता था, तो दोनों पति-पत्नी की भूख मरने की नौबत आ जाती थी।

और जब बीमारी की वजह से बलवंत सब्जी मंडी मेहनत मजदूरी करने नहीं जा पाता था तो बलवंत सुलोचना गांव में मांग मांग कर अपना पेट भरने के लिए मजबूर हो जाते थे।
इस गरीबी और अपमान से मुक्ति पाने के लिए घरेलू समझदार सुलझी हुई बलवंत की पत्नी सुलोचना गांव के साहूकार से गाय खरीदने के लिए कर्जा लेती है।

और गाय का दूध बेच बेच कर पैसे इकट्ठा करके एक और गाय खरीद लेती है, एक के बाद दूसरी गाय और साथ ही साथ साहूकार का कर्जा भी उतारती रहती है।

साहूकार का कर्जा उतारने के बाद और गायों के दूध से पैसा इकट्ठा करके सुलोचना सबसे पहले किराए घर की जगह अपना छोटा सा घर खरीदती है।

बलवंत और सुलोचना के जीवन में सुधार होने के साथ-साथ वह दोनों एक सुंदर पुत्र के मां पिता भी बन जाते हैं।

सुलोचना अपने पति बलवंत के नाम से मेल खाता हुआ, अपने बेटे का नाम बलराज रखती है।

एक दिन अचानक बलवंत के सीने में बहुत तेज दर्द होता है और डॉक्टर के पास ले जाते ले जाते उसकी मृत्यु हो जाती है।

डॉक्टर बलवंत की जांच करके बताता है कि "दिल का दौरा पड़ने से बलवंत की मृत्यु हुई है।"

बलवंत की मृत्यु के बाद विधवा सुलोचना अपने हौसले हिम्मत बुद्धिमानी के बल पर बलराज को पाल पोस कर पढ़ा लिखा कर कामयाब इंसान बना देती है।

पढ़ा-लिखा होने की वजह से बलराज हो शहर में एक बड़ी कंपनी में अच्छी नौकरी मिल जाती है और शहर में ही कंपनी की तरफ से फ्लैट मिल जाता है।

बलराज के जीवन में कभी भी कोई समस्या या दुख आता था, तो वह अपनी मां के गोदी में सर रख कर लेट जाता था, उसकी मां सुलोचना समझ जाती थी, की बलराज किसी परेशानी में है, इसलिए वह उसका सर अपने हाथों से धीरे-धीरे दबाकर उससे उसकी परेशानी का कारण पूछती थी। बलराज जब मां की गोदी में सर रखकर लेटा रहता था, तो मां की धोती पकड़ कर अपना चेहरा ढक लेता था उसे ऐसा करने से बहुत सुकून शांति मिलता था।

बलराज के बहुत जिद करने के बावजूद भी बलराज की मां सुलोचना अपना गांव छोड़कर बलराज के साथ उसके कंपनी के फ्लैट में रहने नहीं जाती है।

बलराज के साथ बबीता नाम की एक लड़की उसकी कंपनी में काम करती थी।

बबीता बहुत स्वभाव कि युवती थी। बबीता और बलराज जब भी मौका मिलता था, ऑफिस के लंच में साथ खाना खाते थे, दोनों को जब भी मौका मिलता था वह मिलने का मौका नहीं छोड़ते थे।

कभी-कभी ऑफिस के अवकाश वाले दिन बबीता बलराज को अपने घर अपनी विधवा मां भाई भाभी से मिलवाने ले जाती थी, तो बबीता की मां अपने दिल में सोचती थी, कि बबीता के जीवन साथी के रूप में बलराज सब लड़कों में सबसे अच्छा रहेगा।

बबीता बलराज एक दूसरे को मन ही मन बहुत पसंद करने लगे थे।

बलराज हर महीने की तनख्वाह लेने के बाद अपनी मां के पास गांव जरूर जाता था।

एक बार बलराज बबीता और उसकी मां को अपनी मां से मिलवाने गांव लेकर जाता है, बबीता उसकी मां से मिलकर बलराज की मां बहुत खुश होती है।

और जब रात को बबीता बलराज के घर के आंगन में चूल्हे पर बैठकर बलराज बलराज की मां और अपनी मां को गरम गरम खाना बनाकर खिलाती है, तो खाना खाते हुए बलराज की मां बबीता की मां से कहती है कि "अगर आप बुरा ना माने तो एक बात कहूं।"

बबीता की मां कहती है "आप कहो मैं आपकी किसी भी बात का बुरा कैसे मान सकती हूं, आप इतनी समझदार सुलझी हुई हिम्मत वाली महिला है, आप कभी भी किसी को गलत नहीं बोल सकती हैं।"

बलराज की मां कहती है कि "मैं चाहती हूं बलराज और बबीता की शादी हो जाए।"

बलराज की मां की यह बात सुनकर बबीता की मां बहुत खुश हो जाती है।

और दोनों के परिवार वालों की मर्जी से बबीता और बलराज की शादी में हो जाती है।

बलराज से शादी के बाद बबीता कंपनी की नौकरी छोड़ कर बलराज की मां के साथ गांव में ही रहती है।

शादी के दो वर्ष बाद बलराज बबीता एक सुंदर बेटी के माता पिता बन जाते हैं।
बेटी के जन्म के बाद बलराज दस दिन की अपनी कंपनी से छुट्टी लेकर अपने गांव में रहता है, यह दस दिन अपने गांव में बहुत हंसी खुशी से बीतते हैं।

और जब भी बबीता की मां या भाई भाभी बलराज के गांव आते थे, तो बलराज के घर का माहौल बहुत खुशनुमा हो जाता था।

मां सुलोचना पत्नी बबीता और बेटी के साथ बलराज के जीवन में खुशियां ही खुशियां आ गई थी।

एक दिन बलराज लंच में जैसे ही अपने खाने का टिफिन खोलता है, तो बबीता का फोन उसके पास आता है और बबीता घुमा फिरा कर बलराज को बताती है कि "उसकी मां सुलोचना का देहांत हो गया है।"

मां की मौत की खबर सुनकर बलराज रोने लगता है। बलराज ऑफिस से छुट्टी लेकर सीधे बबीता के भाई भाभी और मां के पास जाता है।

यह दुख की खबर सुनकर बबीता की मां और बलराज का भाई भाभी बलराज के साथ उसके गांव जाने के लिए तैयार हो जाते हैं और जब सब रेलवे स्टेशन पर बैठ कर इंतजार कर रहे थे तो उसी समय बलराज के गांव से किसी आदमी का फोन आता है।

बलराज उसका फोन सुनते सुनते रेलवे ट्रैक के करीब पहुंचाता है, वह आदमी बलराज से पूछता है? "तुम गांव आने के लिए वहां से निकल गए हो ना।"

उस आदमी का फोन सुनते सुनते बलराज यह भूल जाता है, कि मैं बात करते-करते रेलवे ट्रैक के करीब पहुंच गया हूं। इस वजह से बलराज पीछे से तेज आती सुपर फास्ट ट्रेन की चपेट में आ जाता है।

बलराज के रेलवे स्टेशन पर ट्रेन से घायल होकर गिरते ही बबीता की मां भागकर बलराज का सर अपनी गोदी में रखकर उसकी नाक और सर का खून अपने आंचल से पहुंचने लगती है।

बबीता की मां के आंचल में अपना मुंह छुपा कर बलराज को ऐसा लगता है, कि वह अपनी मां के आंचल में मुंह छुपा कर लेटा हुआ है और मृत्यु से पहले बलराज को यह एहसास होता है, कि सबकी मां का आंचल एक जैसा ही होता है। और यह सोचते सोचते बलराज बबीता की मां का आंचल अपने हाथ से पकड़ कर अपने चेहरे पर रखकर दम तोड़ देता है।