(14)
अपनी मम्मी से बात करते हुए दिशा यह दिखाने की कोशिश कर रही थी कि सब ठीक है। पर उसकी आवाज़ से उसकी मम्मी को ऐसा लग रहा था कि जैसे वह कुछ छुपा रही है। उन्होंने दिशा से वीडियो कॉल करने को कहा। दिशा जानती थी कि उसकी मम्मी उसका चेहरा देखकर समझ जाएंगी कि कुछ समस्या है। उसने बहाना बनाया कि यहाँ इंटरनेट ठीक से काम नहीं कर रहा है। पर उसकी मम्मी ने फोन काटकर उसे वीडियो कॉल की।
दिशा ने फोन उठाने से पहले खुद को संभाला। उसने तय किया था कि अपनी मम्मी से बात करते हुए मुस्कुराएगी। लेकिन जैसे ही उसे अपनी मम्मी की शक्ल दिखाई पड़ी उसकी सारी कोशिशें बेकार हो गईं। वह रोने लगी। उसे रोता देखकर उसकी मम्मी परेशान हो गईं। उन्होंने कहा,
"मुझे कल से ही लग रहा था कि कोई बात है पर तुम छुपा रही थी। बताओ क्या हुआ है तुम्हें ?"
दिशा को एहसास हुआ कि भावुक होकर वह कमजोर पड़ गई। उसे रोता देखकर उसकी मम्मी परेशान हो गई हैं। उसने बात बनाते हुए कहा,
"नहीं मम्मी.... कोई बात नही है। बस आपको देखकर रोना आ गया।"
"दिशा....टालो मत। तुम्हारी आवाज़ से ही लग रहा था कि कुछ ठीक नहीं है। सही सही बताओ। तुम्हारे ससुराल वालों ने कुछ कहा है।"
"नहीं मम्मी ऐसी कोई बात नहीं है....."
"तुम पुष्कर को फोन दो। मैं उससे बात करती हूँ।"
"मम्मी पुष्कर किसी काम....."
तभी पुष्कर ने उसके कंधे पर हाथ रखा। उससे फोन लेकर बोला,
"नमस्ते मम्मी......"
"यह क्या है पुष्कर ? मेरी बेटी से प्यार करने का दावा करते हो। अभी दो दिन हुए और उसकी आँखों में आंसू हैं। मुझे बताओ क्या बात है ?"
पुष्कर भी नहीं समझ पा रहा था कि क्या कहे। दिशा ने अब अपने आप को संभाल लिया था। वह पुष्कर के पीछे जाकर खड़ी हो गई। उसने कहा,
"मम्मी सच कह रही हूँ कोई बात नही है। बस शाम से आपकी याद आ रही थी..."
उसकी मम्मी ने टोकते हुए कहा,
"दिशा मम्मी हूँ तुम्हारी मुझे बहलाओ मत। तुम नहीं बताना चाहती हो कोई बात नहीं। कल ही मैं वहाँ आ रही हूँ। सब पता कर लूँगी।"
पुष्कर ने कहा,
"आपको आने की ज़रूरत नहीं है मम्मी। कल मैं दिशा को लेकर आपके पास आ रहा हूँ।"
"ठीक है पुष्कर....कल शाम तक तुम दिशा को लेकर नहीं आए तो मैं आऊँगी।"
यह कहकर दिशा की मम्मी ने फोन काट दिया। पुष्कर और दिशा कमरे में जाकर बैठ गए। दिशा ने कहा,
"तुमने मम्मी से कल आने की बात क्यों कही ?"
"तुम भी तो यही चाहती थी ना।"
"लेकिन पुष्कर यहाँ का माहौल ऐसा है....."
पुष्कर ने गुस्से से कहा,
"यहाँ का माहौल ऐसा ही रहेगा। इन लोगों को सिर्फ अपना वहम प्यारा है। हम दोनों की खुशियों से कोई मतलब नहीं है इन्हें।"
"क्या हम दोनों को जाने की इजाज़त मिलेगी ?"
"पापा ने तो कह दिया है कि मैं तुमको लेकर चला जाऊँ। मुझसे और तुमसे उन्हें कोई संबंध नहीं रखना है। तुम तैयारी कर लो। कल सुबह यहाँ से निकल जाएंगे।"
दिशा के कानों में बद्रीनाथ की आवाज़ पड़ी थी। उसने कहा,
"ठीक है.... सामान तो मेरा सूटकेस में ही है। कल सुबह जल्दी निकल जाएंगे।"
पुष्कर बिस्तर पर शांत बैठा था। उसे इस बात का बुरा लग रहा था कि उसने गुस्से में ऐसी बात बोल दी जो उसकी मम्मी को बुरी लगी। दिशा भी उसका दुख समझ रही थी। उसने पुष्कर के कंधे पर हाथ रखा। पुष्कर ने कहा,
"दिशा मुझे मम्मी के लिए बहुत बुरा लग रहा है। मैं गुस्से में बोल गया। मम्मी आंगन में खड़ी रो रही थीं।"
"पुष्कर मुझे भी उनके बारे में सोचकर बुरा लग रहा है। मैंने महसूस किया है कि मम्मी दिल की बहुत अच्छी हैं।"
"तभी तो उनके लिए बुरा लगता है। बचपन से मम्मी को बस पापा और बुआ की बात मानते देखा है। अपने मन की बात तो कह ही नहीं पाती हैं। इसलिए कभी कभी उन पर गुस्सा भी आता था। मैंने तय कर लिया था कि शादी उसी से करूँगा जो अपने मन की बात कह सके।"
दिशा ने उसे अपनी बाहों में भर लिया।
नीचे बैठक में भी बातचीत चल रही थी। इस विषय पर विचार हो रहा था कि पुष्कर और दिशा को जाने दिया जाए या नहीं। विशाल ने अपनी राय रखी,
"तय तो हुआ था कि दोनों एक हफ्ता रहकर चले जाएंगे। पर जो हुआ उसके चलते तो लगता है कि उन दोनों का अभी चले जाना ही अच्छा है। पुष्कर की बात से लगता है कि उसे भी यहाँ रहने में कोई दिलचस्पी नहीं है।"
किशोरी ने कहा,
"हम कह रहे हैं कि जब तक तांत्रिक बाबा का अनुष्ठान पूरा नहीं होता है और यह नहीं कह देते कि सब ठीक है दोनों को यहीं रहना होगा।"
विशाल ने कहा,
"नहीं जाएंगे तो ऐसे ही झगड़े होंगे और घर का तमाशा बनेगा। जब हम लौटकर आए तो दरवाज़ा खुला पड़ा था। पापा और पुष्कर की आवाज़ें बाहर तक सुनाई पड़ रही थीं। मिश्रा और चौरासिया दरवाज़े पर खड़े सब सुन रहे थे। हमें देखकर दांत निपोरते हुए चले गए।"
बद्रीनाथ भी चाहते थे कि पुष्कर और दिशा चले जाएं। उन्होंने कहा,
"विशाल का कहना ठीक है जिज्जी। दिशा की माँ भी फोन पर कह रही थी कि वीडियो कॉल पर दिशा रो रही थी। कह रही थी कि बात क्या है ? दिशा रो क्यों रही थी ? कल दिशा को भेज दो। नहीं तो वह यहाँ आएगी। अगर वह यहाँ आई तो बेकार का हंगामा होगा।"
किशोरी ने गुस्से से कहा,
"तो क्या उससे डर जाओगे बद्री। अपनी बेटी को ब्याह कर विदा किया है उसने। अब क्या उसकी ससुराल में दखल देगी।"
"जिज्जी डरने वाली बात नहीं है। पर जब अपना बेटा ही साथ नहीं है तो बहू पर क्या अधिकार जमाएं। फिर उसने इशारों में उमा के बारे में जो कहा हमें अच्छा नहीं लगा। हम भी चाहते हैं कि दोनों यहाँ से चले जाएं।"
उमा को यह अच्छा लगा कि बद्रीनाथ उनके बारे में सोच रहे हैं। लेकिन उन्हें पुष्कर और दिशा की फिक्र भी थी। उन्होंने कहा,
"ऐसे कैसे चले जाएंगे। अभी घर के अंदर हैं इसलिए सुरक्षित हैं। बाहर निकलेंगे तो खतरा है।"
"पर मम्मी एक हफ्ते बाद तो दोनों को जाना ही था।"
किशोरी ने कहा,
"तब तय हुआ था कि तांत्रिक बाबा का ताबीज़ पहनेंगे। जिससे सुरक्षित रहें। पर उन दोनों की तो ज़िद है कि ताबीज़ नहीं पहनना है। तो फिर हमारी भी ज़िद है कि ऐसे बाहर नहीं जाना है।"
किशोरी ने अपनी बात पूरी दृढ़ता से कह दी थी। विशाल कुछ सोचकर बोला,
"पापा हम सोच रहे हैं कि पुष्कर और दिशा को यहाँ बुलाते हैं और साफ साफ बात करते हैं। कहते हैं कि उन्हें जाना है तो जाएं पर हमारी बात माननी होगी। दोनों को ताबीज़ पहनना पड़ेगा।"
बद्रीनाथ को उसकी बात अच्छी लगी। उन्होंने किशोरी की तरफ देखा। किशोरी ने कहा,
"उस ज़िद्दी लड़की से तो कोई उम्मीद नहीं है हमें। मान लो अभी पहन ले बाद में निकाल कर फेंक दे।"
विशाल ने कहा,
"बुआ जी अब यह काम तो वह पहले भी कर सकती थी। कल सुबह पूजाघर में ताबीज़ पहन लेती। बाद में निकाल कर रख देती। बुआ तांत्रिक बाबा का अनुष्ठान जाने कब तक चले। तब तक उन्हें जबरदस्ती तो नहीं रख सकते। कल अगर दिशा की मम्मी यहाँ आ जाएं। हंगामा करें तो पुलिस भी हमारा साथ नहीं देगी।"
किशोरी कुछ देर सोचने के बाद बोलीं,
"जो तुम लोगों को ठीक लगे करो।"
वह उठकर खड़ी हो गईं। उन्होंने उमा से कहा,
"रात में सब भूखे तो सोएंगे नहीं। चलो हमारे साथ। खाने की व्यवस्था करें।"
उमा उठकर उनके साथ चली गईं। विशाल पुष्कर और दिशा को बुलाने चला गया।
पुष्कर और दिशा बद्रीनाथ के सामने बैठे थे। उन्होंने विशाल को इशारा किया कि वह जो तय हुआ है वह बता दे। विशाल ने सारी बात बताई। पुष्कर और दिशा ने एक दूसरे की तरफ देखा। बद्रीनाथ ने पुष्कर से कहा,
"तुम लोग यहाँ नहीं रहना चाहते हो तो कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं है। रिश्ते ज़बरदस्ती से तो बनते नहीं हैं। मन मिलने पर बनते हैं। तुम्हारे मन में हम लोगों के लिए क्या है वह तो समझ आ गया। तुमने उमा के बारे में जो कहा हमें अच्छा नहीं लगा। उसे ताना देने का हक तुम्हें नहीं है। उसके बारे में तो तुमने बोल दिया। हमारे बारे में जाने क्या होगा मन में।"
पुष्कर चुपचाप उनकी बात सुन रहा था। बद्रीनाथ ने आगे कहा,
"खैर हमारे बारे में जो भी सोचो। पर अपनी मम्मी का तुमने दिल दुखाया है। उसका अगर रत्ती भर भी अफसोस हो तुम्हारे अंदर तो हमारी बात मान लो। दोनों लोग ताबीज़ पहन लो। तब तक पहने रहना जब तक हम तुम्हें उतारने की सूचना ना भेजें। उसके बाद किसी नदी, तालाब या कुएं में डाल देना।"
यह कहकर बद्रीनाथ चुप हो गए। पुष्कर ने दिशा की तरफ देखा। वह किसी सोच में थी। बद्रीनाथ ने कहा,
"चलो मान लेते हैं कि तुम दोनों को ताबीज़ मे यकीन नहीं है। लेकिन अपनी मम्मी का दिल रखने के लिए कुछ दिन पहन लोगे तो कोई हर्ज़ नहीं होगा।"
दिशा भी अब इस सबसे बाहर निकलना चाहती थी। उसने सोचा कि अगर कल वह और पुष्कर उसकी मम्मी के पास नहीं पहुँचे तो वह आ जाएंगी। स्थिति और बिगड़ जाएगी। उसने पुष्कर से कहा,
"ठीक है ताबीज़ पहन लेते हैं और तब तक पहनेंगे जब तक उसे उतारने की सूचना नहीं मिलती है।"
पुष्कर अब इस मामले को खत्म करना चाहता था। दिशा की बात सुनकर उसे अच्छा लगा।