पुस्तक समीक्षा-
हरिसिंह हरीश
राजनारायण बोहरे हर मिजाज की ग़ज़लें
पुस्तक-गम लेके फूल दिये
ग़ज़ल संग्रह
कवि- हरिसिंह हरीश
प्रकाशक-सुमन साहित्य सदन दतिया
हरिसिंह हरीश संवेदनाओं से लबरेज ऐसे रचनाकार हैं जो तमाम विधाओं में अपनी कलम अजमाते रहते हैं और जो लिखते हैं तो पूरे धैर्य से लिखते है उनके कई गजल संग्रह और कविता संग्रह छप चुके हैं और कई गीत-दोहा संग्रह व बालकविता संग्रहों के अतिरिक्त कुछ उपन्यास प्रकाशनाधीन हैं । उनकी सातवीं किताब गजल संग्रह के रूप में पाठकों से रू ब रू है । इस संग्रह में उनके अनेक शेडस् और कई मूडस देखने को मिलते हैं ।
वर्तमान हालात पर चिंता जताता कवि चकित है कि लोग आपसी दुश्मनी क्यों पाले हुए है, जबकि समाज में लगातार गैर बराबरी बढ़ती जा रही है, लेकिन इन बुराइयों के प्रति कोई नहीं चेतता-
आदमी का आदमी दुश्मन हुआ है क्यांे
आदमी का आज ऐसा मन हुआ है क्यों
यहां कुछ घरों के लोगों केा कपड़े तमाम हैं
फिर कुछ लोगों के वास्ते न कफन हुआ है क्यों
या फिर यह गजल देखिये-
आदमी की जिंदगी असुरक्षित है, पता नही खान बम विस्फोटक बिछे हों, न जाने किझ हत्यारे की गोली पर आपका नाम लिखा हो, एक इसी आशय की ग़ज़ल के कुछ शेर देखें
मौत के साये खड़े है जिन्दगी के सामने
छाये है कितने अंधेरे रोशनी के सामने
शरीफ आदमी का जीना मुश्किल है, दादा गिरी हर शहर में बढ़ रही है, शहर पर समनान्तर शासन गुण्डे करते हैं,अपने शहर के बहाने हर कस्बे और शहर की बात करता कवि बड़ा दुुखी है-
बारूद सा जलता हुआ मेरा शहर हुआ
यूं खून में सनता हुआ मेरा शहर हुआ
कहता हरीश सबसे पर किसने सुना है
गुण्डों में बदलता हुआ मेरा शहर हुआ
या फिर इन पंक्तियों को देखिये-
चींिटयों से डर रहा है हाथियों का ये शहर
बेमौत देखो मर रहा है साथियों का ये शहर
हरीश प्रेम के कवि माने जाते हैं। उनकी जनवादी रचना में भी प्रेम पर कोई छन्द आ जायेगा। ऊँन का दिल प्रेम से आकंठ डूबा हुआ है। उनकी नजर में आशिक-माशूक का देह के तौर पर मिलना उतना जरूरी नहीं, जितना परस्पर देख लेना या बात कर लेना-
प्यार के दो बोल मीठे बोल कर तो देखिये
ओ मेरे सपनों की रानी मेहरबानी कीजिये
शायर को उम्मीद है कि हमेशा की तरह जुल्मी लोगों का नाश होगा, चाहे उनके पास कितने ही दैवीय वरदान कयों न हों-
वो देखिये तूफान के तूफान ठण्डे हो गये
जुल्म का अब नाश होगा कैफयत सुन लीजिये
रावणों -कंसों के सब वरदान ठण्डे हो गये
इन गजलों को उर्दू छंद विधान के नजरिये से नक्काद -आलोचक- क्या मानते हैं और इनमें क्या कमी देखते है, यह जुदा बात है। क्योकि ग़ज़ल औऱ उर्दू शायरी ठों बकायदा उस्टाफद के देख रेख में सीखी जती है।लेकिन आम पाठक इन्हे अपनी रूचि के अनुकूल और सरल मानेगा यह तय है ।
इन गजलों की भाषा बहुत सरल और बोलचाल की हिन्दी है और मुद्दे भी आम आदमी से जुड़े मुद्दे हैं- वह आम आदमी जो प्रेम-मुहब्बत भी करता है और अपने समाज व देश की चिन्ता भी ; जिसे वर्तमान हालात से संतुष्टि नहीं है और जो बेहतरी के लिए लगातार सोचता है , उसे भी यह पुस्तक अच्छी लगेगी।
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