डॉ0पदमा शर्मा समकालीन हिन्दी कहानी में सांस्कृतिक मूल्य’
राजनारायण बोहरे
पुस्तक- समकालीन हिन्दी कहानी में सांस्कृतिक मूल्य
लेखिका-डॉ0पदमा शर्मा
प्रकाशक-रजनी प्रकाशन दिल्ली
‘ समकालीन हिन्दी कहानी में सांस्कृतिक मूल्य’ नामक हिन्दी कथा आलोचना की पुस्तक ऐसे समय में पाठकों और शोध कर्मियों के समक्ष उपस्थित हुई है, जबकि समकालीन हिन्दी कहानी विश्व कथा साहित्य से होड़ लेती हुई धुर आंचलिक क्षेत्रों तक अपना विस्तार कर चुकी है। ऐसे में चम्बल घाटी में बसे हिन्दी के चर्चित कथाकारों की कहानियों का सांस्कृतिक नजरिये से अवलोकन करना न कवल नया उपक्रम है वरन् एक जरूरी शोध कार्य भी है क्यों कि इसी के मार्फत यह जाना जा सकता है कि इस अंचल का कथा साहित्य पूरे हिन्दी जगत में कहां मॉजूद है और किस तरह विशिष्ट होते हुए भी सामान्य है।
प्रबंध के रूप में पुस्तक में छह अध्याय हैं और इन छहों में तीन निर्माणात्मक तत्व ही महत्वपूर्ण हैं-देश संस्कृति और कहानीकारों का लेखन। देश के अंतर्गत लेखिका ने जहां सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थितियों का विश्लेषण किया है, वहीं कहानी का अर्थ, विकास एवं इतिहासक्रम भी तीसरे अध्याय में र्प्याप्त स्थान देकर विश्लेषित किया है। सस्कृति के उन्तीस तत्व माने जाते हैं लेकिन सांस्कृति विवेचन में डॉक्टर परशुराम शुक्ल विरही ने इनमे से जो दस तत्व प्रमुख माने हैं, वे हैं- समाज, भाषा,धर्म, साहित्य, प्रेम,कला, सौन्दर्यबोध,आध्यात्मिकता,नैतिकता और मानव मूल्य।
इस पुस्तक में ग्वालियर संभाग की भैागोलिक,सामाजिक,धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थितियों का विश्लेषण भी दूसरे अध्याय में किया गया है। चौथे अध्याय में संभाग के प्रतिनिधि कहानीकारों की कहानियों में सांस्कृतिक मूल्य खोजने का प्रयास किया गया है। महेश कटारे,पुन्नीसिंह,ए0असफल, राजनारायण बोहरे,प्रमोद भार्गव, लखनलाल खरे,निरंजन श्रोत्रिय,राजेन्द्र लहरिया और महिला कथाकार डॉ0कामिनी,कुन्दा जोगलेकर व अन्नपूर्णा भदौरिया की कहानियों को इस चर्चा में चुना गया है।
इस पुस्तक की लेखिका स्वयं एक कहानीकार हैं लेकिन अपनी ही शोध पुस्तक होने के कारण उन्होने अपनी कहानियों की चर्चा नहीं की है, जो एक लेखिका की रचनाओ ंके साथ अन्याय है। उन कहानियो की भी चर्चा होना चाहिए थीं।
आलोचक ने एक एक लेखक की कहानियों को आधार बनाते हुए उनमें मौजूद सांस्कृतिक मूल्यो की विसतार से पड़ताल की है। लगभग हरेक लेखक में से ग्रामीण संस्कृति,शहरी संस्कृति, रीति रिवाज, धर्म कर्म और आचार व्यवहार खोजती हुई लेखिका की कड़ी मेहनत और सूक्ष्म अवलोकन से पाठक प्रभावित होता है। हर कहानीकार की प्रायः हर चर्चित कहानी पर इस पुस्तक में दृष्टिपात किया गया है और बहुत गंभीरता से उन पर चर्चा की गई है। महेश कटारे की कहानयों का विश्लेषण करती हुई लेखिका ने लिखा है ‘ कटारे की कहानियो में ग्राम्य परिवेश की सुगंग्रध एवं बयार है, ग्राम पुत्र होने के नाते वहां की संस्कृ त मे स्वयं भी रचे बसे है।उनके लेखन में गांव की मिटटी की सोधी खुशबू एवं लहलहाती फसल की झलक है।’ पुन्नीसिंह की ‘ इलाके की सबसे कीमती औरत’ ए0असफल की ‘संस्कार गाथा’राजनारायण बोहरे की ‘मृगछलना’ प्रमोद भार्गव की ‘आंसुओं का अर्ध्य’ लखनलाल खरे की ‘बेड़नी’ निरंजन श्रोत्रिय की ‘मैं बेवफा हूं’ राजेन्द्र लहरिया की ‘ यहां कुछ लोग थे’ कामिनी की ‘खाली पिंजरा’ कुन्दा जोगलेकर की ‘पैण्डुलम’ और अन्नपूर्णा भदौरिया की ‘ डूबती सांसे’ खास तौर पर लेखिका ने विश्लेशित की हैं। हालांकि प्रत्येक लेखक की सभी प्रमुख कहानियों नजर फेरी गई है। यहां यह भी कहा जा सकता है तिक यदि लेखिका भी इन कहानीकारों में होती तो ‘ कोख’ और ‘ मन की साध’ की चर्चा की जा सकती थी।
इस पुस्तक में लेखिका की भाषा एक अकादमिक लहजे की जगह आम बोलचाल की भाषा के रूप में सामने आई है तो कथाकारों की कहानियों का विश्लेषण करते समय उनकी सूक्ष्म दृष्टि प्रकट हुई है। एक प्राध्यापकीय औार मुहाविरेदार भाषा से यह पुस्तक कोसों दूर है इस कारण इसमें पेशेवराना बातचीत और पूर्व निर्धारित प्रारूप के निबंध और आलेख न होते हुऐ गहरे शांेधपरख और मीमांसापूर्ण सहज वक्तव्यों की तरह के आलेख इस पुस्तक में मौजूद हैं जो पाठक को गहरी आश्वस्ति देते हैं।
इस पुस्तक के विश्लेषण से सिद्ध होता है कि अंचल के कहानीकारों ने वर्तमान कथा परिदृश्य में अपनी प्रभावी उपस्थिति बनाई है और हिनदी कहानी की वे समस्त प्रवृत्तियां इनकी कहानियों में उपस्थित हैं।
यह पुस्तक हिन्दी कहानी के सामाजिक और सांस्कृतिक सरोकारों के विमर्श को कुछ अधिक समृद्ध करती है। लेखिका का श्रम, अपने रचना संसार को प्रदर्शित नहीं करने का संयम और गहरा अध्ययन सराहनीय है।
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