ताऊजी ने तीन बैल पाल रखे थे।उन दिनों खेती बैल और हल से ही होती थी।ताऊजी खुद खेत को जोतते।उन्होंने एक हाली रख रखा था।जिसे हम साहयक कह सकते है।बाद में उन्हीने घर पर रहना छोड़ दिया और खेत पर ही एक कमरा बनवा लिया था।एक बकरी पाल ली।खेत पर ही वह अपने हाथों से खाना बनाते थे।त्यौहार होता और पक्का खाना बनता तब उनके लिए घर से खाना जाता।बांदीकुई से बड़ी ताईजी भी खाना भेजती थी।
वह दिन में जब भी समय मिलता बाजार और घर जरूर आते।
खेत पर ताऊजी ने नाश्ते व चाय का प्रबंध कर रखा था।और कई घण्टे बाद हम घर लौटे थे।रिश्तेदारों और शादी में आये लोगो का जाना शुरू हो गया था।कुछ लोग 25 को भी चले गए थे।दिन में औरतों का आना जाना शुरू हो गया।मुह देखने की रस्म के लिए गांव की औरते आने लगी।और ऐसे ही दिन धीरे धीरे गुजर गया।
रात को राम अवतार जीजाजी व अन्य लोगो को अलवर जाना था।सवारी गाड़ी जयपुर से रेवाड़ी के लिए चलती थी।यह ट्रेन बसवा स्टेशन पर रात करीब नौ बजे आती थी।
हम घर से चले ।बाजार में होकर हमे गुजरना पड़ता था।रास्ते मे एक पान की दुकान थी।आजकल गुटके का जमाना आ गया है।उन दिनों पान का प्रचलन था।पान की दुकान छोटे कस्बो में भी मिल जाती थी।मीठा और तम्बाकू का पान।पान के पत्ते भी कई तरह के होते है-मद्रास,बनारसी,देशी,मघई और न जाने कितने।उन दिनों चार आने का पान मिलता था।जीजाजी पान हाथ मे लेते हुए बोले,"बहु के लिए भी ले जाना।"
और मैने एक पान बंधवा कर जेब मे रख लिया था। और हम स्टेशन के लिए चले गए थे।स्टेशन तब भी घर से पैदल जाना पड़ता था और आज भी।अब वैसे रिक्शे चलने लगे है।लेकिन जरूरी नही है,मिल ही जाए।
उन दिनों गांव में लाइट भी नही थी।समय का अंतर है।आजकल कही ऐसी जगह जाना पड़े जहाँ पर लाइट न हो तो बड़ा अटपटा लगता है।पर तब नही लगता था।
हम स्टेशन पहुंच गए थे।पता चला ट्रेन एक घण्टे लेट थी।जीजाजी बोले,"तुम चले जाओ।बहु ििनतजार कर रही होगी
"आपको बैठाकर ही जाऊंगा
और हम लोग जमीन पर चद्दर बिछाकर बैठ गए और बाते करने लगे।लोग ट्रेन के ििनतजार में प्लेटफॉर्म पर घूम रहे थे।जगह जगह लोग प्लेटफॉर्म पर बैठे भी थे।ट्रेन धीरे धीरे और लेट होने लगी।और आखिर में रात 11 बजे बाद ट्रेन आयी थी।और सब को ट्रेन में बैठाकर मै घर के लिए चल पड़ा।अंधेरे के साथ चारो तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था।कोई आवाज या शोर नही ।
यो तो रात में आने जाने की आदत थी।लेकिन उस दिन कदम पड़ रहे थे।जल्दी से जल्दी में घर पहुंचना चाह रहा था।मन मे एक चिंता भी थी कि नई नवेली पत्नी ििनतजार कर रही होगी।और पहली मुलाकात की उत्सुकता भी थी।
पत्नी का चेहरा तो दरवाजे पर देख चुका था।कल रात को पूजा के कमरे में उसके पास बैठा तब वह घूंघट की ओट से मुझसे बोल भी चुकी थी।लेकिन रूबरू पहली बार हमारी मुलाकात होनी थी।और मन ही मन मे न जाने क्या सोचता में घर पहुंचा था।
एक भाभी जग रही थी।बाकी औरते छत पर सो रही थी