A true friend should be like Krishna... in Hindi Motivational Stories by Purnima Kaushik books and stories PDF | कृष्ण जैसा हो एक सच्चा मित्र...

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कृष्ण जैसा हो एक सच्चा मित्र...

मित्रत्ता, एक ऐसा अनमोल संबध होता हैं जहां एक दूसरे के प्रति निस्वार्थ भाव, एक दूसरे के प्रति सम्मान और मित्र के लाभ व हानि की चिंता सदैव ही बनी रहती हैं | एक अच्छे मित्र की परिभाषा वह कभी नहीं हो सकती, जो केवल अपने लाभ के लिए ही अपने मित्र से बात करे | इसके अतिरिक्त एक अच्छा मित्र तो वह हैं जो अपने मित्र को हर संकट से उबारने में मदद करता है और उसे मुश्किलों से लडने की ताकत भी प्रदान करता हैं | साथ ही उसके सुख दुःख में उसका साथी बना रहता हैं |

हमने अपने जीवन में मित्रता के तो कई रूप और रंग देखें होगे , लेकिन यदि एक सच्ची मित्रता के बारे में जानना है, उसकी परिभाषा से परिचित होना है तो भगवान श्री कृष्ण और सुदामा जी की मित्रता के बारे मे जरुर पढ़ना और सुनना चाहिए | जिनकी मित्रता में एक दूसरे के प्रति निस्वार्थ प्रेम था और वे अपने मित्र के लाभ के लिए सदैव ही तत्पर और चिंतामग्न रहते थे | उनकी सच्ची मित्रता से आज सभी लोग प्रेरणा ले सकते हैं | उनके मित्र भाव से सभी परिचित है कि किस प्रकार भगवान श्री कृष्ण ने अपने मित्र सुदामा को बिन मांगें ही उन्हें सब कुछ दे दिया था |

जहां बिना स्वार्थ के अपने मित्र के भविष्य की चिंता रहे वहीं सच्ची मित्रता दिखाई पड़ती है |इसी के साथ ही मित्र को उचित और अनुचित में भेद कराना भी एक सच्चे मित्र की असल पहचान है |

भगवान श्री कृष्ण सुदामा जी के तो परम मित्र थे ही साथ ही वे सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर कहे जाने वाले ' अर्जून' के भाई होने के साथ साथ उनके एक सच्चे मित्र भी थे | उन्होनें एक सच्चे मित्र की भांति धनुर्धर अर्जुन की पग पग पर सहायता की और सदैव उनके साथ रहे |

एक बार जब महाभारत के युद्ध आरंभ होने जा रहा था और दोनों सेनाएं (कौरव और पांडव) आमने सामने खड़ी हुई थी | दोनों ओर ही एक से बढ़कर एक वीर योद्धा शामिल थे और वे सभी युद्ध आरंभ होने का इंतजार कर रहे थे | लेकिन जब अर्जून ने भगवान श्री कृष्ण से अनुरोध करते हुए कहा कि, " हे केशव आप मुझे उस ओर ले चलिए, जहां दोनों सेनाएं एक दूसरे से युद्ध करने के लिए एकत्रित हुई हैं | " श्री कृष्ण अपने मित्र के कहने पर अर्जून को वहां ले गए, अर्जून ने वहां पहुंचकर जब अपने समक्ष अपने ही सगे संबंधियों को युद्ध के लिए खड़ा हुआ देखा तो वह निराश हो गया और वह पूर्णतः निराश हो गया और उसने युद्ध की इच्छा ही त्याग दी | वह सोचने लगा कि आखिर किस प्रकार वह अपने से बड़ों के समक्ष हथियार उठा सकता है | ऐसी ही निराशाजनक बाते उसके मन में आने लगी |

श्री कृष्ण ने अर्जुन की दुविधा को जाना और उन्होनें उसे कुरुक्षेत्र में महाभारत के युद्ध आरंभ होने से पूर्व अर्जुन को जीवन की हर दुविधा से लड़ने में मदद करने के लिए भगवतगीता के पाठ को अर्जुन को सुनाया | उन्होंने अर्जुन की दुविधा को दूर करने हेतू कई महत्वपूर्ण बातें उसे बताई, जो आज हम सभी के जीवन को श्रेष्ठ बनाने में मदद करती हैं | एक अच्छी और सच्ची मित्रता की भी यही पहचान होती है कि वह अपने मित्र की दुविधा को दूर करने हेतू उसकी मदद करे और उसका मार्गदर्शन करता रहे | कभी उसे गलत काम न करने दे एवं हमेशा ही एक अच्छे मित्र की भांति उसे आगे बढ़ने में सहायता करता रहे | ऐसी ही होनी चाहिए एक सच्चे और एक अच्छे मित्र की परिभाषा........