भाई की हत्या हो जाने से अब मनप्रीत बिल्कुल अकेली रह गई,वो दिनभर अपने घर में पड़ी पड़ी रोती रहती,लेकिन भाई के जाने का शोक मनाती भी कब तक आखिर धीरे धीरे उसने खुद को सम्भालना शुरू कर दिया,अब वो खुद ही खेतों में काम करने लगी थी,लोग एक बेसहारा लड़की को अकेली खेतों में काम करते देखते तो उसकी थोड़ी बहुत मदद कर दिया करते,ऐसे ही मनप्रीत को खुद को सम्भालते हुए अब तीन महीने होने को आएं थे और तब उसे शंका हुई कि वो माँ बनने वाली है,अब तो मनप्रीत की जान पर बन आई और वो भागी भागी गाँव की दाईमाँ के पास पहुँची और उनसे कहा कि जरा उसकी जाँच कर दे ,दाईमाँ ने मनप्रीत की जाँच की तो पाया कि मनप्रीत सच में माँ बनने वाली है....
अब तो मनप्रीत बिलकुल से टूट गई थी,पहले अपनी आबरू का खोना फिर भाई की मौत और उसके बाद ये मनहूस खबर,उसने दाईमाँ से कहा कि वो ये बात किसी से ना बताएँ,दाईमाँ ने भी हामी भर दी कि वो ये बात किसी से नहीं कहेगी लेकिन ये बात दाईमाँ की बहू ने चुपके से सुन ली थी और उसने गाँव भर में ढिंढोरा पीट दिया कि मनप्रीत माँ बनने वाली है,ये उसी पापी का पाप जिसने उसके भाई की हत्या की थी,ये खबर सुनकर गाँव की औरतें बिफर पड़ी और झुण्ड बनाकर उसके घर के सामने इकट्ठी होकर कहने लगी कि इस कलमुँही को गाँव से बाहर निकालो,इसके यहाँ रहने से हमारे गाँव की बहू बेटियों पर गलत असर पड़ेगा और सब एक साथ घर का दरवाजा पीटने लगी,इधर मनप्रीत कमरें में बैठी रो रही थी और फिर ज्यादा धक्का मुक्की के बाद दरवाजे खुदबखुद खुल गए,क्योंकि दरवाजे पुराने थे और उनमें जान ना थी,औरतों का झुण्ड मनप्रीत के घर के आँगन में पहुँचा और उनमें से एक बोली....
"अरी!ओ !मनप्रीते!बाहर निकल"
मनप्रीत डरते हुए बाहर आई तो दूसरी बोली....
"चल अपना बोरिया बिस्तर बाँध और निकल इस गाँव से"
"लेकिन मैं कहाँ जाऊँगी,मेरा कोई नहीं है इस दुनिया में",मनप्रीत रोते हुए बोली...
"जहन्नुम में जा ,लेकिन इस गाँव में मत रह",तीसरी बोली...
"मैं तुम सबके पाँव पड़ती हूँ,मुझे गाँव से मत निकालो",मनप्रीत बोली...
"गाँव से ना निकाले तो क्या तेरी आरती उतारें?,जवानी सम्भाली नहीं गई और मुँह काला करवाकर बैठ गई",चौथी बोली...
"तुम सभी तो पता ही है कि मेरे साथ क्या हुआ है,फिर भी तुम लोंग ऐसी बातें कर रही हो",मनप्रीत बोली...
"अरे! दूसरों को दोष क्यों देती है,तू ही तो आँखों में सुरमा लगाकर पूरे गाँव में डोलती फिरती थी तो हो गई सतवीर से गलती",पाँचवीं बोली...
"तुम औरत होकर भी ऐसी बात करती हो,एक औरत का दुःख बाँट नहीं सकती,समझ नहीं सकती तो कम से कम उस पर तोहमतें तो मत लगाओ",मनप्रीत बोली....
"अरी!तुझ जैसी के मुँह पर तो कालिख पोतनी चाहिए थी ",
और वो औरत इतना कहकर आँगन में रखें मिट्टी के चूल्हें में रखी कोयलों की काली राख निकाल लाई और सब औरतों से बोली...
"पकड़ो इसके हाथ इसके मुँह पर अभी कालिख पोतती हूँ"
और फिर सबने मनप्रीत के हाथ पकड़े और उसके मुँह पर वो काली राख पोत दी,मनप्रीत चिल्लाती रही चीखती रही लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी,तभी वहाँ दाईमाँ आ पहुँची और उसने सभी को रोकते हुए कहा....
"रूको!तुम सब ! ये क्या कर रही हो?एक मज़लूम ,बेबस ,बेसहारा लड़की को क्यों सता रही हो?"
"दाई माँ!तुम इसकी ज्यादा हिमायती मत बनो",उनमे से एक बोली...
"वो वैसे भी हालातों की मारी है,रब ने उसे बहुत सजा दे दी और कौन सी सजा बची है जो तुम लोग देना चाहती हो",दाई माँ बोली....
"दाई माँ! इसे सजा तो हम देकर रहेगें,तुम चाहे कुछ भी कहो",उनमें से एक बोली.....
"तो ठीक है तुम लोग दे दो इसे सजा!,मत मानो मेरी बात मैं आज के बाद तुम मैं से किसी की भी ज़चगी नहीं करवाऊँगी" दाई माँ बोली....
और फिर दाईमाँ की ऐसी बात सुनकर सब वहाँ से चुपचाप चलीं गईं,क्योंकि उस समय ना तो गाँव में डाक्टरों की सुविधा होती थी और ना ही नर्सों की,ज़चगी वाला काम केवल दाई माँ ही करवाया करती थी और उस गाँव में वो ही अकेली दाईमाँ थी और जब ये बात उन औरतों ने सुनी तो वें सब वहाँ से चलीं गईं, उन सभी के जाने के बाद दाईमाँ ने मनप्रीत को अपने सीने से लगा लिया और मनप्रीत फूट फूटकर रोने लगी और दाईमाँ से बोली....
"दाई माँ! रब ना जाने मुझे मेरे कौन से गुनाहों की सजा दे रहा है"?
"चुप हो जा बेटी! शायद ऊपरवाला तेरा इम्तिहान ले रहा है,रोती क्यों है?मैं हूँ ना!,",दाईमाँ बोली...
और फिर उस दिन के बाद दाईमाँ ने मनप्रीत का ख्याल रखा और कुछ महीनों बाद मनप्रीत ने एक बेटी को जन्म दिया,बेटी के जन्म के बाद मनप्रीत कुछ महीनों तक अपने गाँव में रही जब तक कि उसकी बेटी दो साल की ना हो गई और फिर एक दिन खबर आई कि जेल में सतवीर की किसी कैदी के साथ हाथापाई हो गई थी और उस कैदी ने सतवीर को इतना मारा कि वो मर गया....
इस बात पर मनप्रीत बिलकुल खामोश रही कुछ ना बोली,गाँव की औरतों ने इस बात पर भी उस पर ना जाने कैसे कैसे इल्जाम लगाए,अब मनप्रीत का मन उस गाँव में बिल्कुल भी रहने का नहीं था,इसलिए उसने अपनी पुश्तैनी जमीन और घर दाई माँ के किसी जान पहचान वाले को बेच दिया और वो अपनी बच्ची के साथ उस गाँव को छोड़कर चली गई और फिर एक कस्बे में जाकर उसने उन रूपयों से एक छोटी सी दुकान खरीदी और वो वहाँ पर मसाले बेचने लगी,धीरे धीरे उसे उस दुकान से मुनाफा होने लगा तो दस सालों की मेहनत के बाद उसने खुद की मसाले पीसने की चक्की खरीद ली और दो-चार नौकरों को भी अपने साथ काम पर लगा लिया....
और उसके मसाले इतने अच्छे होते थे कि दिनबदिन उसके खरीदारों की तादाद बढ़ने लगी,मनप्रीत ने शादी नहीं की और अपने अकेले के दम पर ही उस बच्ची को पालपोसकर बड़ा किया,उसे काँलेज तक की पढ़ाई करवाई ,ये उस जमाने की बात है जब औरतें केवल घर की चारदिवारी में कैद होकर घर के ही काम सम्भालतीं थीं,फिर मनप्रीत की बेटी दीपो को काँलेज में किसी लड़के ने पसंद कर लिया,वो दीपो का हाथ माँगने उसके घर गया और फिर मनप्रीत ने कुलदीप से कुछ नहीं छुपाया,उससे कहा कि मेरी बेटी नाजायज़ है अगर तुम ये जानने के बाद उससे शादी कर सकते हो तो कर लो....
उस लड़के को इस बात से कोई एतराज़ ना हुआ और उसने दीपो से शादी कर ली ,फिर दीपो ने एक बच्ची को जन्म दिया,उसने उसे पढ़ाया लिखाया और वो नर्स बन गई,अब मनप्रीत बूढ़ी हो चली थी ,इसलिए अब उससे वो चक्की और दुकान सम्भाली ना जा रही थी इसलिए उसने उसे बेच दिया और फिर दीपो की बेटी मनप्रीत के कस्बे में ही सरकारी अस्पताल में नर्स बनकर आई और वो उसी के साथ रहने लगी,अब तो तुम जान ही चुकी होगी कि वो नर्स कौन है?,जसवीर ने सरगम से पूछा....
"हाँ!वो नर्स तुम हो ",सरगम बोली....
"तो ये थी मनप्रीत की कहानी",जसवीर बोली...
"ओह...कितना कुछ सहा है उन्होंने",सरगम बोली
"हाँ! और कभी हार नहीं मानी!,",जसवीर बोली...
"हाँ! मैं भी कभी हार नहीं मानूँगी",सरगम बोली....
"ये हुई ना बात",जसवीर बोली...
और दोनों ऐसे बातें करतीं रहीं.....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....