कलशाम औफिस से आ कर हर्ष ने सूचना दी कि उस का ट्रांसफर दिल्ली से चंडीगढ़ कर दिया गया है. यह खबर सुनने के बाद से तान्या के आंसू रोके नहीं रुक रहे हैं. उस ने रोरो कर अपना हाल बुरा कर लिया है.
‘‘हर्ष मैं अकेले कैसे सबकुछ मैनेज कर पाऊंगी यहां… क्षितिज और सौम्या भी इतने बड़े नहीं हैं कि मेरी मदद कर पाएं… अब घर, बाहर, बच्चों की पढ़ाई सबकुछ अकेले मैं कैसे कर पाऊंगी, यही सोचसोच कर मेरा दिल बैठा जा रहा है,’’ तान्या बोली.
तान्या के मुंह से ऐसी बातें सुन कर हर्ष का मन और परेशान होने लगा. फिर बोला, ‘‘देखो तान्या हिम्मत तो तुम्हें करनी ही पड़ेगी. क्या करूं जब कंपनी भेज रही है तो जाना तो पड़ेगा ही… प्राइवेट नौकरी है. ज्यादा नानुकुर की तो नोटिस भी थमा सकती है हाथ में और फिर भेज रही है तो सैलरी भी तो बढ़ा रही है… आखिर हमारा भी तो फायदा हो रहा है जाने में. सैलरी बढ़ जाएगी तो घर का लोन चुकाने में थोड़ी आसानी हो जाएगी.’’
थोड़ी देर चुप रहने के बाद तान्या का तनाव थोड़ा और कम करने के लिए हर्ष फिर बोला, ‘‘देखो तान्या, महीने का राशन मैं खरीद कर रख ही जाऊंगा… सब्जी वाले रोज घर के सामने से जाते हैं. उन से ले लिया करना. अगर वक्तबेवक्त कोई और जरूरत पड़ती है तो आसपास के लोग हैं ही… इतना रिश्ता तो हम ने बना रखा ही है हरेक से कि एक फोन करने पर कोई भी आ खड़ा होगा.’’
मगर हर्ष के समझाने का तान्या पर सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ रहा था. दरअसल, 10 सालों के वैवाहिक जीवन में यह पहला अवसर आया था जब तान्या को हर्ष से अलग रहने की जरूरत आ पड़ी थी. पहले तो तान्या ने भी साथ ही चंडीगढ़ चलने की बात कही पर दिल्ली से चंडीगढ़ जाने का मतलब बच्चों का नए स्कूल में ऐडमिशन कराना, नई यूनीफौर्म खरीदना, वहां किराए का घर ले कर रहना और फिर उस का किराया देना और यहां लोन की किस्त चुकानी किसी भी तरह से संभव नहीं होगा.
ही मन घबराहट उसे भी बहुत हो रही थी. बचपन से आज तक अपने हाथ से
1 गिलास पानी तक ले कर नहीं पीया था उस ने. पहले मां और बहनें और फिर शादी के बाद तान्या उस के सारे काम कर दिया करती थी.
हर्ष मन ही मन सोच कर परेशान हो रहा था कि कैसे वह अपने कपड़े धोएगा, बैडशीट बदलेगा, कमरे की सफाई करेगा…? खाना, नाश्ता तो बाहर कर लेगा या टिफिन लगवा लेगा पर कभी चाय पीने का मन हुआ या बीच में भूख लगी तो क्या करेगा? मगर तान्या और बच्चों की चिंता में वह अपनी परेशानी के बारे में कोई चर्चा नहीं कर पा रहा था और न ही तान्या का ध्यान इस पर जा रहा था कि उस का पति उस के बिना अकेले कैसे रह पाएगा.
इतवार की सुबह से ही हर्ष की व्यस्तता बढ़ी हुई थी. अपने सामान की
पैकिंग के साथसाथ वह इस बात का भी खयाल रख रहा था कि उस के जाने के बाद घर में किसी चीज की कमी न रह जाए जिस के लिए तान्या को बच्चों को ले कर बाजार के चक्कर लगाने पड़ें. राशन, सब्जी, फल, मिठाई आदि 1-1 चीज वह घर में ला कर रखता जा रहा था. शाम होतेहोते तान्या का उतरा चेहरा देख कर उस का दिल यह सोच कर घबराने लगा कि कहीं उस के जाने के बाद तान्या की तबीयत न खराब हो जाए.
‘‘तान्या कुछ दिनों के लिए मम्मी को आने के लिए कहूं क्या? तुम्हें देख कर मुझे चिंता हो रही है कि तुम अकेले रह पाओगी या नहीं?’’
‘‘हर्ष, सोच तो मैं भी रही थी कि मम्मीजी आ जातीं कुछ दिनों के लिए मेरे पास तो ठीक रहता, पर वहां भी तो रिंकी और पापाजी को परेशानी होगी उन के बिना. यही सोच कर मैं ने कुछ कहा नहीं.’’
‘‘हां वह तो है, फिर भी एक बार बात कर के देखता हूं. मम्मी से कहता हूं कि 4-5 दिनों के लिए आ जाएं. फिर शनिवार को मैं आ ही जाऊंगा. आगे की आगे देखेंगे.’’
हर्ष ने अपनी मां से बात की तो बेटेबहू की समस्या सुन कर विचलित हो गईं. बोलीं कि वे यहां की व्यवस्था समझा कर कल ही दिल्ली आ जाएंगी. रिंकी और उस के पापा मिल कर 1 सप्ताह गुजार लेंगे किसी तरह से.
मम्मीजी आ जाएंगी, यह सुन तान्या ने राहत की सांस ली और फिर उस ने हर्ष की बची तैयारी करा कर नम आंखों से दूसरे दिन उसे चंडीगढ़ के लिए विदा किया.
बात नौकरी और जीवनयापन की थी, इसलिए न आने का कोई विकल्प नहीं था हर्ष के पास पर सही माने में मन ही मन वह बहुत परेशान था. एक तरफ तान्या और बच्चों की चिंता तो दूसरी तरफ अपने बारे में सोचसोच कर परेशान हो रहा था कि बिना तान्या के कैसे रहेगा.
1 सप्ताह तक तो कंपनी के गैस्ट हाउस में रहना था तब तक तो खैर कोई समस्या नहीं होनी थी, पर इसी 1 सप्ताह में उसे अपने लिए किराए का घर ले कर रहने की पूरी व्यवस्था करनी होगी. दसियों झंझट होने थे उस में…घर खोजो, कामवाली खोजो, समय पर कपड़े धो कर प्रैस करने को दो. तान्या के होते ये सब काम इतने कठिन होते हैं उसे कभी एहसास ही नहीं हुआ था.
अपने घर में तो आज तक उस ने कभी कामवाली से बात तक नहीं की थी. अब कैसे उस से बात करेगा. कौन से कपड़े गंदे हैं और कौन से साफ इस का फर्क तक आज तक नहीं कर पाया था वह. अब ये सारी चीजें खुद करनी पड़ेंगी, यह सोच कर पसीना छूट रहा था.
1 सप्ताह जैसेतैसे गुजार कर अगले शनिवार की रात को जब हर्ष एक दिन के लिए चंडीगढ़ से दिल्ली आया तो घर में त्योहार जैसा माहौल बन गया. बच्चे उस के इर्दगिर्द मंडराने लगे और तान्या के पास तो हर्ष को बताने के लिए इतनी सारी बातें इकट्ठी हो गई थीं मानो वह सालों बाद हर्ष से मिल रही हो. 1 सप्ताह तक हर्ष के बिना उस ने 1-1 पल कैसे बिताया इस का वर्णन खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था.
पर मम्मीजी की निगाह हर्ष के चेहरे पर अटक गईर् थी, ‘‘बेटा तू 1 ही सप्ताह में कितना दुबला हो गया है,’’ कहते हुए उन की आंखें भर आईं. उन का बस चलता तो वे एक ही दिन में हर्ष को अपने हाथों से उस के पसंद की सारी चीजें बना और खिला कर पूरे सप्ताह की कमी पूरी कर देतीं, लेकिन शाम को उन का वापस जाना भी जरूरी था, क्योंकि रिंकी के पेपर शुरू होने वाले थे. उन की अनुपस्थिति से उस की पढ़ाई बाधित हो रही थी.
मम्मीजी को शाम की ट्रेन में बैठा कर आने के बाद बच्चों ने जिद पकड़ ली पिज्जा खाने की. तान्या ने भी उन का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘जब से तुम गए हो तब से ही ये पिज्जा खाने की जिद कर रहे हैं. मैं ने समझा रखा था कि पापा के आने के बाद चलेंगे. अब चल कर खिला दो वरना तुम्हारे जाने के बाद फिर मुझे परेशान करेंगे.’’
हर्ष का मन न ही इस समय बाहर जाने का हो रहा था और न ही बाहर का कुछ खाने का. उस का दिल कर रहा था कि बचाखुचा समय वह सब के साथ सुकून से घर में बिताए और तान्या के हाथ का बना घर का गरमगरम खाना खाए, पर बच्चों और तान्या की बात न मान कर वह अपराधभावना से घिरना नहीं चाह रहा था. अत: बेमन से ही वह सब को साथ ले कर पिज्जा हट चला गया.
दूसरे दिन फिर सुबहसुबह ही वह चंडीगढ़ के लिए निकल गया. ट्रेन में बैठते ही हर्ष ने सोचना शुरू कर दिया कि कहीं कुछ ऐसा रह तो नहीं गया जिस की वजह से तान्या को परेशान होना पड़े. पर जब उसे ऐसी कोई बात याद नहीं आई तो उस ने सुकून के साथ सीट पर सिर टिका कर आंखें बंद कर लीं.
चंडीगढ़ जाने के साथ ही हर्ष की जिंदगी से आराम और सुकून शब्द गायब हो गए. अब तक शनिवार की शाम से ले कर सोमवार की सुबह तक जो सुकून के पल हुआ करते थे अब तो वही पल सब से ज्यादा भागदौड़ वाले बन गए. औफिस से छूटते ही वह स्टेशन की ओर भागता फिर ट्रेन से उतर कर औटो पकड़ कर घर पहुंचता. तब तक बच्चे तो सो चुके होते थे, इसलिए बच्चों के साथ वक्त बिताने की खुशी में वह सुबह जल्दी उठ जाता. फिर सारा दिन साप्ताहिक खरीदारी या बच्चों को घुमानेफिराने में निकल जाता. फिर सोमवार की सुबह शताब्दी पकड़ने के लिए सुबह 5 बजे ही नहाधो कर तैयार हो कर उसे घर से निकलना पड़ता था.
तान्या अकेली है यह सोच कर बीचबीच में उस के सासससुर चक्कर लगा जाते थे, पर चूंकि वे भी अभी नौकरी करते थे, इसलिए ज्यादा दिन रुकना संभव नहीं हो पाता था. एक शनिवार जब हर्ष घर आया तो घर पर तान्या की मां सारिकाजी उस के साथ रहने के लिए आई हुई थीं. तान्या के मुंह से उस की परेशानी सुन कर वे कुछ दिनों के लिए उस के पास रहने को आ गई थीं.
हर्ष को देखते ही उन के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं, ‘‘हर्ष बेटा आप का स्वास्थ्य इतना गिर कैसे गया है? चेहरे से रौनक ही गायब हो गई है. अभी 2 महीने पहले जब आप से मिली थी तब तो आप ऐसे नहीं थे? क्या खानेपीने का सही इंतजाम नहीं है वहां पर?’’
‘‘नहीं मम्मीजी खानापीना तो सब ठीक है वहां पर बस घर से दूर हूं तो बच्चों की याद सताती रहती है. बस इसी वजह से आप को ऐसा लग रहा होगा. अब आज घर आया हूं तो कल देखिएगा मेरा चेहरा भी चमकने लगेगा.’’ l
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अकेले हम अकेले तुम- 2