(4)
दिशा की आँख खुली। कुछ देर तक वह बिस्तर पर बैठी रही। अपनी ससुराल में यह उसकी पहली सुबह थी। वह खुश थी। उसने पास में सोए हुए पुष्कर को देखा। उसके बाद बिस्तर से उठी और दरवाज़ा खोलकर छत पर आ गई। ताज़ा हवा का झोंका उसे सुखद लगा। हालांकि थोड़ी ठंड थी। वह मुंडेर के पास आई। उजाले में सामने एक मैदान सा दिखाई पड़ा। उसके बाद घर बने थे। मैदान में कुछ बच्चे खेल रहे थे। वह कुछ देर उन्हें देखती रही। उसके बाद अंदर गई और ब्रश किया।
उसे सुबह उठकर चाय पीने की आदत थी। पुष्कर अभी भी सो रहा था। वह उसके बगल में लेट गई। कुछ देर सोते हुए पुष्कर को देखती रही। उसे उस समय की याद आई जब वह और पुष्कर घूमने गए थे। एकसाथ ठहरे थे। तब भी पुष्कर सोते हुए ऐसा ही लग रहा था। उसने सोचा कि पुष्कर को जगाए। लेकिन वह उसे आवाज़ देकर या हिलाकर नहीं जगाना चाहती थी। उसने सोते हुए पुष्कर को बाहों में लेकर उसका माथा चूम लिया। पुष्कर जाग गया। उसने भी दिशा को अपनी बाहों में भर लिया। उसने पूछा,
"कब जागी ?"
"कुछ देर हो गई।"
"बहुत प्यार आ रहा था मुझ पर।"
दिशा ने हंसते हुए कहा,
"सोते हुए एकदम बच्चे की तरह लग रहे थे।"
पुष्कर ने उसे ज़ोर से भींचते हुए कहा,
"तभी प्यार कर रही थी।"
दिशा ने खुद को छुड़ाया। बिस्तर से उठते हुए बोली,
"मुझे चाय पीने की इच्छा हो रही है। नीचे जाकर देखो चाय बनी है क्या ?"
पुष्कर उठकर खड़ा हो गया। बाथरूम में जाकर मुंह धोया। उसके बाद चाय के लिए नीचे चला गया।
किशोरी नहाकर तैयार हो गई थीं। वह पूजाघर में थीं। उमा भी नहाकर भगवान को प्रणाम करने आई थीं। किशोरी ने कहा,
"तांत्रिक बाबा ताबीज़ देकर गए हैं। पुष्कर और उसकी बहू से कहो कि नहाकर पूजाघर में आ जाएं। यहीं ताबीज़ उन्हें पहना देंगे।"
उमा उनके आदेश का पालन करने जा रही थीं तभी पूजाघर के दरवाज़े पर खड़े होकर पुष्कर ने कहा,
"मम्मी चाय बनी है।"
उमा कुछ कहतीं उससे पहले ही किशोरी ने कहा,
"अभी कुछ नहीं मिलेगा। तुम और बहू नहाकर पूजाघर में आओ। काम है।"
पुष्कर दिशा की आदत जानता था। चाय पिए बिना वह कुछ नहीं करती थी। उसने उमा से कहा,
"मम्मी एक एक कप चाय पी लेते हैं। उसके बाद नहाकर पूजाघर में आ जाएंगे।"
उमा दुविधा में पड़ गईं। किशोरी की बात का विरोध करने की हिम्मत नहीं थी। बेटे की इच्छा भी पूरी करना चाहती थीं। किशोरी ने उनकी दुविधा का अंत करते हुए कहा,
"बिना चाय पीए क्या दिन शुरू नहीं होगा। पहले जो कहा है वह करो। उसके बाद खाना पीना करना।"
पुष्कर ने उमा की तरफ देखा। वह सर झुकाए खड़ी थीं। पुष्कर वापस चला गया। उमा जानती थीं कि पुष्कर को अपनी बुआ का इस तरह सबको दबाव में रखना अच्छा नहीं लगता है। वह भी उसके पीछे पीछे ऊपर गईं। उन्होंने बेटे और बहू को समझाया,
"आज शादी के बाद तुम दोनों का इस घर में पहला दिन है। शुरुआत भगवान के आशीर्वाद से करो। नहाकर पूजाघर में आ जाओ। उसके बाद चाय नाश्ता कर लेना।"
पुष्कर कुछ कहने जा रहा था। दिशा ने उसे रोककर कहा,
"ठीक है मम्मी हम नहाकर पूजाघर में आ जाते हैं। लेकिन बाथरूम में ठंडा पानी है। अगर गर्म पानी मिल जाता तो अच्छा होता।"
घर में सभी नल के पानी से नहाते थे। पानी गर्म करने का चलन नहीं था। लेकिन उमा ने इस विषय में कुछ कहा नहीं। वह बोलीं,
"मैं नीचे से गर्म पानी भिजवा देती हूँ।"
उन्होंने पुष्कर को साथ आने के लिए कहा। नीचे रसोई में उनकी देवरानी सुनंदा और भाभी नीलम नाश्ते की तैयारी कर रही थीं। उन्होंने एक बर्तन में पानी लेकर चूल्हे पर चढ़ा दिया। सुनंदा ने कहा,
"दीदी पानी क्यों गरम कर रही हैं ?"
"बहू ठंडे पानी से नहाने की आदी नहीं है। उसके लिए गरम कर रहे हैं।"
सुनंदा ने कुछ नहीं कहा। उसके और नीलम के बीच आँखों आँखों में कुछ बातचीत हुई। पानी गर्म होने के बाद उमा ने पुष्कर से कहा,
"आंगन से बाल्टी ले आओ। उसमें डालकर बहू को दे आओ। तुम यहीं नीचे नहा लो जिससे काम जल्दी निपट जाए।"
"ठीक है मम्मी। मेरे लिए भी थोड़ा पानी गर्म कर दीजिए।"
पुष्कर ने गर्म पानी बाल्टी में डाला और ऊपर ले जाने लगा। उसी समय किशोरी आ गईं। गर्म पानी देखकर बड़बड़ाईं,
"अजीब चोंचले हैं। हम तो इस उम्र में भी नल के पानी से नहा लेते हैं।"
पुष्कर को अच्छा नहीं लगा। पर वह कुछ नहीं बोला।
पुष्कर और दिशा नहाकर पूजाघर में आ गए थे। किशोरी जमीन पर आसनी डालकर बैठी थीं। पुष्कर और दिशा उनके सामने बैठे थे। उमा वहीं खड़ी थीं। किशोरी ने कहा,
"उमा ताबीज़ इन दोनों को दे दो।"
उमा ने ताबीज़ पकड़ाते हुए कहा,
"तुम दोनों इसे पहन लो।"
पुष्कर और दिशा ने पहले ताबीज़ को देखा। उसके बाद एक दूसरे को। किशोरी ने आदेश दिया,
"पहन लो इसे ?"
दिशा ने पूछा,
"क्यों ?"
किशोरी को यह सवाल बिल्कुल भी पसंद नहीं आया। उमा को भी उम्मीद नहीं थी कि नई बहू सवाल करेगी। उन्होंने बात संभालने के लिए कहा,
"बेटा तुम दोनों की सुरक्षा के लिए हैं यह ताबीज़। इन्हें गले में पहन लो।"
दिशा ने पहनने की जगह दूसरा सवाल किया,
"हमारी सुरक्षा के लिए.... हमें किस चीज़ से सुरक्षा चाहिए ?"
दूसरा सवाल सुनते ही किशोरी का पारा चढ़ गया। उन्होंने गुस्से में कहा,
"छोटों को चाहिए कि बड़ों की बात मानें। उनके साथ बेवजह बहस ना करें। खासकर नई आई बहुओं को यह शोभा नहीं देता है।"
दिशा को किशोरी की अंतिम बात बहुत बुरी लगी। उसने कहा,
"बुआ जी मैं बहस नहीं कर रही हूँ। कारण जानना चाहती हूँ कि आखिर ऐसा क्या है कि हम दोनों को सुरक्षा के लिए यह पहनना पड़े।"
किशोरी ने उसे गुस्से से घूरा। उसके बाद पुष्कर से बोलीं,
"इससे कहो कि बेवजह बात ना बढ़ाए। जो कहा गया है वह करे।"
पुष्कर पहले ही गर्म पानी के मामले में ताना सुनकर चिढ़ा था। उसने कहा,
"बुआ आप उसे कारण बता दीजिए। उसे सही लगेगा तो पहन लेगी। वह बिना तर्क के कुछ नहीं मानती है।"
हर पल किशोरी का गुस्सा भड़क रहा था। उन्होंने दिशा से कहा,
"मेरा आदेश है कि इसे पहन लो।"
दिशा ने एक पल उन्हें देखा। उसके बाद ताबीज़ ज़मीन पर रखकर खड़ी हो गई। उसने कहा,
"माफ कीजिएगा बुआ जी पर मैं किसी के दबाव में काम नहीं करती हूँ। मैं सिर्फ भगवान पर विश्वास करती हूँ। किसी ताबीज़ पर नहीं।"
यह कहकर वह पूजाघर से निकल कर चली गई। बात किशोरी के सहने की सीमा से परे जा चुकी थी। उन्होंने अब तक उमा को चुपचाप उनका हुक्म मानते देखा था। आज नई आई बहू उनके आदेश को अनसुना करके चली गई। गुस्से में उबलते हुए उन्होंने चिल्लाकर कहा,
"कैसी बदतमीज़ है। कल विदा होकर आई और आज आँखें तरेर रही है।"
उमा नज़रें झुकाए खड़ी थीं। पुष्कर भी दिशा के इस तरह चले जाने से चौंक गया था। शोर सुनकर बद्रीनाथ पूजाघर में आए। उन्होंने पूछा,
"क्या बात है जिज्जी ? क्यों गुस्सा हो रही हो ?"
किशोरी ने गुस्से में कहा,
"मुझसे क्या पूछ रहे हो। तुम और तुम्हारी पत्नी बहुत समझदार हैं। समझाया था पर माने नहीं। बेटे की धमकी के आगे नतमस्तक हो गए। अब झेलो ज़िंदगी भर।"
यह कहकर किशोरी ने जपमाला उठा ली और जाप करने लगीं। उसका अर्थ था कि अब उन्हें कुछ नहीं कहना है। बद्रीनाथ ने उमा की तरफ देखा। उमा उन्हें लेकर आंगन में आ गईं। पुष्कर भी पीछे पीछे आ गया। उमा ने बद्रीनाथ को सारी बात बताई। बद्रीनाथ ने पुष्कर से कहा,
"तुम्हें तो पता है कि ताबीज़ क्यों दिया जा रहा था। कह नहीं सकते थे कि बहस ना करके पहन ले।"
"पापा दिशा को इन सारी बातों पर विश्वास नहीं है। ना ही मुझे है। इसलिए मैंने भी नहीं पहना। आप लोग कब तक बेकार के वहम पाले रहेंगे।"
पुष्कर की बात सुनकर बद्रीनाथ ने गुस्से से कहा,
"सच कह रही थीं जिज्जी। तुम्हारी धमकी मानकर उसके आगे झुकना गलत था। हमने तो सोचा था कि एक औलाद का घर तो बर्बाद हो गया। तुम्हारा ही बस जाए। बस इसी वजह से मान गए थे। लेकिन शादी के दूसरे दिन ही यह हाल है। कल की आई बहू नाफरमानी कर रही है। बेटा उसका पक्ष लेकर हमें वहमी कह रहा है।"
बद्रीनाथ सर झुकाए बैठे थे। वह पछता रहे थे कि उन्होंने अपनी बहन की बात क्यों नहीं मानी। बेटे के मोह में जीवन में पहली बार अपनी बड़ी बहन की बात अनसुनी कर दी। वही बेटा सबके सामने उनकी बेइज्ज़ती कर रहा है।
मेहमानों के सामने यह तमाशा होने से उमा शर्मिंदगी महसूस कर रही थीं। सुनंदा और नीलम रसोई के दरवाज़े पर खड़ी थीं। उनकी बहन संध्या आवाक सी सब देख रही थी। सीढ़ियों के पास वाले छोटे कमरे में संध्या के पति और दामाद रविप्रकाश सोए हुए थे। शोर सुनकर वह भी आंगन में आ गए थे।
पुष्कर अपने मम्मी पापा को इस तरह शर्मिंदा देखकर दुखी था। सारी निगाहें पुष्कर पर टिकी थीं। उसे बहुत अजीब लग रहा था। पर दिशा ने कुछ गलत किया है, वह यह मानने को बिल्कुल भी तैयार नहीं था।