Wo Maya he - 1 in Hindi Adventure Stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | वो माया है.... - 1

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वो माया है.... - 1



(1)

बद्रीनाथ सिन्हा के घर के बाहर ढोल वाले खड़े थे। बद्रीनाथ के छोटे बेटे पुष्कर की बारात बहू को विदा कराकर आने वाली थी। बहुत सालों बाद बद्रीनाथ के परिवार में यह शुभ घड़ी आई थी। इसलिए बहू का स्वागत ढोल बजाकर किया जाना था। ढोल वाले तय किए गए समय पर आ गए थे। लेकिन अभी तक बारात लौटकर नहीं आई थी।
राजू ने बीड़ी का आखिरी कश लिया। बीड़ी जमीन पर फेंककर पैर से बुझाते हुए बोला,
"मुन्ना ज़रा अंदर पता करो अभी कितनी देर है। घंटा भर से ऊपर तो हमको आए हुए हो गया होगा। अभी तक तो बरात आई नहीं। सहालकों का बखत है। दूसरी जगह भी तो जाना है।"
मुन्ना बैठे हुए ऊब गया था। वह अपने फोन पर कुछ देख रहा था। उसे टस से मस ना होते देखकर राजू चिल्लाया,
"जबसे यह नया फोन ले लिया है जब देखो उसमें ही जुटा रहता है। कहा ना कि अंदर पता करो।"
मुन्ना ने मोबाइल से नज़रें हटाए बिना कहा,
"दादा हमसे किटकिट मत‌ करो। अभी कुछ देर पहले भी तो भेजे थे अंदर। वो बूढ़ी अम्मा चिल्लाने लगीं कि सर ना खाओ। आती होगी बरात। तब पैसों के साथ ईनाम भी मिलेगा।"
"ईनाम क्या देंगी। घर में लड़के का ब्याह हुआ है। इतना तो बना नहीं कि मुंह मीठा करा कर पानी पिला देतीं। थोड़ी देर और देखते हैं। फिर चलते हैं।"
राजू बड़बडाता हुआ बाहर चबूतरे पर बैठ गया। मुन्ना अभी भी मोबाइल में जुटा था।

घर के अंदर उमा बहू के गृहप्रवेश की तैयारी कर चुकी थीं। मोहल्ले की कुछ औरतें, उनकी भाभी, बहन, देवरानी सभी इंतज़ार में थीं कि कब बारात बहू को विदा करा कर लौटे। उमा एक चक्कर बैठक वाले कमरे का लगा कर आईं। बारात से लौटने वाले मर्दों की व्यवस्था दालान और बैठक में ही थी। उन्होंने महरी को निर्देश दिया कि अपने लड़के को तैयार रखे। बरातियों को शरबत पिलाने का काम उसे ही करना है।
बेटा बहू लेकर आ रहा है इस बात की उन्हें खुशी थी। लेकिन मन में एक घबराहट भी थी। उन्होंने मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना की कि सब कुशल रहे। तभी उनका फोन बजा। उनके पति बद्रीनाथ ने बताया कि बस बाजार तक आ गई है। बहू के स्वागत की तैयारी रखें। उन्होंने महरी से कहा कि बाहर ढोल वालों को खबर कर दे। महरी ने बाहर जाकर कहा,
"तैयार रहो। बस बाजार तक आ गई है। अधिक समय नहीं लगेगा। बहू दरवाज़े पर आए तो जोरदार तरीके से ढोल बजना चाहिए।"
वह अंदर चली गई। राजू उठकर खड़ा हो गया। उसने मुन्ना से कहा,
"अरे अब तो धरो फोन।"
मुन्ना ने मोबाइल अपनी जेब में रखा। ढोल गले में लटका लिया। इंतज़ार करने लगा कि कब बहू बस से उतर कर आए तो ढोल बजाए।

उमा की ननद किशोरी जो बद्रीनाथ से छह साल बड़ी थीं पूजाघर में बैठी जाप कर रही थीं। उमा ने दरवाज़ो पर जाकर कहा,
"जिज्जी विशाल के पापा का फोन आया था। बरात बाजार तक पहुँच गई है।"
उमा दरवाज़े पर खड़ी उनके जवाब का इंतज़ार करने लगीं। किशोरी ने जाप बंद किया। भगवान को हाथ जोड़कर जपमाला सही जगह रख दी। उसके बाद पूजाघर के बाहर आईं। जाकर सीधे आंगन में बिछी चारपाई पर बैठ गईं। उमा की तरफ देखकर बोलीं,
"सारी तैयारी कर ली ?"
"हाँ जिज्जी....."
उमा ने जवाब दिया और चुपचाप खड़ी हो गईं। किशोरी उनकी मनोदशा को समझ गईं। उन्होंने कहा,
"परेशान मत हो उमा। भोलेनाथ सब ठीक करेंगे। तुम खुशी खुशी बहू का स्वागत करो।"
"हाँ जिज्जी हम भी भोलेबाबा से यही प्रार्थना कर रहे थे कि सब ठीक रहे। कितने साल बाद इस घर में खुशियां आईं हैं। किसी की नज़र ना लगे।"
"परेशान ना हो उसका इंतजाम कर लिया है हमने।"
उमा बहू के स्वागत के लिए सारा सामान लेकर दरवाज़े पर खड़ी हो गईं। उसी समय दरवाज़े पर ज़ोर ज़ोर से ढोल बजने लगा। उमा फौरन सतर्क हो गईं। सारी औरतें उन्हें घेरे हुए थीं। किशोरी भी वहीं जाकर खड़ी हो गईं। वह कुछ कह नहीं रही थीं। बस बड़ी होने के नाते देख रही थीं कि सारी रस्में सही तरह से हो रही हैं या नहीं।

मोहल्ले की औरतें आंगन में ढोलक बजा कर गीत गा रही थीं। उमा और परिवार की बाकी औरतें खाने का इंतज़ाम कर रही थीं। नई बहू दिशा को नीचे एक छोटे कमरे में बैठाया गया था। उसके साथ दो लड़कियां थीं जो पुष्कर की चचेरी बहनें थीं। उनमें से एक की उम्र आठ नौ साल की थी‌। उसका नाम मीनू था। साथ में उसकी बड़ी बहन सोनम थी।
घूंघट ओढ़े रहने में दिशा को उलझन हो रही थी। वह शहर में ही पली बढ़ी थी। नौकरी करती थी। गांव के रीति रिवाज़ों से अधिक परिचित नहीं थी। उसे वैसे भी यहाँ नहीं रहना था। एक हफ्ते बाद वह और उसका पति पुष्कर घूमने बाहर जाने वाले थे। उसके बाद दोनों शहर में लिए गए फ्लैट में शिफ्ट होने वाले थे। शादी से पहले पुष्कर ने उसे समझाया था कि बस कुछ दिनों की बात होगी। वह गांव के हिसाब से एडजस्ट कर ले। उसके मम्मी पापा खुश हो जाएंगे। उसके बाद तो उन्हें अपने हिसाब से जीना है।
कमरे में सिर्फ दोनों लड़कियां ही थीं। दिशा ने घूंघट हटा दिया। उसे कुछ राहत मिली। पास बैठी मीनू ने कहा,
"घूंघट क्यों हटा दिया भाभी ?"
दिशा ने उसे घूरा। उसके बाद मुंह पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया। सोनम ने कहा,
"भाभी हम नज़र रखे हैं। कोई आएगा तो हम बता देंगे। आप दोबारा घूंघट कर लीजिएगा।"
दिशा मुस्कुरा दी। उसने इधर उधर निगाह दौड़ाई। उसके सूटकेस के पास उसका पर्स रखा था। उसने मीनू से कहा,
"मेरा पर्स उठा लाओ।"
वह भाग कर उसका पर्स उठा लाई। उसके बाद उम्मीद से टकटकी लगा कर देखने लगी। उसे उम्मीद थी कि भाभी पर्स से निकाल कर कुछ देंगी। दिशा ने पर्स से अपना मोबाइल निकाला। उसके बाद पर्स वापस रखवा दिया। एक मैसेज टाइप करके भेज दिया।

बाहर बैठक और दालान में मर्दों की महफिल जुटी थी। सब आपस में बातचीत कर रहे थे। उन्हीं के बीच पुष्कर और उसका बड़ा भाई विशाल बैठे हुए थे। पुष्कर दिशा को लेकर चिंतित था। वह जानता था कि उसके लिए सब बहुत मुश्किल हो रहा होगा। पर वह अंदर जाकर उसके हालचाल भी नहीं ले सकता था। वह सोच रहा था कि कुछ किया जाए तभी उसके फोन पर मैसेज आया। उसने धीरे से फोन निकाला। दिशा का मैसेज था। इधर उधर देखने के बाद उसने मैसेज खोलकर पढ़ा।
'बहुत मुश्किल हो रही है.....अभी कुछ ही घंटे हुए हैंं..... बाकी के दिन कैसे कटेंगे। डू समथिंग.....'
मैसेज पढ़कर पुष्कर ने फोन जेब में रख लिया। उसकी मौसेरी बहन के पति रविप्रकाश ने छेड़ते हुए कहा,
"अब तो शादी हो गई है। सारे चक्कर बंद करो अब।"
उनकी बात सुनकर सब हंसने लगे। पुष्कर को अच्छा नहीं लगा। पर कुछ कह नहीं पाया। तभी बद्रीनाथ ने कहा,
"विशाल जाकर अपनी मम्मी से पूछो कि खाना बनने में कितना समय बचा है। बहुत से लोग खाने के बाद निकलना चाहते हैं।"
उनकी बात सुनकर उनके साले ने कहा,
"जीजा जी हम भी सोच रहा हैं कि निकल जाएं।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"मनोहर अभी तो भांजे की बारात विदा करा कर लाए हो। इतनी जल्दी क्या है ?"
"आप तो जानते हैं कि अनुपमा के इम्तिहान चल रहे हैं। इसलिए वह आ नहीं पाई। दो दिन उसकी चाची साथ रुकी थीं। अब हम चले जाएंगे। उसकी मम्मी यहीं हैं कुछ दिन। वैसे भी अब जो रस्में हैं औरतों को ही निभानी हैं।"
मनोहर की बात से बद्रीनाथ सहमत थे। उन्होंने विशाल को अंदर भेजा‌‌। पुष्कर भी अपने भाई के साथ अंदर चला गया। आंगन में औरतों का गाना बजाना चल रहा था। पुष्कर को देखकर मोहल्ले की एक औरत ने कहा,
"लगता है बहुरिया से मिलने को उतावले हो।"
"नहीं चाची बाथरूम जा रहा हूँ।"
पुष्कर बिना रुके आंगन के एक तरफ बने बाथरूम की तरफ बढ़ गया। अंदर जाकर उसने दिशा को मैसेज भेजा।
'तुम्हारे साथ कमरे में कौन है ?'
कुछ ही देर में जवाब आया।
'दो लड़कियां हैं...'
पुष्कर ने जवाब भेजा।
'मैं आ रहा हूँ....'
पुष्कर बाथरूम से निकला। औरतें अपने में मगन थीं। दिशा का कमरा सीढ़ियों के पास था। वह उधर ही बढ़ गया। दरवाज़ा खुला था। वह कमरे में चला गया। वहाँ मौजूद दोनों लड़कियां आश्चर्य से उसे देख रही थीं। पुष्कर ने अपनी जेब से पैसे निकाल कर सोनम को देकर कहा,
"तुम दोनों कुछ खा लेना‌। पर मैं भाभी के पास आया था किसी को बताना नहीं। अभी दरवाज़े पर ध्यान रखो।"
दिशा ने उससे कहा,
"अच्छा हुआ तुम आ गए। पुष्कर कम से कम मेरे लिए कोई अच्छे कमरे का इंतज़ाम किया होता‌। इस छोटे से कमरे में बैठा दिया इन दो लड़कियों के साथ। कोई और झांकने भी नहीं आया।"
पुष्कर दिशा के चेहरे पर उसकी परेशानी को देख रहा था। उसे बुरा लग रहा था। उसने कहा,
"भइया ने हमारे लिए ऊपर कमरे का इंतज़ाम करा दिया है। कमरा बड़ा है और साथ में बाथरूम भी है।"
"तो फिर यहाँ क्यों बैठाया है ?"
"दोपहर में कुछ रस्में होनी हैं शायद इसलिए।"
दिशा जवाब से संतुष्ट नहीं थी। पुष्कर ने कहा,
"सॉरी.... अभी मुझे जाना होगा।"
उसने उन दोनों लड़कियों से कहा,
"भाभी का ध्यान रखना। इन्हें कोई ज़रूरत हो तो ताई को बता देना।"
पुष्कर ने एक बार दिशा को देखा फिर कमरे से निकल गया। दिशा ने एक आह भरी। उसके बाद मीनू से पानी लाने को कहा। वह पानी पी रही थी तभी उसकी मम्मी का फोन आ गया। वह अपनी मम्मी से बात करने लगी।