Sunahara Dhokha - 1 in Hindi Fiction Stories by Brijmohan sharma books and stories PDF | सुनहरा धोखा - 1

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सुनहरा धोखा - 1

लेखक : ब्रजमोहन शर्मा

(ऐक बेवफा पत्नि द्वारा अनेकों प्रकार से अपने सीधे सादे पति को धोखा देना लेकिन फिर एक दिन जब उसके षड्यंत्र का पर्दाफाश होता है तब ....)

समर्पण : भगवान शिव के श्री चरणों में समर्पित यह पुष्प

भूमिका :

मित्रों  “सुनहरा धोखा“, यह अत्यंत सनसनीखेज कहानी उस बेवफा पत्नी की बेवफाई कहती है जो अपने सीधे सादे पति को तरह तरह के षड्यंत्र करके धोखा देती है | वह तरह तरह से बहाने बनाकर छिप छिपकर अपने प्रेमी के साथ गुलछर्रे उड़ाती है किन्तु देर सबेर जब एक दिन उसके कुकर्मों का भांडा जब फूटता है तब.....

दिल दिमाग को सन्न कर देने वाली रोमांचक कहानी पढिये

 

1

(शादि, झगड़े)

मोहन को भोपाल से विवाह हेतु एक लड़की के परिवार का प्रस्ताव मिला |

वह वधु देखने उसके बंगले पर पहुंचा |

वह एक सरकारी अधिकारी की पुंत्री थी |

एक लड़की दरवाजे पर आई |

उसने कुतूहलवश पूछा, “ कहिये जनाब ?”

“ मै मोहन इंदौर से “,

वह अन्दर चली गई | तत्काल एक दूसरी कन्या जो उसकी बड़ी बहन रही होगी वह बाहर आई |

वह बड़ी प्रसन्नता से बोली, “ आइये श्रीमान,आपका स्वागत है “ |

उसे एक बड़े गेस्ट रूम में ले जाया गया |

एक अत्यंत प्रभावशाली व्यक्ति अपने कमरे से वहां आया व मोहन से हाथ मिलते हुए कहने लगा,“ मै प्रकाशचंद, लड़की का पिता हूँ “ |

उन सभी ने मोहन का गर्मजोशी से स्वागत किया | उसे एक मेज पर भोजन के लिए आमंत्रित किया गया |

मोहन वहां के वातावरण को देखकर संकोच कर रहा था| उनके मुकाबले उसकी आर्थिक सामाजिक स्थिति बहुत कमजोर थी | एक अत्यंत सुंदर लड़की उसके लिए खाना लेकर आई |

उसे देखकर मोहन अवाक् रह गया | वह अनिंद्य सुंदरी थी|

उसके पिता ने कहा : यह शीला है, मेरी तीसरे नम्बर की पुत्रि है |

मेरी चार पुत्रियाँ हैं |

“आप क्या करते है श्रीमान?“, उसने पूछा

“ मै एक शासकीय कालेज में लेक्चरर हूँ “

आप का कार्यस्थल कहाँ है?”

‘इंदौर से १०० किलोमीटर दूर एक गांव में नया कालेज खुला है, वहां मेरी पोस्टिंग हुई है “

आप क्या पढ़ाते है ?

“मै मैथ्स पढ़ाता हूँ “

लड़की के पिता पूर्णतया संतुष्ट दिखाई दिए |

उसे अकेले मे शीला से बात करने को कहा गया|

मोहन को वह अत्यंत पसंद थी किन्तु उसे इतने उच्च परिवार में विवाह करने की कल्पना से भय लगने लगा  |

साधारणतया प्रारंभिक वार्तालाप के बाद मोहन ने कहा,

‘शीला हम लोग तुम्हारे मुकाबले बहुत साधारण है| मै गांव मे अध्यापक हूं| वहां शहर जैसी एक भी सुविधा नही है; न वहां थियेटर है, न बाग बगीचे हैं और न होटल आदि हैं | वहां के घरो मे आधुनिक टायलेट तक नही है |

आप को वहां अच्छा नहीं लगेगा|’

इस पर शीला ने कहा-‘ जहां प्रेम है वहां अन्य चीजें गौण है| हमारे पिता भी पहले बहुत छोटे कर्मचारी थे|धीरे धीरे उनके प्रमोशन होते गए|अनेक बार उनके बहुत छोटे गांव मे ट्रांसफर हुए हैं| हमे गांव मे रहने की आदत है`|’

वास्तव मे शीला व उसके पूरे परिवार को फिल्मी हीरो के समान दिखने वाला मोहन बहुत पसंद था| उसकी सरकारी नौकरी बहुत मायने रखती थी|

दोनो ने एक दूसरे को पसंद कर लिया |

तीन दिन बाद शीला की बहिने,भाई तथा माता पिता ने मोहन के घर जाकर सगाई की रस्म कर दी |

लड़की वालों ने मोहन व उसके परिवार को कीमती कपडे,मिठाइयाँ व कुछ रुपये भेंट किये |

इसके बाद मोहन के परिवार को लड़की वालों के यहां जाना था किन्तु मोहन की माता श्यामा ने इस विवाह पर आपत्ति उठाई |

उसने कहा-

‘ये लोग हमारी जाति के नही है| जाति वालों ने पहले ही हमें बहिष्कृत कर रखा है|

इस विवाह के बाद तो वे हमारे घोर विरोधी हो जाएगे| हमारे पास जाति के लोगो की लड़कियों के अच्छे प्रस्ताव आ रहे हैं| ’

इस पर मोहन ने कहा- ‘ शीला के परिवार के लोग भी ब्राम्हण है | दूसरी उपजाति के हुए तो क्या हुआ ? लड़की के पिता उच्च शीसकीय अधिकारी हैं| इस संबंध से समाज मे हमारी प्रतिष्ठा बढ़ जाएगी| ’

किन्तु श्यामा ने इंकार कर दिया|

तीन दिन बाद मोहन ने रिश्ते को अस्वीकार करते हुए शीला से विवाह न कर सकने की असमर्थता व्यक्त करते हुए व खेद जताते हुए पत्र लिख दिया|

इस पर शीला के घर कोहराम मच गया| सगाई तोड़ी हुई लड़की का रिश्ता होने मे बहुत कठिनाई आती है|

वे दौड़ते हुए मोहन के घर आए व मिन्नतें करने लगे किन्तु मोहन की माता श्यामा ने साफ मना कर दिया |

इधर मोहन शीला के गम मे डूब गया| उसे शीला बहुत पसंद थी| यही हाल शीला का था|

मोहन ने तीन दिन तक खाना नही खाया और खुद को एक कमरे मे बंद कर लिया|

आखिर विवश हो मां ने विवाह के लिए हामी भर दी |

बड़े धूमधाम से विवाह सम्पन्न हुआ | मोहन ने स्वयं के पास शादि का खर्च न होने की स्थिति पहले ही लड़की वालों को बता दी थी | अतः शीला के पिता ने विवाह आयोजन के दोनो ओर का खर्च स्वयं उठाया|

उनके दिन मौज मस्ती में बीतने लगे| वे रोज शाम बगीचे मे जाते|

वे वहां सुंदर फूलों के बीच बैठते| मोहन बड़ा सुरीला गाता था| वह शीला को तरह तरह के रामांस के गीत सुनाता | शीला को वे गीत खूब पसंद आते| वह और गाने सुनाने को कहती | मोहन के गानों का स्टाक भी कभी खत्म नहीं होता था | कभी वे किसी फिल्म देखने चले जाते| उनकी रातें रोमांस व चुम्बनों से भरी होती| पूर्णिमा का चांद अमृत लुटाता दिखाई दे रहा था |

एक दिन मोहन शीला को प्रसिद्ध नेहरु पार्क ले गया | वह बड़ा सुन्दर पार्क था | वहां चारों और बड़ी हरियाली थी |

पूरे बाग में सुन्दर सुन्दर फुल खिले हुए थे | बगीचे के बीच में एक सुन्दर फौवारा था | उसके चारों ओर कमल के फुल खिले हुए थे |

एक अन्य दिन वे प्रसिद्ध बिजासन माता मंदिर के दर्शन करने गए |वह मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है |वहां से पूरे शहर का सुन्दर द्रश्य देखा जा सकता था | फिर एक अन्य दिन वे प्रसिद्ध कांच मंदिर देखने गए |

यह जैनियों का प्रसिद्ध मंदिर है | वह बहुत सुन्दर दर्शनीय स्थल है |

दूसरे दिन वे प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पाताल पानी गए | वहाँ एक अत्यंत खुबसूरत झरना है जो बहुत ऊंचाई से गिरता है |

वह खुबसूरत स्थल चारों और से हरियाली, पहाड़ियों, बोगदों से घिरा हुआ था |

इस तरह वे एक माह तक अपने नऐ विवाहित जीवन कस आनंद उठाते रहे |

छुटियां खत्म हो चलीं| मोहन को अपने कॉलेज मे ड्यूटी जाइन करना थी |

शीला ने मोहन के साथ चलने की जिद की | मोहन ने उसे बहुत समझाने की चेष्टा की कि उस गांव में टायलेट तक की सुविधा नहीं है किन्तु शीला कुछ सुनने को तैयार नहीं थी|

वे दोनों उस छोटे गांव की ओर निकल पड़े| उस शाम को चांद अपने पूर्ण यौवन पर था|

प्रेमी जोड़ों के दिलों में वह रस घोल रहा था|

वह एक पहाड़ी के दूसरी ओर बसा हुआ एक छोटा गांव था|

पहले उन्होने एक छोटे पठार को पार किया |

फिर एक नदी पार करने के बाद वे गांव में पहुंचे| गांव के लोगों ने नये जोड़े का गर्मजोशी से स्वागत किया|

कुछ देर बाद मोहन जैसे ही कालेज मे पहुंचा प्राचार्य व स्टाफ के लोग उसे विवाह की बधाई देने लगे|

प्राचार्य ने कहा,‘ मोहन आपको शादी की अनेक बधाइयां | आपके लिए एक खुशखबर और है;

आपका प्रमोशन लेक्चरर की पोस्ट पर एक दूसरी जगह हो गया है|’

मोहन ने सबको धन्यवाद देते हुए एक शानदार पार्टी दी |

उसी शाम वे अपनी अगले स्थल के लिए रवाना हो गए|

शीला उसके लिए बहुत लकी सिद्ध हुई|

वह नया गांव मोगांवा था | वह एक बड़ा गांव था | उसके किनारे एक बहुत बडी नदी बह रही थी | वहां की आधी बस्ति मुसलमान तो आधी हिन्दु थी | वह गांव चारों ओर से सुंदर पहाड़ियों से घिरा था |

मोहन सायं होते ही पहाड़ी पर या नदी किनारे एकांत में ध्यान करने चले जाता था |

अपनी डृयूटी से लौटते ही शीला उका बेसब्री से इंतजार करती हुई मिलती | वे एक दूसरे पर चुंबनों की झड़ी लगा देते और एक दूसरे की बाहों मे खो जाते | उनके चारों ओर खुशियाँ थीं और जिंदगी बड़ी रंगीन थी |

एक दिन शीला ने कहा ‘ मैं कुछ खरीदी करना चाहती हूं’ |

वे एक कपड़े की दुकान पर पहुंचे | वहां शीला ने अपनी पसंद के अनेक कपड़े खरीदे | जब दुकानदार ने बिल दिया तो मोहन घबरा गया |

उसने कहा ‘ मेरे पास इतने रुपये नही है |’

इस पर शीला ने उदास होकर सारा सामान लौटा दिया |

उसकी बड़ी बेइज्जती हुई थी | उसने दो दिन तक मोहन से बात नहीं की |

शीला ने घर में खाना भी नहीं बनाया |

इस पर उन दोनों में झगड़ा होने लगा |

शीला ने कहा, “मुझे नहीं मालूम था की मेरी शादि एक अत्यंत गरीब परिवार में की जा रही है|’

इस पर मोहन ने कहा, “ शीला मैंने तुम्हे पहले ही बता दिया था की मै एक साधारण अध्यापक हूँ |

मेरी तनख्वाह बहुत कम है|’

शीला ने कहा, “आपका परिवार निम्न कोटि का है“ |

इस पर मोहन क्रोधित हो गया | उसने शीला को एक तमाचा रसीद कर दिया |

शिला क्रोध में फुफकारते हुए कहने लगी,” मुझे आज तक किसी ने नहीं मारा है, मेरे पिता तक ने नहीं |”

दूसरे दिन शाम को जब सायं मोहन घर लौटा तो शीला घर पर नहीं मिली |

उसने शीला को हर जगह ढूंढा किन्तु वह कहीं नहीं मिली |

मोहन बदहवास उसे सभी जगह ढूंढ रहा था कि तभी एक राहगीर ने उससे कहा, “मास्टर साब तमारी बीबी तो एक बस में सवार हुई ने जई री थी, मणे देख्यो ( आपकी बीबी बस में स्वर होकर जा रही थी मैंने उसे अपनी आँखों से बस में देखा ) |”

दुसरे दिन मोहन ने मां को फोन किया,

‘ मां !क्या शीला इंदौर आई है  ’?

मां ने घबराकर पूछा ‘ क्यों क्या हो गया ? शीला कहीं चली गई है क्या ? ’

इस पर मोहन ने सारी घटना बताई |

मां ने दुख जताते हुए कहा ‘ मैने तुझे अफसर की लडकी से इसीलिए विवाह करने से मना किया था | इनके न तो संस्कार होते हैं, न इन्हे घर ग्रहस्थि से कोई ताल्लुक होता है न ही ये पति की इज्जत से कोई सरोकार रखती है | इन्हें तो बस अपनी मौज मस्ती से मतलब होता हे | पर तू बेफिकर रह, मैं उसे ढूंढ लूंगी | जब उसका पता चल जाए तो पहले तो उसे तलाक की धमकी देना और यदि वह न माने तो भविष्य में उसके साथ कठोर व्यवहार करना |’

इसके बाद श्यामा ने शीला की मां को फोन किया और सारी बात बताई |

उसने कहा ‘  शीला मेरे बेटे के घर से बिना बताए चली गई है | अब आप अपनी बेटी को अपने पास ही रखो | घर से बिना बताए भागी लड़की का हमारे यहां कोई काम नहीं है |

शीला की मां उसकी हरकत से बहुत चिंतित होगई | वह हैरान थी कि शीला उसके पास न आकर आखिर गई कहां ?

शीला के पीहर व ससुराल वाले सभी उसे सभी संभावित जगह खोज रहे थे |

तीन दिन बीत चुके थे |

चौथे दिन प्रातः शीला ने अपने घर में प्रवेश किया |

मां ने उससे क्रोधित होकर पूछा ‘ तू अपने पति की अनुमति के बगैर यहां क्यों आई ? वे लोग अब तुझे अपने घर मे नही आने देंगे | तूने हमारे मुंह पर कालिख पोत दी | मेरी तीन बेटियां और है | हमारी बदनामी होगई तो तेरी बहनों में से किसी की शादि नहीं होगी |’

यह कहकर मां और शिला की सभी बहने रोने लगी |

शीला ने कहा ‘ मोहन मुझे मारता हे | वह बहुत कंजूस हे |

वह मुझे शॉपिंग भी नहीं करने देता है |’

मां ने कहा ‘ तेरे बाप ने तेरे विवाह के लिए भारी कर्जा लिया था | तेरा पति तुझे जिंदा रखे, मारे या भूखा रखे हमे कोई मतलब नही | परनाई बेटी पड़ोसन बरोबर | ’

उसने शीला के भाई अशोक से कहा ‘ इसे इसी वक्त इसके घर छोडकर आ | मेरी ओर से इसकी सास से माफी मांग लेना |’

शीला के घर से अपने पति को बिना बताए भाग जाने की खबर गांव में जंगल की आग की तरह फैल गई |

लोग अनेक तरह की बातें करने लगे, जितने मुंह उतनी बातें |

ऐक जगह पांच छह ग्रामीण इकट्ठे होकर बीड़ी पीते हुए बातें कर रहे थे|

एक ने कहा, ‘ भारी हुयो भाई रे ! माठ साब की जोरू भागीगी |

दूसरे ने कहा, “ मास्टर बड़ा सीधा आदमी है जो जोरू के घर से भागने पर भी चुपचाप मन मार कर बैठा है| मैं होता तो ऐसी जोरू का सिर धड़ से अलग कर देता| ’

तीसरे ने कहा, ‘ मास्टर की औरत के शहर में और भी कई यार होंगे| ’

चौथा :, ‘ अपन भी चूकी गया | अपन के भी बेती नदी में नहीं धोइ लेनो थो ( हम भी मौका चूक गए | हमें भी बहती नदी में हाथ धो लेना चाहिए था )| ’

चौथा, ‘ अभी कई चूकी गया आगे और मोको हाथ में आयगो | ’

तब एक अन्य युवक ने कहा, ‘ तमारे मे से किसी ने मास्टर अण उकी बीबी को झगड़ो देख्यो भी कि यूं ही सब मन का लड्डू उड़ाइ रिया हो| ’

सब ने उससे पूछा ‘ थारे पतो भी है कि कईं हुयो थो उणी दिन ? ’

उसने कहना शुरू किया,‘ हूं उणी दन दुकान पे सब देखी रियो थो | मास्टरनी ने कपडा की दुकान से घणा सारा कपड़ा खरीदी लिया | मास्टर के पास नोट नी था | बस दोई में झगड़ो शुरू हुयो | मास्टरनी बड़ा घर की बेंटी है | ऊकी खूब खर्चा करने की आदत है | वा मास्टर से नाराज हुई गई |मास्टर बापड़ो गरीब है | या है असली झगड़ा की जड़ | वा नाराज हुई ने अपना बाप के यां चली गई | ’

यह सुनकर सबकी बोलती बंद होगई|

उसी समय मोहन उनके पास से गुजरा | उसे देख सब उसे सहानुभूति से घूरने लगे|

एक ग्रामीण ने कहा, ‘ मास्टरजी राम राम ’

मोहन ने उनकी ओर बिना देखे हुए कहा, ‘आप सबको राम राम ’

मोहन बड़ी तेजी से उनके पास से निकल लिया| उसे संदेह था कि वे शीला के बारे में बातें कर रहे होंगे|

अंधेरा हो चुका था |

शीला के भाई सुभाष ने कहा ‘ इस बार शीला को माफ कर दीजिए | यह आगे से ऐसा नहीं करेगी | मेरी मां ने भी शीला की ओर से माफी मांगी है |

श्यामा ने कठोर स्वर में कहा ‘ पति के घर से भागी हुई लड़की का हमारे घर में कोई स्थान नहीं है |’

इस पर सुभाष किसी की नहीं सुनते हुए शिला को वहां जबरन छोडकर चला गया |

कुछ दिनो तक घर के किसी मेम्बर ने शीला से बात तक नहीं की |

श्यामा ने उसे खूब खरी खोटी सुनाई | वह शीला को रोज कठोर स्वर में ताने सुनाने लगी :

“देखो मेरा बेटा न जाने कहाँ से एक ख़राब परिवार की लड़की ले आया | इस शीला के कोई संस्कार नहीं है | वह घर गृहस्थी के लायक लड़की है ही नहीं”; ऐसा कहते हुए वह पडौस की किसी औरत को अपना दुखड़ा सुनाती |

ये बातें सुन सुनकर शीला तिलमिलाकर रह जाती |

तब शीला ने मोहन को एक लव लेटर भेजा जिसमे उसने क्षमा मांगते हुए अपने प्यार के तूफानी जजबात बयां किए | पत्र को पढ़कर मोहन शीघ्रता से आया और शीला को अपने साथ पुनः गांव ले गया |

प्यार मोहब्बत के पुराने दिन फिर से पूरे जोश के साथ लौट आए |

तांकझांक

लातूराम गांव का प्रसिद्ध किराना मर्चेन्ट था |

वह वेदांत विषय की अच्छी जानकारी रखता था|

मोहन की भी वेदांत मे बउ़ी रूचि थी| दोनो मे अच्छी मित्रता हो गई| वे रोज शाम को बाते करते रहते थे| लातू की एक भारी समस्या थी कि वह बड़ा गंदा रहता था| वह गंदे कपड़े पहनता था| ऐसा लगता जैसे वह कई दिनो से नहाया नही है | वह सिर मे कभी तेल नही लगाता था|

एक दिन स्कूल से शाम को मोहन जब घर लौटा तो शीला ने चिढ़ते हुए कहा, ‘तुम्हारा कोई दोस्त लातूराम है ? वह आज दोपहर को बिना पूछे,दरवाजे पर दस्तक दिए बिना; सीधा घर के अंदर आकर पलंग पर आकर बैठ गया | वह मुझे ललचाई नजरों से घूर रहा था |मैने उससे कहा अभी जाइये शर्माजी घर पर नही है| तो भी वह कुछ देर बेशर्म होकर बैठा रहा | अंत में मैंने उसे जोर से डांटते हुए भगा दिया | ’

इस पर मोहन को आश्चर्य व दुख हुआ | उसने कहा - ‘ लातू को पता है, मै दोपहर को घर पर नही रहता हूं फिर वह मेरी अनुपस्थिति में घर पर क्यो आया ?  उसके इरादे नेक नही थे| ’

वह शीला से मजाक करते हुए बोला- ‘ वह जो चाहता था, तुम्हे देना चाहिए था| मेहमान की खातिर करना हमारा घर्म है |’

इस पर शीला गुस्से मे बोली –“ वह ख़राब नजरों से मुझे देखे जा रहा था | उसे हमारे घर मे आने से मना कर देना |”

मोहन – “बड़ी आस लगाकर आया होगा बेचारा |”

(चेतावनी भरे स्वर में) “भविष्य में सावधान रहना | यह गांव है |तुम्हारे घर से भाग जाने से हमारी पहले ही बदनामी हो चुकी है|“

मोहन को रामकृष्ण परमहंस के ये वचन याद आए कि कौआ व चील चाहे जितना ऊपर उड़ लें

किन्तु उनकी नजर धरती पर पड़े मांस के टुकड़े पर ही रहती है| वैसे ही चरित्रहीन व्यक्ति चाहे

जितनी ज्ञान की बातें करले उसकी नजर सांसारिक भोगों पर ही रहती है |

कुछ दिन बाद शीला ने कहा-“आज तुम्हारा कोई दोस्त सोहन दोपहर को आया और तुम्हारे विषय

मे पूछ रहा था|’

यह सुनकर मोहन स्तब्ध रह गया | कुछ दिन पूर्व ही मोहन की सोहन से दोस्ती हुई थी

“  सोहन को मालूम है मै दोपहर को घर मे नही रहता,फिर वह घर मे उस वक्त क्यो आया“?, मोहन से स्वयं से कहा |

उसने कहा-“ शीला तुम पर गांव वालो की बुरी नजर है| किसी को भी मेरी अनुपस्थिति मे घर के भीतर मत बुलाना अन्यथा सारे गांव मे हमारी बदनामी फैल जाएगी|लोग तुम्हे दुश्चरित्र समझकर शंका की नजर से देख रहे हैं |’

गांव मे अनेक लोगों के अवैध संबंध चल रहे थे|

एक बूढ़े मास्टर पर एक नवयुवती अध्यापिका फिदा थी|

उसने अपना तन मन सभी बूढ़े की कविता पर न्यौछावर कर दिया था| युवती के घर वालों ने उसकी शादि किसी अन्य युवक से करने का पूरा प्रयास किया किन्तु उसने बूढ़े कवि का साथ छोड़़ने से साफ मना कर दिया| गांव वालो ने अध्यापक को जान से मारने की धमकी दी,उस पर कई हमले किए, उच्च अधिकारियो से शिकायत की; गाँव वालों ने युवती पर अनेक तरह के जाल फेंके किन्तु सब बेकार सिद्ध हुए |

अंत मे बूढ़े की औरत को बहुत दूर से संदेश भेजकर बुलाया गया | उसने बूढ़े शिक्षक को तरह तरह के उलाहने दिए | अपने पुत्र व पुत्रि पर गलत प्रभाव पड़ने व समाज में बदनामी का वास्ता दिया किन्तु शिक्षक ने उसकी एक न सुनी |उन्हें अलग करने के सब प्रयास व्यर्थ हुए |

इसी प्रकार एक विवाहित अध्यापिका एक खुबसूरत जवान अध्यापक पर फ़िदा हो गई “ वे दोनों रोज एक ही कमरे मे घंटो बंद रहते |

उन्हे एक दूसरे से अलग करने की गांव वालों ने भरसक कोशिस की किन्तु वे भी अलग नही हुए|

अंत मे अध्यापक की शिकायत उच्चाधिकारियों को करके उसका तबादला दूर गांव मे करा दिया गया किन्तु वह प्रेमी बार बार उस गांव में आकर अपनी महबूबा के साथ काफी वक्त बिताता | तब उसके पति को खबर दी गई |उसने कई दिनों तक अपनी पत्नि को भयभीत करने की कोशिश की किन्तु पत्नि ने पति को ही तलाक का नोटिस दे दिया | वह पति के सामने ही अपने प्रेमी के साथ खिलखिलाती हुई बातें करती |इतना ही नहीं प्रेमी ने पतिदेव को जान से मारने की धमकी दी | पति ने मन मारकर वहां से जाने में ही अपनी खैरियत समझी | वह कुछ नहीं कर पाया |

इसी तरह एक सेठ एक हेडमास्टरनी व उसकी जवान लड़की दोनो से एक साथ आशिकी कर रहा था |

ऐसे अनेक किस्से थे | यह तो भगवान का शुक्र है कि शीला को लाख कोशिस करने पर भी कोई छू नही पाया|

मोहन भी बड़ी शान से गांव मे रहता और किसी को मुंह नही लगाता था |

शाम होते ही शीला और मोहन एक दूसरे के साथ टहलने जाते |

गांव वालों के लिए यह बड़ी अजीब बात थी | वहां पति पत्नि कभी साथ साथ नहीं चलते थे |

इस नजारे को देखने के लिए गांव के लोग अपने घरों से बाहर निकल पड़ते |

लोग आपस में कानाफूसी करे करते ‘मास्टर की बीबी बिगड़ैल है | मास्टर तो जनखा व जोरू का गुलाम है |’

अनेक गांव वाले दूर तक उस बिगडेल बीबी का नजारा देखने दूर तक उनका पीछा करते |

शीला के कमर व कन्धों का बहुत बड़ा भाग गांव वालों के लिए कौतुहल की वस्तु था |

वे शीला पर चांस मारने की कोशिस करने लगे |

एक दिन शाम को गावं वालों का समूह चर्चा में मशगूल था |

एक व्यक्ति बीडी का कश उड़ाते हुए कहने लगा,“ या मास्टरनी तो भारी बिगडेल है रे,भई होन| तममें से किनी ने किसी जोरू ने आखा गावं के सामने आदमी के साथ घूमतो देख्यो ? ऐसी बेशर्मी से सारी पीठ उगाडिने आदमी के साथ”

दूसरा बोला,” अरे वा भी आधी नग्गी हुई ने |’ पीठ,कमर न कई कई सब दिखी री |

तीसरा बोला, दिखी री की दिखाई री, आजाओ मैदान में |” सब जोर से खिलखिलाकर हंस पड़े |

सब ग्रामीण शीला को बदनाम करने के लिए आगे बढ़ बढ़कर अपनी राय दे रहे थे |

तब एक युवक जो शहर में पढ़ता था,कहने लगा,  ‘ शहर में अनेक पति पत्नि शाम को साथ साथ घूमने जाते हैं | इसमें कुछ नया नहीं हे | अपने माठसाब शहर मे रहते हैं इसलिए वहां की तरह पति पत्नि साथ में घूमने जाते है | इसमें नया कुछ नहीं है |’

तब एक बूढ़े ने आश्चर्य से कहा, “ हूं ! भारी करी रे भगवान ! यो तो कलयुग आइ गयो है ”; वहां बैठे सभी लोग बड़े आश्चर्य में पड़ गए |

ध्यान

मोहन उन दिनो अध्यात्म की उच्च दर्जे की किताबे पढ़ता था|

समाधि मे कल्पनातीत आनंद होता है किन्तु मात्र किताबे पढ़ने से उस महान आनंद को प्राप्त नही किया जा सकता है| मोहन उन दिनो ध्यान का अभ्यास कर रहा था|

वह शाम होते ही नदी के किनारे एकांत मे दूर निकल जाता और नदी के किनारे बैठ कर ध्यान करता | उस निर्जन वन मे  ध्यान का ऐक अलग ही आनंद होता |

कभी वह एक बड़े पर्वत पर चढ़ जाता | वहां माताजी का एक छोटा मंदिर था |

वहां से डूबता हुआ सूरज बड़ा सुंदर दिखाई देता था| उस निर्जन वन मे ध्यान का बड़ा महत्व था|

सुनसान प्रदेश से लौटकर वह घर पर भी ध्यान करता|

कुंडिलिनी योग

मोहन कुंडिलिनी योग का अभ्यास कर रहा था |

इस योग के अनुसार मानव शरीर में सात प्रमुख चक्र हैं |

पहला चक्र रीढ़ के नीचे गुदा के पास मूलाधर चक्र है | उसके उपर स्वाधिस्ठान,नाभि में मणिपुर,हृदय में अनहत,गले में विशुद्ध,दोनों भौंह के बीच आज्ञा व सबसे ऊपर कपाल मे सहस्रार चक्र होता हे |

कुण्डलिनी अनंत शक्ति का स्रोत है, जो सुप्तावस्था में मूलाधार चक्र में विद्यमान रहती है |

योग साधना से इसे जाग्रत करने पर इसमें से अनंत शक्ति व आनंद का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है |

कुंडलिनी मूलाधार में स्थित अग्निकुंड में सोई रहती है | साधक प्राणायाम करते हुए मन्त्र जप के साथ इस कुंडलिनी पर प्रहार करता है |

धीरे धीरे वह जागृत होती है |तब वह ऊपर उठ कर अन्य चक्रों को भेदती हुई सबसे उपर के चक्र सहस्रार में पहुंचती हे |

इस अवस्था में साधक को आत्मसाक्षत्कार होता हे | वह असीम आनंद मे मग्न हो जाता हे | मनुप्य जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर लेता हे |

किन्तु यह साधना बड़ी कठिन होती हे |

विवेकानंद ने कहा है कि साधक को अनेक जन्म भी लेना पड़े तो भी असीम धैर्य से उसे योग साधना में लगे रहना चाहिए | किसी किसी साधक को तो बिना किसी साधना के ही आत्मसाक्षात्कार हो जाता है,जैसे रमण महर्षि को हुआ |

जब वे महज सत्रह वर्ष के मासूम बालक थे |

अचानक एक दिन उन्हें अपने शरीर को मरने का आभास हुआ | पहले तो वे भयभीत हो गए |

किन्तु फिर उन्होंने धैर्य रखकर अपनी म्रत्यु का निरिक्षण किया |

उन्हें बड़ी गहरी समाधि लग गई | वे आजीवन समधिमग्न रहे |

मोहन दिन में तीन बार योगाभ्यास कर रहा था | किन्तु ध्यान इतना सरल भी नही है |

सांप

दो वर्ष बाद मोहन का ट्रांसफर इंदौर शहर मे हो गया |

उसने शहर के बीच एक मकान किराये पर लिया | उसके कमरे तीसरी मंजिल पर थे|

एक सुबह जब मोहन नींद से उठा तो उस वक्त अंधेरा था |

कमरे मे कुछ दिखाई नही देता था|

उसे अपने पैरों के नीचे कुछ नरम वस्तु धीमें से चलती हुई महसूस हुई |

उसे कुछ ठंडा नरम महसूस हुआ |

उसने बल्ब जलाया तो वह जोरों से चिल्ला उठा- ‘ ओफ ! सांप ’

वह एक बहुत मोटा व लम्बा सांप था |

उसने पलंग पर सो रहे अपने पत्नि व बच्चे को नींद से जगाया और धीमे से चुप रहने का संकेत देकर बाहर निकाल दिया | उसके शोर करने से बहुत लोग इकट्ठे हो गए | उनमें से हर व्यक्ति अपनी अपनी राय देने लगा |

एक ने कहा- ‘ ये नाग देवता है, इन्हे न छेड़े | ये खुद ही चले जाएंगे|”

दूसरे ने कहा- ‘अरे जल्दी सपेरे को बुलाओ|”

तीसरे ने कहा- ‘सांप को जिंदा पकड़ कर कहीं छोड़ आओ|”

तब मोहन एक बड़ा लट्ठ लाया और उसने सांप पर जोर से प्रहार किया |

मार खाकर सांप बुरी तरह से तड़पकर उछला | वह छत की ऊंचाई तक उछला और फिर तेजी से बल खाता हुआ नीचे गिरने लगा | वह ठीक मोहन के सिर पर गिरता किन्तु मोहन फुर्ति से दूर हट गया|

सांप बुरी तरह तड़पने लगा| मोहन ने तीन चार बार उस पर प्रहार किया |

सांप ने दम तोड़ दिया | पूरे कमरे में सांप का मटमैला खून फ़ैल गया |

एक व्यक्ति ने कहा,‘ सांप मरने के बाद वापस जिन्दा हो जाता है | इसलिए उसे जलाना जरूरी है ‘ |

मोहन ने उसका शव एक बड़ी टोकरी मे भरा और पास ही नदी के किनारे उसे जलाने के लिए ले गया|

वहां उसने सांप की पूजा की | उसे वस्त्र चढाये, धूप दान दिया व उससे क्षमा मांगी |

फिर उस पर पेट्रोल डालकर उसे जला दिया | वहां चारों ओर बड़ी तेज दुर्गन्ध उड़ने लगी |

मोहन को भय था कि कहीं सांप पुनः जिंदा होकर उससे बदला न ले|

क्योंकि ऐसी कहावत प्रचलित हे कि मारे हुए नाग की आंख मे कातिल का फोटो छप जाता है|

उसे देखकर नागिन बदला जरूर लेती है|

ज्योतिष

उन दिनो मोहन ज्योतिष सीख रहा था |

गणित का अध्यापक होने से वह आसानी से ज्योतिष सीख गया |

आसपास के लोगों को मालूम पड़ा कि मोहन को ज्योतिष का ज्ञान है तो वे अपनी समस्या लेकर उसके पास पहुंचने लगे |

एक दिन एक व्यक्ति उसके पास आया और उसने अपनी व्यथा बताते हुए कहा,

‘पंडितजी मेरा पुत्र दो दिन से कहीं चला गया है | हमने उसे ढूंढने की बहुत कोशिश की किन्तु वह कहीं मिल नहीं रहा है |

मोहन ने लड़के की जन्म पत्रिका का अध्ययन किया|

उसने कहा- ‘लग्नेश के बारहवें स्थान मे होने से इस लड़के का घर में मन नहीं लगता है |यह लड़का घर से भागने का आदी है |”

पिता ने कहा –‘ हां साहब,यह पहले भी कई बार घर से भाग चुका है’ |

चतुर्थेश चंद्र शनिवार को चतुर्थ स्थान पर आएगा | अतः शनिवार को आपका पुत्र लौट आएगा|

रविवार को वह व्यक्ति मिठाई का पेकेट लेकर आया|

उसने मोहन को बड़ी ख़ुशी जताते हुए मिठाई देते हुए कहा- ‘ पंडितजी ! मेरा पुत्र आपके बताए अनुसार ठीक शनिवार शाम को लौट आया |’

अपने घर में सांप के मरे जाने से शीला बहुत चिंतित हो गई | उसे भविष्य के किसी अनिष्ट की चिंता सताने लगी |

ऐक दिन शीला ने कहा- ‘ सारी दुनिया का भविष्य देखते हो मेरा भविष्य भी बतलइए | ’

शीला की पत्रिका न होने से मोहन ने स्वयं की पत्रिका देखी | सप्तम स्थान पत्नि का होता है|

“ अष्टम से शनि का भ्रमण है | म्रत्यु स्थान से पाप गृह का ट्रांजिट हो रहा है,यह बहुत बड़ा अपशकुन है |

फिर सप्तम स्थान स्थित नीच के मंगल पर शनि की युति बतलाती है : तुम्हारे पति को भयानक अरिष्ट है | कोई संकट आने वाला है | दूसरी बात, हम दोनो का तलाक होने की संभावना हें “ |

शीला चिढ़ कर बोली – ‘ तुम जब बोलते हो काली जबान ही बोलते हो| कभी शुभ नही बोलते हो |”

मोहन यह भविष्य बतलाकर भूल गया|

दो माह बाद एक रात मोहन अपनी मोपेड से घर लौट रहा था|

वह रोड के एक ओर किनारे से जा रहा था | वह एक सावधान चालक था |

तभी उसने देखा सामने से रोड पर एक स्कूटर तूफानी तेजी से चला आ रहा था | मोहन ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए स्वयं से कहा लोग कैसी असावधानी से गाड़ी चलाते हैं |

मोहन सड़क के किनारे पर बहुत धीमी स्पीड से गाड़ी चला रहा था |

उसके सामने आकर किसी वाहन के टकराने की कोई सम्भावना नहीं थी |

अचानक वह स्कूटर बड़ी तेजी से उसके सामने आकर उससे भिड़ गया |

मोहन को सँभलने का मौका भी नहीं मिला |

वह बुरी तरह से घायल होकर अपनी गाड़ी सहित गिर पड़ा|

वे दोनो सवार भी बड़ी दूर जाकर घायल होकर गिर पड़े|वे भी बुरी तरह घायल होगये थे |

उस स्थान पर लोगों की बड़ी भीड़ इकठृा हो गई |

मालूम पड़ा कि स्कूटर सवार नशे मे थे|

मोहन को भय हुआ कि कही पुलिसवाले उसे ही दोषी समझकर उसे थाने में बंद न कर दें |

किसी भले व्यक्ति ने मोहन को घर पर छोड़ा |

वह कहने लगा, “अरे साहब, आपके कारण मेरी जान बच गई |वह स्कूटर सवार मुझे बचाने के चक्कर में आपसे जा भिड़ा |”

मोहन को एक माह तक बिस्तर पर रहना पड़ा |

बड़ी मुश्किल से मोहन की जान बची|

इस प्रकार पहली भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई |

अब दूसरी बात के सच होने का नंबर था |

मोहन उस समय उपनिषदों का अध्ययन कर रहा था |

वह आत्मज्ञान के सिद्धांत से बड़ा प्रभावित हुआ |

उपनिषदों में हमारे ऋषियों की दिव्य अनुभूतियों का सुन्दर वर्णन है |

उसने विवेकानंद की पुस्तकें पढ़ी | वह आनंद से झूम उठा |

वेदांत का सार है, समाधि |

समाधि मनुय जीवन का सबसे बड़ा आनंद है |इस महा आनंदमय अवस्था में जीव ब्रम्ह से एक हो जाता है | किन्तु उसके लिए गुरू व ध्यान का होना बड़ा जरूरी है |

एक बार वह गुरु की खोज में एक प्रसिद्ध आश्रम में गया  |

वहां साधु लोग आत्मज्ञान की शिक्षा देते थे |

मोहन ने एक साधू से आत्मा के विषय मे चर्चा की |

साधू ने कहा ‘ तुम शरीर नहीं हो | तुम इससे अलग हो |’

मोहन ने पूछा ‘ में शरीर कैसे नहीं हूं ?  मैं बिलकुल शरीर हूं |’

साधूः ‘ तुम शरीर के द्रष्टा हो | द्रष्टा द्रश्य से अलग होता है | जेसे वृक्ष का द्रष्टा वृक्ष से अलग होता है |

वैसे ही तुम मन बुद्धि के द्रष्टा हो,अतः इनसे भिन्न हो |

अतः तुम शरीर मन व बुद्धि से भिन्न इन सबके द्रष्टा हो |तुम आनंद स्वरूप आत्मा हो |’

ये विचार तो बहुत ही प्रेरणादायी थे किन्तु मोहन साइंस पढ़ाता था |

वह इन तर्कों से सहमत नहीं हुआ |

उसने कहा, ‘वेदांत का तर्क उसी प्रकार निरर्थक है जैसे किसी मकान के लिए यह कहना कि मकान दरवाजा नही है, वह खिड़की नहीं है, वह कमरा नहीं हे | जबकि मकान इन सबका सम्मिलित रूप है|”

एक दिन उस आश्रम में वहां के सबसे बड़े गुरु आत्मानंद आए | वे हिमालय में रहते थे |

वे वेदों पर बहुत ही ओजस्वी भाषण देते थे | वे बड़े तेजस्वी साधू थे |

मोहन ने उनसे भेंट करने का विचार किया | किन्तु वे सदैव अपने शिष्यों के झुण्ड से घिरे रहते थे |

मोहन ने अनेक बार उनसे बात करने का प्रयास किया किन्तु उसे सफलता नहीं मिली |

एक दिन दोपहर को वे एक वृक्ष के नीचे अकेले बैठे दिखाई दिए |

मोहन उनके चरणों को छूकर उनसे कहने लगा, “ गुरूजी ! मै शरीर कैसे नहीं हूँ ?”

इस पर वे बोले, “तत्वमसि“(अर्थात वह ब्रम्ह तू है )

इस पर मोहन ने कहा, “ नहीं, मै तो शरीर हूँ “

तीन बार गुरूजी ने अपना वाक्य कहा किन्तु मोहन ने उनके कथन पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया |

वे क्रोधित हो गए व उन्होंने मोहन की नाक पर जोर से झपट्टा मारा |

वह दर्द के मारे चीख उठा |

मोहन मन नही मन स्वामी पर भुनभुनाता रहा कि आम जनता को क्रोध से दूर रहकर नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले संत अपने वास्तविक जीवन में कितने तामसी होते हैं |

उस रात जब मोहन सोने लगा तो उसे एक अजीब अनुभूति हुई |

उसे लगा जैसे वह अपने शरीर को अनुभव कर रहा है उसी तरह वह चेतना के एक अन्य सूक्ष्म स्तर पर पूरे विश्व की अनुभूति भी कर रहा है |