Story of Dani - 40 in Hindi Children Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | दानी की कहानी - 40

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दानी की कहानी - 40

दानी की कहानी

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अन्नू और काव्या की वैसे तो खूब पटती थी लेकिन बस एक ही चीज़ में उनकी लड़ाई होती और वह भी ऐसे जैसे एक दूसरे के जानी दुश्मन हों | जन्म से ही पड़ौस में रहने के कारण और एक ही आयु होने के कारण स्कूल भी एक ही में प्रवेश मिल गया था और दोनों एक ही औटोरिक्षा में जाते |

मज़े की बात यह थी कि एक साथ नाश्ता करते और ऐसे बाँटकर खाते कि यदि किसी कारण एक का मन खाने का न हो तो दूसरे का मन भी न हो |

"ये क्या बात हुई,नहीं हो रहा होगा उसका मन लेकिन तुम्हें तो खान चाहिए न !"दोनों के माता-पिता समझाते |लेकिन वे कभी कहाँ समझते थे फिर दानी को बताया जाता और दानी समझातीं उन्हें कि कभी हो भी सकता है कि एक की तबियत में कुछ गड़बड़ी हो लेकिन दूसरे को ऐसा नहीं करना चाहिए वरना वह अपने दोस्त का ध्यान कैसे रख पाएगा |दानी की बातें समझ में आतीं और फिर बात बनती |

एक ही मुसीबत थी कि यदि किसी की चीज़ टूट जाती तब वे दोनों ही आसमान सिर पर उठा लेते |ऐसे बेकाबू हो जाते कि जैसे एक-दूसरे का दम ही निकाल देंगे |कई बार ऐसा हो जाता और उनकी कट्टी हो जाती फिर कई दिनों तक एक-दूसरे के सामने भी न देखते जैसे जानी दुश्मन हों |

दोनों के घरवाले परेशान !कैसे इनको समझाया जाए ?बस सबको दानी ही सूझतीं और दानी तो तैयार ही रहती थीं इन सबके लिए |उनका तो मन ही लगता था बच्चों में |

"बच्चे भगवान का रूप होते हैं ---" वे अक्सर कहतीं और दोनों के परिवार वाले कहते कि अब संभालिए इन भगवान के रूपों को !

इस बार अन्नू से काव्या की वह काँच की प्लेट टूट गई थी जो वह कभी-कभी अपने दोस्तों में रौब मारने के लिए ही निकालती थी ,उसके पापा जब टूर पर गए थे तब उसके लिए लाए थे | क्रिस्टल की सुंदर प्लेट थी | काव्या को क्रिस्टल बहुत पसंद था और पापा जब भी बाहर जाते उसके लिए क्रिस्टल की चीज़ें लाते | वे अक्सर लाते भी दो चीज़ें थे एक काव्य के लिए तो एक अन्नू के लिए | सब जानते थे कि हर चीज़ आपस में बाँटने वाले इन दोस्तों के पास चीज़ें एक सी ही होनी चाहिए |

इस बार जो प्लेट काव्या के पापा को पसंद आई थी, उन्होंने पैक करवा ली और जब दूसरी का ऑर्डर दिया तब पता चल एक ही पीस था |

दोनों बच्चे टीन एज के थे और इन सब बातों को गंभीरता से नहीं समझ पाते थे |

उसी कीमती प्लेट के दो भाग हो चुके थे और काव्या पूरे दिन भर रो चुकी थी, छुट्टी का दिन था, दोनों को साथ में ही होम-वर्क करना होता, साथ ही खेलना होता |आज मामला बड़ा गंभीर था |

"देखो ! अब तो यह टूट चुकी,इसके लिए रोने से तो यह जुड़ेगी नहीं न ? और जोड़ोगे तो इसमें निशान तो रहेगा ही, वो अच्छा लगेगा क्या?" दानी ने समझने की कोशिश की |

"तो क्या करें दानी ?इसके पास नहीं है न तो इसने मुझसे जलकर हाथ से गिर दी --" काव्या ने अन्नू के ऊपर जब यह लांछन लगाया तब उसको चुभना स्वाभाविक ही था |वैसे भी कई दोस्त इन दोनों को आपस में लड़वाने की कोशिश कर रहे थे |

इतनी पक्की दोस्ती देखकर दूसरे बच्चों को लगता कि इन्हें लड़वाकर देखा जाए लेकिन कभी होती ही नहीं थी लड़ाई ! इस बार मिल गया उन्हें मौका, दोनों लड़ेंगे तो उनका मज़ा लेंगे |

दानी तो यह बात जानती थीं इसलिए उपाय सोच रही थीं कि कैसे इस समस्या का समाधान निकले ?

"ईश्वर "टूटी" हुई चीज़ों का इस्तेमाल कितनी ख़ूबसूरती से करता है---" दानी ने बच्चों से कहा |

"वो कैसे दानी?वैसे भी हम कोई ईश्वर थोड़े ही हैं ---!!"

"वैसे कैसे दानी?" अन्नू ने पूछा | हो सकता था कोई ऐसी बात पता चल जाए कि काव्या की और उसकी उलझन खत्म हो जाए |

."जैसे .... बादल टूटने पर पानी की फुहार आती है ...... मिट्टी टूटने पर खेत का रुप लेती है.... फल के टूटने पर बीज अंकुरित हो जाता है ..... और बीज टूटने पर एक नये पौधे की संरचना होती है ....,यह जानते हो न दोनों ?"

"पर दानी ,इसमें प्लेट कैसे ---? हाय ! ऐसा तो और पीस मिलेगा भी नहीं,उस दिन पापा कह रहे थे --"काव्या फिर रोने लगी |

"नहीं मिलेगा तो क्या?हमें खरीदना ही नहीं है ---"

"तो ----?यह फेंक दूँ ?"काव्या की आँखों में से आँसु टपाटप निकल रहे थे |

"अरे ! तुम भी काव्या, देखो ! यह पहली बार हुआ है न कि तुम दोनों में से एक को चीज़ मिली --?"

दोनों ने सिर हिला दिया | काव्या प्लेट टूटने से दुखी थी तो अन्नू अपने ऊपर लगे हुए इल्ज़ाम से दुखी थी | उसके हाथ से टूट गई पर क्या वह जानबूझकर ऐसा कर सकती थी?

काव्या ने बड़ी ईमानदारी से नहीं में सिर हिल दिया |

"तो चलो,इस प्लेट को नया आकार देते हैं ---" दानी ने मुस्कुराकर कहा |

प्लेट थोड़ी गहरी थी जिसमें पानी भरकर मनीप्लांट रखा जा सकता था | दानी ने उसके टूटे हुए किनारों व्हाइट प्लास्टर से सुन्दर सा ऊँचा डिज़ाइन बनवाकर उसमें जान डाल दी |

लग रहा था जैसे कुछ नई ही चीज़ बन गई है | दानी ने उन दोनों को समझाया था,बनाया उन दोनों ने ही था |

"पता है,जापान के लोग अपनी टूटी हुई काँच की चीज़ों से कितने सुंदर नए आकार दे लेते हैं, देखो कितने सुन्दर शो-पीस बन गए हैं |

"इसीलिये जब कभी ऐसा हो जाए कुछ नया बनाने की कोशिश करो और देखो क्या कमाल की चीज़ बनकर आएगी |"

तैयार हो जाने पर दोनों ने आधी प्लेट्स में थोड़ा पानी डाला और बगीचे से कुछ फूल लाकर उस पानी में रख दिए |

मोगरे की महक सारे वातावरण में फैल गई और सबके चेहरों पर आनंदानुभूति पसर गई |

"देखो ! कितना अच्छा लग रहा है --" दानी ने उन्हें खुश कर दिया था |

"हम कभी-कभी दूसरे फूल भी इनमें रख सकते हैं---"

"बिलकुल ---" सबका मूड ठीक हो गया था और यह बात समझ में आ गई थी किसी भी बात से परेशान होने की ज़रूरत नहीं है |

जीवन में कुछ न कुछ तो बदलाव होगा ही |

इसलिए छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देकर सदैव प्रसन्न रहें और कुछ न कुछ नया करने की कोशिश करते रहें |

अगले दिन स्कूल में उन दोनों को पहले से देखकर वे सारे बच्चे दुखी हो उठे थे जो उनके अलग होने से खुश होने की कल्पना में खुश हो रहे थे |

 

डॉ. प्रणव भारती