तभी भानू की माँ शीतला बोलीं....
"बेटा अब इतने दिनों बाद आएं हो तो रात का खाना खाएं वगैर तो ना जाने दूँगी..."
"अब आप इतना जोर देकर कह ही रहीं हैं तो खाना खाकर ही जाऊँगा आण्टी!,"कमलकान्त बोला....
"जैसें कि माँ ना कहती तो तुम खाएं बिना ही चले जाते,तुम्हारे जैसा भुक्खड़ खाना छोड़़ दे,ऐसा कभी हो सकता भला,"भानूप्रिया बोली....
"ये बात तो है,खाना मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है,मुझे कोई कहीं भी खाना खाने के लिए बुला ले तो मैं चला जाता हूँ,फिर वो चाहें भण्डारा हो या फिर किसी की तेहरवीं या श्राद्ध,मैं बेशर्मी और बिना संकोच के साथ वहाँ जाकर खाना खाता हूँ,"कमलकान्त बोला....
"और तुमसे उम्मीद ही क्या की जा सकती है?"भानू बोली...
"जितनी भी गालियाँ देना चाहे तो दे सकती हैं मोहतरमा!हमें फरक नहीं पड़ता ,खाने के लिए हम कितनी भी गालियाँ खा सकते हैं"...,कमलकान्त बोला....
"आप सा बेशर्म नहीं देखा मैनें",भानू बोली...
"और कभी देखेगीं भी नहीं"कमलकान्त बोला...
"कमल से बहस करने में क्या लगी है?जाकर रसोई में देख खाने में अभी कितनी कसर बाकी है,"भानू की माँ शीतला बोली...
"हाँ....हाँ!जाती हूँ....जाती हूँ,मुझ पर इतना बिगड़ने की जरूरत नहीं है"
और इतना कहकर भानू रसोई की ओर बढ़ गई,रसोई में जाकर भानू ने देखा कि सरगम ने लौकी के कोफ्ते,दम-आलू,बैंगन का भरता और मसूर की दाल बनाकर रखी है और वो अभी सलाद काट रही थी,तब भानू ने सरगम से कहा...
"सरगम दीदी! तुमने इतनी जल्दी इतना सब कुछ तैयार कर लिया"
तब सरगम बोली...
"सब तैयार है,बस सलाद काटकर रोटियाँ सेंकती हूँ,तुम जब तक टेबल पर ये खाना लगा आओ"
"ठीक है दीदी!"
और इतना कहकर भानू डाइनिंग टेबल पर खाना लगाने लगी तो तभी कमलकान्त भानू से बोला...
"इतनी जल्दी खाना तैयार भी हो गया"
"हाँ!सरगम दीदी यूँ चुटकियों में खाना तैयार करतीं हैं",भानू बोली...
"तब तो तुम्हारी दीदी के हाथों का बना खाना जरूर खाना पड़ेगा",कमल बोला...
"वें बड़ा ही जायकेदार खाना बनातीं हैं",भानू बोली...
"वो तो खाकर ही पता चलेगा कि खाना जायकेदार है या फीका ",कमल बोला...
और तभी रसोई से सरगम ने आवाज लगाई....
"भानू...!रोटियाँ सिंक गईं हैं ,आके लेजा"
"आई दीदी" और इतना कहकर भानू रसोईघर की ओर चली गई....
भानू रसोईघर से रोटियाँ लेकर आई और उसने कमलकान्त की प्लेट में रोटियाँ परोस दी तब कमल बोला...
"मोहतरमा!क्या मैं अकेले ही खाना खाऊँ"?
तब भानू बोली...
"माँ तो पापा के आने पर ही खाना खाएगीं और रही सरगम दीदी की बात तो वें तो सभी को खिलाने के बाद ही खातीं हैं और मैं उनके साथ खाती हूँ तो मिस्टर आपको अकेले ही खाना खाना पड़ेगा"
"ये तो बड़ी नाइन्साफी है",कमल बोला...
"अब कुछ भी समझ लिजिए",भानू बोली...
"इसलिए तो मैं यहाँ आता नहीं हूँ,जब आदेश यहाँ होता था तो मुझे अकेले खाना नहीं खाना पड़ता था,वो मेरा साथ देता था इसलिए जब वो यहाँ आ जाएगा तभी मैं आऊँगा",कमलकान्त बोला...
"अभी तो उनके आने में तीन महीने बाकीं हैं",भानू बोली...
"कोई बात नहीं,मैं इन्तजार कर लूँगा लेकिन जब वो यहाँ आ जाएगा तभी मैं भी यहाँ आऊँगा",कमलकान्त बोला...
"तो क्या हम लोगों से मिलने भी ना आया करेगें",भानू ने पूछा...
"नहीं!"कमलकान्त बोला...
कमलकान्त का ऐसा जवाब सुनकर फिर भानू ने कमल से बहस ना करना ही ठीक समझा और उससे बोली...
"लेकिन अब खाना भी तो खाइए"
"हाँ!जरुर",और इतना कहकर कमलकान्त खाना खाने लगा फिर खाना खाते खाते बोला...
"भानू!सच में तुम्हारी दीदी के हाथों में तो जैसे जादू है,बड़ा ही जायकेदार खाना बना है"
तभी सरगम भी और रोटियाँ लेकर डाइनिंग हाँल में आई तो भानू बोली...
"शायर साहब!अब जो भी तारीफ करनी है खाने की,वो आप खाना बनाने वाली से ही कहिए"
और सरगम ने जैसे ही डाइनिंग टेबल पर रोटियाँ रखीं तो कमलकान्त बोला...
"सरगम जी!खाना बड़ा ही जायकेदार बना है"
तब सरगम बोली...
"जी!थैंक्यू!और कुछ लीजिए"
"जी!अभी तो खाना शुरू किया है,जरूरत पड़ने पर और ले लूँगा",कमलकान्त बोला...
तब भानू बोली....
"सरगम दीदी!ये एक नंबर के भुक्खड़ हैं,ये किसी से पूछकर नहीं खाते,ये तो इतने बेशर्म हैं कि किसी के लिए कुछ ना छोड़े"
"भानू!मेरी इतनी बदनामी भी अच्छी नहीं",कमलकान्त बोला....
"ये बदनामी नहीं है जनाब!,यही तो आपकी खूबी है",भानू बोली....
"इसलिए तो मैं यहाँ आता नहीं हूँ",कमलकान्त बोला...
"तो मत आइए,आपको क्या लगता है?यहाँ आपसे मिलने के लिए लोंग मरे जा रहे हैं क्या?,भानू बोली...
"भला तुमसे बहस करने में कोई जीत सकता है क्या?"कमलकान्त बोला....
और फिर ऐसे ही बातचीत के बीच कमलकान्त का खाना खतम हो गया और वो खाना खाकर अपने घर चला गया,उसे जाता देख भानू कुछ उदास सी हो गई,भानू पाँच सालों से कमलकान्त को जानती है,वो उससे उम्र में करीब तीन साल बड़ा होगा,पहले तो भानू के मन में कमल के प्रति कोई भी भाव नहीं थे लेकिन दो साल पहले जब भानू गिर पड़ी और उसके पैर में चोट आ गई थी तो उस समय घर पर भानू की माँ शीतला थी और कमलकान्त ही थे,कमलकान्त इन लोगों से मिलने आया था,
शाम का वक्त था तो भानू बगीचे में पौधों को पानी दे रही थी,उस समय माली दो दिनों की छुट्टी पर था ,इसलिए भानू पौधों को पानी दे रही थी,तभी ना जाने कहाँ से एक साँप निकला और उसे देखकर भानू भागी तो वहीं एक पत्थर उसके पैर में गड़ गया और वो गिर पड़ी थी जिससे उसके पैर में काफी चोट आई और वो जोर से चीखी तो शीतला और कमलकान्त उस ओर आएं तो उन्होंने देखा कि भानू गिरी पड़ी है,भानू के पैर में ज्यादा चोट आई थी जिससे वो खड़ी ही नहीं हो पा रही थी तब कमलकान्त ने उसे अपनी गोद में उठाया और कार में डालकर अस्पताल ले गया और उसका इलाज करवाकर घर भी छोड़ने आया,उसी दिन से ना जाने क्यों भानू कमल को पसंद करने लगी,लेकिन ये बात कमलकान्त कभी नहीं समझ पाया और ना ही भानू ने उसे कभी समझाने की कोशिश की कि वो उसे पसंद करती है,...
कमलकान्त पहले तो अधिकतर घर आता था जब भानू का भाई आदेश यहीं रहता था,लेकिन जब से आदेश विदेश पढ़ने गया है तब से कमल का घर आना ना के बराबर हो गया है,इसलिए जब कभी कमलकान्त घर आता है तो भानू की बाँछें खिल जातीं हैं और वो उससे इसलिए लड़ती झगड़ती रहती है जिससे किसी को भी उसके मन छिपे भावों का पता ना चल सके,लेकिन सरगम की पारखी नजर से भानू बच ना सकीं और जब रात को दोनों बिस्तर पर सोने गई तो सरगम ने भानू से कहा...
"वैसे कमल बाबू इतने बुरे भी नहीं है"
"हाँ!दीदी!वें बहुत अच्छे हैं",भानू बोली...
"मतलब क्या है तेरा"?सरगम ने पूछा...
"कुछ नहीं दीदी!मैं तो ऐसे ही कह रही थी",भानू बोली....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....