Me Papan aesi jali - 4 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | मैं पापन ऐसी जली--भाग(४)

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मैं पापन ऐसी जली--भाग(४)

श्वेता समझ चुकी थी कि शाश्वत यहाँ पढ़ने नहीं आया है,वो तो यहाँ सरगम को देखने आया था और शाश्वत का वहाँ यूँ ही बैठना सरगम को भी अच्छा नहीं लग रहा था,इसलिए उसने अपनी किताबें उठाईँ और लाइब्रेरी से बाहर निकल गई,फिर श्वेता भी वहाँ ना रुक सकी और वो भी सरगम के पीछे पीछे लाइब्रेरी से बाहर चली गई,शाश्वत यूँ ही दोनों को जाते हुए देखता रहा....
अब ये तो रोजाना का सिलसिला हो गया,जहाँ भी सरगम जाती तो शाश्वत भी उसके पीछे पीछे हो लेता,काफी दिन यूँ ही गुजरे और फिर एक दिन शाश्वत ने श्वेता से बात करते हुए कहा.....
श्वेता जी!आपकी सहेली किसी से बात नहीं करती क्या?
जी!वो किसी भी लड़के से बात नहीं करती,ये उसकी आदत है,श्वेता बोली...
ऐसा क्यो?शाश्वत ने पूछा...
जी!ये उसका नेचर है,उसे पसंद नहीं है लड़कों से बात करना,श्वेता बोली...
लेकिन मैं तो उन्हें पसंद करने लगा हूँ और उन्हें अपने दिल का हाल सुनाना चाहता हूँ,शाश्वत बोला...
ऐसी भूल कभी मत कीजिएगा,श्वेता बोली...
लेकिन क्यों?शाश्वत ने पूछा...
क्योकिं?वो ऐसी लड़की नहीं है,श्वेता बोली...
दिल पर किसी का जोर थोड़े ही होता है,अब उन पर मेरा दिल आ गया तो मैं क्या करूँ?शाश्वत बोला।।
अपने दिल को काबू में रखिए,शाश्वत बोला...
लेकिन कैसें काबू में रखूँ?दिल पर मेरा काबू नहीं रह गया,आप ही उनसे बात करके देखिए,शाश्वत बोला....
मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती,श्वेता बोली....
प्लीज!आप मेरी बात उन तक पहुँचा दीजिए,शाश्वत बोला....
मैं ऐसा कोई भी काम नहीं करूँगी,जिससे सरगम को तकलीफ़ पहुँचे,श्वेता बोली...
तो फिर मैं ही उन तक अपनी बात पहुँचाने की कोशिश करूँगा,शाश्वत बोला...
जैसी आपकी मर्जी और फिर श्वेता इतना कहकर आगें बढ़ गई....
कुछ दिन यूँ ही बीते थे कि एक दिन सरगम और श्वेता लैब में कोई प्रैक्टिकल कर रहीं थीं,साथ में वहाँ और भी लड़कियांँ मौजूद थीं,प्रोफेसर साहब की इजाज़त लेकर ही वो लोंग वहाँ कोई प्रैक्टिकल कर रहीं थीं,तभी शाश्वत वहाँ आया और सरगम के पास जाकर उसने एक गुलाब उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा....
आई लव यू सरगम!
शाश्वत की इस हरकत से वहाँ मौजूद सभी लड़कियाँ खी...खी...खी....खी..करके हँसने लगी,सरगम को शाश्वत की इस बात से बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई तो उसने वो गुलाब शाश्वत के हाथों से लेकर वहीं जल रहे स्प्रिट लैंप पर जला दिया,गुलाब पूरी तरह से जल नहीं पाया तो उसने उसे खिड़की से बाहर फेंक दिया और शाश्वत से बोली....
मिल गया तुम्हें जवाब!अब खड़े क्या हो जाओ यहाँ से और आइन्दा कभी भी मेरा पीछा किया तो मुझसे बुरा कोई ना होगा....
सरगम का ऐसा रवैय्या देखकर शाश्वत की आँखें भर आई और वो बिना बोले,वहाँ से चला गया और उस दिन के बाद फिर कभी भी वो सरगम के सामने नहीं पड़ा....
श्वेता ने भी उस दिन के बाद शाश्वत को काँलेज में काफी तलाश किया लेकिन फिर दोबारा वो उन दोनों के सामने नहीं पड़ा,श्वेता ने सरगम से कहा भी....
यार!वो तुझसे सच्ची मौहब्बत करता था,तभी तो तेरी जिन्दगी से चला गया....
तो मैं क्या करती?ये सब मेरे वश की बात नहीं थी,सरगम बोली...
फिर श्वेता कुछ ना बोली....
और यूँ ही सरगम और श्वेता ने बी.एस.सी.पास कर ली,इसके बाद की पढ़ाई के लिए श्वेता तो आगरा चली गई ,क्योंकि वहाँ उसकी ताईजी रहतीं थीं इसलिए उन्होंने श्वेता से कहा कि वो उनके यहाँ आकर पढ़ाई करें,चूँकि श्वेता की ताईजी भी प्रोफेसर थीं आगरा में.....
अब सरगम सोचने लगी कि वो आगें क्या करें ?अब ये बात जब सदानन्द जी को पता चली तो वें सुभागी से बोलें.....
सुभागी बहन!अगर आपको एतराज़ ना हो तो सरगम को मैं अपने साथ दिल्ली ले जाना चाहता हूँ,मैं तो पहले भी यही चाहता था लेकिन तब उसकी उम्र कम थी उसे दुनियादारी की भी ज्यादा समझ नहीं थीं,लेकिन अब सरगम समझदार हो गई है ,अपना भला बुरा खूब समझ सकती है,इसलिए मैं चाहता हूँ कि वो आगें की पढ़ाई दिल्ली में रहकर करें,पोस्ट ग्रेजुएशन करके वो वहीं से पी.एच.डी.कर लेगी और फिर किसी अच्छे काँलेज में प्रोफेसर हो जाएगी....
सदानन्द मिश्र जी का सुझाव सरगम और सुभागी दोनों को ही अच्छा लगा,इसलिए दोनों ही इस बात के लिए मान गईं,सुभागी ने उदास मन से सरगम को दिल्ली के लिए विदा किया,सरगम के पास गिने चुने दो तीन जोड़ी कपड़े थे,उन्हीं को लेकर वो दिल्ली पहुँची,दिल्ली के रेलवें स्टेशन के उतरने के बाद वहाँ सदानन्द जी की मोटर खड़ी थी ,उनका ड्राइवर उनको लेने आया था,क्योंकि सदानन्द जी ने अपने घर टेलीफोन कर दिया था कि वें फलाँ...फलाँ...दिन दिल्ली पहुँच जाऐगें...
सरगम सकुचाते सकुचाते मोटर में बैठी क्योकिं वो इससे पहले कभी मोटर में नहीं बैठी थी,दिल्ली की भव्य और कई मंजिला वाली इमारतें देखकर उसकी आँखें खुली की खुली रह गईँ,उसने पहली बार कोई महानगर देखा था,मोटर यूँ ही दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती हुई कुछ देर के बाद उस इलाके में पहुँची,जहाँ सदानन्द जी का शानदार और खूबसूरत बँगला था...
मोटर बँगले के सामने रूकी और सदानन्द जी सरगम से बोले...
सरगम बेटा!घर आ गया,चलो भीतर चलो...
सरगम ने बँगला देखा तो बोल पड़ी...
चाचाजी!इतना बड़ा घर है आपका...
और फिर अपना सामान उठाकर ले जाने लगी तो सदानन्द जी बोले...
अरे!पहले तुम भीतर तो चलो,ड्राइवर सामान ले आएगा....
और फिर सरगम भीतर पहुँची तो घर का हाँल देखकर ही उसकी आँखें चौंधिया गई,बड़े-बड़े पारदर्शी काँच के झूमर,संगमरमर का फर्श,मँहगी कालीनें और मँहगा मँहगा लकड़ी का फर्नीचर देखकर वो बोली....
चाचाजी!आपका घर बहुत सुन्दर है....
तब सदानन्द जी ने अपनी पत्नी शीतला और बेटी भानुप्रिया को आवाज़ लगाई...
अरे...भानू....बिटिया देखो तो कौन आया है? अजी...सुनती...हो...भाग्यवान!मैं सरगम को ले आया....
और फिर दोनों माँ बेटीं बाहर आई और सरगम को देखकर भानू बोली....
तो ये हैं सरगम दीदी!ये तो सच में बहुत सुन्दर हैं....
हाँ...यही है तुम्हारी सरगम दीदी!सदानन्द जी बोले...
और फिर सरगम ने सदानन्द जी की पत्नी शीतला के चरण स्पर्श किए तो शीतला ने उसे गले से लगा लिया और बोलीं....
अच्छा किया सरगम बेटी!जो तुम आ गई....
और फिर सरगम उस दिन के बाद सदानन्द जी के घर में रहने लगी,सदानन्द जी ने उसे रहने के लिए एक अलग और सबसे हवादार कमरा दिया जिसकी खिड़कियाँ बगीचे की ओर खुलतीं थीं,क्योंकि सरगम को एयरकंडीशन कमरें में रहने की आदत नहीं थी,इसलिए उसने अपने लिए ऐसे कमरें में रहने को कहा था....
सरगम के आने से सदानन्द जी के घर में रौनक सी आ गई क्योंकि सरगम ने आते ही उस घर की रसोई सम्भाल ली थी और अब वो ही सबके खाने का ख्याल भी रखने लगी और फिर कुछ दिनों बाद उसका काँलेज में एडमिशन भी हो गया और वो काँलेज जाने लगी.....
काँलेज जाने के लिए भानुप्रिया ने सरगम के लिए कई तरह के सलवार कमीज और साड़ियाँ खरीदीं और उससे बोली....
दीदी!अब से तुम ये कपड़े पहनोगी,तुम इतनी सुन्दर हो और ये कपड़े पहनकर बिल्कुल अप्सरा की तरह दिखोगी...
भानु की ऐसी बातों पर सरगम हँस देती...

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....