सात सुरों के मेल को सरगम कहा जाता है,ये एक ऐसी ही लड़की की कहनी है जिसका नाम सरगम है,जिसका जीवन उसके नाम की तरह संगीतमय था जो स्वरबद्ध और तालबद्ध था लेकिन फिर उसके जीवन के सुरो का तालमेल बिगड़ा और उसके जीवन की सरगम के स्वर और ताल बिखर गएं,
क्योंकि इस पुरूषप्रधान संसार में नारी का कोई अस्तित्व ही नहीं है,प्रसिद्ध दार्शनिकों के अनुसार सृष्टि की रचना करते समय अहं था जो पहले पुरुष में प्रकट किया गया और स्त्री में बाद में इसलिए औरत का अहं पुरूष से कभी बरदाश्त नहीं होता, प्रारम्भिक दार्शनिकों का दृष्टिकोण स्त्रियों के लिए बहुत उपेक्षापूर्ण था, उनका तर्क था कि प्राकृतिक रूप से औरत में कमियाँ हैं और वह पूर्ण मानव नहीं है, वे मानते थे कि औरत एक चिन्ता है जो सदा पुरुष को पीड़ित करती है,औरत ही नर्क का द्वार है ,औरत ही सभी परेशानियों की जड़ है,औरत शारीरिक भूख के लिए भोजन और शराब की तरह ही अनिवार्य तो है लेकिन उसका उपभोग करने के पश्चात वो किसी काम की नही,देखते हैं इस पुरूष प्रधान समाज में सरगम की क्या दशा होती है,तो कहानी शुरू करते हैं....
उत्तरप्रदेश का एक छोटा सा कस्बा,जहाँ कुलभूषण त्रिपाठी जी अपनी मेहनत से बनाएं हुए छोटे से मकान में अपने परिवार के साथ रहते हैं,उनके परिवार में उनकी पत्नी सुभागी,उनके दो बेटे माधव और गोपाल साथ में उनकी बेटी सरगम रहते हैं,सरगम अपने दोनों भाइयों से उम्र में बड़ी है,कुलभूषण जी एक विद्यालय में संगीत अध्यापक हैं,विद्यालय से मिल रही तनख्वाह पर उनका घर नहीं चल पाता इसलिए वें बच्चों को घर बुलाकर ट्यूशन भी देते हैं,उनकी बेटी सरगम संगीत में बहुत निपुण है,वो बहुत ही अच्छा गाती है और हारमोनियम तो इतना अच्छा बजाती है कि सब सुनकर खो जाते हैं...
लेकिन कुलभूषण त्रिपाठी जी नहीं चाहते कि उनकी बेटी संगीत और गृहविज्ञान जैसे विषय लेकर आगें की पढ़ाई करे,वें तो चाहते हैं कि उनकी बेटी होमसाइंस नहीं साइंस पढ़े,इसलिए उन्होंने सरगम के आठवीं पास होने के बाद उसे साइंस दिलवा दी,उस जमाने में कक्षा नौवीं से ही साइंस साइड और आर्ट्स साइड का चयन करना पड़ता था,ना चाहते हुए भी सरगम को साइंस लेनी पड़ी क्योंकि वो अपने पिताजी की मर्जी के खिलाफ नहीं जा सकती थी और वो साइंस पढ़ने को राजी हो गई.....
फिर क्या था उसका नाम उस कस्बे के कन्या विद्यालय में नौवीं कक्षा में लिखवा दिया गया,वो कन्या विद्यालय तो जाने लगी लेकिन वहाँ उसका मन ना लगता था क्योकिं उसका रूझान विज्ञान और गणित की ओर बिल्कुल नहीं था,लेकिन फिर भी वो कोशिश करती क्योंकि उस स्कूल की अध्यापिकाएंँ बहुत ही सख्ती से पेश आतीं थ़ी,उस जमाने में भी वें सबक याद ना कर पाने के लिए हथेली पर छड़ियाँ मारती थीं,ऊपर से कन्या विद्यालय तो वहाँ के नियम भी बहुत सख्त थे,सलवार कमीज और दुपट्टे के साथ,बालों में तेल और काले रिबन से दो चोटियाँ बनानी पड़तीं थीं,जो कि सरगम को बिल्कुल भी पसंद नहीं था....
फिर धीरे धीरे सरगम ने खुद को उस स्कूल के माहौल में ढ़ाल लिया,वहाँ उसकी कई सहेलियाँ भी बनीं कुछ अच्छी और कुछ बुरी,कुछ बुरी कहने का मतलब है जो लड़को के चक्करों में पड़ीं रहतीं थीं,लेकिन सरगम को ये सब पसंद नहीं था और वो जानती थी कि अगर कोई बात हो गई और उसके घर तक पहुँची तो उसके पिता जी का नाम समाज में खराब हो जाएगा,सरगम बहुत समझदार थी इसलिए उसने फौरन ही ऐसी लड़कियों का साथ छोड़ दिया....
सरगम के लिए विज्ञान माध्यम की पढ़ाई कुछ कठिन थी,वो चाहती थी कि अपने बाऊजी से कहें कि उसे नहीं करनी विज्ञान वर्ग से पढ़ाई लेकिन ये बात कहने की उसकी कभी हिम्मत ना हुई,भौतिक विज्ञान के दर्पण में उलझी हुई ,रसायन विज्ञान के तत्वों के भारों को ज्ञात करती हुई,तो कभी प्रकाश संश्लेषण के बारें में जानती हुई तो कभी मेढ़क की चीर-फाड़ करती हुई सरगम ने आखिर अच्छे अंको से नौवीं पास कर ही ली और वो दसवीं में पहुँच गई,हिन्दी और अंग्रेजी में भी वो अंच्छें अंक लाई,दसवीं में पहुँचते पहुँचते वो सोलह की हो चली थी,इसी बीच उसके बाऊजी के पुराने मित्र की बेटी दीपा का ब्याह तय हुआ ,जो सरगम के स्कूल की बचपन की सहेली भी थी और फिर वो खुशी खुशी अपने परिवार के साथ उसके ब्याह में गई,लेकिन उसे दीपा खुश नज़र नहीं आई,उसने दीपा से पूछा भी कि क्या बात है तो वो बोली.....
तू मेरे मन की बात नहीं समझ सकती सरू!तुझे तो तेरे बाऊजी पढ़ा रहे हैं,तेरे भविष्य के बारें में सोच रहें हैं लेकिन मेरे बाऊजी मेरी शादी के आगें कुछ सोंच ही नहीं पाएं,आज शादी हो जाएगी फिर पति गृहस्थी उसके बाद बच्चे,मैं इसी में उलझकर रह जाऊँगी और मेरी जिन्दगी ऐसे ही खतम हो जाएगी...
सरगम ने जब दीपा की बात सुनी तो उसका माथा ठनका और वो सोच में डूब गई कि दीपा एकदम सही कह रही है,मेरी स्थिति कम से कम दीपा से तो अच्छी है कि मेरे बाऊजी मुझे आगें पढ़ाना चाहते हैं और मेरे अच्छे भविष्य के बारें में सोच रहे हैं,उस दिन सरगम दीपा की शादी में खुश होने के लिए गई थी लेकिन जब वो लौटी तो दीपा की हालत देखकर बहुत दुःखी थी...
उसके कुछ दिन ऐसे ही कश्मकश में बीते लेकिन अब उसे अकल आ गई थी कि उसे पढ़ाई और सिर्फ़ पढ़ाई करनी है,अगर उसके बाऊजी ने कुछ सोचा होगा तो उसके बारें में सोचकर सही फैसला लिया होगा और फिर दीपा उस दिन के बाद पढ़ाई में डूब गई,ऐसे ही दो महीनें बीते होगें कि एक दिन ख़बर आई कि उसकी सहेली दीपा ने आत्महत्या करने की कोशिश की है और उसके पिता उसे मायके लेकर वापस आ गये हैं और उन्होंने सरगम के परिवार वालों को मिलने के लिया बुलाया है ताकि वे दीपा को समझा पाएं कि उसने ऐसा क्यों किया....?
सरगम और उसके माँ-बाऊजी दीपा के घर पहुँचे,सब बैठक में जाकर बैठे और दीपा को समझाने के लिए बुलाया गया,दीपा को सरगम बाहर लेकर आई और उससे सरगम के बाऊजी ने पूछा...
तुमने ऐसा क्यों किया?बेटा!ये सब तो नासमझ लोंग करते हैं तुम तो बड़ी समझदार हो,ऐसे फालतू के फितूर तो जिन्दगी से निराश हो चुके लोगों के मन में आते हैं,तुम्हारी जिन्दगी तो अभी शुरु हुई है....
तब दीपा बोली....
निराशा क्या होती है ये आप लोंग जानते हैं भला?नहीं जानते क्योंकि उस चीज को मैं झेल रही हूँ.....
ऐसी कौन सी निराशा वाली बात हो गई तेरे साथ ,जो तू आत्महत्या करने पर आमादा हो गई,दीपा की माँ ने पूछा....
तब दीपा बोली....
माँ!तुमसे बाऊजी!केवल दो साल बड़े हैं और मेरा पति मुझसे आठ साल बड़ा है,मैं सोलह साल की हूँ और वो चौबीस साल का है....
ऐसा होता है हमारे समाज में,लड़का अच्छा था ,हमें तेरे काबिल लगा तो हमने उससे तेरा ब्याह कर दिया,दीपा के बाऊजी बोलें....
मेरी बिना मरजी के,दीपा बोली...
हमारे समाज में लड़कियों की मरजी नहीं पूछी जाती और फिर लड़के के पिता जी सरकारी नौकरी मेँ थे,उनकी पेंशन उनको मिल रही है और लड़के के दोनों बड़े भाई एक डाक्टर है एक इन्जीनियर,खूब जमीन जायदाद है,सोचा तुम उस घर में खुश रहोगी,दीपा के बाऊजी बोलें....
लेकिन आपने ये क्यों नहीं सोचा कि जिससे मेरी शादी हुई है वो क्या करता है?दीपा बोली।।
जब परिवार में सभी कमाते हैं तो वो भी कुछ ना कुछ कर ही लेगा,दीपा के बाऊजी बोलें...
लेकिन बाऊजी !वो कब कुछ करेगा,करना होता तो अब तक कर चुका होता,उसके माँ बाप से वो खुद नहीं सम्भल रहा था,इसलिए सम्भालने के लिए मेरे पल्ले बाँध दिया, वो दिनभर शराब पीते हैं और सिगरेट फूँकतें हैं और रात को चले आतें हैं मेरी भावनाओं को कुचलने,मेरे कोमल मन को आहत करने और अपने मन की करके कमरें से चलें जाते हैं,मुझसे बात भी नहीं करते,रातभर वापस नहीं आते फिर,दीपा बोली....
शरम नहीं आती,बाप के सामने ऐसी बातें करते हुए,दीपा की माँ चिल्लाई।।
क्यों?आपलोंगों को शरम आई दहेज में पलंग देते हुए,जिस लड़की को कभी पराए लड़को के साथ बात नहीं करने दिया गया और तुम चाहती हो कि एक अन्जान के साथ मैं.......कभी मेरी खुशी भी तो पूछी होती आप लोगों ने कि बस समाज के बनाएं ढ़र्रे पर ही चलते रहोगें,अलग पलंग देते हो दहेज में तो बेटी को उसका ज्ञान भी तो देकर भेजो कि पलंग दिया किस लिए जा रहा है लेकिन नहीं,हमारे समाज में तो इस तरह की बातें करने पर मनाही है,उसे अश्लीलता और निर्लज्जता कहा जाता है,अरे....ये मेरा शरीर है....ये मेरा जीवन है और मेरी मरजी के बिना कोई भी अन्जान एक रात में ही इसका मालिक बन जाता है और मैं कठपुतली बना दी जाती हूँ,जैसा वो कहेगा,जैसा वो चाहेगा ,वैसा ही मुझे करना पड़ेगा....आखिर क्यों?मेरी अपनी कोई भी खुशियाँ नहीं है,कोई सपने नहीं है.....
बस!बहुत हो गया तेरा नाटक,हम बड़ो के सामने ऐसे बात करते हुए तुम्हें शरम नहीं आती,क्या हमने तुझे यही संस्कार दिए हैं,कुछ भी हो अब से वो ही तेरा घर है और तुझे वहीं रहना होगा,दीपा के बाऊजी बोलें....
नहीं!रहूँगी उस नाकारे के साथ,वो पति नहीं राक्षस है,वो हर रात मेरे साथ वहशीयाना तरीके से पेश आता है,जब देखो शराब पीकर पड़ा रहता है,दीपा बोली....
हमें तुझे ब्याह दिया है तेरे घर में हमारे लिए भी कोई जगह नहीं है,तुझे तो वहीं रहना होगा,दीपा की माँ बोली.....
तब सरगम के बाऊजी अपने मित्र से बोलें....
दीपा बेटी को थोड़ा समय दीजिए,अगर ससुराल नहीं जाना चाहती तो कुछ दिन मत भेजिए,कम उम्र है,अभी समझदार नहीं है,थोड़ी समझदारी आ जाएगी तो खुदबखुद दुनियादारी समझ जाएगी....
भाईसाहब!आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी,मैं तो समझा कि भाभीजी और आप मिलकर दीपा को समझाऐगें कि वही तुम्हारा घर है लेकिन आप तो उसे उल्टी सीख दे रहे हैं,दीपा के बाऊजी बोलें....
मैं तो बस दीपा बेटी के भले की बात कर रहा था,आखिर आपके बेटो की तरह वो भी तो आपकी सन्तान है,सरगम के बाऊजी बोले....
मुझे शौक नहीं है अपनी बेटी को सिर चढ़ाने का,आप अपनी बेटी को खूब साइंस वर्ग से पढ़ाइए,लेकिन मुझसे कुछ भी ऐसी उम्मीद मत रखिएं,लड़कियांँ चाहें कितनी भी पढ़ लिख क्यों ना जाएं,आखिर अन्त में उन्हें करना तो चूल्हा-चौका ही है,पढ़ालिखा कर उन्हें सिर पर चढ़ाने का शौक मुझे नहीं है,पढ़ाना तो केवल लड़को को चाहिए,दीपा के बाऊजी बोलें.....
मैं आपके विचारों से बिल्कुल सहमत नहीं हूँ,सरगम के बाऊजी बोलें....
और मैं भी आपके विचारों से सहमत नहीं हूँ,दीपा के बाऊजी बोले....
और ऐसी ही बहस के बाद भी दीपा के बाऊजी नहीं माने और उस दिन सरगम का परिवार दीपा के घर से निराश होकर वापस लौट आया,सरगम भी बहुत दुखी हुई दीपा की हालत देखकर लेकिन दीपा की माँ भी कुछ भी समझने को तैयार ना हुई.....
और फिर पता चला कि दीपा को जबरदस्ती ससुराल भेज दिया गया और एक रात उसने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली.....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....