Akeli - Part - 10 - Last part in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | अकेली - भाग 10 - अंतिम भाग

Featured Books
  • પ્રેમ સમાધિ - પ્રકરણ-122

    પ્રેમ સમાધિ પ્રકરણ-122 બધાં જમી પરવાર્યા.... પછી વિજયે કહ્યુ...

  • સિંઘમ અગેન

    સિંઘમ અગેન- રાકેશ ઠક્કર       જો ‘સિંઘમ અગેન’ 2024 ની દિવાળી...

  • સરખામણી

    સરખામણી એટલે તુલના , મુકાબલો..માનવી નો સ્વભાવ જ છે સરખામણી ક...

  • ભાગવત રહસ્ય - 109

    ભાગવત રહસ્ય-૧૦૯   જીવ હાય-હાય કરતો એકલો જ જાય છે. અંતકાળે યમ...

  • ખજાનો - 76

    બધા એક સાથે જ બોલી ઉઠ્યા. દરેકના ચહેરા પર ગજબ નો આનંદ જોઈ, ડ...

Categories
Share

अकेली - भाग 10 - अंतिम भाग

पुलिस को बुलाने की बात सुनकर गंगा ने कहा, "नहीं फुलवंती जाने दे इन्हें। इतनी बड़ी सज़ा जो तू ने इन्हें दी है उसके आगे कुछ हफ़्तों की जेल की सज़ा कोई मायने नहीं रखती। अब तो यह तेरे से कभी नज़रें नहीं मिला पाएंगे। यही इनकी सबसे बड़ी सज़ा होगी।"

आज फुलवंती के अंदर माँ काली का रूप समाया था। उसने गुस्से भरे स्वर में कहा, "जाओ चले जाओ यहाँ से। आज मुझे तुम्हारी शक्ल देख कर भाई नहीं दो बलात्कारी नज़र आ रहे हैं।"

उसके बाद उनके जाते से फुलवंती गंगा से लिपट कर, "मुझे माफ़ कर दे गंगा," कहते हुए फूट-फूट कर रोने लगी।

अपने भाइयों का ऐसा रूप कोई बहन नहीं देख सकती। इस दुख को गंगा और फुलवंती शायद जीवन में कभी नहीं भूल पाएंगे।

रोते-रोते गंगा ने कहा, "धन्यवाद फुलवंती तूने मुझे बचा लिया और साथ ही छोटू और मैकू को भी इतना बड़ा पाप करने से रोक लिया।"

एक हफ़्ते के बाद रक्षा बंधन था। उस दिन जो कुछ भी हुआ, उन चारों के अलावा कानों कान किसी को उस घटना की भनक तक नहीं लग पाई थी।

आज सुबह जब गंगा अपनी साइकिल के पास गई तब छोटू और मैकू अपने हाथ में राखी लेकर खड़े उसका इंतज़ार कर रहे थे। वह जैसे ही साइकिल के पास आई वे दोनों राखी लेकर उसके पास आ गए।

मैकू ने कहा, "गंगा हमारी सूनी कलाई पर यह धागा बाँध दो। हम उस ग़लती के बोझ तले दबकर मर जाएंगे। हमारा दम घुट रहा है गंगा। पता नहीं कैसे हमने वह सोचा भी, हम शर्मिंदा हैं गंगा।"

छोटू ने कहा, "गंगा यदि तुम हमें माफ़ करोगी तो फुलवंती भी शायद मान जाए। वरना यह कलाइयाँ जीवन भर सूनी ही रहेंगी।"

गंगा साइकिल पर बैठकर जाने लगी। उसने उनकी किसी बात का जवाब नहीं दिया।

तब मैकू ने कहा, "गंगा तुमने यदि हमें माफ़ नहीं किया और यह धागा हमारी कलाई पर नहीं बाँधा तो शाम को जब तुम वापस आओगी तब एक मोटा धागा तुम्हें हमारे गले में दिखाई देगा। तुम्हें यहाँ मैकू और छोटू नहीं उनकी लाशें मिलेंगी और यह हम करके दिखा देंगे।"

यह सुनते ही गंगा का हाथ ब्रेक पर चला गया। तभी उसकी नज़र सामने से आती फुलवंती पर पड़ी। गंगा साइकिल से उतर गई और दौड़ कर फुलवंती के पास गई। उसने उसे वह सब बताया और कहा, "चल हम दोनों उन्हें राखी बाँध देते हैं।"

"नहीं गंगा मैं नहीं...!"

"ऐसा मत कह फुलवंती यदि सच में उन्होंने कुछ कर लिया तो ...! हर इंसान को सुधरने का एक मौका तो देना चाहिए।"

तब तक मैकू और छोटू भी उनके पास पहुँच गए और राखी की डोरी दिखाते हुए आशा भरी नज़रों से उनकी तरफ़ देखने लगे। उनकी आँखों से पश्चाताप के आँसू बहते ही जा रहे थे; गंगा और फुलवंती के सामने उनकी आँखें मानो गिड़गिड़ा कर भीख मांग रही थीं।

तब गंगा और फुलवंती दोनों ने उनकी कलाई पर राखी बाँध दी। फुलवंती ने अपनी तरफ़ से तो उन्हें माफ़ी देकर मुक्त कर दिया। पर प्रश्न यह है कि क्या वे दोनों ख़ुद को माफ़ी देकर उस अपराध से मुक्त कर पाएंगे? क्या उनकी आत्मा उन्हें धिक्कारना बंद कर देगी।

गंगा सोच रही थी अभी तो उसने जवानी की दहलीज़ पर क़दम ही रखा है और ये मैकू और छोटू ...! इनसे तो उसे फुलवंती ने बचा लिया लेकिन आगे मैकू और छोटू जैसे लोगों से निपटने के लिए उसे स्वयं को ही तैयार करना पड़ेगा क्योंकि वहाँ फुलवंती नहीं होगी वह हमेशा की तरह अकेली ही रहेगी।


रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
समाप्त