रज़ाई में दुबके हुए स्मृति ने चाय खत्म की। प्याला बिंदु को ले जाने के लिए आवाज़ दी। माँ कहाँ है? पूछने पर उसने बताया कि वो छत पर धूप सेंक रही हैं। स्मृति ने घड़ी की तरफ देखा साढ़े ग्यारह हो आए थे। कल रात भर वो सो नहीं पाई थी। रात का तापमान तो गिर रहा ही था साथ ही उसके मन के अंदर सर्द हवाएं चल रही थी जिन्होंने उसे सोने ना दिया। विनीत की याद आ रही थी। बड़े मुश्किल से मन को समझाया कि ये नर्म होने का समय नहीं है। आज वो नर्म पड़ेगी तो ताउम्र झुक कर रहना पड़ेगा। आखिर वो 'पुराने ज़माने' की लड़की नहीं है!
शादी को सिर्फ 11 महीने हुए है और यूँ रूठ कर मायके आना, ना चाहते हुए भी चिपकी हुई छतों के मुहल्ले में बात निकलती हुई दूर तलक पहुँच चुकी थी। दो दिन से स्मृति की माँ प्रमिला की किट्टी वाली सहेलियाँ भी हाल चाल लेने आ रहीं थी। प्रमिला जी हँसती - मुस्कुराती सब को चाय नाश्ते के बाद ये कहकर वापस भेज देतीं थी कि 'बच्चे हैं, चलता है ये रूठना - मनाना'!
प्रमिला जी जानती थी अपनी बिटिया को, अपने पापा की लाडली, नाज़ो मे पली स्मृति यूँ तो बहुत समझदार थी। पर बात जब किसी की द्वारे उसके मन पर ठेस की होती तो वह माफ़ी के मूड में नहीं रहती थी। लाग लपेट उसे जरा भी पसंद नहीं थी, सीधी बात और नो बर्दाश्त!
जब दिल लगाया और अपनी मरज़ी के लड़के को घरवालो के सामने रखा तो कोई ना नहीं कह पाया, लड़का हर तरह से परफेक्ट था।
धूमधाम से की गई शादी में मुहल्ले की लडकियों ने रश्क किया कि इतनी सुन्दर प्रेम कहानी और परी कथा जैसे बिना व्यवधान की शादी! जाने किसकी नजर लग गई बिटिया के हँसते खेलते जीवन को...
सर्दी में हल्की निकली धूप में प्रमिला जी अचार की बरनीयों को धूप दिखा रही थी, जाने कब हल्की सी नमी फफूंद को जन्म दे दे!
स्मृति माँ को खोजते हुए छत पर चली आई। बिंदु को दो कॉफी उपर दे जाने के लिए बोल शॉल ओढ़े पर छत पर चली आई। बदन को धूप लगी तो मन का सर्द कोना फिर भटकने लगा।
"उठ गई तू? आ यहाँ बैठ, धूप लगने दे बदन को! तुम नई जेनरेशन ने टैन के नाम पर धूप से पर्दा कर रखा है, ना शरीर ढंग से काम करता है ना दिमाग!"
"माँ! टैन की बात गर्मी के लिए कहती हूँ मैं, सर्दी की धूप तो गुनगुनी सी लगती है... प्यारी सी!"
स्मृति ने शॉल उतारते हुए कहा।
"वाह रे वाह! बिचारी धूप के साथ भी दोहरा व्यवहार? वही धूप तुम्हें कभी अच्छी लगे कभी बुरी, अपना मौसम देख उसे फायदेमंद और नुकसानदायक का लेबल दे दिया।"
बातें करते हुए प्रमिला जी ने अचार के बरनियों के ढक्कन खोल दिए।
अचार की तेज सुगन्ध स्मृति के नथुनों मे गई तो मन तैर सा गया। उस दिन भी ननद रिचा की बर्थडे पार्टी में खाना खाते वक्त उसमे प्लेट में ढेर सारा अचार ले लिया था। कारण बस इतना था कि कैटरिंग वाले ने कटहल का अचार रखा था जो उसका फेवरेट था। गाँव से भी मेहमान आए थे जिसमें विनीत की दादी भी थी। स्मृति रिचा के साथ ठहाके लगाते हुए खाना खा ही रही थी कि दादी वहीं आ गई।
"और विनीत की बहू? लगता है खुशखबरी दे रही हो!"
"कैसी खुशखबरी दादी जी?"
"प्लेट में इतना अचार देखते ही मैं समझ गई थी बहूरिया,..."
"एक मिनट! आप क्या समझ गई थी..अच्छा!!, अरे ऐसा कुछ नहीं है दादी, आप लोगों का अलग ही आँखों से सोनोग्राफी करने का सिस्टम है। साइंस तो अपना वज़ूद ही खो दे!"
हँसते हुए स्मृति और रिचा खाना खाने लगे।
दादी को स्मृति का ये बिंदासपन पसंद नहीं आया।
"ये कौन सा तरीका है विनीत की बहू? चार जमात पढ़ते ही सब ताक पर धर दो, ऐसा क्या अनोखा पूछ लिया मैंने? शादी हुई है अब औरत का काम है घर परिवार वंशावली आगे बढ़ाना, हमे क्या पता तुम लोगों के मन में कौन सा खोट है..."
रिचा के इशारे पर स्मृति को समझ आ गया कि दादी ने बात को ज्यादा ही गम्भीरता से ले लिया।
"अरे दादी आप क्यूँ टेंशन ले रहीं हैं? ये बहुत ही प्राइवेट मसला और फैसला है जो मैं और विनीत समय आने पर ले लेंगे। आप खामखा बात को तूल दे रही हैं, एक अचार का क्या खा लिया.. माइ गॉड!"
स्मृति ने प्लेट वहीं रख दी और वहाँ से चली गई।
पार्टी खत्म होते ही सभी घरवालों के हँसते चेहरे अजीब से बने हुए थे।
रिचा ननद होने के साथ ही स्मृति की अच्छी सहेली भी थी। स्मृति के पूछने पर उसने बताया कि दादी बहुत नाराज हैं और अभी के अभी गांव वापस जाने की जिद पर अड़ी हैं।
विनीत स्मृति के सामने खड़ा था।
"सिमी तुम्हें दादी से माफ़ी मांगनी चाहिए, ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी!"
उसके स्वर में खीझ थी।
"माफ़ी? पर कोई गलती बताएगा? मैंने कहाँ कुछ कहा उन्हें... वो अचार का इशू बनाकर मुझे फॅमिली ना स्टार्ट करने के लिए कटघरे में खड़ी कर रहीं थी, मैंने सिर्फ ये कहा कि हम देख लेंगे, क्या गलत कहा विनीत? "
"देखो सिमी! बात सही गलत की नहीं है.. बात है कि वो हमसे बड़ी हैं और उनके अपने तरीके है प्यार जताने के, नाराजगी जताने के, अच्छा लगा तो मुस्कुरा देती... बुरा लगा तो तुम चुप रह जाती, क्या जरूरत थी बहस की?"
"बहस? विनीत मैंने बस एक लाइन बोली थी, बहस तुम कर रहे हो तिल का ताड़ बना कर। मुझे माफ़ी मांगने में कोई परहेज नहीं पर गलती तो हो!"
"सिमी वो बुजुर्ग हैं.. बात समझो!"
" बुजुर्ग है तो खुद ही कहेंगी खुद ही नाराज रहेंगी? जैसे मैंने कोई बुजुर्ग देखा ही नहीं?"
" सिमी!!!! "
विनीत के चीखते ही स्मृति अपने कमरे में चली गई। दादी का गुस्सा शांत करा दिया गया पर स्मृति अपना बैग लेकर मायके चली आई। रिचा ने कितना मेसेज किया कि भाभी आप लोगों की पहली सालगिरह प्लान कर रहे हैं, ऐसे मत जाइए पर वो नहीं मानी।
"ए बेटा! कहाँ खोई हो? ये बिंदु कॉफी रख गई है ठण्डी हो जाएगी! लो पियो!"
माँ के आवाज से स्मृति उस स्मृति कक्ष से बाहर आई।
मूड बदलने के लिए माँ से अचार का पूछने लगी।
"इतने सारे अचार डाले है आपने और अभी तक भरी पड़ी हैं, खाते नहीं क्या?"
"अचार की शौकीन तो तू है! तू चली गई तो कौन खाएगा? अभी नई शादी है ना इसलिए बिदाई के साथ खट्टा नहीं देती हूँ.."
"क्या माँ कौन से ज़माने की बात ले कर बैठ गई, इससे क्या होता है भला! लाओ चखाओ ये करेले का अचार बड़ा प्यारा नजर आ रहा है!"
कहते हुए स्मृति ने अचार का टुकड़ा मुँह में धरा। उसके चेहरे पर चिर परिचित भाव वापस देख प्रमिला जी को सुकून मिला।
" कैसा बना है बेटा?"
" परफेक्ट! यू आर टू गुड माँ... जादू है आपके हाथो मे, इस बार मैं सब उठा ले जाऊँगी... आं.. मेरा मतलब है, मैं.. मैं खा जाऊँगी सब.."
कहते हुए स्मृति रुक गई। दोनों तरफ भावनाओ का ज्वार था। स्मृति की आंखे छलक आई।
"बेटा! एक बात कहूँ? तेरा घर है ये, सारी जिंदगी तेरी खुशियो के लिए ही समर्पित की है, किसी ने तूझे यहाँ कुछ कहा क्या? वो घर भी तेरा है, अग्नि के सात फेरे लेकर कुछ वचन तूने भी दिए है। परिवार संजो कर चलने के लिए इतनी जल्दी हार नहीं मानी जाती और यूँ घर छोड़ना अपना कर्मक्षेत्र, अपना युद्धक्षेत्र छोड़ने जैसा है। ये परफेक्ट खटास अचार की विशेषता है उसी पर अच्छी लगती है, रिश्तों में इतनी खटास की कोई जगह नहीं है। जायका खराब हो जाता है। जब से आई हो विनीत मनाने की कोशिश कर रहा है, ऐसा क्या बड़ा हो गया? बड़े बुजुर्गों की बातों का बुरा नहीं मानते!"
"आपको लगता है मैं दादी से नाराज़ हूं, विनीत ने मुझपर चिल्लाया इसलिए... "
"बेटा! विनीत ने बस दादी का दिल रखने के लिए माफ़ी मांगने को कहा था, तुम दुलार से ही दादी से लिपट लेती.. बेटा! बड़े बुजुर्ग घर की छत होते है, तपते है, कठोर होते है पर उन सबके पीछे उनकी एक ही मंशा है बच्चों का भला! अब पुराने ज़माने की हैं, और सोचो उन्होंने जिस समाज में जिंदगी बिताई है वहाँ उन्हें सिर्फ वहीं तक छूट थी, उनका क्या दोष उनके ऐसे हो जाने मे। शादी के बाद सब परिवार शुरू करने का पूछते है, एक बच्चे के बाद दूसरा और दूसरे के बाद उसकी पढ़ाई लिखाई शादी ब्याह! ये जीवन चक्र है और आम इंसान की धुरी यहीं घूमती है। तुम वादा करो ठंडे दिमाग से सोचोगी! तुम्हारे पापा का क्या, उनके लिए तो उनकी लाडो आँखों के सामने है.. मतलबी हैं वो.. विनीत का सोच तू, पहली सालगिरह यादगार बननी चाहिए। आगे तू खुद समझदार है। "
माँ वापस अचार को ढक्कन लगा रहीं थी। अचार अपना काम कर चुका था, थोड़ी धूप सेंक चुका था और थोड़ी गरमाहट स्मृति के सर्द ख्यालो को मिल चुकी थी।
" ठीक है माँ, मैं विनीत से बात करूँगी!"
कहते हुए स्मृति माँ की गोद में दुबक गई।
गलत सही का भेद क्या होता है, मन ही होता है ,कभी रच बस गया तो कभी उतर गया। अपनों की सही समय पर दी हुई सही सलाह जादू सी काम करती है।
-सुषमा तिवारी