rocketry movie review in Hindi Film Reviews by Mahendra Sharma books and stories PDF | रॉकेटरी फिल्म रिव्यू

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रॉकेटरी फिल्म रिव्यू

रॉकेटरी फिल्म आपको देखनी चाहिए अगर आपने वो सब देखा है जो केवल मनोरंजन था तथ्य नहीं, आपको देश के तथ्यों और देशभक्तों को जानने की जिज्ञासा होनी चाहिए क्योंकि उसके बगैर आप मतलबी और स्वकेंद्रित जीवन जी रहे हैं। इस देश ने डॉ नम्बी जैसे सपूतों को जन्म दिया है जिन्होंने देश के खातिर अपना जीवन समर्पित किया और कई बार अनचाही मुसीबतें अपने परिवार के साथ झेलीं।

रॉकेटरी फिल्म हिंदी में जिओ सिनेमा पर निशुल्क उपलब्ध है। आपको यह फिल्म सह परिवार देखनी ही चाहिए। अगर आपको विज्ञान में रुचि नहीं है तो कई बातें आपको नहीं समझ आएंगी पर उन बातों को नजर अंदाज करें तो फिल्म आपको एक सच्चे देशभक्त से परिचित करवाएगी जिन्हें हम शायद कभी एक चैप्टर में स्कूल में पढ़ा और अब भूल भी गए।

रॉकेटरी फिल्म बनी है डॉ नांबी नारायण के जीवन चरित्र और उनकी अवकाश विज्ञान के संबध में प्राप्त की हुई उपलब्धियों पर। आज जो चंद्रयान ३ अवकाश यात्रा पे निकला है उसका श्रेय नांबी नारायण जी को जाता है क्योंकि उनके बनाए विकास इंजिन पर ही आज रॉकेट मिशन टीका है। पर क्या उनका काम केवल वैज्ञानिक तौर तरीकों तक सीमित था?

फिल्म के माध्यम से आप जान पाएंगे की कैसे एक रॉकेट इंजिन बनाने के लिए अलग अलग देशों से तकनीक को सीखा गया और उसे भारत लाया गया। भारत के पास ७० के दशक में न तो पैसा था और न ही अंतरिक्ष में जाने की कोई प्राथमिकता। ये देश गरीबी और बेरोजगारी से जूज रहा था और वहां इसरो अपने अंतरिक्ष मिशन पर चुपचाप बढ़ी ही कर कसर से विक्रम साराभाई के नेतृत्व में काम कर रहा था। डॉ नांबी उसी समय किसी तरह जुगाड करके देश विदेश जाकर रॉकेट इंजिन बनाने की तकनीक सिख रहे थे।

एक बहुत बढ़ी बात डॉ नांबी की यहां दिखाई गई है की उन्होंने बढ़े देशों से और उन देशों के नेताओं और वैज्ञानिकों से कैसे जानकारी जुटाई, कैसे उनसे इंजिन के लिए जरूरी पुर्जे निकलवाए। उन्हें कई जगह नौकरी करनी पड़ी तो किसी जगह जानकारी को चुराना भी पढ़ा। पर ये सब उनकी देशभक्ति की चर्म सीमा दर्शा रहे थे।

जब देश के पास टेक्नोलोजी खरीदने के लिए पर्याप्त पूंजी नहीं थी तो डॉ नांबी ने पैसे जुटाने के लिए तरकीब निकाली। फ्रांस जब अपना अंतरिक्ष यान बना रहा था तब उन्हें वैज्ञानिकों की जरूरत पड़ी, डॉ नांबी ने उनका विज्ञापन पढ़के उनको अपना प्रस्ताव भेजा जिसमे इसरो के वैज्ञानिक फ्रांस के साथ काम करके उन्हें अपना अंतरिक्ष यान बनाने में मदद करेंगे। इस प्रयोग में डॉ नांबी सफल हुए, वे भारतीय वैज्ञानिक लेकर फ्रांस गए, वहां काम किया, पूंजी जुटाई और साथ ही उन्हीं की तकनीक भी सीखकर आए जिससे आगे जाके विकास रॉकेट इंजिन बना।

और जैसे की बहुत ईमानदार और देशभक्त लोगों के साथ होता है, उनके दुश्मन भी ज्यादा थे, खास तौर पर वे देश जिनके लिए भारत पिछड़ा प्रदेश था। डॉ नांबी पर देश की रॉकेट मिशन की जानकारी दूसरे देशों को बेचने का आरोप लगाया जाता है। उनके साथ पुलिस इतना बुरा सलूक करती है जितना शायद किसी बदनाम गली के गुंडे से भी ना किया जाए। उन्हें शारीरिक व मानसिक कष्ट दिया जाता है ताकि वे अपने ऊपर लगाए हुए गलत इल्जाम को स्वीकार करें। पर उन्होंने एक भी एग्जाम स्वीकार नहीं किया। फिर कैसे वे इस मुसीबत से बाहर निकले इसके लिए फिल्म देखना जरूरी है।

डॉ नांबी को नासा में एक बहुत बड़ी नौकरी की ऑफर भी की गई और बहुत बड़ा मेहनताना भी ऑफर किया गया। पर उन्होंने अपनी देशभक्ति के खातिर इस ऑफर को ठुकरा दिया और इसरो के साथ ही रहना पसंद किया। कितने वैज्ञानिक या तकनीकी लोग पैसों के सामने देश को बड़ा मानते हैं?

फिल्म के लेखन में निर्देशन में और किरदार में खुद आर माधवन ही हैं। अनंत महादेवन ने भी इस फिल्म का लेखन कार्य किया है। रजित कपूर जिन्होंने विक्रम साराभाई की भूमिका निभाई है उनका भी काम काबिले तारीफ है। फिल्म में विज्ञान, चतुराई, देशभक्ति और एक कठोर मन के वैज्ञानिक का जीवन सुंदर तरीके से दर्शाया गया है।

आप अवश्य इस फिल्म को देखें, क्योंकि देशभक्ति सस्ती नहीं होती, इसके लिए कीमत चुकानी पढ़ती है, कभी हमें कभी किसी और को।

जय हिंद।

- महेंद्र शर्मा 28.07.2023