Unkahe Rishtey - 4 in Hindi Short Stories by Vivek Patel books and stories PDF | Unkahe रिश्ते - 4

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Unkahe रिश्ते - 4


बहुत से रिश्तों की बातें की है मेने चलो आज में उपनी ही बात कर लेता हूं, मैं उन लोगो मे से हूँ जो ज़्यादातर किसी अंजानो से बाते नही करते या फिर उनसे गुल मिल के रहने मैं बहुत देर लगती है तब तक शायद सामने वाला इंसान या तो Give up कर चुका होता है या फिर हमारे रहने न रहने के उसपे फिर कोई प्रभाव नही रहता। हमारा रिश्ता उन आम रिश्तो मैं शामिल हो जाता , जहा बस ज़्यादातर रिश्ते वो किताब से हो जाते है जिसे हमने पढ़ लिया होता है ओर अब वो कोने में पड़ी रहती है लेकिन हमारे सामने होते भी हम उसे नही पढ़ते। किताबो से ज़िन्दगी भर का साथ होता है हमारा, जब तक हम वो साथ न तोड़े। लेकिन क्या मायने है वो साथ के?

मेरे ऐसे ही बर्ताव के कारण ज़्यादा दोस्त नही बने। ज़िन्दगी में सच्चे कहे जाने वाले बस तीन ही दोस्त बना पाया में। ऐसे दोस्त जो बोलने भर से मेरे पास हो जाते है, मेरे कहे बिना मेरी हर अनकही परेशानियों का जवाब रहता है तीनो के पास। मेरे दिल को पढ़ना बहुत अच्छे से जानते है क्योकि आखिरकार बाँधे भी तो दिलो से है। ज्यादतर बोलना रहता नही था हमारे बीच बस हम ज़्यादातर फ़ोन पे ही बात किया करते है, वैसे ही जैसे सब करते है social media पर । पता नही क्यों पर लेकिन हमारा कुछ है ऐसा, रोज बातें करनी है लेकिन, chatting करके। दुनिया भर की बाते रहती है उस chat मैं लेकिन पता नही क्यों हमेशा कुछ खाली सा लगता है। हमने कभी ऐसा पहले से सोचा नही था कि chat पर ही बाते करते रहेंगे, लेकिन शायद अब सोच रहे है कि संभाल के रखेंगे ये हमारी बातो को की हवा न लग जाए हमारे रिस्ते को, तूफान तो बहुत सारे आए पर डगमगाये नही जैसी अपनी दोस्ती हो।।

जिसको मिलकर, बातेकर कर बहुत ख़ुशी मिलती है,
ऐसे लोग बहुत कम मिलते है। बस इनके message मेरे लिए दवाई का काम करने लगे। पता नही क्या रिश्ता था हमारा लेकिन जब भी मिलते , वैसे तो कम ही मिला करते थे लेकिन जब भी मिलते......खो जाते । मिलने का वक्त कैसे गुज़र जाता पता ही नही चलता लेकिन जब बिछड़ने का वक्त आता था तब वक्त थम जाता, हमे रोके रखने की कोशिश करता लेकिन हम कहा रुकनेवाले ठहरे ।

कुछ अनोखा ही रिश्ता है मेरा उस शख्स से ..!!
कभी उसे सोचने से सुकून मिलता है,
तो कभी बेचैनी..!! में खुदको उनके साथ , उनकी बातों में, उनके विचारों में, उनके ख्वाबो में महसूस कर रहा था।

मेरा किसी के साथ कभी रिश्ता बना ही नही जैसा यह तीनों के साथ बना था। शायद मे किसकी सामने इतना खिला ही नही जितना इनके साथ था। दिमाग में रही हर बातों को में उनसे कहता लेकिन, चाह कर भी में दिल की बातें उन्हें नही कह पाया। डरता था कि वो accept करेंगे की नही। देखोना कितना पागल था में, येह सोच ही नही पाया कि दिलो से जुड़े लोग दिमाग से काम नही लेते। और दिल हमेशा दोस्तो की तरफ होता है। मेने हर पल चुपी रखी, जहा दिलो के दरवाजे खुले रखने थे वहा में मौन सांजे रखा था । कही न कही मेने हर पल गलत दरवाजे खटखटाये थे। सबके होने के बावजूद में हर पल अपने में अकेला था।

धीरे धीरे ये चुपी ने मुझे इंट्रोवर्ट बना दिया। So called इंट्रोवर्ट साबित करने मे मेने कहीन कहींन अपने आप को सभी से दूर कर दिया, मेने पेहले खुदसे बातें बंध कर दी, फिर औरो से दूर हुआ, सभी के बीच उस हवा को जगह देदी जो कभी उठी ही न थी। उस फासले को मैने भीतर आने दिया जो हमेशा के लिए मुझे सबसे दूर करने वाली थी।

जब पता चला कि सबसे दूर होते जा रहा हूँ तो समझ ही नही आया कि मेरे साथ क्या हो रहा है मैं क्या कर रहा हूँ???खुद ही खुदको सबसे दूर कर रहा था। अपनी दुनिया हासिल करने के चक्कर मे रिश्ते पीछे छोरे जा रहा था, फिर समझ आया सपने पूरे हो जाने से क्या ही हो जाएगा अगर ये सब सपने में किसीके साथ जी नही पाया। celebrate करने के लिए तो लोग बचे ही नही मेरे पास।

Messages आना बंध हो गए है, wishes तो दूर की बात हो गई। अब कोई अपने प्लान मैं भी नही invite करता क्योकि खुद ने ही तो सबको अपने से जुदा किया था। ज़िंदगी मे जो पकड़ के रखने चाहिए थे उसे मेने बड़ी आसानी से जाने दिया चाहे वो dost हो, रिश्ते हो या करीबी हो । किसीको मैं balance नही कर पाया...सामने से कोई party मांगने वाला रहा नही, मैं अपनी खुशियां मांगू किससे? कोई बचा ही नही!!!

शुरुवात तो सब अच्छी करते है, मसला तो सारा आखीरी तक अच्छा रहने का है। मेरे साथ कब ऐसा हुआ पता ही नही चला। और फिर ये वक्त भी आया कि मैने उनको दोषी ठहराया। दिमाग मे ख्याल आने लगे की में थोड़ी गलत हो सकता हु। उनको जिन्मेदार मानकर सोचने लगा कि मै आपको दूर कर रहा था तो एक कोशिश तो आपकी भी बनती है कि मैं रिश्ते तोड़ने मैं लगा हूँ तो थोड़ा हम रिस्ते संभाल ले । एक दूसरे के वो पलो को न टूटने दे जो कभी अच्छी memories हुआ करती थी, करती थी।
मेने सोचा था कि एक पहल तो सामने से भी होगी लेकिन नही हुई और क्यों होती?


फिर दोषी वक्त को ठहराया, ऐसा लगा कि शायद वक्त ही खराब चल रहा है।। मैं अच्छे वक्त की राह मैं बैठ पड़ा कि कभी ये चुपी टूटकर आवजो को बुलंद कर देगी। वो भी होने से रहा । मन मैं एक कशक उठी की मेरे तरफ से ही क्यों हर कोशिशों हो? अंदर ही अंदर मेने मान लिया की वे योग्य नही है।पता नही मेरा मानना सही है या नही लेकिन मेंने अपने आपको मना लिया थी गलती मेरे दोस्तों की है।
' यार वक्त बुरा था, तुम तो अच्छे रेहते'
बच जाती हमारी वो यारी ।

अब जब मैं दुनिया से जुदा हो गया था तो किसीको फर्क नही पड़ता की क्या हो रहा है मेरे साथ। "Love me extra on my Bad Days " ये कहने की लीये कोई था नही मेरे पास। Best Friend जो छूटे जा रहे थे।

कीतना पागल हु न में, रिश्तो को बीच रास्ते मे छोड़कर ही दूसरे रिश्ते बनाने चल पड़ा। ये सोचा ही नही की वो कितना अधूरे feel करते होंगे जब वोह मुझे अपने पास नही पाते जब उन्हें मेरी ज़रूरत है । वोह मेरा इंतज़ार करते है, शायद ज़िन्दगी भर करते रहेगे क्योकि जीवन के मझधार मे जो में उन्हें छोर आया हु और दुख की बात तो येह की मुझे इसका अहसास होगा भी नही की कोई तड़प रहा है मेरी यादों के सहारे। में तो मसरुफ हु अपने नए रिश्ते बनाने मे।

बहूत दर्द होता है जब कोई चीज़ अधूरी ही रह जाए, जाहे वोह रिश्ता हो, कहानी हो, बातें हो या इंतेज़ार हो। बस ज़िंदगी इसी ख्वाबों में बीत जाती है कि वोह कल आएगा जो मेरा येह अधूरा काम कर देगा और वो कल कभी आता ही नही। मेने यार किसीकी दिल से निभाई गई दोस्ती बीच रास्ते में छोड़ दी। वो अगला पुरी सिद्दत से उसे निभाये जा रहा है और मुझे पता तक नही था।

किसी दोस्त के साथ मेरी तस्वीर नही है, मेने कभी खिंचवाई ही नही। मेने रिश्तो को कभी फ़ोटो की फ्रेम से नही बांधा, मेने हमेसा उसे दिलो की दीवारों से संजोया है। लेकिन ये सारी हरकतों ने मुझे सबसे अलग कर दिया। अगर में आपको सामने से नही बुला रहा तो इस बार आप कोशिश करना क्योंकि मेरे लिए पेहले शुरवात करना हर बार मुश्किल रहता है।

लेकिन अपकीबार में कोशिश कर रहा हु,

में न ये वाला BLOG तीनो को share करने वाला हु, हाँ मेरी तरफ से उनसे बातें शुरू करने का एक रास्ता ही समझ लो। में येह नही बात रहा की मेरा ego है बस तूम बातें की शुरुवात करो, नही। में तो येह बताना चाहता हु की में अधुरा हु उनके बिना, भूखा हु तुम्हारी बातों का, में कोरा पन्ना हु बिना आपकी कहानी के में खाली हु बिना आपके मौज़ूदगी से,
अरे में, में नही बिना आपकी यारी के।

बस इतना कहना चाहता हु की ये जो इतफ़ाक़ से रिश्ते बने होते है ना वो तुम्हारी किसी चीज़ की मोहताज नही होते वे तो बस आपके अधरों से बांधी चुप्पी को आवाज़ देने आतें है, ये रिश्ता भले त्वरित बना हो लेकिन ये साथ जन्मो का होता है। तो कशिश करना कि इसे आप खो न दो। ये तो वक्त की दी गई कीमती भेट है।

हाँ में मानता हूं कि में तुम्हारे साथ party में नही रहूंगा, तुम्हारे साथ गुमने नही चलूँगा, हर पल तुम्हारे साथ नही रहूंगा, लेकिन कभी तुम कोशिश करना बिना इन सब कारणों के भी तुम मुझसे मिला करो, मुझे सुकून की ज़रूरत हो तो तुम मेरे पास आया करो, में पेहले के जैसे बोल नही पाऊंगा, लेकिन मैं जब कहूँ, मुझे जरूरत नहीं तुम्हारी, ठहर जाया करो, तब सख्त जरूरत होती है, तुम्हारी!

में ये कह नही पाऊंगा, लेकिन समझ लेना तुम.....