39 Days - 2 in Hindi Anything by Kishanlal Sharma books and stories PDF | 39 Days - 2

Featured Books
Categories
Share

39 Days - 2

किराए की दुकान पर बहुत लोगो से सम्पर्क और दोस्ती हो गयी थी।2015 में प्लाट पर दुकान बनवा ली क्योकि दुकान मालिक भी दुकान खाली करने के लिए कह रहा था।और आखिर में दुकान बन गयी।नई दुकान और नोट बंदी के बाद समय चक्र पलटा।दुकान की बगल में दुकान का प्लाट खाली था।बेटे ने दुकान में बेसमेंट बनवाया था।जिसमे लाखो का सामान भरा था।2016 में बगल वाले ने दुकान की नींव खुदवाई और उसी रात भयंकर बरसात आ गयी।इतनी बरसात की नींव में से बेसमेंट में पानी आया और पूरा बेसमेंट पानी से भर गया।मैं पत्नी के साथ बाहर गया हुआ था।पानी को समर का पम्प्प लगाकर निकालना पड़ा वो भी पूरे दिन चला तब।और करीब 15 lac का माल
खराब हो.गया ः।
मैं रिटायर हो चुका था और दुकान भी जाने लगा था।लेकिन बेटा बोला"दयालु रख रखा है।फिर जाने की क्या जरूरत है।और मैने दुकान जाना छोड़ दिया।बेटे पर पूर्ण विश्वास करके
सबसे बड़ी समस्या यह थी कि वह दुकान और अपने व्यापार के बारे में कभी डिसकस नही करता था।सुबह 8 बजे तक निकल जाता।दोपहर में खाना खाकर चला जाता।रात में देर से आता।बात कब हो।
दुकान में हुए नुकसान की भरपाई या डीलरों को पैसा देने के लिए न जाने कब उसने सूदखोरों से पैसा लेना शुरू कर दिया।बाद में जो मैने खोज की ..।यह तब हुआ जब
बेटा बार बार बीमार पड़ने लगा और मुझे दुकान पर जाना पड़ा।
इसके जो दोस्त और हितैषी बने हुए थे वो ही ब्याज पर पैसा दे रहे थे।ब्याज भी पांच से दस पन्द्रह प्रतिशत मासिक।और ब्याज लेते और सामान फ्री ले जाते।एक तरफ कर्ज बढ़ता जाता दूसरी तरफ दुकान खाली होती जाती।
कर्ज देने वालो के नाम तो नही बता रहा यहा
लेकिन इनमें पुलिसवाला,आर पी एफ वाला,फौजी,दुकानदार,दूधवाला,होमगार्डवाला ऐसे ऐसे लोग थे,जिनका क्या वर्णन करू नतीजा मानसिक वह अन्य रोग।और कर्जा चुकाने में मेरा सब कुछ ही नही गया उधार और चढ़ गया।
हालात ऐसे आ गए थे कि यह बार बार बीमार पड़ते और एक सिथति ऐसी आयी कि इलाज को भी पैसे का कोई चारा नही था।फिर एक होम्योपैथी वाला ढूंढा वो भी नोसिखिया।मतलब जैसे एलोपैथी में
कम्पाउंडर भी अर एम पी बनकर प्रेक्टिस करने लगते है,ऐसे ही होम्योपैथी में है।और ऐसे डॉक्टर बीमारी खोज नही पाते और हर बार नया प्रयोग करते रहते हैं।जब आप पर मुसीबत आती है,वो भी आर्थिक तो नब्बे प्रतिशत आपके अपने दूरी बना लेते हैं।सिर्फ जो आपके सच्चे हमदर्द होते है वो ही आपके साथ खड़े रह जाते है।
इधर लोग जीने नही दे रहे थे,उधर लोगो की नजर में तमाशा बन गए थे। डर पोतों का भी लगा रहता कही कोई
क्योकि लोग कुछ भी कर सकते थे।इधर पेसो की हालत यह थी कि समय पर पोतों की फीस नही भर पाते थे।एक बार पत्नी को अपनी आखरी सोने की वस्तु अंगूठी बेचनी पड़ी।कई बार लोगो से थोड़े थोड़े पैसे मांगने पड़ते थे।और मेरी अपनी आदत भी थी कि जरा सी कोई बात पता चलती मैं बेटे से उल्टा सीधा बोल देता और इसकी तबियत खराब हो जाती।और यह बेहोश तक हो जाता।और पत्नी मुझसे कहती,"क्या फायदा कहने से उसकी तबियत खराब हो जाती है और हमे डॉक्टर के पास ले जाना पड़ता है।"