And the sun went down in Hindi Love Stories by Sharovan books and stories PDF | और सूरज डूब गया

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और सूरज डूब गया


और सूरज डूब गया
***

‘चांदनी,
यह रही तुम्हारी बिछुड़ी हुई चूड़ी का दूसरा हिस्सा। दुर्घटना के समय तुम्हारी टूटी हुई वह चूड़ी, जिसको तुम्हारी जान बचाने की ख़ातिर, मैंने कभी तुम्हारे ही कोमल जिस्म से काटकर बाहर निकाला था। तुम्हारी प्यारी सोने की चूडि़यां, वर्षों पहले इन्हें तुम्हारे हाथों में पहनाने के मैं कभी लायक नहीं था, और आज इन्हें पहनाने का मुझे कोई भी अधिकार नहीं। इसको मेरी तरफ से अपने विवाह का एक उपहार समझकर स्वीकार कर लेना। मैं यहां से जा रहा हूं। तुम्हारा शहर और तुम्हारी हरेक वह जगह को छोड़कर, उस स्थान पर जहां पर मुझे तुम्हारी स्मृतियों की सुगंध कभी भी परेशान न कर सके। अपने पति के साथ, अपने जीवन के नये संसार में, खुशियों की एक नई कहानी शुरू करके, उस किताब को सदा के लिये बंद कर देना, जिसमें शायद कभी भूले से मेरा नाम आ गया था।
सूरज।’

चांदनी ने एक ही सांस में पत्र में लिखी चार पंक्तियां पढ़कर समाप्त की तो तुरन्त ही वह सकते में आ गई। इस प्रकार कि अचानक ही उसका दिल किसी अपराध बोध की भावना से ग्रस्त होकर हिल सा गया। वह समझ तो गई कि उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया है कि जिसके कारण वह एक भूल और अपराध की श्रेणी में गिनी जाये, पर फिर भी उसकी आंखों के सामने जैसे अंधकार सा छा गया। कितने वर्षों से वह अपने कदम जीवन की हरेक डगर और गली में फूंक-फूंककर रखती आई थी। अपने जज़बातों पर काबू करके प्यार की हवाओं से खुद को बचाती आई थी। एक प्रकार से सूरज को वह भूल ही चुकी थी। जब उसने कभी आवाज़ दी थी तो सुनकर भी वह अनजान बन गई थी। कारण था कि एक मसीही लड़की होते हुये वह, अपने आपको आदर्श नारी के पथ पर चलाते हुये इन सारी बातों से दूर रखती आई थी। सोच लिया था कि कायदे से मां-बाप के कहने पर, उनकी ही मर्जी के अनुसार अपना विवाह कर लेगी। लेकिन पिछले दिनों जो घातक दुर्घटना उसके जीवन में हुई और अचानक से एक अनजान, अनदेखा युवक उसके जीवन में उसका दूसरा जीवन बनकर ऐसा उदित हुआ कि, जिसने उसे मौत के पंजे से बाहर निकाला तो बहुत स्वभाविक ही था कि ऐसे स्वर्गीय-दूत स्वरूप पुरूष के विषय में वह सोचने पर विवश हो जाये। सोचना क्या वह तो सोचने से भी कहीं ज्यादा बहुत कुछ सोच बैठी थी। कितना इंतजार किया था उसने तब उस अनजान युवक का? कितना अधिक मन ही मन वह उसको चाहने लगी थी। बिन देखे ही वह उस अनजाने पुरूष को अपने मन-मन्दिर में वह विशेष स्थान दे चुकी थी, जो हरेक लड़की अपने जीवन में किसी एक को यह स्थान केवल एक बार ही दे पाती है। इतना ही नहीं कि जिस अनजान युवक को वह अपने मन-मन्दिर का चहेता बनाकर, अपने दिल की धड़कनों में बसा चुकी थी, वह कोई भी अनजान और अपरिचित युवक न होकर वही सूरज था, जिसने वर्षों पहले उसको अपना बनाने के लिये कभी कोई गुज़ारिश की थी। सोचने ही मात्र से चांदनी की आंखें ठंडी रात में पुष्पों के होठों पर पड़ने वाली किसी शबनम की बंूदों समान भर आईं। काश: सूरज उसके सामने बहुत पहले ही आ जाता। आ गया होता तो तब तो उसके जीवन की कहानी का मजमून ही दूसरा होता। अपने पसंद की प्यार की बगिया में वह सूरज के साथ दो सूख़ी रोटियां ही खाकर जितना खुश होती, शायद उतना कभी भी नहीं हो पाती। सोचते हुये चांदनी की आंखें स्वत: ही भीग आईं। इस प्रकार की उसकी आंखों में मोती झलकने लगे। कितनी बड़ी भूल और चूक वह अपने जीवन में कर चुकी थी। इतना बड़ा उधार का बोझ वह अपने सिर से बांध चुकी थी कि जिसके ब्याज का एक रत्ती भर हिसाब भी वह अब कभी नहीं दे सकेगी। वयो-संन्धि की उम्र पार करते ही, जि़न्दगी के तमाम आयामों से गुज़रते हुये उसके जीवन की गाड़ी में सूरज के प्यार की छिली हुई कराहटें फिर एक बार आकर उलझ जायेंगी; सोचते हुये चंादनी की आंखों में आज से पन्दरह वर्ष पुरानी वह घटना सामने आ गई, जब सूरज से उसका सामना अचानक ही हो गया था।

तब चांदनी अपनी कॉलेज की गर्मी की छुट्टियां समाप्त होने से पहले, कॉलेज में प्रवेश लेने के लिये आवश्यक कागज़ात आदि सम्मिलित करने के लिये इस नये शहर के मशहूर कॉलेज में आई थी। हांलाकि, वह मिशन डॉयोसीज़ के बिशप की लड़की थी। मिशन का ईसाई कॉलेज था। इस शहर तो क्या, आस-पास के तमाम शहरों के मिशन स्कूलों और कॉलेजों में उसके पिता की तूती बोलती थी। चांदनी चाहती तो उसका सारा काम यूं भी घर बैठे ही हो जाता, पर नये शहर और अपने पिता की नई कार चलाने और नया शहर घूमने की इच्छा के कारण ही वह अपनी अन्य दो सखियों के साथ चली आई थी। कॉलेज के कार्यालय में आकर उसे कोई विशेष कार्य तो करना नहीं था, केवल पेपर ही जमा करने थे। उसका सारा काम उसके पिता के केवल एक फोन करने से ही हो चुका था। सो कॉलेज के कार्यालय में आकर उसने अपने पेपर जमा कराये। कॉलेज के कार्यालय के मुख्य हैडक्लर्क उसके आने की पहले ही से प्रतीक्षा कर रहे थे। पेपर जमा करते हुये चांदनी को कोई विशेष आश्चर्य भी नहीं हुआ, क्योंकि ऐसी बातों का चांदनी को बहुत अच्छा अनुभव पहले ही से था। अपना काम समाप्त करने के पश्चात, उसने एक अच्छे रेस्तरां में खाना खाया और फिर सहेलियों के साथ उसने अपनी कार का मुख हिमसारा नदी की तरफ मोड़ दिया। उसने सुना और पढ़ा भी था, हिंडौली शहर की यह नदी अपने आस-पास की खुबसूरती और प्राकृतिक छटाओं के लिये काफी सुविख्यात थी। फिर यूं भी चांदनी को प्रकृति की सजावट और मनोहरता बेहद प्यारी लगती थी।

नदी के तट पर पहुंचते ही चांदनी सचमुच ही उसकी बहारों में खो सी गई। नदी की मदमस्त लहरों से नहाती हुई ठंडी हवाओं ने जब उसके जिस्म को स्पर्श किया तो स्वत: ही चांदनी के बदन में भी जैसे खुशियों की रश्मियां झिलमिलाने सी लगीं। उसने अपने आप ही अंदाजा लगा लिया पा जब गर्मी के दिनों में मौसमी वनस्पति और वृक्षों का ये नजारा है तो बसंत में पतझड़ से पहले और नई कोपलें आने के पश्चात इस नदी के मुहाने कितना कुछ प्रभावित करते होंगे। लगता था कि ढलते हुये सूर्य की रश्मियों के सहारे वृक्षों, झाडि़यों और तमाम वनस्पति की परछाइंयां नदी के जल में बड़े ही आराम से पसर कर सन्ध्या का स्नान करती होंगी।

चांदनी अभी भी पुल की मुंडेर से अपने दोनों हाथों को अपने मुख के सहारे लगाये हुये इन्हीं विचारों में गुम थी कि, तभी अचानक से किसी मधुर बांसुरी की धुन ने उसका ध्यान भंग कर दिया। पुल के दूसरी तरफ से, पेड़ों की छांव से, नदी की लहरों के बदन को चीरती हुई बंसुरी का मोहक दर्दभरा सा संगीत चांदनी के कानों में जैसे हलचल मचाने लगा था। किसी ने अनजाने में ही एक प्यारा, मधुर और मसीही गीत छेड़ दिया था। बांसुरी की लय पर जो गीत बजाया जा रहा था, उसके बोल थे, ‘मेरे पिता, यह मेरी दुआ, यीशु की मानिन्द तू मुझको बना।’

इतनी प्यारी, धाराओं के गर्भ से निकलने वाली बांसुरी की आवाज़ थी कि चांदनी के पैर स्वत: ही उस तरफ बढ़ने लगे, जिधर से यह सुगम संगीत आ रहा था। वह चुपचाप जाने लगी तो उसकी सख़ी राहेल ने उसे टोका भी। वह बोली,

‘ऐ, किधर जाती है?’

लेकिन चांदनी ने उसकी तरफ हाथ से इशारा करके, उसको तुरन्त नकार दिया और फिर से आगे बढ़ने लगी। जल्दी ही, चांदनी उस स्थान तक पहुंच गई जिधर से ये मधुर धुन आ रही थी। पास, लेकिन थोड़ा दूर ही से, खड़े होकर चांदनी ने देखा कि कोई युवक नदी के किनारे, पेड़ों की छांव में, अपनी बंसी पानी में डाले हुये चुपचाप बांसुरी बजा रहा है और शायद मछली फंसने का इंतजार भी कर रहा है। मछली, बंसी और बांसुरी; इन तीनों बातों का संगम एक ही स्थान पर? सोचकर चांदनी किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंच सकी। वह लड़का अभी भी अपनी बांसुरी बजाने में लीन था। चांदनी काफी देर तक चुपचाप खड़ी हुई उस लड़के को देखती रही। उसने सोचा कि, कौन हो सकता है ये युवक? मसीही गीत की धुन बजाता है, तो अवश्य ही मसीही भी हो सकता है। मछली का शिकार, कबूतर, फाख्तायें और नील गायों का शिकार आदि करने में ईसाई लड़के तो यूं भी माहिर होते ही हैं। उससे बोलूं, न बोलूं, ना जाने कौन हो सकता है? फिर, नया शहर, नई जगह, नदी का किनारा, एकान्त? कुछ भी हो सकता है; एक आशंका और भय के कारण चांदनी के पैर अपने आप ही पीछे लौटने लगे। राहेल और उसकी दूसरी सहेली मधु, दोनों उससे कुछ दूर ही खड़ी हुई, उसको ही देख रही थीं। चांदनी पास आई तो राहेल ने चुटकी ली। उसे छेड़ा और बोली,

‘देख लिया जी भर के?’

‘हां।’

‘कैसा लगा? पसंद आया?’

‘नहीं।’ चांदनी ने भी वैसा ही उत्तर दिया तो मधु बोली,

‘लगता तो ईसाई है।’

‘हां, लेकिन मछलीमार है।’

‘यीशु मसीह के शिष्य भी तो मछलीमार ही थे।’

‘हां थे, लेकिन बहुत अंतर है, गलील के सागर के मछुआरों और नदी के मछलीमारों में।’ चांदनी ने उत्तर दिया।

बाद में चांदनी हिमासारा के नज़ारे देखकर वापस अपने शहर में आ गई। नदी वाली घटना और उस युवक के द्वारा प्यारी बांसुरी की धुन पर मसीही गीत बजाने वाले उस युवक का ध्यान भी उसके मानसपटल पर से धीरे-धीरे दो-एक दिनों में ही साफ भी हो गया; लेकिन बांसुरी की उस प्यारी और सुरीली आवाज़ को भी चांदनी भूल सकी, इसमें अवश्य ही सन्देह था।

फिर जुलाई में कॉलेज खुले। नया सत्र आरंभ हुआ। चांदनी अपना शहर छोड़कर, एक मसीही कम्पाऊंड में ही मिशन की एक खाली पड़ी कोठी में रहने लगी। यहां भी उसके रहने का प्रबंध उसके पिता के नाम पर ही हो सका था। मिशन बंगले में रहते हुये चांदनी कॉलेज जाने लगी और अपनी पढ़ाई में व्यस्त भी हो गई। पर एक दिन अचानक से उसने हिमसारा के किनारे उस बांसुरी बजाने वाले युवक को कॉलेज में किताबें पकड़े हुये देखा तो खुद को संभाल नहीं सकी। वह युवक जल्दी-जल्दी अपनी किसी कक्षा में जा रहा था। चांदनी ने शीघ्र ही उस युवक को टोका। वह बोली,

‘ऐ, हलो, ज़रा सुनिये तो?’ कहते हुये चांदनी उसके सामने अचानक से आई तो वह युवक भी आश्चर्य से अपने स्थान पर ठिठक कर खड़ा हो गया और चांदनी का मूंह ताकने लगा। तभी चांदनी ने उससे कहा कि,

‘मैं अगर भूलूं न तो आप वही तो नहीं जो एक दिन शाम के समय हिमसारा पर मछली की बंसी पानी में डाले हुये बेहद प्यारी बांसुरी बजा रहे थे?’

‘?’ चांदनी के कथन पर वह युवक थोड़ा चौंका पर गंभीरता से उसका चेहरा ताकने लगा। तभी चांदनी फिर से बोली,

‘मैं ठीक कह रही हूं न?’

‘आपको कैसे मालुम?’ उस युवक ने आश्चर्य से पूछा।

‘मैं भी उसी दिन हिमसारा पर घूमने गई हुई थी, तभी आपको नदी के किनारे बैठे हुये और बांसुरी बजाते हुये देखा था।’

चांदनी की बात सुनकर वह युवक हल्के से मुस्कराया, फिर बोला,

‘आपने मुझे वहां पर देखा तो था, पर बोली कुछ भी नहीं।’

‘हिम्मत ही नहीं हुई थी। एक अनजान से गुफ्तगू करने की। फिर किसी का क्या भरोसा। किसी के माथे पर तो नहीं लिखा होता है कि वह कौन है?’ चांदनी बोली तो वह युवक बोला,

‘चलिये मैं बताता हूं। मेरा पूरा नाम सूरज ज्योति प्रकाश है। मेरे पिता रेव्हरेंड ज्योति प्रकाश बदरिया कस्बे के एक छोटे से चर्च के कारगुजार हैं। दो माह पहिले मेरा टयूबरक्लोसिस का टेस्ट पॉज़ीटिब निकला था। डाक्टर ने अच्छी हेल्दी प्रोटीन डाइट खाने को बोला है। पापा की कारगुज़ारी की छोटी सी तनख्वाह में मेरी दवाइयों का खर्च तो जैसे-तैसे पूरा हो जाता है, लेकिन हेल्दी डाइट में रोजाना मीट और मछली नहीं खा सकता हूं। इसलिये हिमसारा पर मछली पकड़ लेता हूं, और कभी-कभार दो एक कबूतर मार कर अपना काम चला रहा हूं।’

सूरज ने अपने बारे में बताया तो चंादनी बड़ी देर तक कुछ भी नहीं बोली। वह चुप ही बनी रही तो सूरज ने आगे कहा,

‘अच्छा, अब मैं चलता हूं। मेरी क्लास शुरू हो चुकी है।’

उपरोक्त पहली मुलाकात के पश्चात, चांदनी प्राय: ही सूरज को कॉलेज में मिलती रही। सूरज चांदनी को अच्छा लगा। उसका स्वाभाव, कम बोलना और अपने ही काम तथा उत्तरदायित्वों तक सीमित रहना, जैसे उसकी आदत में शामिल था। वह उससे बोलती थी। बातें करती थीं। वह उसे पसंद था और अच्छा भी लगता था, लेकिन इतना सब कुछ होने के पश्चात भी चांदनी के बजूद ने कभी भी उसको सूरज के तंग दायरों में देर तक खड़े रहने की इजाजत नहीं दी। सूरज की हालत और पारिवारिक स्थिति ने चांदनी को यह बताने में कोई भी झिझक महसूस नहीं होने दी कि सूरज चाहे कितना भी भला लड़का क्यों न हो, चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न बन जाये, पर आखिरकार वह उस गरीब पादरी कारगुजार का ही लड़का है कि जहां की सरहदों पर उसके पिता के हुक्म सदा राज्य किया करते हैं।

फिर एक दिन चांदनी को यह भी महसूस हो गया कि, हरेक दिन उसका सूरज से मिलना, रोजाना कॉलेज आना और जब देखो तब ही उसका सूरज से हंसते खिल-खिलाते हुये बातें करने का नतीज़ा; सूरज के दिल में अपने उस प्यार का निमंत्रण देना हुआ कि जिसके बारे में उसने कभी भी सोचा तक नहीं था। सूरज की आंखों में छिपी हुई चांदनी की वह ठंडक जो सूरज की रश्मियों को अब छेड़ने लगी थी, उसको चांदनी स्पष्ट महसूस कर रही थी। सूरज उसको चुपचाप देखने लगा था। देखकर गंभीर और खोने लगा है। उसकी आंखों में चांदनी के अक्श को सदा अपना बनाने के लिये एक पूरा कैनवास तैयार हो चुका है। इस हकीकत को चांदनी ने तब जाना, जब कि अब तक बहुत देर हो चुकी थी। वह जान गई थी कि सूरज के उसकी तरफ बढ़े हुये कदमों को अब वापस लौटाना सहज नहीं था। फिर एक दिन चांदनी को जिस बात का भय था, वही हो गया। एक समय पर सूरज ने चांदनी से कह ही दिया। वह अत्यन्त ही बोझिल आवाज़ में चांदनी से बोला कि,

‘चांदनी, कभी मैंने आरंभ में सोचा भी नहीं था कि, मैं कभी भी किसी की प्यार की हसरतों में जकड़कर उसकी गुलामी करने लगूंगा। डाक्टर ने मुझको बांसुरी बजाने के लिये मना किया है। उनका कहना है कि बांसुरी बजाने से फेफड़े खराब होते हैं, लेकिन तन्हाइयों में डूबी हुई मेरी बांसुरी की आवाज़ अब केवल चांदनी को ही पुकारा करती है। अगर तुम नहीं सुनोगी तो मेरे फेफड़े सदा के लिये खराब हो जायेंगे, और सूरज हमेशा के लिये डूब जायेगा।’

‘?’

सूरज के गले से निकले हुये दर्द भरे शब्द चांदनी को अपने दामन में समेटने के लिये बेताब हो चुके हैं, उससे अपने प्यार की हसरतों का तकाज़ा कर रहे हैं; सुनकर चांदनी दंग रह गई। रोज़ाना की आपसी मुलाकात का अंजाम इस हद तक पहुंच जायेगा? नौबत यहां तक भी आ जायेगी? सुनकर, चांदनी के पैरों से जैसे सारी ज़मीन ही खिसक गई। सूरज उसको प्यार करे, इससे पहले वह उसके लिये एक बीमार, कमज़ोर और लाचार लड़का है। उसका आवश्यकता से अधिक हर वक्त सोचना, उसके स्वास्थ्य के लिये अच्छा भी नहीं है। उसने सूरज को अपने करीब लाने में जो गलती की है, उससे ज्यादा अच्छा उससे दूर हो जाना ही बेहतर होगा। अपने मन की विचार धाराओं में इस बात को बसाये हुये, चांदनी सूरज को कोई भी उत्तर दिये चुपचाप उसके सामने से चली गई। फिर कई दिनों तक वह उसके सामने भी जानबूझ कर नहीं आई। सूरज से वह दूर ही बनी रही। सूरज ने उससे बात करनी चाही, लेकिन चांदनी ने उसे अवसर ही नहीं आने दिया। नतीजा; सूरज निराश होने लगा। अपने प्रति चांदनी की आंखों में बसी हुई निर्लिप्तता का वह कोई ठोस कारण तो नहीं जान सका, पर इतना जरूर समझ गया था कि चांदनी की उसके प्रति पलायनता अवश्य ही जारी हो चुकी है। वह उससे दूर हटने लगी है। अब वह उसमें कोई दिलचस्पी भी नहीं ले रही है। सूरज के लिये इतना ही इशारा काफी था। वह समझ गया कि उसने जो प्रेम का निमंत्रण कभी चांदनी को दिया था, उसका सन्देश ना में ही है। कारण; उसकी गरीबी, कमजोरी, पारिवारिक स्थिति, उसकी बीमारी, चाहे कुछ भी हो सकता है। नाज़ों और ठाठों में पली हुई एक बिशप की अमीर लड़की, किसी गरीब साइकिल चलाने वाले पादरी के लड़के से एक बार को इश्क के पेंतरे जरूर खेल ले, लेकिन उसे जीवन भर का अपना साथी क्यों बनायेगी? यह कोई भी ऐसी बात नहीं थी कि जिसे सूरज न समझ सका हो। वह समझ गया था कि किस प्रकार चकोर पक्षी के प्यार की कराहटें चांदनी के अक्श को पाने के लिये, उसके पत्थरों से टकरा-टकराकर अपना बजूद समाप्त कर देती हैं। किस तरह से नाज़ुक फूलों की महकार का अस्तित्व मौसमी हवाओं के एक ही झोंके में सिमट कर विलीन हो जाता है। आज के जमाने की यही रीति है, रिवाज हैं और, शायद चलन भी।

सूरज का दिल टूट गया। इस प्रकार कि पल भर में ही सारा संसार उसे काला दिखने लगा। हर लड़की में उसे चांदनी की बेवफाइंयां नज़र आने लगी। वह फिर से अपना दुख, अपना हाल बांसुरी की दर्दीली धुनों में सुनाने लगा। और तब जब वह कॉलेज में ही, खेल के मैदान में बैठा हुआ बांसुरी बजा रहा था कि, चांदनी उसकी आवाज़ को सुनकर उसके पास आई और छूटते ही बोली,

‘सूरज? अब हर वक्त बांसुरी बजाते रहते हो? तुम्हें मालुम है कि इसका बजाना तुम्हारे स्वास्थ्य के लिये अच्छा नहीं है?’

‘जानता हूं।’ सूरज ने चांदनी को एक पल निहार कर उत्तर दिया तो वह बोली,

‘जब जानते हो तो फिर क्यों बजाते हो?’

‘ताकि, जल्दी ही मर जाऊं।’

‘?’ सूरज के मुख से ऐसी बात सुनकर चांदनी अपना मुंह फाड़कर ही रह गई। वह उसे कई क्षणों तक अपलक घूरती रही। लेकिन बाद में बोली,

‘जानते हो कि तुम क्या कह रहे हो?’

‘क्या जानता हूं? तुम नहीं जानती हो कि मैं बा्ंसुरी क्यों बजाता हूं?’

‘मुझे सुनाने के लिये? है ना?’

‘?’ खा़मोशी।

सुनकर सूरज ने अपना सिर झुका लिया तो चांदनी आगे बोली,

‘क्या समझते हो तुम अपने आपको? मुझे प्यार करके मुझ पर एहसान कर रहे हो क्या? फिर यह भी जरूरी नहीं है कि तुम जिसे चाहो वह भी तुम पर मरने लगे?’ कहते हुये चांदनी बिफर गई तो सूरज उसका क्राध में बढ़ता हुआ लाल चेहरा देखने लगा। तब ही चांदनी ने आगे कहा कि,

‘प्यार, मुहब्बत और इश्क की बाजि़यां खेलने से ही इंसान को जीवन में सब कुछ नहीं मिल जाता है। अपने आपको तो देखो पहले? तुम्हारी दशा क्या है? बजाय इसके कि, पहले अपना कैरियर बनाओ, अपना स्वास्थ्य संभालो, अपने आपको ठीक करो, अपने पैरों पर खड़े होकर अपने मां-बाप और परिवार की सहायता करो; बेमतलब में ही दिल का रोग लगा बैठे हो? तुम क्या समझते हो कि इतना सब कुछ देखते हुये भी मैं सब कुछ भूलकर तुम्हारे बदन से लिपट जाऊंगी क्या?’

‘चांदनी?’ सूरज चिल्ला पड़ा तो चांदनी भी चीख़ी,

‘इतना चिल्लाओ मत। शोर मचाना मुझे भी आता है।’ चांदनी ने गंभीरता से कहा तो सूरज चुप हो गया।

उसके बाद दोनों के मध्य काफी देर तक चुप्पी बनी रही। दोनों में से कोई भी कुछ नहीं बोला। सूरज से जब नहीं रहा गया तो वह चांदनी से बगैर कुछ भी कहे, वहां से उठ कर चला गया। चांदनी उसे मूक बनी बड़ी देर तक जाते हुये देखती रही। उसके पश्चात सूरज तीन दिनों तक कॉलेज नहीं गया। चांदनी की आंखें उसे कॉलेज में हर स्थान पर तलाशती रहीं। जब वह नहीं मिला तो वह एक दिन पता लगाते हुये उसके घर जा पहुंची। सूरज की मां ने दरवाज़ा खोला तो चांदनी को देखकर वह पहचान नहीं सकी। सूरज की मां ने उसे बताया कि, बाहर दरवाज़े पर कोई बड़ी प्यारी लड़की तुझे पूछ रही है। क्या तू उसे जानता है?’ सुनकर सूरज बाहर गया तो चांदनी को यूं अचानक से अपने दरवाज़े पर खड़े देख चौंक गया। सूरज ने घर में आने को उससे बोला तो चांदनी ने मना कर दिया तो सूरज उससे बोला,

‘बहुत समझदार हो। जब तुमको मेरे घर में आना ही नहीं है तो अभी से न आने की प्रेक्टिस करना अच्छी बात है।’

‘?’

उसकी इस बात पर चांदनी ने उसकी आंखों में गौर से झांक कर देखा, और फिर बोली,

‘जो कुछ भी कहना है, वह जी-भर के कह लो। बाद में मैं तुम से कुछ बोलूंगी।’

‘मेरे पास अब कुछ भी कहने को नहीं बचा है। अब तुम ही कहो, जो भी कहना है।’ तब चांदनी ने उससे कहा कि,

‘मेरे यहां रहने से तुम्हारी परेशानी बढ़ जाती हैै, इसलिये मैं यहां से जा रही हूं, और अब कभी भी तुम्हारे रास्ते में नहीं आऊंगी। अगर तुम्हें कुछ हो गया तो मैं अपने आपको कभी मॉफ भी नहीं कर पाऊंगी।’

सूरज उससे कुछ भी कहता, उससे पहले ही चांदनी तुरन्त ही उसके सामने से चली भी गई, और वह उसे जाते हुये केवल देखता ही रहा।

चांदनी ने जैसा सूरज से उसके दरवाज़े पर कहा था, वैसा ही हुआ भी। क्रिसमस की छुट्टियों के बाद चांदनी सचमुच कॉलेज में नहीं आई। वह डॉयोसीज़ के बिशप की लड़की थी। उसके पिता ने उसकी बाकी की पढ़ाई के लिये जैसा भी प्रबन्ध किया, वह तो सूरज को नहीं मालुम हुआ, पर हां, चांदनी अपनी वार्षिक परीक्षा के दौरान अवश्य ही उसे दिखाई दी थी। इस प्रकार कि, चांदनी से आमना-सामना होने के बाद भी, सूरज उससे कोई भी बात नहीं कर सका था। वह भी समझ गया था कि शायद चांदनी ही उससे बात नहीं करना चाहती थी। यह सोचकर सूरज ने अपने दिल पर पत्थर रख लिया। सालाना परीक्षायें समाप्त हुई। कॉलेज बंद हुये। चांदनी भी परीक्षायें देकर अपने घर लौट गई। फिर धीरे-धीरे समय बदला। तारीखे़ आगे बढ़ी। कई मौसम आये और चले भी गये। सूरज ने भी चांदनी की स्मृतियों को अपने जीवन की एक कभी भी न भूलने वाली घटना के समान हृदय के किसी कोने में सदा के लिये सुरक्षित कर लिया। समय आगे बढ़ा और बढ़ते हुये समय के इन चक्रों में एक-एक दिन निकल कर पन्द्रह वर्ष बीत गये। इतने वर्षों में सूरज का क्या हुआ, वह कहां गया, आदि, इस प्रकार के प्रश्नों का उत्तर चांदनी ने कभी भी जानने की कोशिश नहीं की। एक प्रकार से वह सूरज को सदा के लिये भूल भी गई। सूरज ने भी अपनी पढ़ाई पूरी की। मेहनत की। हिम्मत और साहस से काम लिया। अपना पूरा इलाज करवाया और एक दिन नौकरी के लिये आवेदन पत्र दिया तो एक अच्छी कम्पनी में उसे चार्टर लेखाकार की अच्छी नौकरी मिल गई। नौकरी मिली तो उसे अपना शहर छोड़कर दूसरे शहर जाना पड़ा। सूरज का काम देखकर, उसका बॉस जो खुद भी लगभग उसी की उम्र का था, उसको बहुत पसंद करने लगा। तीन साल के कार्यकाल में ही उसने सूरज को अपनी कंपनी का मुख्य लेखाकार बना दिया।

इतने वर्षों में सूरज हांलाकि, चांदनी को भूला तो नहीं था, पर उसकी स्मृतियों के कारण परेशान भी नहीं होता था। लेकिन एक दिन जब वह मोटर सायकिल से अपने काम पर जा रहा था तो सूनसान मार्ग पर एक कार की दुर्घटना को देखकर उसे रूकना पड़ा। पास जाकर देखा तो कोई युवा लड़की कार के स्टयरिंग से सिर टिकाकर बेहोश पड़ी थी। कार की दुर्घटना का कारण क्या था? वह यह तो नहीं जान सका था, पर उसने लड़की का जब चेहरा देखा तो आश्चर्यचकित रह गया। कार की दुर्घटना में घायल और बेहोश पड़ी लड़की कोई अन्य नहीं, वही चांदनी थी कि जिसकी यादों के सहारे उसने अपना जीवन काटने की सौगध्ं खा ली थी। चांदनी के सिर और हाथ की कलाई से खून बह रहा था। खून बहने का मुख्य कारण, उस लड़की के हाथ में पहनी हुई सोने की वह मोटी चूड़ी थी जो दुर्घटना के समय किसी प्रकार उसके शरीर में जा घुसी थी। सूरज ने किसी तरह से चांदनी को संभाला। उसके हाथ की सोने की चूड़ी को काटकर अलग किया और उस चूड़ी को अपनी पेंट की जेब में रख लिया। फिर किसी प्रकार से वह उसको शीघ्र ही अस्पताल ले गया। अस्पताल के आपात्कालीन कक्ष में उसने चांदनी को भरती कराया, और शीघ्र ही अपने काम पर चला गया। यह सोचकर कि वह दूसरे दिन जाकर चांदनी से मिल भी लेगा और उसकी सोने की चूड़ी भी वापस कर देगा। मगर जब वह काम पर गया तो उसे पता चला कि उसे आज ही दूसरे शहर अपने कार्यालय के काम से जाना होगा, क्योंकि उसके बॉस किसी इमरजेंसी के कारण नहीं जा सकते हैं। सूरज को जाना पड़ा। दूसरे दिन जब वह लौटकर आया तो उसने सोचा था कि कार्यालय में अपनी हाजिरी लगाकर, और बॉस से कहकर वह कुछ देर के लिये अस्पताल चला जायेगा और चांदनी को भी देख आयेगा। परन्तु जाने से पहले ही उसके बॉस केनन स्टीमर ने उसे अपने कार्यालय में बुलाया। उसे बैठाया, चाय मंगवाई और अपने सिर को पकड़ते हुये सूरज से बोले कि,

‘मिस्टर सूरज, पता नहीं क्यों मैं आप पर बहुत विश्वास करता हूं। आपको अपने ही परिवार का एक नेक इंसान समझने लगा हूं। इसीलिये आपको बताकर खुद को हल्का कर लेना चाहता हूं। कल एक बहुत ही विशेष घटना मेरे जीवन में हुई है। मैं जिस लड़की से विवाह करने जा रहा हूं, या यूं समझ लीजिये कि जिससे एक प्रकार से विवाह की बात पक्की हो चुकी है, वह कल अपनी कार की दुर्घटना में मरते-मरते बची है। वह तो कोई भला इंसान समय पर आ गया जिसने उसको समय पर अस्पताल पहुंचा दिया था, वरना तो मेरी मंगेतर की जान बचनी बहुत ही मुश्किल थी। मैंने इसी एक ख़ास काम से आपको बुलाया है कि, जिस भले और नेक इंसान ने मेरी होने वाली पत्नि की जान बचाई है, मैं उसको अपनी तरफ से पचास हजार रूपयों का विशेष इनाम देना चाहता हूं। आप जाकर मेरी मंगेतर की इस तस्वीर के साथ अखबार में विज्ञापन दे दीजिये, कि वह भला इंसान मेरी मंगेतर की सोने की दूसरी चूड़ी के साथ मुझसे या फिर मेरी मंगेतर से मिले।’

कहते हुये केनन स्टीमर ने सूरज को चांदनी की तस्वीर दिखाई तो सूरज के हाथों से रहे-बचे आस के तोते भी उड़ गये। किस्मत ने कितना बेहूदा मजाक उसके साथ किया था। वर्षों बाद चांदनी उसे वापस मिली भी तो इस अनोखे अंदाज में कि ना तो वह हंस सकता था और ना ही रो सकता था? मन ही मन अपने मुकद्दर की लकीरों को कोसता हुआ सूरज कार्यालय से उठ आया। साथ ही चांदनी से दुबारा मिलने की उसकी इच्छा भी अपने आप ही किसी कब्र पर पड़ी हुई मिट्टी के समान, बारिश पड़ते ही सदा के लिये दब गई।

फिर एक तरफ सूरज अपने आप में ही जलने लगा, तो दूसरी तरफ चांदनी का दिल खुद-ब-खुद ही उस अनजान युवक के प्रति अपार श्रदधा से तो भरा ही, साथ ही उसकी अनजानी छवि भी उसके दिल में एक विशेष महत्वपूर्ण स्थान बनाकर सुरक्षित हो गई। होश में आने के पश्चात डाक्टरों ने उसे यह तो बता दिया था कि कोई लंबा, दुबला सा बेहद गंभीर युवक उसको बेहोशी की हालत में अस्पताल में छोड़ गया था और दूसरे दिन फिर से आने की बात भी कह गया था कि उसके हाथ की सोने की चूड़ी जो लगभग पच्चीस हजार रूपयों की कीमत की होगी, वह स्वंय ही उसको अपने हाथ से वापस करेगा। लेकिन वह युवक फिर कभी भी वापस नहीं आया था। उसके न आने का कारण क्या हो सकता था? चांदनी बहुत सोचने के बाद भी कुछ निर्णय नहीं ले सकी थी। यदि उस युवक को चूड़ी का कोई लालच आ गया हो, तौभी यह बात मानने योग्य नहीं थी। वह यदि चाहता तो उसके हाथ की दूसरी चूड़ी, गले की सोने की चेन, कीमती घड़ी और पर्स में से नगदी आदि सब कुछ ले सकता था। मगर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया था। इसके साथ ही उसके मंगेतर ने उस युवक के लिये पचास हजार रूपयों का इनाम भी घोषित कर दिया था पर, इसके बाबजूद भी उस युवक ने कभी भी अपनी शक्ल तक नहीं दिखाई थी? चांदनी दिन-रात इसी तरह से सोचती रहती थी। सोचती थी और अपने आपको परेशान किये रहती थी। उसकी परेशानी का जो मुख्य कारण था कि अनजाने में ही एक अपरिचित और अनदेखा युवक उसके दिल के द्वार पर दस्तकें देने लगा था। वह कौन हो सकता है? कैसा भी कोई क्यों न हो, इतना सब कुछ होने के बाद, कोई भी क्यों न होता, कम से कम एक बार उससे मिलने तो आता ही? चांदनी के दिल की हसरत, उस अनजान युवक से मिलने और देखने की ख्वाइश, उसके दिल में ही खुदक-खुदक कर शांत हो गई। ना ही उसकी चूड़ी वापस आई और ना ही वह अनजान युवक उसको कभी भी देखने आ सका। इंतजार और उस युवक को एक बार देखने की ललक में चांदनी के दस महिने और समाप्त हो गये। उसके विवाह का समय आया तो सूरज के बॉस की तरफ से सूरज को भी निमंत्रण दिया गया। सूरज, जो अब तक चांदनी के बारे में सोच-सोच कर खुद ही जल कर ख़ाक हो चुका था, वह किसी से क्या कहता? किससे अपने दिल की दास्तां सुनाता फिरता? उसकी दशा तो उसके गले में अटके हुये मछली के उस कांटे के समान हो चुकी थी कि जिसे ना तो वह बाहर ही निकाल सकता था और ना ही निगल सकता था। एक तरफ उसका वह बॉस केनन स्टीमर था कि जिसके एहसानों की वह कभी भी नमकहरामी नहीं कर सकता था और दूसरी तरफ उसका वह प्यार था कि जिसकी सारी बाजियां जीतने के पश्चात भी उसको छूने का उसे अब कोई अधिकार नहीं था। सूरज डूबने के बाद रात आती है। रात में केवल चांदनी दिखाई देती है। वह चांदनी कि जिस पर सूरज का कोई भी अधिकार नहीं होता है। सूरज जानता था कि उसने चांदनी को फिर एक बार हमेशा के लिये खो दिया था। पहली बार अपनी कमज़ोरियों और कमियों के कारण और दूसरी बार फ़र्ज़ और कर्तव्य की वेदी पर स्वाहा होने के कारण?

जीवन की पिछली घटनाओं को दोहराते हुये चांदनी की आंखें फिर से भर आईं। कितना बुरा उसके नसीब का हश्र हुआ है। अब किस मुंह से वह सूरज के सामने आ सकेगी? सूरज ने अपने एक ही पग में प्यार की सारी रस्में जीत लीं थीं, और एक वह है जो अभी तक कस्में-वादों के गुणा-भाग में उलझी रही थी।

तभी चांदनी के पति केनन स्टीमर ने घर में कदम रखा और आते ही निराश मन से थका हुआ सा सोफे पर धंस गया। चांदनी ने अपने पति को देखा, उसका उतरा हुआ सा मुंह देखा, फिर फ्रिज से ठंडा पानी का गिलास देते हुये बोली,

‘आपकी तबियत तो ठीक है न?’

‘हां, मैं बिल्कुल ठीक हूं। लेकिन मेरी एक बात समझ में नहीं आ सकी।’

‘कौन सी बात?’ चांदनी ने आश्चर्य से पूछा तो उसके पति ने उसको बताया। वह बोला,

‘मेरा एकाऊटेंट सूरज ज्योति प्रकाश; पता नहीं उसको मुझसे क्या तकलीफ हुई कि वह अचानक से, मुझसे मिले बगैर ही, मेरी मेज पर अपना रेज़ीनेशन रख कर, अपनी नौकरी छोड़ कर चला गया है।’

‘?’

चांदनी के सिर पर अचानक ही पहाड़ गिर पड़ा। वह कुछ भी नहीं बोली। फिर कहती भी क्या। वह जानती थी कि उसके सिर पर सदा चमकने वाला सूरज अब सदा के लिये डूब चुका है। वह सूरज जो अपनी मर्जी से, उसकी मर्जी के बगैर ही, उसके जीवन में रोशनी भरने की तमाम कोशिशें करता रहा था और जिसकी उसने कभी भी कोई कद्र नहीं की थी, जाते-जाते भी, डूबने से पहले ही उसके दिल में वह रश्मि छोड़ गया है कि जिसके प्रकाश में वह हमेशा उसका अक्श देखती रहेगी।
समाप्त।