गंगा इसी तरह कचरा बीनने की ज़िद करती रही पर शालू ने कभी उसकी एक ना सुनी। देखते-देखते 12 साल गुजर गए। हर रोज़ की तरह आज फिर गंगा ने वही कहा, "वो देख अम्मा कितना सारा कचरा दिखाई दे रहा है। आज तो तू बैठ अम्मा मैं ही जाऊंगी।"
"नहीं गंगा ..."
"अरे अम्मा देख कितनी बड़ी हो गई हूँ। तुझसे ज़्यादा लंबी भी हो गई हूँ। अब सब सीखने दे मुझे, साइकिल चलाना भी फिर तुम दोनों पीछे बैठना मैं तुम दोनों को खींचूंगी।"
"बहुत ज़िद्दी है तू, रोज़ एक ही पहाड़ा पढ़ती रहती है; जा ले आ।"
शालू की हाँ सुनते ही गंगा ख़ुश हो गई और गाड़ी से उतरकर उछलती कूदती कचरा लेने के लिए जाने लगी।
आज सुबह से ही मौसम का मिज़ाज बदला हुआ था। बादल उमड़-घुमड़ कर अपना नृत्य दिखा रहे थे। अलग-अलग आकृति में यहाँ से वहाँ दौड़ रहे थे। गंगा भी बादलों की तरह इठलाती हुई मौसम से ख़ुश होकर दौड़ती हुई कचरे की तरफ़ जा रही थी। अचानक ही ज़ोर से बिजली कड़कने की आवाज़ आई और इस आवाज़ के बीच ही एक ज़ोर के धमाके की भी आवाज़ आई।
वह कचरे के ढेर के पास पहुँचे उससे पहले एक अनियंत्रित कार जिसे एक व्यक्ति नशे की हालत में तेजी से खाली सड़क पर दौड़ा रहा था उसने शालू और मोहन की गाड़ी को ज़ोर की टक्कर मारी। यह टक्कर इतनी ज़ोर की थी कि शालू और मोहन फुटबॉल की तरह उछल कर सड़क के बीचों-बीच जा गिरे। वहीं दोनों का सर फट गया खून से सड़क लाल हो गई। पास-पास गिरे हुए उन दोनों का खून देखकर ऐसा लग रहा था, मानो वह मर कर भी आपस में मिल रहे हैं। दोनों के हाथ एक दूसरे से मिल रहे थे।
धमाके की आवाज़ सुनकर गंगा ने पलट कर देखा तो उसके माता-पिता उसकी आँखों के सामने फुटबॉल की तरह उछल कर गिरते हुए उसे दिखाई दिए और उनका सर फटते हुए भी उसने अपनी आँखों से देखा। वह ज़ोर से चीखी, "अम्मा, बापू..."
उसकी आँखें मानो जड़ हो गई थीं, जिनमें कोई हलचल नहीं थी। इसी बीच ज़ोर की हवा चलना भी शुरू हो गई। गंगा दौड़ती हुई चली आ रही थी। कार चालक रफु चक्कर हो चुका था। गंगा की कचरे की गाड़ी लुड़कती हुई सड़क के किनारे से टूटी फूटी हालत में पड़ी अपने मालिक की मौत को देख रही थी। लंबा साथ था उनका, वह ख़ुद भी तो घायल थी।
गंगा अपने माता-पिता के पास पहुँच गई। उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि यह क्या हो गया। अब वह क्या करे? कुछ भी हो आख़िर थी तो वह 12 साल की नन्हीं-सी जान, उसकी आँखों के सामने हँसते बोलते उसके माता-पिता लाश बनकर सड़क पर पड़े थे। कचरे की गाड़ी से कचरा उड़कर उन दोनों के शरीर पर इस तरह आकर गिर रहा था मानो उन्हें कफन ओढ़ा रहा हो। गंगा अब भी स्तब्ध थी, उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया था।
अब तक उस धमाके की आवाज़ सुनकर कुछ लोग दुर्घटना स्थल पर एकत्रित हो गए थे। कुछ ही समय में हवा शांत हो गई। उमड़-घुमड़ करते बादल भी थम गए। तूफान तो थम गया पर गंगा का परिवार उजाड़ गया। किसी ने पुलिस को फ़ोन किया। मोहन और शालू के पार्थिव शरीर को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया।
गंगा के चाचा, मामा, बुआ, मासी अब तक सभी को इस घटना की जानकारी मिल चुकी थी। सब आस-पास के गाँव में ही रहते थे। तीन चार घंटे के बाद मोहन और शालू का पार्थिव शरीर घर लाया गया।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः