और पहली बार एक खूबसूरत नवयुवती के पास बैठना सुखद एहसास था।वह नवयुवती मेरी पत्नी बन चुकी थी।लेकिन अभी हम एक दूसरे से अपरिचित ही थे।पति पत्नी बन चुके थे लेकिन औपचारिक परिचय नही हुआ था।
और पहली बार ही उसने बैठने का आदेश सुना दिया था।और कुछ ना नुकर के बाद मैं बैठ गया और बाहर औरते गीत गा रही थी।उसके बदन से उठ रही भीनी भीनी सुगंध मेरी नाक के जरिये मेरी सांसों में घुल रही थी।। और रात को बारह बजे बाद तक यह कार्यक्रम चलता रहा।बाद में उसे औरते छत पर ले गयी थी।
उन दिनों हमारे गांव में बिजली नही थी।इसलिए गर्मी के मौसम में बाहर सोना पड़ता था।सभी औरते छत्तों पर सोई थी। और आदमी बाहर चबूतरे पर।अंधेरी रात थी।पत्नी औरतों के बीच बैठी थी।बाते कर रहे थे।सुशीला जीजीबाई बार बार कह रही थी,"जा सो जा।अब इसे भी आराम करने दे।थक गई होगी।
और मुझे उठना पड़ा था.।अगले दिन यानी 26 जून
सुबह से ही तैयारी होने लगी थी।हमारे खानदान के कुल देवता एक खेत पर है और हमारे अपने परिवार के दूसरे खेत पर है।उससे पहले जुआ खेलने का पुराना रिवाज है।पता नही कहा कहा होता है।लेकिन हमारे खानदान में यह परंपरा है।सब औरते नहा धोकर तैयार हो गयी थी।हम दूल्हा दुल्हन यानी मैं और पत्नी को चोक में बैठा दिया गया।और एक मिट्टी के बर्तन में हल्दी घोलकर पानी रख दिया गया।उसमें दुल्हन की और मेरी अंगूठी डाल दी गयी थी। मुझे और पत्नी को उसमें हाथ देकर उसे खोजना था।औरते बच्चे सब मेरे पक्ष में थे।दुल्हन के पक्ष में तो हमारी तरफ से ही कोई बोलने वाला था।और पहली बार मे जीत गया।मेरे हाथ को पानी मे बढ़ते देखकर उसने अपने हाथ की उंगलियां ढीली छोड़ दी।मुझे लगा यह नाइंसाफी है।और
मैने उसे जितने दिया।मैं नही चाहता था औरतों के बीच मे घर मे नई आयी लड़की को अटपटा महसूस हो।
और जुए की रश्म पूरी होने के बाद हम देवताओं को ढोक देने के लिए गए थे।खेत पर जोड़े से गांठ बांधकर बाजे के साथ जाना पड़ता है।औरते गीत गाती हुई चलती है।करीब दो किलोमीटर पर एक खेत है।पूरा चक्कर। लगा कर आने पर करीब छः किलोमीटर के करीब हो जाता है।उन दिनों तो गांव में साधन नही थे।आज तो साधन है फिर भी देवतो के पास पैदल ही जाना पड़ता है।और जून का महीना पूरी गर्मी।ऐसे में धूप में पैदल चलना।मेरी तो आदत थी।लेकिन पत्नी को शायद पहली बार चलना पड़ रहा था।लेकिन चलना तो था ही।
और पहले हम कालू बाबा के गए थे।
कालू बाबा के नाम का चबूतरा बना हुआ है।यह बालावत खानदान का है।इसर222रEE3स1के बारे में एक कहानी है,जो इस तरह है।
जिस खेत मे कालू बाबा का स्थान बना हुआ है,उसके बारे में एक कथा प्रचलित है।गांव के पुराने बुजर्ग भी कभी इसका जिक्र कर देते है और सबको मालूम है।
अब मेरे तीनो ताऊजी नही रहे।बीच वाले ताऊजी देवी सहाय जिनका जिक्र में पहले भी कर चुका हूँ।वह कुंवारे रहे और वह ही खेती की देखरेख करते थे।जब हम छोटे थे।तब वह सुबह घर से निकलते और सांझ ढले वापस घर आते थे।