पं० जवाहरलाल नेहरू का गोरखपुर आगमन
बात सन् 1936 की है जब गीता वाटिका, गोरखपुर में एक वर्ष के
अखण्ड संकीर्तन का भाईजी ने आयोजन किया था। इस आयोजन में देश के बड़े-बड़े संतों एवं विशिष्ट व्यक्तियों ने भाग लिया था। उन दिनों पं० श्रीजवाहरलाल नेहरू का तेज-प्रताप बढ़ रहा था। राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिये उनके त्याग, बलिदान, कष्ट सहन की प्रशंसा हो रही थी। साईमन कमीशन के विरोध के प्रसंगमें, उनको और पण्डित श्रीगोविन्दबल्लभ पन्त को ब्रिटिश सरकार की ओर से जो पीड़ा पहुँचायी गयी थी, मार-पीट की गयी, वह लोगों के हृदयपर घाव कर गयी थी। लोगों की उनमें बहुत रुचि थी।
उस समय गोरखपुर तथा आस-पास के क्षेत्र में भयंकर बाढ़ आई थी जिसमें भाईजी ने तन-मन-धन से बाढ़ पीड़ितों की सहायता की। उस समय बाढ़ की दशा देखने पं० जवाहरलाल नेहरू भी गोरखपुर पधारे। उस समय कलेक्टर अंग्रेज थे एवं यह आशंका थी कि जो नेहरूजी को कार देगा उसकी कार जब्त कर ली जायेगी। ऐसी स्थितिमें कौन अपनी कार देने का साहस करता। बाबा राघवदास जी भाईजी के समक्ष उपस्थित होकर बोले–भाईजी, कार नहीं मिल रही है और इज्जत जा रही है। भाईजी के पास उस समय कार थी, बोले– कार ले जाइये। नेहरू जी उसी कारमें आस-पास के क्षेत्रोंमें गये और घूम-फिरकर भाषण देकर गोरखपुर लौट आये। उसी रात रामप्रसादजी सी० आई० डी० इन्सपेक्टर भाईजी कें पास आये और विनोद में कहने लगे–“आज आपने पण्डितजी को अपनी कार दे दी।” भाईजी ने उत्तर दिया--“हमने चोरी से नहीं दी।” उस समय बहुत से नेता भाईजी के पास ही ठहरते थे, यह बात सभी को मालूम थी। कलक्टर ने कहा –"हम जानते हैं कि भाईजी ने कार दी है पर हम कोई कार्यवाही नहीं करेंगे।" उनका विश्वास था कि भाईजी राजनीतिक आदमी नहीं हैं, प्रेमसे सबको ठहराते हैं। नेहरू जी संकीर्तन-महायज्ञ में आमंत्रित किये गये। वे यज्ञमें आये। उन्होंने यज्ञ मण्डपमें भगवान् को नमस्कार भी किया। उन्होंने पूछा– "क्या दिन-रात यह संकीर्तन होता रहता है ? ढोलक और झाँझ बजते रहते हैं ?" उन्हें उस समय तक इन बातों से इतना परिचय नहीं था। भाईजी ने उनके सामने भारतीय भक्ति-भाव एवं संकीर्तन की महिमापर प्रवचन किया। नेहरूजी ने आश्चर्यचकित होकर प्रवचन श्रवण किया एवं उससे प्रभावित होकर प्रशंसा करते हुए प्रस्थान किया।
पं० जवाहरलाल नेहरू का गोरखपुर आगमन
बात सन् 1936 की है जब गीता वाटिका, गोरखपुर में एक वर्ष के
अखण्ड संकीर्तन का भाईजी ने आयोजन किया था। इस आयोजन में देश के बड़े-बड़े संतों एवं विशिष्ट व्यक्तियों ने भाग लिया था। उन दिनों पं० श्रीजवाहरलाल नेहरू का तेज-प्रताप बढ़ रहा था। राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिये उनके त्याग, बलिदान, कष्ट सहन की प्रशंसा हो रही थी। साईमन कमीशन के विरोध के प्रसंगमें, उनको और पण्डित श्रीगोविन्दबल्लभ पन्त को ब्रिटिश सरकार की ओर से जो पीड़ा पहुँचायी गयी थी, मार-पीट की गयी, वह लोगों के हृदयपर घाव कर गयी थी। लोगों की उनमें बहुत रुचि थी।
उस समय गोरखपुर तथा आस-पास के क्षेत्र में भयंकर बाढ़ आई थी जिसमें भाईजी ने तन-मन-धन से बाढ़ पीड़ितों की सहायता की। उस समय बाढ़ की दशा देखने पं० जवाहरलाल नेहरू भी गोरखपुर पधारे। उस समय कलेक्टर अंग्रेज थे एवं यह आशंका थी कि जो नेहरूजी को कार देगा उसकी कार जब्त कर ली जायेगी। ऐसी स्थितिमें कौन अपनी कार देने का साहस करता। बाबा राघवदास जी भाईजी के समक्ष उपस्थित होकर बोले–भाईजी, कार नहीं मिल रही है और इज्जत जा रही है। भाईजी के पास उस समय कार थी, बोले– कार ले जाइये। नेहरू जी उसी कारमें आस-पास के क्षेत्रोंमें गये और घूम-फिरकर भाषण देकर गोरखपुर लौट आये। उसी रात रामप्रसादजी सी० आई० डी० इन्सपेक्टर भाईजी कें पास आये और विनोद में कहने लगे–“आज आपने पण्डितजी को अपनी कार दे दी।” भाईजी ने उत्तर दिया--“हमने चोरी से नहीं दी।” उस समय बहुत से नेता भाईजी के पास ही ठहरते थे, यह बात सभी को मालूम थी। कलक्टर ने कहा –"हम जानते हैं कि भाईजी ने कार दी है पर हम कोई कार्यवाही नहीं करेंगे।" उनका विश्वास था कि भाईजी राजनीतिक आदमी नहीं हैं, प्रेमसे सबको ठहराते हैं। नेहरू जी संकीर्तन-महायज्ञ में आमंत्रित किये गये। वे यज्ञमें आये। उन्होंने यज्ञ मण्डपमें भगवान् को नमस्कार भी किया। उन्होंने पूछा– "क्या दिन-रात यह संकीर्तन होता रहता है ? ढोलक और झाँझ बजते रहते हैं ?" उन्हें उस समय तक इन बातों से इतना परिचय नहीं था। भाईजी ने उनके सामने भारतीय भक्ति-भाव एवं संकीर्तन की महिमापर प्रवचन किया। नेहरूजी ने आश्चर्यचकित होकर प्रवचन श्रवण किया एवं उससे प्रभावित होकर प्रशंसा करते हुए प्रस्थान किया