Meri Chuninda Laghukataye - 2 in Hindi Short Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 2

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मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ - 2


क्रमांक 3

सोहनलाल
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बाहर झुलसा देने वाली चिलचिलाती धूप थी, बावजूद इसके तहसील में आवश्यक कार्य होने की वजह से वह घर से बाहर जाने की तैयारी कर रहा था।
भगवान की मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर उसने चारखाने वाला खादी का गमछा सिर पर लपेटा और बाहर निकल ही रहा था कि उसकी चौदह वर्षीया पोती अचानक सामने आ गई।
"दादू ! यह चारखाने का गमछा लपेटकर तो आप पूरे मुस्लिम लग रहे हो।" कहकर खिलखिलाते हुए वह घर के अंदर भाग गई।
"अरे बेटा, किसी कपड़े के इस्तेमाल से कोई हिन्दू- मुस्लिम नहीं हो जाता...और फिर मैंने यह गमछा तो खुद को धूप के प्रकोप से बचाने के लिए लिया है।" कहकर थैला अपने कंधे पर टांग वह निकल पड़ा।
लॉक डाउन के बाद दफ्तर खुलने की वजह से तहसील वाले शहर में लोगों की भारी भीड़ थी। अपना कार्य निबटाकर वह गाँव जानेवाली बस पकड़ने के लिए तेजी से चल रहा था कि अचानक उसका हाथ बगल से गुजर रही युवा महिलाओं की टोली में से किसी के जिस्म से छू गया।
इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, एक झन्नाटेदार थप्पड़ ने उसे दिन में तारे दिखा दिए। उसका गिरेबान पकड़े वह लड़की चिल्ला रही थी, "शर्म नहीं आती, इस उम्र में लड़की छेड़ते हुए ? घर में बहू बेटियाँ नहीं हैं क्या ?"
पल भर में ही तमाशबीनों की भारी भीड़ जमा हो गई। हंगामा बढ़ता देख एक नेता टाइप व्यक्ति सबको परे धकेलता हुआ उसके नजदीक पहुँचा और कसकर एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसे रसीद करता हुआ उसपर गालियों की बौछार कर दी।
हत्प्रभ सा वह चाहकर भी अपनी बेगुनाही के बारे में कुछ नहीं बता सका। उसके सिर पर बँधा चारखाने का वह खादी गमछा देखकर उस नेता टाइप व्यक्ति का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुँचा।
'जरूर यह कोई मुस्लिम ही है' सोचकर उसकी आक्रामकता और बढ़ गई।
"बोल, क्या नाम है तेरा ? मोहम्मद ?.....असलम ?....या सलीम ?" और हर सवाल के साथ उसके थप्पड़ों की गति और तेज हो जाती।
थप्पड़ों की बौछार झेल रहा वह व्यक्ति कुछ देर बाद असहनीय पीड़ा से बैठे बैठे ही एक तरफ लुढ़क गया। उसके लुढ़कते ही भीड़ तीतर बितर हो गई।
किसी अज्ञात शव के पाए जाने की सूचना पाकर पुलिस ने तफ्तीश शुरू की। उसके कंधे पर चिपके झोले में कुछ कागजातों के साथ उसका आधार कार्ड भी मिला, जिसपर उसका नाम लिखा था.. सोहनलाल...!


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क्रमांक 4


इंसाफ
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"साहब,.. इंसाफ करो साहब !.. मेरी बेटी का .....!"

"क्या हुआ तेरी बेटी को ?"

"स्कूल से घर लौटते हुए तीन लड़कों ने मेरी बेटी के साथ जबरदस्ती किया !"
"कौन थे वो लड़के ?"

"विधायक श्यामाचरण का बेटा बंटी और उसके दो साथी गोपाल और कबीर !"

"कितना पैसा दिया है तुझे विरोधी दल वालों ने ..विधायक श्यामाचरण को फँसाने के लिए ..?" कहते हुए दरोगा के तेवर अचानक सख्त हो गए।
वह कुछ कहना ही चाहता था कि दरोगा दाँत पिसते हुए आगे बोला, "देख बुड्ढे ! अगर तू जल्द ही यहाँ से नहीं गया तो तुझे और तेरी बेटी दोनों को जेल में ठूँस दूँगा लंबे समय के लिए। विधायक का नाम लेना भूल जाएगा।"

बेबसी के भाव लिए लड़खड़ाते कदमों से वह व्यक्ति
थाने से बाहर निकला। क्रोध को जज्ब करने की कोशिश में उसके मुँह से पिचकारी की मानिंद ढेर सारा थूक निकलकर थाने की बाहरी दीवार पर उस जगह चिपक गया जहाँ लिखा था 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ !'

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क्रमांक 5


मुर्दा
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स्मशान के बाहर अर्थियों की कतारें लगी हुई हैं खुद के खाक होने के इंतजार में, तभी एक बड़ी सी एम्बुलेंस आई। रास्ते भर आगे आगे चल रही आलीशान कार एम्बुलेंस से पहले ही रुक गई। एम्बुलेंस से उतर कर चार अस्पताल कर्मियों ने स्ट्रेचर पर रखे एक शव को उठाया और चल दिए सबसे आगे की ओर।

अभी अभी आकर आगे बढ़ रहे शव को देखकर एक युवा मुर्दा कुनमुनाया, " अरे !... गजब की अंधेरगर्दी है ! अभी आया और चल दिया हमसे पहले खाक होने के लिए ?"

कतार में उसके बगल में रखा एक बुजुर्ग शव ठहाका लगाकर हँस पड़ा, " बेटा ! भूल गया क्या कि तू आम इंसान था और अब एक आम मुर्दा ? मरे तो हम आज हैं लेकिन मुर्दा तो उसी समय हो गए थे जब हमने अन्याय का विरोध करना छोड़ दिया था। अगर जीते जी इन खास लोगों के खिलाफ आवाज बुलंद किया होता तो आज मरने के बाद इस तरह कतार में न लगना पड़ता !"