Mera kasoor kya tha in Hindi Love Stories by Akash Gupta books and stories PDF | मेरा कसूर क्या था।

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मेरा कसूर क्या था।


"एक बेगुनाह लड़की के जज्बात की कहानी ,जो बिना किसी खता किये सज़ा पा गई ,वो भी उम्र भर की .मै आपको उसी की जुबानी सुनाता हु .कि मोहब्बत उसको जिन्दगी भर का दर्द केसे दे गई .

मेरा नाम अफसाना है ,बात उन दिनों की है जब मै 17साल की थी.मेरे घर में अम्मी अब्बू के आलावा 2छोटी बहने थी.जो उन दिनों गोद में थी.अब्बू का नाम अहसान है .अब्बू के एक दोस्त थे ,जिनका नाम रफीक अंकल था.उनका हमारे घर आना जाना होता रहता था.कभी हम उनके घर आते जाते रहते.उनका एक लड़का था जिसका नाम समीर था.समीर भी मेरी उम्र का ही था.लेकिन वो बहुत ही शर्मीला था.किसीसे भी ज्यादा बात चित नही करता था.

बस अपनी पढाई में ही लगा रहता था.मैंने कभी उससे बात न की थी.मगर न जाने क्यों मै दिल ही दिल में उसे चाहने लगी थी.मै किसी न किसी बहाने उनके घर जाती और समीर को छुप छुप कर देख लेती.और अपने दिल की प्यास को बुझा लेती.मैंने बहुत बार कोशिश की कि उनसे कुछ बात वगेरा करूं ,लेकिन उनके सामने जाते ही सब कुछ भूल जाती.मैंने उनसे सच्चा प्यार किया था.और उनसे शादी करने के खवाब देखती थी.कभी वो किसी काम से हमारे घर आता ,तो दिल को एक अजीब सी ख़ुशी होती.जब तक वो घर में रहता मुझे तो कुछ भी नही सूझता.

बस चुपके चुपके उनको देखती रहती.लेकिन घर वाले और समीर खुद भी मेरी मोहब्बत से अनजान थे.इस तरह 2साल गुजर गए ,लेकिन मै उनसे कभी बात न कर पाई.रोज ये दुआ भी करती कि बस किसी तरह करके समीर मुझे चाहने लग जाये ,और मुझसे शादी कर ले.जेसे कि समीर ही मेरी जिन्दगी का मकसद बन गया था.मुझे घर पर भी इस बारे में बात करते शर्म महसूस होती थी.लेकिन मुझे पूरा यकीन था ,कि अगर मेरे माँ बाप उनके यहाँ मेरा रिश्ता लेकर जाएँगे तो वो कभी भी इनकार नही कर सकेंगे.और मेरे घर में से भी किसी के इनकार करने का कोई तसव्वुर नही था.

एक दिन मेरी एक सहेली ने मुझे बताया कि सलमा का रिश्ता लेकर गये थे समीर के घर.ये सुनते ही मेरे पाऊँ के निचे से जमीन खिसक गई.मैंने पूछा फिर ? तो वो बोली कि रफीक अंकल ने ये कह कर इनकार कर दिया कि समीर अभी पढ़ रहा है.पढाई पूरी करके लन्दन जायेगा.उसके बाद ही उसकी शादी के बारे में सोचेंगे.ये बातें सुनकर मेरे दिल में एक खोफ सा होने लगा कि कहीं ऐसा न हो कि समीर का रिश्ता कहीं और हो जाए.मैंने घर पर बात करना ही ठीक समझा.

मै रोजाना सोचती कि आज घर पर बात करूं ,कल बात करूं ,ये सोचते सोचते कई दिन गुजर गये.और समीर कि पढाई भी पूरी हो गई.अभी रफीक अंकल उसे लन्दन भेजने कि तयारियों में लग गये.मैंने मौका देख कर अपनी अम्मी से बात कर ही ली.और अम्मी अब्बू ने आपस में मशवरा किया.और तय किया कि कल रफीक अंकल के घर रिश्ते कि बात करने जाएँगे.हालाँकि हमारे यहाँ लड़के वाले ही रिश्ता लेकर जाते है ,लेकिन मामला मोहब्बत का था

,और अब्बू और रफीक अंकल की दोस्ती भी मिसाली थी.इसलिए अब्बू ने जाने का फेसला किया.अम्मी अब्बू अगले दिन रफीक अंकल के घर मेरा रिश्ता लेकर गये ,तो रफीक अंकल और उनकी बीवी बहुत खुश हुए.खूब आओ भगत की.और बोले कि भाई हमे तो अफसाना पहले से ही पसंद थी.बस हम तो यही चाहते थे कि खुद आकर आपसे बात करें.हमारी तरफ से तो रिश्ता पक्का ही समझो.रफीक अंकल ने समीर से भी मशवरा किया,तो वो बोला कि अब्बू इतनी भी क्या जल्दी है.अभी तो मैंने सिर्फ पढाई ही पूरी की है.पहले मुझे लन्दन जाने दो,सेट होने दो,फिर रिश्ते वगैरा कर देना.लेकिन रफीक अंकल बोले कि बेटा इतना अच्छा रिश्ता फिर मिले न मिले.इसलिए मै पहले तेरी शादी करूँगा ,फिर लन्दन भेजूंगा.लेकिन समीर इस पर राजी नही था.

वो चाहता था कि पहले अपना करियर बनाये.फिर शादी हो.खैर,रफीक अंकल ने उसे मंगनी के लिए राजी कर लिया.वो बोला कि ऐसी बात नही है कि अफसाना मुझे पसंद नही ,मुझे पसंद है ,लेकिन मै अभी शादी नही करना चाहता.बस आप चाहे तो मंगनी कर सकते हैं.खैर कुछ दिनों के बाद हमारी मंगनी भी हो गई.हमारे पुरे गाँव में इसकी खबर फेल गई.और मेरी खुशियों का तो कोई ठिकाना ही नही था.ख़ुशी के मारे न रात को नींद आती.और न ही दिन को चैन.मेरी मोहब्बत की कमियाबी की खुशियाँ मनाई जा रही थी.सहेलियों की मुबारक बादियाँ ,घर में खुश नुमा माहोल,गोया की जर्रा जर्रा मेरी मोहब्बत की खुशियों में शामिल होता नजर आता था.आखिर मेरे महबूब के लन्दन जाने का वक्त भी करीब आ गया

.उसे देखे बगैर कितना अरसा गुजरना पड़ेगा,दिल को पता नही.सोच सोच कर दिल डूबा जा रहा था.आखिर कार वो लम्हा भी आ गया ,कि मेरा महबूब मेरी नजरों से दूर चला गया.वो तो क्या गया ,कि मुझे अपनी यादों में ,और तनहाइयों में छोड़कर चला गया.मुझे जीते जी जैसे कि मार गया.सारा दिन मै खोई खोई सी रहती.कहीं पर भी दिल न लगता.उनकी तस्वीर को सिने से लगाकर सो जाती.ये जुदाई भी कम्बखत इतनी लम्बी हो गई थी.फिर भी उम्मीद के दिए तो रोशन ही थे,कि एक दिन मेरा महबूब आएगा,उससे शादी होगी,मै उसकी दुल्हन बनूँगी.हाय वो कैसा खुश नुमा वक्त होगा.इस दिन का मैंने लम्हा लम्हा इंतिजार करना था.समीर को लन्दन गये हुए ,आखिर 2 साल का अरसा गुजर गया.

एक एक दिन मैंने कैसे गुजरा ये सिर्फ मै ही समझ सकती थी.वो तो वापस नही आया. एक दिन एक होश उड़ाने वाली खबर ये आई कि उसने वहां पर एक लड़की से शादी कर ली.इस बुरी खबर को सुनकर मै और मेरे घर वाले बुरी तरह से टूट गये.ना जाने हमारी खुशियों को किसकी नजर लग गई.मेरे अब्बू सदमे से दुनिया से चल बसे.रफीक अंकल भी समीर के इस काम से बहुत नाराज़ हुए थे,लेकिन समीर ने उन्हें ये कहकर मना लिया कि मोहब्बत हो गई थी,इसलिए शादी करनी पड़ी.शायद मै अफसाना के साथ खुश नही रह पाता.

लेकिन आज मै बहुत खुश हु.रफीक अंकल ने भी अपने बेटे कि इस कारनामे को वक्त के साथ कबूल कर लिया.और उसकी ख़ुशी कि खातिर उन्होंने भी घुटने टेक दिए.मेरे अब्बू अहसान तो दुनिया में रहे नही,इस वजह से रफीक अंकल ने भी हमारा साथ छोड़ दिया.उन्हें अपने बेटे की ख़ुशी ज्यादा प्यारी लगी.हम और भी ज्यादा अकेले पड़ गये.रफीक अंकल और उनकी बीवी को भी समीर ने लन्दन में ही बुला लिया.वो भी अपने बेटे की ख़ुशी कि खातिर लन्दन जाकर बस गये.मेरी अम्मी ने बहुत कोशिश की कि किसी दूसरी जगह मेरा रिश्ता कर दे,लेकिन नाकाम रही.

क्यों कि लोग यही कहते थे कि जरुर अफसाना का चाल चलन ठीक नही होगा,इसी वजह से समीर ने लन्दन में ही शादी कर ली.पुरे गाँव में मुझे लोगों ने बदनाम कर दिया ,जिस वजह से कहीं भी मेरा रिश्ता न हो सका.इधर हमारे घर का खर्च भी चलना मुश्किल हो गया था ,कोई कमाने वाला भी नही रहा.मै घर पर कपडे सी कर घर का गुजर बसर करती.साथ ही २ बहनों की परवरिश करती.अम्मी भी इसी सदमे में दुनिया से चल बसी.मै अकेली ही रह गई ,इस भरी दुनिया में.कई साल तक मैंने मेहनत मजदूरी करके अपनी बहनों को पढ़ाया लिखाया.दिन रात लोगों के कपडे सी कर इस मुश्किल वक्त को गुजारा.कई साल ऐसे ही गुजरते रहे.

लेकिन मैंने हिम्मत नही हारी.अपनी बहनों को खूब पढ़ाया लिखाया ,उन्हें एक अच्छा इंसान बनाया.आखिर उन्हें भी अच्छी जॉब मिल गई.उनको सरकारी जॉब मिली,और उन्होंने पुरे गाँव का नाम रोशन किया,हमारे घर को अपनी खोई हुई इज्जत दुबारा मिली.लोग मेरे घर रिश्ते की लाइने लगाने लगे मेरी बहनों के लिए.लेकिन मेरी बहने मेरी खूब खिदमत करना चाहती थी.और मै उनकी शादी करके उनको विदा करना चाहती थी.हर माँ का यही सपना होता है की वो अपनी बेटी तो जल्द से जल्द शादी कर दे,मै भी यही चाहती थी.मेरी बहने मुझे बड़ी बहन नही ,बल्कि अपनी माँ मानती थी.

आज हमारे पास रूपए पेसे की कोई कमी नही.इज्जत है ,शोहरत है.एक दिन मेरी बहन ने मुझे आकर बताया की बाजी बाहर होई पूछता फिर रहा है की अहसान साहब का घर कोन सा है. मैंने बाहर आकर देखा की एक अधेड़ उम्र का नोजवान है, मैंने उनसे कहा की यही घर है.मैंने उन्हें अन्दर बुलाया ,और घर में बिठाया ,उन्होंने पूछा कि आप ही अफसाना है ना ? तो मैंने कहा की हाँ मै ही हूँ. तो वो बोला की मै समीर हूँ ,रफीक साहब का बेटा.४ दिन पहले ही लन्दन से आया था.सोचा कि आंटी से भी मिलता चलूँ.मैंने उन्हें बताया कि अम्मी और अब्बू अब इस दुनियां मै नही रहे.इस पर उसने इजहारे अफ़सोस किया.

और बोला कि अफसाना आप मुझे माफ़ कर देना,कि मैंने आपसे मंगनी को तोड़कर लन्दन में शादी की.क्या करता मुझे उससे बहुत मोहब्बत हो गई थी.और मै उसे छोड़ नही सकता था.इसलिए मैंने शादी कर ली.फिर उसने पूछा कि तुम्हारे कितने बच्चे हैं ? तो मै चुप कर सुनती रही.इतने में दूर खड़ी मेरी बहन जो कि ये सब सुन रही थी ,वो बोल पड़ी ,कि बाजी ने शादी नही की.और आप ही हैं वो जिनकी वजह से मेरी बाजी की जिन्दगी बर्बाद हो गई.इस पर मैंने गुस्सा करते हुए उसे टोका ,की इस तरह आये हुए मेहमान को बे इज्जत नही किया जाता.तो वो चुप हो गई.समीर बोला की अफसाना वो सही कह रही है ,मुझे तो इस बात का पता भी नही चला,की तुम्हारे साथ क्या बीती.तो मैंने उनसे कहा कि जो हुआ वो मेरा मुकद्दर था.आप अब इसकी फ़िक्र ना करें.फिर वो वहां से चला गया.जिन्दगी भर मै उसके लिए तड़पती रही,आज उसे मैंने बड़ी मायूसी के साथ जाते हुए देखा.जैसे कि वो सारी

दुनिया जीतकर भी हार गया हो.जाते हुए वो बार बार पीछे मुड़कर देखता रहा.और अपनी आँखों में अश्क लिए वहां से चला गया.ये मंजर देख कर आज फिर दिल बेक़रार होने लगा.आँखें अश्क बरसाने लगीं.उसने क्या किया मुझे इसका अफ़सोस नही है ,बस इतना जानती हु कि मैंने उन्हें टूटकर चाहा है. मुझे गुनाह गार समझ कर बदनाम करने वाले लोग भी आज मुझे इज्जत कि नजर से देखते हैं.
नाम तेरा बिन लिए ''आमिर '' हुआ तुझ पर फना ,
दास्तानों में भी ऐसी दास्ताँ कोई नही .

.ये एक खामोश पैगाम थी, कि किसी कि जिन्दगी से खिलवाड़ करने से पहले सोच लो कि तुम भी सुकून से नही रह पाओगे .खुदा हाफिज"