बूढ़ी दाई मां का असली नाम यशोदा था। यशोदा दाई के काम में इतनी होशियार थी कि बड़े-बड़े डॉक्टर भी उसके हुनर को नमस्कार करते थे। इसलिए यशोदा का अपने गांव और आसपास के गांव में बहुत मान सम्मान था। उसको खुद पता नहीं चला था, कि लोग उसे कब से यशोदा की जगह दाई मां कहने लगे हैं। यशोदा मथुरा के पास छोटे से गांव मजुपूर कि रहने वाली थी। बचपन में ही उसके माता पिता का एक महामारी में देहांत हो गया था। माता पिता का स्वर्गवास होने के बाद उसके जीने का सहारा उसका छोटा भाई कन्हैया था। यशोदा ने अपना और अपने छोटे भाई कन्हैया का पेट भरने के लिए दाई का काम करना शुरू किया था और उसे खुद पता नहीं चला था की इस काम से उसको धीरे-धीरे इतना लगाव कैसे हो गया था। जब भी दाई मां बेटी या बेटे किसी भी बच्चे को दुनिया में जन्म दिलवादी थी, तो माता पिता और उस बच्चे के संबंधियों से ज्यादा खुद बहुत खुश होती थी। बेटा हो या बेटी दाई मां को सब दिल खोल कर उपहार देते थे। दाई मां के जीवन का एक नियम था की हर जन्म अष्टमी से एक दिन पहले कृष्ण जन्मभूमि मथुरा में जाने का। दाई मां कृष्ण भगवान की बहुत बड़ी भगत थी। दाई मां अपने छोटे भाई कन्हैया को दुनिया का एक सफल आदमी बनाना चाहती थी, इसलिए वह छोटे भाई कि पढ़ाई लिखाई आदि किसी भी जरूरत की कमी नहीं छोड़ती थी। और एक दिन अच्छे खानदान से रिश्ता आने के बाद उसका धूमधाम से विवाह कर देती है। छोटे भाई की शादी होने के बाद दाई मां के दुख के दिन शुरू हो जाते हैं, क्योंकि छोटे भाई कन्हैया की पत्नी रानी दाई मां को जमीन जायदाद में हिस्सा नहीं देना चाहती थी, इसलिए वह बूढ़ी दाई मां को अपने घर से भगाने के लिए उससे छोटी छोटी बातों में झगड़ा किया करती थी। जन्माष्टमी से एक दिन पहले दाई मां अपने जीवन के नियम के अनुसार कृष्ण जन्मभूमि मथुरा चली जाती है, तो दाई मां के घर से जाने के बाद दाई मां का छोटा भाई कन्हैया पत्नी के बहकावे में आकर गांव की सारी जमीन जायदाद बेचकर शहर भाग जाता है। दाई मां का पूरा गांव और आसपास के गांव के लोग बहुत सम्मान करते थे, इसलिए सब मिलकर दाई मां के रहने के लिए एक छोटा सा घर बनाकर दाई मां को दे देते हैं। और दाई मां को खाने पीने की कोई चिंता नहीं रहती थी, क्योंकि गांव के किसी भी घर से दाई मां के लिए खाना आ जाता था। परंतु फिर भी छोटे भाई के जाने के बाद दाई मां के जीवन में बहुत अकेलापन आ गया था। अब दाई मां को एक गिलास पानी पीने के लिए भी दूसरों पर मोहताज होना पड़ गया था। निराशा उदासी अकेलेपन की वजह से दाई मां दाई का काम करना छोड़ देती है। और छोटे भाई भाभी के जाने के बाद कुछ ही महीनो दाई मां आयु से ज्यादा वृद्ध लगने लगती है। जाड़े की एक रात कोई व्यक्ति दाई मां के घर का दरवाजा तेज़ तेज खटखटाता दाई मां बड़ी मुश्किल से अपने बिस्तर से उठकर दरवाजा खोलती है। दरवाजा खोलते ही वह आदमी दाई मां के पैर पकड़ कर गिड़गिड कर कहता है कि "दाई मां मेरी पत्नी मां बनने वाली है। और गांव के आसपास के सारे डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है। और पत्नी को शहर के अस्पताल ले जाने का समय नहीं है। मुझे पता है आप बहुत होशियार दाई हो अब आप ही मेरे बीबी बच्चे की जान बचा सकती हो। बूढ़ी दाई मां उस आदमी पर तरस खाकर उसके साथ चलने के लिए तैयार हो जाती है। और साथ चलने से पहले उस आदमी से कहती है कि "मुझे बेटा वापस घर छोड़ने भी आना पड़ेगा।" संकट में फंसा वह व्यक्ति खुश होकर कहता है "दाई मां मैं खुद आपको घर छोड़ने आऊंगा।" दाई के काम में होशियार दाई मां की वजह से उस व्यक्ति की पत्नी एक सुंदर बेटी को जन्म देती है। और वह व्यक्ति बहुत खुश होकर दाई मां से कहता है "दाई मां आज रात आप हमारी मेहमान हो मैं कल सुबह बहुत सा उपहार देकर आपको आपके गांव छोड़कर आऊंगा।" उसी रात उस आदमी के घर के आंगन के एक कोने में एक कुत्तिया बहुत सुंदर पिल्लो को जन्म देती है। उन सारे कुत्ते के बच्चों में दाई मां को एक काले रंग का कुत्ते का पिल्ला बहुत पसंद आता है। इसलिए दाई मां उस आदमी से कहकर उस काले रंग के कुत्ते के पिल्ले को पालने के लिए अपने घर ले आती है। और उस काले रंग के कुत्ते के पिल्ले का नाम प्यार से भीम रखती है। भीम कुत्ते के पिल्ले के आ जाने से दाई मां का अकेलापन कम हो जाता है। और कुछ ही महीनों में भीम हष्ट पुष्ट ताकतवर शक्तिशाली कुत्ता बन जाता है। भीम जैसा ताकतवर बुद्धिमान शरीर से सुंदर हष्ट पुष्ट कुत्ता आसपास कहीं भी आसानी से दिखाई नहीं देता था। भीम कुत्ते के डर की वजह से गांव में चोर जंगली खूंखार जानवरों ने भी आना छोड़ दिया था। दिवाली आने वाली थी। दाई मां अपने गांव से काफी दिनों से कहीं बाहर घूमने नहीं गई थी, इसलिए दाई मां अपने मन में शहर घूमने का विचार लाती है, और सोचती है कि शहर घूमने के साथ-सथ शहर से दिवाली के लिए कुछ घरेलू सामान खरीद कर ले आएंगे। दाई मां अपने साथ साथ भीम कुत्ते को भी शहर घुमाने लेकर जाती है। शहर में कुछ आतंकवादियों ने एक बस के यात्रियों को बस के साथ बंदी बना रखा था। उन आतंकवादियों की मांग अपने किसी साथी को छुड़वाने की थी। जिस जगह आतंकवादियों ने पूरी बस को बंदी बना रखा था, उस जगह को पुलिस और सेना ने घेर रखा था। और लोगों की भीड़ दूर से यह सब देख रही थी। दाई मां भी भीड़ देखकर भीम कुत्ते के साथ बस में आतंकवादियों द्वारा बनाए बंदी यात्रियों को देखने लगती है। तभी उस बस की एक खिड़की से एक महिला दाई मां की तरफ चिल्लाकर कहती है "दीदी हमारी जान बचा लो।" और उसी समय दूसरी खिड़की से एक आदमी भी दाई मां की तरफ देखकर कहता है कि "मेरी प्यारी बहन किसी भी तरह मेरी और मेरी पत्नी की जान बचा लो।" वह महिला और पुरुष दो तीन बार चिल्ला चिल्ला कर दाई मां से यही बात कहते हैं। भीम कुत्ता ताकतवर खूबसूरत होने के साथ-सथ बुद्धिमान चतुर भी था। वह तुरंत समझ जाता है की बस में से जो महिला और पुरुष दाई मां से चिल्ला चिल्ला कर मदद मांग रहे हैं, वह दाई मां और मेरे कोई सगे संबंधी हैं, और किसी बड़ी मुसीबत में फंसे हुए हैं, इसलिए शक्तिशाली चतुर भीम कुत्ता बस पर हमला कर देता है। और सबसे पहले उस आतंकवादी को चीर फाड़ कर घायल करता है, जिसने ड्राइवर को बंदी बना रखा था, और उसको अधमरा करने के बाद दूसरे आतंकवादी पर हमला कर देता है। बस का ड्राइवर मौका देख कर बस को पुलिस और सेना के करीब ले आता है। और उसी समय बाकी बचे दो आतंकवादियों को सेना पुलिस गोलियों से छलनी कर देती है। और भीम द्वारा घायल किए दोनों आतंकवादियों को सेना पुलिस जिंदा गिरफ्तार कर लेती है। जनता मीडिया पुलिस सेना की सिफारिश पर भीम कुत्ते को पुरस्कृत किया जाता है, और सरकार भीम कुत्ते को पुलिस में सरकारी नौकरी भी दे देती है। बस के अंदर जो महिला और पुरुष थे, वह दाई मां के भाई भाभी कन्हैया और रानी थे। दोनों दाई मां के पैर पकड़कर माफी मांगते हैं। दाई मां उनको माफ करके हमेशा के लिए उनसे संबंध तोड़कर भीम कुत्ते के साथ अपने गांव आ जाती है। दाई मां भीम कुत्ते कि पहली तनख्वाह थाने से लाने से पहले कृष्ण भगवान की पूजा करके फिर भीम के साथ जाती है। थाने पहुंचकर भीम अपनी तनख्वाह लेने से पहले दाई मां की धोती का किनारा पकड़ कर तनख्वाह दाई मां को देने का इशारा करता है। पुलिस के बड़े अफसर भीम का इशारा समझ कर उस दिन के बाद से दाई मां के हाथ में भीम की तनख्वाह देने लगते हैं। दाई मां समझदार सुलझी हुई वृद्ध महिला थी, इसलिए भीम की तनख्वाह से कुछ पैसे बचा कर एक गाय खरीद कर लाती है। और उस गाय का दूध बेचना शुरू कर देती है, और फिर धीरे-धीरे एक गाय के बाद दो फिर तीन ऐसे करके दाई मां दूध पनीर देसी घी का डेरी फार्म खोल देती है। कृष्ण भगवान की कृपा और भीम कुत्ते के प्यार की वजह से दाई मां के जीवन में पहले से ज्यादा खुशियां आ जाती है। अब दाई मां भीम की तनख्वाह से और डेयरी फार्म की कमाई से कुछ पैसे निकाल कर दान पुण्य के कार्य भी करना शुरू कर देती है, जैसे कि गरीब लड़कियों की शादी के लिए दान अनाथ आश्रम वृद्धा आश्रम धार्मिक कार्यों के लिए दान आदि। दाई मां को पहले ही लोग बहुत मान सम्मान देते थे, और दान पुण्य के कार्य करने के बाद तो दाई मां और भीम को लोग ईश्वर जैसे पूजने लगते हैं। ईश्वर अच्छे के साथ अच्छा करता है, और बुरे के साथ बुरा।