Dharm seekhna hai to in logon se seekho in Hindi Motivational Stories by Yogesh Kanava books and stories PDF | धर्म सीखना है तो इन लोगों से सीखो

Featured Books
  • द्वारावती - 73

    73नदी के प्रवाह में बहता हुआ उत्सव किसी अज्ञात स्थल पर पहुँच...

  • जंगल - भाग 10

    बात खत्म नहीं हुई थी। कौन कहता है, ज़िन्दगी कितने नुकिले सिरे...

  • My Devil Hubby Rebirth Love - 53

    अब आगे रूही ने रूद्र को शर्ट उतारते हुए देखा उसने अपनी नजर र...

  • बैरी पिया.... - 56

    अब तक : सीमा " पता नही मैम... । कई बार बेचारे को मारा पीटा भ...

  • साथिया - 127

    नेहा और आनंद के जाने  के बादसांझ तुरंत अपने कमरे में चली गई...

Categories
Share

धर्म सीखना है तो इन लोगों से सीखो

उनके विवाह को कोई पन्द्रह साल हो गए थे किंतु अभी तक घर में कोई किलकारी नहीं थी नीम हकीम झाड़-फूंक सब जतन किए लेकिन कुछ भी हासिल नहीं हुआ उम्र की ओर थी शर्मा जी चालीस पार कर चुके थे और पत्नी चालीस के करीब थी । अच्छा व्यवसाय चल रहा था घर मे वैसे तो कोई कमी नहीं थी सुविधाएं भरपूर थी ,कमी थी तो एक बच्चे की। शर्माजी की पत्नी लगातार अवसाद मे रहने लगी थी । यूँ तो तनाव शर्माजी को भी कोई कम न था लेकिन घर मे दिखाते नहीं थे । रिश्तेदारों को भी अब विश्वास हो चला था इनके यहाँ पर संतान नहीं होगी इसलिए अलग तरीके से उनकी पत्नी पर दबाव बनाते थे कि उनका बच्चा गोद ले लिया जाए । सबके अपने-अपने स्वार्थ थे । सबसे बडा आकर्षण था शर्मा जी का व्यवसायिक प्रतिष्ठान जो करोड़ों का था । बस सभी रिश्तेदारों की नजर उसी प्रतिष्ठान पर जमी हुई थी उस तरह से कंकाल से आवारा पशु जंगल में निकल जाए कुछ इसी तरह लगा रहे थे सभी रिश्तेदार अपने अपने तरीके से कुछ नहीं सोच रहा था कि उसकी मानसिक स्थिति किस तरह से सुधारी जाए जाए जाए किसी उदयपुर में शर्मा जी और उनकी सेहत बिगड़ने लगी थी कभी-कभी जब शर्मा इनको थोड़ा सा शहद मानसिक भाव रहता तो वह सोचने लगती हे भगवान मैंने ऐसा कौन सा अपराध किया है जो मेरी गोद नहीं भरी पूजा-पाठ मंदिर मंदिर अर्चना की लेकिन मेरा भाग्य इतना दूर मेरे कारण मेरे पति के भी हालात कितनी कमजोर होती जा रही है मुझे शक्ति दो मां मुझे शक्ति दो और सोचती किंतु अवसाद के कारण हाथ पर साथ नहीं देती और फिर से निढाल पड़ जाती बिस्तर पर सुबह जल्दी उठकर अपने लिए और अपनी पत्नी के लिए चाय बना रहे थे कि अचानक लिए टेलीफोन की घंटी शर्मा जी ने उठाकर हेलो बोला तो उधर से आवाज आई शर्मा जी बोल रहे हैं जी हां बोल रहा हूं आपको मैं भोले शंकर बोल रहा हूं भाई हम एक ही क्लास में पढ़ा करते थे साथ-साथ गांव तंबोला जिला जबलपुर मध्य प्रदेश आपको याद आया होगा शर्मा जी दसवीं तक हम साथ साथ थे कल एक पुराने मित्र कृपाल ने आपका नंबर दिया तो सोचा बात करता हूं उसने भी फेसबुक से आपका नंबर सर्च किया था और मेरे साथ शेयर किया है आप वही है ना शर्मा जी कैसे हो मैं वही हूं मैं ठीक हूं आप सुनाइए आप कैसे हैं हां ठीक है उसने ठीक है बोल तो दिया था लेकिन सब ठीक कहा था किसी को भी इस तरह की अपनी परेशानी तो बता नहीं सकते हैं ना फिर थोड़ा सा रुक कर बोला और बताओ भाई क्या कर रहे हो शर्मा जी मैं अभी उदयपुर मेडिकल कॉलेज के गाइनेकोलॉजी विभाग में प्रोफेसर हूं डॉक्टर हूं वहां पर आप क्या कर रहे हैं भोले शंकर जी बस छोटी सी दुकान है गुजारा कर लेते हैं रेडीमेड गारमेंट शॉप है कहां पर है अरे वाह कहां पर है अच्छा है ज्यादा दूर नहीं है बस चित्तौड़गढ़ में ही है फिर तो भाई वीकेंड में जरूर आता हूं बताओ कब बुला रहे हो कभी भी आ जाओ भाई घर है आपका उसने कह तो दिया था लेकिन वह जानता था कि यदि वह घर आ गया तो असलियत पता चल जाएगी पत्नी के अवसाद की बात लहरों में क्योंकि जाए तभी उसके मन में विचार आया कि यह तो गायनेकोलॉजी का है ना पता नहीं कोई इलाज बताओ जवाब ने कहा काहे का इलाज कोई कमी रखी है क्या पानी की तरह पैसा बहाया मैंने क्या मिला कुछ नहीं तंत्र मंत्र बाबा तांत्रिक पुजारी कर्मकांडी मंदिर मंदिर देव धोखे क्या नतीजा निकला कुछ नहीं सब बेकार है कहां खो गए अरे भाई अगर नहीं बुलाना चाहते हो तो मैं नहीं आऊंगा मैंने तो इसलिए कहा था कि अभी कुछ ही दिन में मुझे चित्तौड़गढ़ आना है किसी काम से तो सोचा आप से भी मुलाकात हो जाएगी चलो कोई बात नहीं शर्मा जी को एक एक बात याद आ रही थी भोले शंकर चमार था लेकिन हर साल क्लास में फर्स्ट आता था उसे याद आया कि बोर्ड की परीक्षा में उसे पूरे मध्यप्रदेश में टॉप किया था पूरे गांव में उसे घुमाया गया था उस वक्त मुझे जलन होती थी कि एक चमार का लड़का ब्राह्मणों से आगे कैसे निकल सकता है लेकिन सच्चाई यही थी पूरे मध्यप्रदेश में नंबर वन था आगे वह शायद जबलपुर चला गया था पढ़ने के लिए और सुना था कि वह दिल्ली डॉक्टर की पढ़ाई कर रहा था लेकिन अपनी चिर के कारण शर्मा जी उससे कभी भी तवज्जो नहीं देते थे आज उसे एक एक बात रह-रहकर याद आ रही थी फोन से अभी भी आवाज आ रही थी लेकिन वह खोया था तभी वह बोला अरे नहीं भोले शंकर जी ऐसा नहीं है मैं तो वह अपने स्कूल के जमाने में खो गया था शर्मा जी ने झूठ बोल तो दिया लेकिन मन पूरी तरह से आ सकता है ऑनलाइन अपने आप ही कट गई शर्मा जी अभी भी असमंजस में खड़े थे ना तो उन्होंने उसका नंबर लिया और ना ही ज्यादा कुछ मालूम किया वह खड़ा रहा उसकी सोच का दायरा बढ़ता गया याद आने लगे थे वह सारे जतन जो संतान प्राप्ति के लिए दोनों ने किए थे जो भी कोई कहता था वही सब कुछ करते थे जन्म से ब्राह्मण थे इसलिए कर्मकांड तंत्र मंत्र और साधु सन्यासियों में ज्यादा आस्था थी पढ़े लिखे होने के बावजूद वह दवा के बजाय दुआ और बाबाओं में अधिक विश्वास करते थे किसी ने कहा पीपल की पूजा करो किसी ने वट सावित्री व्रत करने के लिए कहा निर्जला एकादशी व्रत दोनों पत्नी पति पति पत्नी मिलकर ही करते थे हमेशा ऐसा कभी हुआ ही नहीं पूजा के शर्मा जी चाय भी पी लो चाय भी पी लो याद आया कि गांव में एक सन्यासी बाबा की अपना दुखड़ा बाबा के सामने रखा था कि घर में संतान नहीं है हमें संतान दे दो बाबा सन्यासी बाबा ने आसमान की ओर झांका और बोला तो यह बात है यह सरकारी ब्राह्मण की झोली खाली रखती तूने अच्छा नहीं किया अच्छा तो मुझे ही उपाय करना है ना प्रभु अभी भी बता दो क्या करना है ठीक है सबको लग रहा था कि बाबा का कनेक्शन डायरेक्ट ऊपर वाले से जुड़ा हुआ है बहुत पहुंचे कोई बाबा है अचानक कि वह बाबा बोला सुन बच्चा एक तांत्रिक क्रिया करनी पड़ेगी वैसे तो मैं तांत्रिक क्रियाएं नहीं करता हूं लेकिन तुम दोनों की सेवा से मैं अति प्रसन्न हूं इसलिए अपने नियम तोड़ कर भी तुम्हारे लिए मैंने प्रभु से जो तांत्रिक क्रिया बताई है मुझे प्रभु ने जो तांत्रिक क्रिया बताई है वह उस दिन करनी है दोनों बेहद प्रसन्न थे उसे याद आया कि उस दिन उन्होंने बाबा के लिए खीर पूरी और आलू की सब्जी बनाई थी बाबा ने भी भरपेट भोजन किया और आशीर्वाद दिया था पुत्रवती भव बेहद पसंद थी आशीर्वाद आशीर्वाद और उसकी गोदी हो जाएगी बाबा के लिए बैठे थे आज ही करनी होगी एक होते हुए भी खंडित हो जाता है और कुटिया में आ जाना सब ठीक हो जाएगा और इसके बारे में किसी को कुछ नहीं बताना वरना तो हो जाएगी और हमेशा के लिए रह जाओगे वहां से बाबा जी की कृपा के अनुसार सभी सामग्री लेकर बाबा की कुटिया में निर्धारित समय पर पहुंच गया था उधर बाबा ने अपनी तैयारी कर रखी थी लकड़िया जंगल से ले आया था तांत्रिक क्रिया की तैयारी शुरू की गई अग्नि प्रज्वलित की गई और बाबा गोला कुछ क्रियाएं तुम दोनों के साथ शुरू होगी और फिर तेरी पत्नी ही अकेली रहेगी तुझे वकील दूंगा जिसमें प्रेत की नजर को बांध दूंगा उसे आधा को दूर गार्ड कराना और तुम दोनों को इस क्रिया में निर्वस्त्र होकर ही बैठना होगा यही इस क्रिया का विधान है क्योंकि यह क्रिया नग्न होकर यह पूरी की जा सकती है मैं भी नहीं रहूंगा इस बात पर शर्मा ने बोला तो बाबा ने कहा प्रभु के सामने हम सब नहीं पाएगा और फिर भी तुझे कोई ऐतराज है वापस लौट जाओ यहां से आंखों आंखों में बात मानने को राजी हो तो पहले से ही पूर्ण विश्वास था कि वह राजी हो जाएंगे थोड़ी देर बाद पता नहीं कि एक बड़ी सी की ऊपर से गिरी दोनों पति-पत्नी आश्चर्यचकित यह तो चमत्कार है प्रीत की नजर बन चुकी है और खुद ही आसमान से गिरी है बाबा ने जोर से अपने ही अंदाज में बोला बम भोले बम भोले इसकी आत्मा इसको मत करो भोलेनाथ जय हो यही होगा भोलेनाथ और फिर वह एक बार आंखों को बंद करके अपने आप में ही कुछ बता रहा अचानक ही आंख खोलकर बाबा बोलो अब जाकर एक हाथी के गाना काटने के बाद इस पर पेशाब जरूर करना याद रहे पेशाब किए बिना मत आना और शर्मा जी ने वही किया हुआ कि लेकर दौड़ता गया खुरपी से एक हाथ गहरा खड्डा खुदा उसके को दफन किया और कृपया करके लौट आया आधी से ज्यादा ही दूरी आया होगा उसकी पत्नी दौड़ रही थी जब वह उसे संभालने लगा तो बेहोश होगी पीछे पीछे दौड़ता है तभी अचानक शर्मा इनको यह बाबा मेरे साथ काम करना चाहता है जबरदस्ती कर रहा था मेरे साथ भेज दिया और फिर से अपने पास बुलाया और कहा कि मैं नहीं बैठी तो फिर बोला था या नहीं बैठी ऐसे ही रहोगी फिर मेरा हाथ पकड़ कर खींच लिया वही पटक दिया था पता नहीं मां भवानी ने मुझे कहां से ताकत दी कि इस मुद्दे से छूटने के लिए और फिर जो जोर जोर से रोने लगी शर्मा को गुस्सा आता था वह ढोंगी बाबा भाग छूटा शर्मा भी उसके पीछे हो लिया तभी शर्मा ने आवाज लगाई उसको छोड़ो घर चलो कोई इस तरह से देखेगा तो क्या कहेगा पहले इसकी झोपड़ी से कपड़े तो ले लो तुम रखो मैं लेकर आता हूं मैं ऐसे मत जाओ पता नहीं किस तरह का वार कर दे तो फिर छोड़ो ऐसे ही चलते हैं और दोनों फिर उसी अवस्था में छुपते से घर पहुंच गए कपड़े पहने और खटिया में ले कर जो हुआ उस पर विचार करने लगे शर्मा इन बोली सो गए क्या नहीं सॉरी आज मैंने तो कसम खा ली है अब कोई किसी बाबा तांत्रिक ओझा के चक्कर में नहीं पड़ना है हमारी किस्मत में अगर नहीं है तो ना सही इस तरह से अपने साथ तो हां तुम ठीक कहती हो शायद हमारी किस्मत ही खराब है गांव मुझे पता नहीं क्यों अच्छा नहीं लग रहा आज जो कुछ हुआ अगर किसी को पता चलेगा तो सच कह रहे हो मैं तो जीते जी मर जाऊंगी कैसे सामना करेंगे हम गांव वालों का एक काम करें क्या यह गांव छोड़कर दूर चलते हैं जहां में कोई नहीं जानता हो लेकिन काम क्या करेंगे खाएंगे क्या कोई मेहनत मजदूरी कर लेंगे किसी के यहां नौकरी कर सकते हैं वह तो ठीक है पर चलेंगे यह तो पता नहीं यहां से दूर चलना चाहता हूं यहां रहा तो वह ढोंगी मुझे बार-बार देखता रहेगा मैं तो वैसे ही मर जाऊंगा मन तो मेरा भी यही कर रहा है तो फिर क्या सोचती हो अभी 2ः00 बजे सभी लोग सो रहे हैं ऐसा करते हैं अपना रुपया पैसा कपड़े लगते और थोड़ा सा खाने का सामान ले लेते हैं और अभी चलते हैं कहां की सोच रहे हो पता नहीं जहां ऊपर वाला ले जाएगा और फिर दोनों आवश्यक सामानों में डालकर चलने के लिए सुबह तक कितनी दूर चले थे यह तो अंदाजा नहीं था लेकिन इसी सड़क थी सूरज की रोशनी खोल चुका था और पक्षियों के चाहने लगी थी और चलते जा रहे थे चलते चलते कहीं रुक कर चाय पी लो जी थकान सी हो रही है हां मैं भी यही सोच रहा हूं थोड़ी देर में थोड़ी सी भी लोग भी थे सोचा यहां रुकना मुनासिब होगा शर्मा का डर था क्योंकि शर्मा कई बेहद सुंदर थी उस पर किसी की भी नियत बिगड़ सकती थी रात की घटना के कारण और भी ज्यादा और सहमा हुआ था उसको देखकर अपने मन में तसल्ली के लिए सुरक्षित है हाथ में हाजत हो रही थी वहीं पर दोनों जंगल हुआ है ढाबे वाले को धीरे-धीरे यहां कोई साधन मिल जाए तो हम किस शहर में चल सकते हैं लेकिन ट्रक वालों पर तो भरोसा नहीं किया जा सकता एक तो रात बड़ी मुश्किल से हूं मैं पैदल हूं वही तो है ऐसे तो कब तक चलते रहेंगे देखो जी अभी से हिम्मत थोड़ी हार नहीं है अरे मैं हिम्मत नहीं आ रहा लेकिन मैं तेरी सोच रहा था देखो जी अब जीना मरना साथ है पैदल चलो कोई भला का गांव आएगा वही रात बसर कर लेंगे वह बात कर रहे थे कि चाय वाला चाहे ले आया ढाबे वाला दोनों ने चाय पी पैसा दिया और अपना-अपना जोड़ा उठाकर आगे चल दिए मार्च का महीना होने के कारण ना तो ज्यादा सर्दी थी और ना ही ज्यादा गर्मी मौसम अच्छा था वह चलते चले गए उसकी सड़क पर कभी किसी पेड़ की छाया में थे और फिर चल दिए तो बीच में जहां भी कहीं ठिकाना पानी पी लिया करते थे दोपहर का कोई एक गया होगा दोनों धीरे-धीरे जा रहे थे उनको जोर की भूख लगी थी पेट भर आई हो जाए किस्मत से थोड़ी ही दूर एक वैश्णव ढाबा लिखा बोर्ड दिखा वह बोला सुनो भगवान यह ढाबा दिख रहा है यही कुछ खा लेते हैं वह बोली देखो जो शुद्ध शाकाहारी है तो है ना कहीं धर्म ही भ्रष्ट ना हो जाए हां ठीक लग रहा है खा ले कुछ जी फिर दोनों ढाबे में घुसकर एक खाट पर बैठ गए धागे वाले लड़के ने कहा चलाओ पहले तो पानी पिला दो भाई फिर कुछ खाने के लिए बिना लहसुन प्याज वाला दे दो क्या खाओगे दाल तड़का दाल फ्राई दाल मखनी कढ़ी पकोड़ा छोले मिक्स वेज कढ़ी पकोड़ा थोड़ी देर में दो और रोटियां लिया है था भाभी की खाट के बीचो बीच एक लकड़ी का पटा रखा था जो टेबल का काम कर रहा था दोनों आमने सामने बैठ गए और खाने लगे भूख जोरों की लगी थी सोच साथ साथ रोटी खा गए थे खाना खाकर थोड़ा सा सुस्ताने लगे थके हुए होने से नींद कब आई पता नहीं चला आंख खुली तो शाम के 5ः00 बज रहे थे हड़बड़ा कर शरमाए ने कहा लो जी यह क्या हो गया हाथ मुंह धो कर चाय पी तभी ढाबे वाले ने पूछा कहां जाओगे भाई साहब बड़े थके हुए लग रहे हो खाना खाते ही आप लोगों को नींद आ गई थी मैंने भी नहीं जगाया था शर्मा के मुंह से अचानक निकल गया चित्तौड़गढ़ जाना है भाई बहुत दूर है भाई चित्तौड़ तो हां तो तो है पैदल पैदल कैसे जाऊं मिलेगा तो देखेंगे कौन से गांव से आ रहे हो सच बोलूं या फिर झूठ बोलूं रायपुर से आ रहे हैं जी 50 किलोमीटर दूर है ख्याल करो जी वहां से रवाना हो गया वहां उसने धर्मशाला के लिए पूछा तो पता चला कि गांव के बस स्टैंड के पास एक तारा है उसी में रुकते हैं मुसाफिर दोनों उसी के बारे में जाना चाहिए तिबारा क्या था बस एक छोटा सा कमरा और उसके बाहर एक बरामदा सा उसी में रुकते हैं सारे मुसाफिर अब रात के खाने का भी तो जुगाड़ करना था तो शर्मा निकल पड़ा गांव में पता चला कि गांव में ज्यादातर लोग मेघवालों के हैं बाकी एकाद घर हरिजन कोहली और कुम्हारों के थे वह सोच में पड़ गया कि अब क्या करें एक ब्राह्मण होकर भला इंद्र छोटो से कैसे कुछ नहीं सोच रहा था वह गांव में चक्कर काट कर वापस आ गया मन गवाही नहीं दे रहा था कि अछूतों के गांव में रुका जाए लेकिन अब पैर साथ नहीं दे रहे थे कोई 9ः00 बजने को आए थे वह खाली हाथी लौट आया था शर्मा ने खाली हाथ देखकर कहा क्या हुआ जी गांव में कुछ नहीं है क्या अरे क्या बताऊं भाई हम लोग तो मेघवालों के गांव में रुके हैं मेघवाल हैं हरिजन है कोली है और कुमार है अब इनमें किसी का भी तो हम खा नहीं सकते हैं ना धर्म भ्रष्ट हो जाएगा अपना धर्म है भ्रष्ट हो तो जीना किस काम का ना ना ना भूखे सो जाएंगे और फिर भी लगाई थी अब क्या करें यही सोच रहा था वह तभी वह बोली सुनो जी बहुत जोर की प्यास लगी है आज तो मेरे को भी लगी है भगवान अब क्या करें एक बात बोलूं ही नहीं रहेंगे तो यह धर्म के काम का गांव छोड़ दिया अपना धर्म निभाने के लिए जीवन तो नहीं छोड़ सकते पास वाले घर में पानी लाती हूं और शर्माते हुए रोक नहीं पाया वाले घर में जाकर खटखटाने लगी अनजान औरतों को देखकर मुसाफिर कौन हो भाई मुसाफिर है हे भगवान जी आप हमारे घर का पानी सो तो है जी मर जाएंगे तो धर्म जात किस काम की आप से विनती है हम दोनों लोग लुगाई को तो मेहरबानी होगी आवाज लगाकर 2 लोगों का खाना बनाने के लिए कहा सोच रहा था धर्म कब देखती है इसने जात देखी है सच में भूख का कोई धर्म कोई जात नहीं होती है इसका कोई नहीं होता है पेट खाली हो तो पेट में अगर लगाती है तो दिमाग में लगाती है और जब रूपवती हो तो यह तन में आग लगाती है सामने अपने विचारों को विराम देते से उठकर भीतर जाना मुनासिब समझा पंडित जी आपके बारे में जाओ खाना बनते ही मैं आवाज लगा दूंगा पंडित जी को ही भेज देना शर्मा इन भोजन का इंतजार करके पानी लिए वापस तिवारी में आ गई अभी वहीं पर बैठे हुए थे चांद ने अपना रूप दिखा रखा था तो काम चल रहा था शर्मा ने पूछा भगवान मेघवालों का खाकर हम पाप के भागी तो नहीं बनेंगे कुछ देर रहने के बाद देखो जी आप किसने बनाए हैं इंसान नहीं बनाए हैं ना तो फिर इसे अपने तरीके से समझ लो वैसे सच बोलूं जी आज मेरी समझ में आ गया कि जो वक्त पर इंसान की मदद करें इंसानियत दिखाएं सही धर्म तो वही है जी बाकी तो सब अंडों की रची हुई दुनिया है आप ब्राह्मणों का या इन मेघवालों का आपका धर्म कहता है कि यह अछूत है इनका धर्म कहता है कि इंसान की मदद करना अच्छा है देखो जी मेरी तो आंखों पर बंधी हुई पट्टी खुल गई है अब आप भी खोलो वह ढोंगी भी तो ब्राह्मण सन्यासी ही था ना जिसके कारण आज हमारी यह हालत है उसका कौन सा धर्म था देखो जी मेरे को तो लगता है अपनी अपनी सहूलियत से ऊपर के लोगों ने नीचे वालों को के लिए धर्म बनाया खुद कुछ भी कर लो लेकिन नीचे वाले करें तो पाप पुण्य आड़े आ जाता है अब आप ही बताओ धर्म किसने बनाया था ऊपर वाले ने तो हम ब्राह्मणों और इन मेघवालों की शक्ल सूरत खून एक पाई दिया है ना ऊपर वाले ने तो लोगों को नीच बनाया ना कुछ बनाया सबको एक जैसी शक्ल सूरत और सबको एक ही एक ही रंग का खून दिया वह तो हमने ही किया है ना जी भेदभाव तो ऊपर वाले ने कोई भेदभाव ना करके भेजा शर्मा इनकी बातें सचमुच काटने लायक नहीं थी वह अपने ही विचारधारा पर फिर से सोचने लगा वह मन ही मन कह रहा था मुझसे ज्यादा समझदार तो तू ही है धूम का यह लबादा कितनी जितनी जल्दी उतार फेंका है इसमें और मैं हूं कि पढ़ा-लिखा भी हूं बीए पास हूं पर क्या मैंने किया यह ठीक नहीं है मोटा और पास वाले मेघवालों के घर के मुखिया के पास चला गया मुखिया ने उसे खाट पर बैठने को कहा और खुद नीचे ही बैठने लगा तो शर्मा ने कहा देखो जी ऊंच नीच इंसान की ही बनाई हुई है भगवान ने तो हम सब को एक ही बनाया है ना जी आप यही ऊपर बैठो लेकिन पंडित जी आपके बराबर कैसे बैठ सकता हूं आप ब्राह्मण देव हैं आज संकट में हैं लेकिन है तो हमारे लिए पूजनीय आप देखो जी यह सब अपने फायदे के लिए रची हुई बातें हैं हमारे लोगों ने हर जगह अपना फायदा देख है जी मैं भी उन्हीं में से एक हूं अभी थोड़ी देर पहले तक धर्म-कर्म पाप पुण्य यह सब मैं भी सोच रहा था लेकिन जब मेरी पत्नी ने आज मेरी आंखें खोली आज इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है जी मेरे लिए तो अभी हम भूखे हैं अभी हम भूखे हैं और वैसे भी आप खुद सोचिए कि इस भूख और प्यास में आप लोग हमारे काम आ रहे हैं हमारा धर्म हमारे जात बिरादरी वाले तो नहीं ना इसलिए अब मुझे समझ में आया कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है लेकिन साथ ब्राह्मण मेघवाल यह नहीं इसी तरह से बातें कर रहे थे कि दो थाली में खाना लगाकर उस ग्रह की गृह स्वामिनी और आगे आकर बोली एतराज ना हो तो आप यही जी और उसे दोनों ने भोजन किया बोल रही थी साथ ही कट जाएगी वह अपने ग्रह स्वामी से बोली देखो जी औरत के साथ साथ है इनके बारे में यदि कोई ऊंच-नीच हो गई तो अपनी और अपने गांव की तो ना की कट जाएगी वह कचोरिया का छोरा बदमाश भी है और अभी पंडिताइन जी के बुलाने गई तो ताजा कर रहा था इन लोगों को यही अपने घर में ही सुला लो जी पंडिताइन जी मेरे पास तो लेंगे और पंडित जी के लिए एक खास नहीं डाल देती हूं जी इस पर वह घर का मुखिया बोला हां यह बात तो सही है परदेसी है तकदीर की मौत मारे हैं और फिर ब्राह्मण की सेवा से धर्म ही तो होगा हमारे पंडिताइन यह सब बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी वह सिर्फ सोचने लगी धर्म के रखवाले हम लोगों ने तो किया है धर्म की रक्षा का लोगों को मूर्ख बना कर अपना उल्लू सीधा किया है सच में अगर धर्म सीखना है तो इन लोगों से सीखो ।