Vedas- Puranas-Upanishads Chamatkaar ya Bhram - 10 in Hindi Spiritual Stories by Arun Singla books and stories PDF | वेद, पुराण, उपनिषद चमत्कार या भ्रम - भाग 10

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वेद, पुराण, उपनिषद चमत्कार या भ्रम - भाग 10

प्रश्न : सामवेद क्या है ?

 

गुरु :  एक बार फिर दोहराना पडेगा, वेदों का मूल सिद्धांत है, जीवन जीने का ढंग है, हम जो सोचते हैं, विचार करते हैं, वही कर्म करते हैं, जो कर्म करते हैं उसी का फल मिलता हैं. जिसका पहला चरण है “हम जो सोचते हैं, विचार करते हैं”, और दुसरा चरण है “जो कर्म करते हैं”, और तीसरा चरण है”, उसी का फल मिलता हैं”. सामवेद में तीसरे चरण यानी देवताओं की उपासना व फल के बारे में बताया गया है. इस वेद का प्रमुख विषय उपासना है, और सूर्य देव से सामवेद का ज्ञान जगत को मिला.

 

आमतौर पर सामवेद को ऋग वेद के मन्त्रों का संग्रह माना जाता है. क्योंकि सामवेद ऋगवेद के बाद की रचना है, यह ऋग्वेद के बाद विकसित लोक कला व् संस्कृति का वर्णन करता है. ऋगवेद के समान सामवेद से भी समाज के तत्कालीन उन्नत समाज का पता चलता है, इसका अध्यन रुचिकर ही नहीं ज्ञानवर्धक भी है.

 

पहले बताया गया है कि, आरम्भ में एक ही वेद माना जाता था, बाद में आकारगत विशालता को देखते इस के चार भाग किये गए, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद. यह विभाजन मुख्यत पद्य, गद्य ओर गान साहित्यक विद्याओं पर आधारित है. ऋग्वेद पध्य में व् यजुर्वेद गध्य में और सामवेद गीत-संगीत प्रधान व् गान पर आधारित है.

 

सामवेद चारों वेदों में आकार की दृष्टि से सबसे छोटा है, परन्तु एक तरह से यह सभी वेदों का सार रूप है, और सभी वेदों के चुने हुए अंश इसमें शामिल किये गये है. इसलिए इसके 1875 मन्त्रों में से 69 को छोड़ कर सभी ऋग्वेद से लिए गए हैं. फ़िर भी इसकी प्रतिष्ठा सर्वाधिक है, जिसका एक कारण भगवान् श्री कृष्ण द्वारा गीता में सामवेद को सर्वश्रेष्ठ बताना है. गीता उपदेश में श्री कृष्ण कहते हैं, “मैं वेदों में सामवेद हूं”.

 

साम का अर्थ है, गायन, वेदों की गायन योग्य ऋचाओं के संकलन को सामवेद कहा जाता है. सामवेद को भारतीय संगीत का मूल कहा जाता है. यह संगीत का शास्त्र है, वैदिक ऋचा यानी पध्य में रचे मन्त्र का गायन किस पद्धति से किया जाये, उसके लिए ऋषियों ने विशिष्ट मंत्रों का संकलन करके विशिष्ट गायन  पद्धति को विकसित किया था. अब तो अधुनिक विद्वान् भी इस तथ्य को मानते है, कि समस्त स्वर, ताल, लय, राग नृत्य मुद्रा भाव सामवेद से ही निकले है.  नारदीय शिक्षा ग्रंथ में जिस सामवेद की गायन पद्धति का वर्णन है, उसे आज हम सा-रे-गा-मा-पा-धा-नि-सा स्वरक्रम के नाम से जानते हैं.

 

वैदिक काल में जिन वाद्य यंत्रों का वर्णन है, उनमे कन्नड़ वीणा, कर्करी और वीणा, दुंदुभि, आडंबर, तुरभ, नादी तथा बंकुरा आदि के नाम प्रमुख हैं.

 

सामवेद में सूर्यदेव की स्तुति की गई है. अग्नि पुराण के अनुसार सामवेद के मंत्रों के विधिवत जप से रोग व्याधि दूर की जा सकती हैं. यह, ज्ञानयोग कर्मयोग और भक्तियोग का संगम है. सामवेद में सरस्वती नदी के प्रकट और विलुप्त होने का वर्णन भी मिलता है.

 

ऋग्वेद के बाद युजुर्वेद, व् युजुर्वेद के बाद सामवेद की रचना की गई थी. और काफी लम्बे समय तक इन तीनों वेदों की मान्यता रही. इन तीनों वेदों में यज्ञ, देवता स्तुति, स्वर्ग प्राप्ति आदि को महत्व दिया गया था, इससे अलग चोथे वेद कहे जाने वाले अर्थववेद में ओषधियों, रोगनिवारक चिकित्सा, विज्ञान, दर्शन आदि के बारे में वर्णन किया गया है.

 

अर्थववेद को ब्रह्मवेद भी कहते हैं, इसको पध्य में लिखा गया है. इसमें अर्थशास्त्र के मौलिक सिद्धान्त दिए गये हैं, और इसने अर्थशास्त्र के हर पहलु को छुआ गया है. इसमें गृहस्थाश्रम के अंदर पति-पत्नी के कर्त्तव्यों तथा विवाह के नियमों, मान-मर्यादाओं का  वर्णन है. चारों वेदों में, अथर्ववेद की रचना सबसे बाद में हुई, यह वेदों का मन्त्र भाग है, इसमें धर्म, आरोग्य, एवं यज्ञ के लिये 5977 मन्त्र दिये गये हैं. 

 

इसके अलावा अर्थववेद की भाषा भी तीनों वेदों से ज्यादा सरल है.

 

शिष्य : अथर्ववेद क्या है ?

आगे कल, भाग … 11