What is written in the lines of the hands? in Hindi Motivational Stories by Saroj Verma books and stories PDF | लिखा है क्या हाथों की लकीरों में...

Featured Books
  • નિતુ - પ્રકરણ 52

    નિતુ : ૫૨ (ધ ગેમ ઇજ ઓન)નિતુ અને કરુણા બંને મળેલા છે કે નહિ એ...

  • ભીતરમન - 57

    પૂજાની વાત સાંભળીને ત્યાં ઉપસ્થિત બધા જ લોકોએ તાળીઓના ગગડાટથ...

  • વિશ્વની ઉત્તમ પ્રેતકથાઓ

    બ્રિટનના એક ગ્રાઉન્ડમાં પ્રતિવર્ષ મૃત સૈનિકો પ્રેત રૂપે પ્રક...

  • ઈર્ષા

    ईर्ष्यी   घृणि  न  संतुष्टः  क्रोधिनो  नित्यशङ्कितः  | परभाग...

  • સિટાડેલ : હની બની

    સિટાડેલ : હની બની- રાકેશ ઠક્કર         નિર્દેશક રાજ એન્ડ ડિક...

Categories
Share

लिखा है क्या हाथों की लकीरों में...

रेलवे प्लेटफार्म की घड़ी रात के आठ बजा रही थी,ट्रेन बस प्लेटफार्म पर आने ही वाली थी,जिसका मिस्टर गोम्स बड़ी बेसब्री से इन्तजार कर रहे थे और जैसे ही ट्रेन प्लेटफार्म पर रूकी तो मिस्टर गोम्स अपना सामान लेकर फर्स्टक्लास के डिब्बे में चढ़ गए,मिस्टर गोम्स जैसे ही फर्स्टक्लास के डिब्बे के भीतर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि एक लेडी बड़ी ही उदास सी अपनी सीट पर बैठीं थीं,मिस्टर गोम्स ने अपना समान रखा और फिर एक किताब अपने बैग से निकालकर पढ़ने लगे,कुछ देर के बाद जब मिस्टर गोम्स किताब पढ़कर ऊब गए तो उन्होंने सोचा उस लेडी से बात करके समय काटा जाए,इसलिए उन्होंने उस लेडी से पूछा...
"मैंम !कहाँ तक जा रहीं हैं आप"?
"जहाँ तक ये ट्रेन जाएगी",लेडी ने जवाब दिया....
उस लेडी का उत्तर सुनकर मिस्टर गोम्स समझ गए कि उस लेडी का उनसे बात करने का मन नहीं है, इसलिए फिर उन्होंने उस लेडी से कुछ नहीं पूछा और फिर कुछ ही देर में बैरा डिनर लेकर आ गया,जो कि मिस्टर गोम्स ने टिकट बुकिंग के साथ ही आर्डर कर रखा था,उस लेडी का डिनर भी आ चुका था उसने भी शायद पहले से ही आर्डर कर रखा था...
बैरा ने टेबल पर दोनों का डिनर लगा दिया और फिर चला गया,दोनों शान्ति से अपना डिनर खतम करने लगे,लेकिन मिस्टर गोम्स का स्वाभाव था कि वें बिना बात किए नहीं रह सकते थे इसलिए उन्होंने उस लेडी से कहा...
"खाना बड़ा ही जायकेदार और लजीज़ है,खासकर ये गार्लिक ब्रेड और टोमेटो सूप"
"जी!अच्छा है",लेडी ऐसे ही बेमन से बोली...
"लेकिन आपको देखकर तो नहीं लग रहा कि आपको डिनर पसंद आया है",मिस्टर गोम्स ने पूछा....
"ऐसी बात नहीं है ,मैं किसी और बात को लेकर परेशान हूँ",लेडी बोली....
"ऐसी क्या बात हो गई जो आप इतनी परेशान हैं"?, मिस्टर गोम्स ने पूछा...
"जी!मैं बहुत मेहनती हूँ और हाथों की लकीरों पर नहीं,अपनी मेहनत पर भरोसा रखती हूँ और इतनी मेहनत करने के बाद भी मेरा बूटीक नहीं चल रहा,मैनें अपने दिन रात काम में झोंक दिए लेकिन मेहनत रंग ही नहीं ला रही",लेडी बोलीं...
"लेकिन मैं मेहनत से ज्यादा हाथों की लकीरों पर भरोसा करता हूँ",मिस्टर गोम्स बोलें...
"मैं तकदीर पर भरोसा नहीं करती,हाथों की लकीरे कभी भी हमारी किस्मत नहीं बदल सकतीं,मेहनत ही इन्सान की जिन्दगी बदलती है",लेडी बोली....
"ठीक है!मैं आपकी बात का जवाब बाद में दूँगा,पहले हम दोनों एक दूसरे का परिचय तो जान लें" मिस्टर गोम्स बोले.....
"जी!मैं क्रिस्टीना फर्नांडीज",लेडी बोली...
"मैं रिचर्ड गोम्स",मिस्टर गोम्स बोले....
"तो मिस्टर गोम्स अब कहें कि क्या कह रहे थे आप! हाथों की लकीरों के बारें में",क्रिस्टीना ने डिनर करने के बाद अपने हाथ वाश-बेसिन में धोते हुए कहा...
और फिर मिस्टर गोम्स ने भी डिनर करके वाश-बेसिन में हाथ धोते हुए कहा....
"मैं कह रहा था कि मैं तदबीर से ज्यादा तकदीर पर भरोसा करता हूँ,मुझे लगता है कि इन्सान चाहे कितनी भी मेहनत कर ले लेकिन जब तक तकदीर उसका साथ नहीं देती तो वो सफल नहीं हो सकता",मिस्टर गोम्स बोलें...
"तो इसका मतलब है आप हाथ की लकीरों पर ज्यादा भरोसा करते हैं,,क्रिस्टीना बोली...
"हाँ!बिल्कुल! क्योंकि मैं आज जो भी हूँ वो तकदीर की बदौलत हूँ,मेरी हाथों की लकीरों में ऐसा लिखा होगा तभी मैं ने आज ये मुकाम हासिल किया है",मिस्टर गोम्स बोले...
"कुछ हुआ होगा आपके साथ ऐसा तभी आपको हाथों की लकीरों पर भरोसा है",क्रिस्टीना ने पूछा....
"जी!तभी तो कह रहा हूँ ",मिस्टर गोम्स बोलें....
"तो अपना तजुर्बा मुझसे भी कहिए",क्रिस्टीना बोली...
"तो फिर सुनिए",और ऐसा कहकर मिस्टर गोम्स ने अपनी कहानी सुनानी शुरु की....
ये तब की बात है जब मैं अठारह साल का था,मैं अनाथ था तो अनाथालय से मुझे पन्द्रह साल की उम्र में मुझे एक साहूकार ने गोद ले लिया था,मैं बड़ा खुश था कि मैं अब अनाथ नहीं रहूँगा लेकिन उस साहूकार को सन्तान की नहीं एक नौकर की जरूरत थी और उसने मुझे अपने खेतों की निगरानी के लिए अनाथालय से गोद लिया था,उसने मुझे अपने फार्म पर मुझे छोड़ दिया जो कि एक पहाड़ी के पास था,मैं रात दिन अकेला फार्म में बनी कोठरी में अकेला पड़ा रहता और साहूकार हफ्ते में एक बार फार्म आता और मुझे खाने पीने का सामान देकर वापस चला जाता,रात को जब अँधेरा छा जाता था और चारो तरफ साँय साँय की आवाज़ आती तो मुझे वहाँ बड़ा डर लगता,लेकिन सर्दी की रातों में साहूकार का आदेश था कि मुझे आग जलाकर फार्म में ही बैठना है कोठरी में नहीं और मैं उसका कहना टाल भी नहीं सकता था इसलिए मैं वही करता जो वो कहता था,इसी तरह उसके फार्म में काम करते मुझे तीन साल बीत गए और अब मैं अठारह साल का हो चुका था....
और उस रात अँधियारी ठण्ड भरी बारिश की रात थी और इस वक़्त मैं वहाँ अकेला था केवल मेरे साथ थी मेरे ‎दिल की धड़कन जो मुझे सुनाई दे रही थी,जो रैनकोट मैनें पहना था उसमें काफी छेद थे और उसमें से पानी रिस रिसकर मेरे बदन को भिगो रहा था, इतने में इतने ज़ोर से बिजली ‎चमकी, इतने ज़ोर की गड़गड़ाहट सुनाई दी कि मेरे पाँव तले से ज़मीन हिल ‎गई और फिर से अंँधेरा छा गया, एकदम सन्नाटा था ,बस कभी कभी उस समय वहाँ से गुजरने वाले एकाध हवाई जहाज की आवाज़ मुझे सुनाई दे जाती थी,एक बार साहूकार ने बताया था कि इस पहाड़ी के उस पार हवाई अड्डा है,
फार्म की पास वाली पहाड़ी पर अब भी बादल छाए हुए थे, बारिश भी मूसलाधार हो रही थी,तभी एकाएक रौशनी के साथ उस पहाड़ी पर एक धमाका हुआ,मुझे लगा बादलों की गरज है,लेकिन वहाँ बिजली नहीं चमकी थी क्योंकि बिजली तो पल दो पल के लिए चमकती है ,पर वहाँ तो रोशनी शोलों की तरह ‎भड़क रही थी,तभी मुझे समझ में आया कि कोई हवाई जहाज पहाड़ी पर गिर कर बम की तरह फट गया है,तभी मैनें मन में सोचा...
‎“हे भगवान...! “बेचारे मुसाफ़िरों का क्या हुआ होगा...”?
फिर मैनें वहाँ जाने का सोचा और देर ना करते हुए चल पड़ा,मेरे जूते फटे हुए थे,फिर एक जूता कीचड़ में रह गया और दूसरे का तला निकल आया था, सो ‎मैने उन दोनों को वहीं उतार कर फेंक दिया, अब मेरे नंगे पैर पत्थरों की हर नोक को महसूस कर सकते थे,शायद कट ‎कर लहू-लुहान भी हो गए थे, फिर भी मैं चलता ही रहा,मेरे दिल की धड़कन मुझे चलने को मजबूर ‎करती रही,मन कह रहा था कि ....
"जल्दी करो शायद तुम किसी मुसाफ़िर को बचा लो"
मुझे चलते चलते बहुत देर हो गई थी और अब मैं पहाड़ी की ढलान पर चढ़ रहा था या चढ़ने की ‎कोशिश कर रहा था, क्योंकि फिसलन इतनी थी कि दो क़दम ऊपर चढ़ता था तो चार क़दम फिसल कर फिर ‎वापस आ जाता था,अभी मैं थोड़ा ही आगे गया हूँगा कि मुझे पेड़ों में से ऐसी आवाज़ें आईं जैसे कोई राक्षस दहाड़ रहा हो ,मैं डरा लेकिन उस समय डरने का कोई मतलब नहीं था और फिर मैं आगें बढ़ा और बढ़ता ही गया अब पेड़ पीछे और नीचे रह गए थे,फिर झाड़ियाँ भी ख़त्म हो गईं, अब चट्टानों पर सिर्फ़ घास थी या काई ‎जमी हुई थी,बारिश अब बंद हो चुकी थी मगर जैसे-जैसे मैं पहाड़ी की चोटी पर पहुँचता जा रहा था,हवा तेज़ होती जा रही ‎थी,अब रेनकोट पहनने का कोई फायदा नहीं था इसलिए फिर मैनें रेनकोट उतार कर फेंक दिया....
आख़िरकार मैं चोटी पर पहुँच गया,वहाँ हवा इतनी तेज़ थी कि उसके लिए खुद को सम्भालना ‎मुश्किल हो रहा था,मैं अब उस जगह पर था जहाँ पर हवाईजहाज का मलबा छितरा पड़ा था और अभी भी उसके टुकड़े जलकर रौशनी फैला रहे थे,वहाँ और कोई तो नहीं दिख रहा था लगता था जैसे कि सब के परखच्चे उड़ गए हैं लेकिन एक आदमी वहाँ पड़ा कराह रहा था और मैं उसके पास पहुँचा,फिर मैनें अपनी तसल्ली के लिए एक बार चिल्लाकर पूछा....
‎‎“कोई ज़िंदा है... कोई ज़िंदा है...”
लेकिन कोई आवाज नहीं आई तो मैं उस आदमी को लेकर नीचे उतरने लगा,वो जिन्दा ज़रूर था मगर साँस मुश्किल से ले पा रहा था, उसके बदन पर किसी ज़ख़्म का कोई ‎निशान ना था मगर भयानक धमाके से उसे कोई ऐसी अंदरूनी चोट आई थी इसलिए सिर्फ़ बेहोश था,अब मैं उसका बोझ लेकर नीचे उतर रहा था,मैं जब थक गया तो उसे नर्म घास पर लिटा दिया,अब थोड़ी बारिश कम हो गई थी और कुछ देर के बाद मैं उसे लेकर फार्म भी पहुँच गया,फिर मैं उसे लेकर कोठरी के भीतर पहुँचा ,मैनें उसके गीले कपड़े बदले और आग जलाकर उसके हाथ पैर सेकें फिर उसके होश में आ जाने पर गरम दूध पिलाया और उसकी हालत में कुछ सुधार हुआ,फिर दूसरे दिन शाम के वक्त मुसाफिरों के परिवार जन आकर उन सबकी शिनाख्त करने लगें और उस शख्स की पत्नी भी आई जो कि निःसंतान थी और अपने पति को जीवित देखकर बहुत खुश हुई ...
ये कहते कहते मिस्टर गोम्स रूक गए तो क्रिस्टीना बोली...
"तो आप कहना चाहते हैं कि ये उस शख्स की किस्मत थी जो वो उस हादसे में बच गया",
"जी!नहीं",मिस्टर गोम्स बोलें...
"तो फिर",क्रिस्टीना बोली....
"फिर उन्होंने मुझे गोद ले लिया और जब तक वें दोनों जीवित रहे मुझे बड़े प्यार से अपना बेटा बनाकर रखा और फिर उन्होंने अपने अन्तिम समय में अपनी सारी जमीन जायदाद का वारिस मुझे बना दिया",मिस्टर गोम्स बोलें....
"ओह....तो जो आपको हासिल हुआ है वो आपकी मेहनत नहीं तकदीर थी",क्रिस्टीना बोली...
"जी!हाँ!बिल्कुल! क्योंकि लिखा है क्या हाथों की लकीरों में ये कोई नहीं जानता,कब किस पल आपकी किस्मत बदल जाए ये कोई नहीं बता सकता",मिस्टर गोम्स बोले...
"अब मुझे भी आपकी बात सही लग रही है कि तदबीर से ज्यादा तकदीर का महत्व है जिन्दगी में,केवल मेहनत ही सबकुछ नहीं होती,जब तक भाग्य साथ नहीं देता तो इन्सान आगें नहीं बढ़ सकता",क्रिस्टीना बोली...
"जी!मैं आपको यही समझाना चाहता था",मिस्टर गोम्स बोलें....
और दोनों के बीच यूँ ही बातें चलतीं रहीं.....

समाप्त....
सरोज वर्मा....