Paryavaran aur Bhartiyta in Hindi Anything by Yashvant Kothari books and stories PDF | पर्यावरण और भारतीयता

Featured Books
  • ભીતરમન - 59

    મુક્તારના જીવનમાં મારે લીધે આવેલ બદલાવ વિશે જાણીને હું ખુબ ખ...

  • ભાગવત રહસ્ય - 121

    ભાગવત રહસ્ય-૧૨૧   ધર્મ -પ્રકરણ પછી હવે -અર્થ -પ્રકરણ ચાલુ થા...

  • કૃતજ્ઞતા

      આ એ દિવસોની વાત છે જ્યારે માનવતા હજી જીવતી હતી. એક ગામમાં...

  • નિતુ - પ્રકરણ 53

    નિતુ : ૫૩ (ધ ગેમ ઇજ ઓન)નિતુને કૃતિ સાથે વાત કરવાની જરૂર લાગી...

  • સંઘર્ષ - પ્રકરણ 13

    સિંહાસન સિરીઝ સિદ્ધાર્થ છાયા Disclaimer: સિંહાસન સિરીઝની તમા...

Categories
Share

पर्यावरण और भारतीयता

पर्यावरण और भारतीयता

                                                 यशवंत कोठारी

            भारतीयता सम्पूर्ण रुप से हम सभी को रक्षित करती है। उसमें प्रारम्भ से ही र्प्यावरण को अत्यन्त मुखर स्थान दिया है। हमारी संस्कृति में वृक्ष, पेड़-पौधों, जड़ी बूटियों को देवता माना गया है। पवित्र और देवतुल्य वृक्षों की एक लम्बी परम्परा भारतीयता के साथ गुंथी हुई है। भारतीयता किसी व्यक्ति विशेप से नहीं प्रकृति, र्प्यावरण सांस्कृतिक चेतना और सांस्कृतिक विरासत में जुड़ी हुई है। तमाम विविधताओं के बावजूद भारतीयता के रक्षकों, पोपकों ने वृक्षों को पूजने की, उन्हें आदर देने की एक ऐसी परम्परा विकसित की जो भारतीयता में रच बस गयी। घुल मिल गयी। वृक्षों के महत्व को प्रतिपादित करते हुए हमारी संस्कृति में अनेक परम्पराएं और प्रथाएं विकसित की गयी जो वृक्षों, र्प्यावरण, संस्कृति, सुहाग, पूजापाठ, धार्मिक अनुप्ठान आदि से जोड़ दी गयीं। ये सभी चीजें कालान्तर में जाकर भारतीयता का पोपण करने वाली सिद्ध हुई। देश के कुछ आदिवासी क्षेत्रों में विवाह के समय वर-वधू एक पोधा लगाते हैं और जब तक यह वृक्ष हरा भरा रहता है, दाम्पत्य भी संखी और सम्पन्न रहता है। बड़ के पेड़ को सुहाग प्रदान करने वाला माना गया है। हर साल वट वृक्ष की पूजा की जाती हे। पीपल के वृक्ष पर भगवान विप्णु का वास बताया जाता है। पलाश के वृक्ष के नीचे शीतला माता का वास माना गया है।तथा इन वृक्षों की पूजा अर्चना से कई रोग भाग जाते हैं। इसी प्रकार आंवला, तुलसी, केला आदि कई पौधों की पूजा अर्चना का विधान हे। जो भारतीयता का एक मोहक रुप है। पीपल के वृक्ष को रामायण में भी मान्यता दी गयी है। तुलसी की पवित्रता, औसधीय उपयोगांे तथा महत्व पर तो कई पुस्तकें हैं जो बताती है कि प्राचीन भारतीय संस्कृति में तुलसी कितना महत्वपूर्ण पौधा था।

            भारतीयता के अनेक विविधताओं के बावजूद वृक्षों का संरक्षण, उनकी पूजा अर्चना का विधान है। वृक्षों के प्रति हमारी यह श्रद्धा अनादिकाल से चली आ रही है।

            अरण्ये ते पृथिवि स्येनमस्तु। अर्थात् हे पृथ्वीमाता। तुम्हारे जंगल, हमें आनन्द, उत्साह से भर दे। यही श्रद्धा और आदर का भाव बार बार हमें भारतीयता की ओर खींचता है। भारतीयता जो हमारे जीवन से जुड़ी हुई है। भारतीयता यानी हरी भरी वसुन्धरा, हरे पत्ते, कामदेव का वसन्त, चटकते फूल, श्रृंगार से ओतप्रोत वन, मादक गन्धयुक्त समीर, आजादी से उड़ते पक्षी, कोयल की मीठी वाणी, कुंलाचे भरते हिरण, शेर की दहाड़, हाथी की चिंग्घाड़, नाचता मोर, झरने, झीलें, कलकल करती नदियां ये सभी मिलकर र्प्यावरण बनाते हैं और बनाते है भारतीयता का एक सम्पूर्ण फलक। फलक के अन्दर सभी प्रकार के रंग है और रंगों से बना केनवास हमें भारतीय र्प्यावरण तक ले जाता है। आकर्पित करता है। प्रकृति का एक ऐसा मदकारी आदिम उत्सव जो अरण्य उत्सव कहा जा सकता है। यह अरण्य उत्सव भारतीयता का मौलिक स्वरुप है। ष्शायद ही विश्व के अन्य किसी भाग के प्राचीन ग्रन्थों में र्प्यावरण को इतना महत्वपूर्ण माना गया है।

            हमारे प्राचीन ऋपि-मुनियों ने भारतीयता की महक से परिपूर्ण र्प्यावरण की कल्पना की थी। यदि किसी वृक्ष को काटना बहुत ही जरुरी हो जाता तो प्राचीन शास्त्रों में वृक्ष पर रहने वाले प्शु पक्षियों से क्षमा याचना कर मंत्र पढ़कर सर्वजनहिताय वृक्ष को काटा जाता था। र्प्यावरण की सन्तुलन को बनाये रखनेख् उसे पूर्ण रुप से प्रकृति के अनुकूल रखने तथा विकास के साथ एक तादात्म्य और सामंजस्य रखने की पूरी प्रेरणा भारतीयता देती है। र्प्यावरण प्राकृतिक वातावरण से सीधा जुड़ा हुआ है और इसी कारण भारतीयता का प्रभाव र्प्यावरण और प्रकृति पर पड़े बिना नहीं रहता। प्राचीन ष्शास्त्र, साहित्य, संस्कृति, कला जो कुछ भी इस भारत भूमि पर विद्यमान रहा वह सब भारतीयता से परिपूर्ण है और यही बात प्रकृति, र्प्यावरण तथा वातावरण पर भी लागू होती है।

            भौतिकवादी उपभोक्ता संस्कृति ने सभी मानव मूल्यों को नप्ट कर दिया हे। प्रकृति के संरक्षण की बात करना पिछड़ेपन की निशानी मान ली गयी है। लेकिन यदि भारतीयता से र्प्यावरण की रक्षा होती है तो यह पिछड़ापन बुरा नहीं है।

            पेड़-पौधों को लगाना, संरक्षण करना, जीव जन्तुओं, पेड़-पौधों की रक्षा सब कुछ हमारा नैतिक दायित्व है, भारतीयता का कर्तव्य है। अगर हम इस कर्तव्य को पूरा कर सके तो एक शस्य शामला हरित भारत हमारे जेहन में जन्म लेगा तो भारतीयता से ओतप्रोत होगा और यह भारतीयता हमें शान देगी। मनन, चिन्तन, मंथन, संघर्प करने की शक्ति देगी जो र्प्यावरण के साथ मिलकर एक नया आभायुक्त प्रभामण्डल बनायेगी जहां पर किसी भी वृक्ष में कोई व्यथा नहीं होगी। होगी एक हंसी, एक खुशी आनन्द और उत्साह। उल्लास और उमंग से एमंग उठेगी धरती। यही संदेश होगा भारतीयता का।

 

0                                                                             0                                                         

1                                                                              

यशवंत कोठारी ,७०१ SB-5 भवानी सिंह रोड ,बापू नगर jaipur -३०२०१५