घर में पहुंचते ही सिद्धार्थ ने पहला फोन पहली बार किसी को लगाया होगा तो वो थी, प्रतीक्षा।
विषय एक ही, "रागिनी घर पहुँची क्या?"
"नहीं सिद्धार्थजी वो नहीं आई।"
यह वाक्य मानो कोई गरम लावा घोल रहा था कानो में। उसने कोई और बात ना सुनते झट से फोन काट दिया।
बेचैनी ने कब अधीरता का रूप ले लिया पता ही नहीं चला।
और अब जब सिद्धार्थ ने तुषार की गले पर निशान बने देखा तो उसने अपना आपा खो दिया।
गुस्सा और अधीरता शत्रु होते हैं विवेक बुद्धि के।
जो कोई भी झूठ साबित कर सकता था, सिद्धार्थ ने वही सच मान लिया था।
इसी एक वजह से पहली बार सिद्धार्थ का हाथ तुषार के कॉलर पर पहुंच गया।
"हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी?"
"क्या कह रहे हो भाई?"
"यह क्या है?"
"ओह ए! मैंने तो आपको पहला ही बताया था। रागिनीजी को काफी बैचनी हो रही थी।
तो हम दोनों खुली हवा के लिए आरामदायक जगह पर गए थे।"
"उनकी बैचनी कुछ ज्यादा ही बढ़ गई तो हम दोनों एक दूसरे का सहारा बनने की कोशिश कर रहे थे।"
सिद्धार्थ ने उसे दीवार पर धक्का दिया जिस कारण तुषार को भी दर्द का एहसास हुआ पर वो फ्लो में था।
"कुछ भी मत बोल, रागिनी ऐसी लड़की नहीं है।"
"आप तो दो दिन पहले ही मिले हो उससे आपको क्या पता कैसी लड़की है वो, आपको मुझ पर विश्वास नहीं।"
"We almost get close…"
सिद्धार्थ ने बिना सोचे एक घुसा लगा दिया तुषार के मुंह पर।
"बकवास बंद करो।"
"छोड़िए मुझे! हिम्मत कैसे हुई आपकी एक लड़की के लिए मुझे मरने की।" तुषार गरज (angry) पड़ा।
"वैसे भी आपको क्या प्रोब्लम है? अगर उसे कोई प्रोब्लम नहीं तो। वो तो बस एक रात बिताना चाहती है। वो तो मैं थोड़ा शरीफ़ हूं की...."
और एक घुसा..
"कुछ भी मत बोल।”
"क्यों भाई चुभा? क्या आप उससे प्यार करते हो क्या? हा बोलो ना भाई करते हो क्या, हा!!" तुषार उसे सच बकने के लिए उकसा रहा था।
"हा! मैं उससे प्यार करता हूं, दुर रह उससे।"
तुषार हस दिया। "तो फिर प्रॉब्लम कहा है? कबूल करो और यह रोज का ड्रामा खत्म करो।"
सिद्धार्थ तुषार से दूर हुआ।
"आप डरपोक हो भाई डरते हो आप।"
तुषार अपने मुँह का हुलिया ठीक करते हुए बोल उठा।
"आज मैं उसे अप्रोच कर रहा हूं, मैं आपके लिए उसका ख्याल छोड़ भी दू। लेकिन कब तक?
मैं नहीं तो कोई और होगा जो उसे लेकर जाएगा।
समय हर समय एक नहीं होता लेकिन समय के साथ-साथ आदतें एक जैसी होती है।"
"चित्रा के पागलपन ने आपको यहां लाकर खड़ा कर दिया लेकिन जिंदा रखा लेकिन रागिनीजी की आदत आपको तबाह कर देगी फिर कोई सिद्धार्थ नहीं रहेगा।"
तुषार बेहत ही गंभीरता एवं शांति से ये बात बोल रहा था। सिद्धार्थ को क्या बोले कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो बिना कुछ अपेक्षित प्रतिक्रिया देते हुए वहा से चला गया।
कुछ मिनट में रूम के बाहर, 10 मिनट में
घर के बाहर, कुछ 15 मिनट बाद मुहल्ले के बाहर कहा जा रहा है उसे पता नही था।
उसे कभी पता नहीं होता कि वो कहा जा रहा है।
लोग भी उसकी बर्बादी को आजादी समझते हैं।
भारत के सर्वश्रेष्ठ यात्री का मुकाम प्राप्त किया था उसने।
कोई नहीं जानता कि, ऑफ कैमरा कितनी बैचनी लिए घुमाता था वो।
तूफान मन में लेकर ही कितने तो भी शहर और वादिया पार कर लेता वो।
आज भी धीरे–धीरे सब पीछे छूट रहा था
धीरे धीरे आंखे बंद होने लगी थी।
आँखो से वो बोर्ड दिख रहा था, सारनाथ उसके बाजू K.m. पर सब कुछ धुंधलासा था।
और उसके बाद, शायद ही लोगो की आवाज़ सुनी गई थी। गाड़ी बहुत दूर ढकेली जा चुकी थी, मूर्छित शरीर।
वॉकी–टॉकी की वो आवाज, लोगो का उसे उठाना और आख़िरकार आंखें पूरी तरह बंद हो गई।
"हेलो!"
"U.P हाईवे पर एक एक्सीडेंट हुआ है, आपका नंबर। इमरजेंसी कॉन्टैक्ट में मिला।"
"आप कौन बोल रहे हैं?"
"ट्रैफिक पुलिस।"
"ड्राइविंग लाइसेंस पर सिद्धार्थ शुक्ला का नाम लिखा है।"
"भाई!" तुषार सिहर उठा।
"कोनसा हॉस्पिटल?"
हॉस्पिटल का पता बताते ही मानो तुषार जान हाथ में लेकर भागा।
हॉस्पिटल जा ही रहे था कि, उसे हॉल में ही थके सिद्धार्थ के माता पिता दिखाई दिए।
"क्या हुआ आंटी?"
"कुछ नहीं बेटा, इनके बड़े भाई का देहांत हो गया। वही से आ रह रहे हैं।"
"तुम कहा जा रहे हो?"
"वो कुछ नहीं भाई को…"
"भाई को क्या?"
तुषार ने हालत की नजाकत समझते हुए अपने शब्द चबा लिए।
"कुछ नहीं, आपको तो पता है ना, भाई के बारे में। भाई ने गाड़ी निकाली और अभी पेट्रोल नहीं है ऐसा बोल रहे थे।"
"क्या? लेकिन उसके ही भरोसे हम घर छोड़ गए थे।"
"हा लेकिन मेरे आते ही वो चले गए। बोल रहे थे मैं आ जाऊंगा।"
नारायण जी लड़खड़ाती आवाज में बोले, "गंगा! हमें वक्त है क्या? क्या टाइम वेस्ट कर रही हो।"
"जी सॉरी!" अपने पति को सम्बोधन कर बोली।
"यह जाते वक्त चाबी लेकर जा।"
"हम दो दिन घर नहीं रहेंगे। भाभी को हमारी जरुरत है।
जल्दी आने की कोशिश करेंगे।
सब लाइट फैन बंद कर देना और हा, खाने का इंतज़ाम राजू के यहां कर दिया है।
बहू को बोल दिया वो खिलाएगी खाना।
तुम लोगो को परेशान होने की जरूरत नहीं है। रसोई को हाथ भी मत लगाना चाय के सिवाए, समझे!"
तुषार ने हा मी सर हिलाया।
"गंगा!!"
"हा, हा जाते हैं, आप भी बैग भरने में मदद कीजिए।"
"हा, चलो।" नारायण जी बड़े भारी मन और पैरो से उठ गंगा जी के पीछे चल दिये।
तुषार बस चाबी लेकर वहां से निकल गया।
तुषार वहा पोहचते ही उसका सामना हवालदार से हुआ।
"U.P. Highway पर अपघात हुआ वो तो शुक्र है, ट्रैफिक पुलिस थी वरना पता नही क्या होता।"
"कैसे है भाई?"
"अंदर है, शराब पीकर गाड़ी चला रहा था क्या?"
"नही सर भाई तो शराब को हाथ भी नहीं लगाते।"
दोनो बात कर रहे थे की, डॉक्टर बाहर आए।
"पेशंट को measure injury हुई है, उन्हे चक्कर के कारण ऐसा हुआ होंगा शायद।"
"ब्लड रिपोर्ट में हाई मेडिसिन केमिकल्स सामने आए है, जो अकसर दिमाग को शांत रखने के काम आते है। मेडिसिन के ओवरडोज के कारण यह सब हुआ होंगा। बाकी सब होश में आने पर पता चलेगा।"
इतना कह डॉक्टर वहा से चले गए।
"मेडिसिन का ओवरडोज, मतलब तुम्हारे भाई ने मरने का प्लान बनाया था तो?"
"नही सर, वो स्कीझोफेनिया से ग्रसित है इसलिए उन्हें रोजाना गोलियां खानी पड़ती हैं।"
"मुझे नहीं पता कि यह कैसे हुआ, लेकीन भाई हमेशा अपने हेल्थ का ध्यान रखते है। इतना बड़ा हादसा पहले कभी नहीं हुआ।"
और कुछ पूछने जाए इससे पहले हवलदार का फोन बज उठा।
"हा मैं यही हु, नही सिर्फ आधा घंटा।"
"हा… हा…. पता है मुझे मैं पहले ही आने वाला था लेकिन बीच में एक्सीडेंट हो गया और मुझे चार्ज दे दिया गया।"
"हा, हा, मैं आ रहा हु। नही मेरी नाइट ड्यूटी नही।"
ऐसा लगता था, फोन बीवी का था।
हवालदार जाने–अनजाने में अपना दुखड़ा तुषार को सुनाने लगा, "गलती हो गई मेरी कितने दिनों बाद शहर से मेरा बेटा वापस आया है। जल्दी घर निकलने वाला था तो यह सब हो गया। एम्बुलेस में साहब ने मुझे बैठा दिया।"
"चल अभी मैं चलता हूं ध्यान रखना।"
"हा सर थैंक यू।"
"अच्छे से देखभाल करो खुदके भाई की, ज्यादा तबियत खराब हो तो बाहर मत जाने देना।"
"जी सर।"
इतना सा बोल वो वृद्ध हवालदार ज्यादा खरी खोटी ना सुनाते हुए हड़बड़ाहट में वहा से निकल गया।
उनके जाते ही, तुषार डॉक्टर की केबिन के और गया।
"डॉक्टर आपसे पेशंट के बारे में बात करनी थी।"
डॉक्टर ने कुर्सी के तरफ इशारा किया।
"भाई को क्या हुआ है?"
"ओवरडोज हुआ है मेडिसिन का, मेलनुट्रिशन (कुपोषण) का भी केस सामने आया है। इम्यून सिस्टम भी काफी वीक हो चुकी है।
"डॉक्टर उन्हे स्कीझोफेनिया की बीमारी है।"
"ब्लड रिपोर्ट में जो केमिकल स्ट्रेसेस मिले हैं वह साधारण गोलियों में नहीं मिलते, उससे मुझे शक हुआ ही था।"
"अगर वो स्कीझोफेनिया के पेशेंट है तो उन्हें अपना ज्यादा ध्यान रखना चाहिए।"
"उन्हें फ्यूचर में ऐसी कुछ तकलीफ नहीं होगी ना!"
तुषार के वाक्य में सिद्धार्थ के लिए चिंता साफ झलक रही थी।
"इस बारे में मैं कुछ नहीं बता सकता, इन जैसे पेशेंट के जिंदगी में सब कुछ भगवान पर और खुद पेशेंट पर निर्भर होता है की उनकी जिंदगी कैसे बीतेगी। उनकी चिंता उन्हें खुद करनी होगी।"
डॉक्टर एक रिक्वेस्ट थी, "मुझे भैया के साथ एक रात रहने की परमिशन चाहिए थी।"
"पेशेंट के साथ उनके रिश्तेदार ठहर सकते हैं लेकिन रखरखाव उन्हें खुद रखना पड़ता है। हॉस्पिटल कोई जिम्मेदारी नहीं लेता।"
"मैं खुदकी जिम्मेदारी खुद लूंगा, थँक्यू डॉक्टर।"
तुषार सिद्धार्थ की रूम की तरफ जा ही रहा था कि उसे कैश काउंटर दिखाई दिया।
तुषार को कुछ फॉर्म भरने की जरूरत तो पढ़ी नहीं वह फॉर्मेलिटी हवालदार ने पूरी कर दी थी पर पैसा भरना बाकी था। उसकी कोई खासी चिंता नहीं थी वह कल तक पैसे भर देगा।
तुषार यही कुछ ख्याल सोचते हुए हैं सिद्धार्थ की रूम में गया।
वहां और दो पेशेंट्स बाजू में सोए हुए थे। विजिटर शांति से बैठ सकें इसलिए 3 सीटर सोफा रखा गया था। सिद्धार्थ का बेड सोफे से नजदीक था। लेटे हुए सिद्धार्थ को तुषार देख सकता था।
तुषार उदासीनता भरी नजरो से, सिद्धार्थ की तरफ देख रहा था।
सिद्धार्थ के माथे पर बैंडेज लगे हुए थे। मुंह भी फूट चुका था। इससे यह पता चलता था कि सिद्धार्थ कितनी धांधडी में घर से बाहर निकला था वह भी बिना हेलमेट पहने।
तुषार का दिल धक-धक करने लगा किसी के तो भी साथ कि उसे जरूरत थी, घबरा गया था वो।
रागिनी का नंबर मोबाइल में फीड भी था फिर भी उसे वो यहां इस वक्त नहीं भुला सकता था।
इसलिए वो सिर्फ दीवार को अपना सर टीका आंखें बंद कर वहां बैठा रहा।
झूठ बोला था उसने हवालदार से की है पहले कभी कुछ ऐसा नहीं हुआ लेकिन उसे याद है, यह पहले भी कभी हुआ है।
बस तब कारण बीमारी थी, तब कारण चित्रा थी।
आज कारण रागिनी है।
यह तब की बात है जब तुषार नया-नया ज्वाइन हुआ था, ट्रैवल एजेंसी में।
और सिद्धार्थ के नीचे इंटर्न था, उसे सिर्फ अपने डिग्री के लिए पैसे कमाने थे।