वैम्पायर सम्राट ड्रैकुला के शरीर से अचानक ही वह क्रॉस एक झटके के साथ निकल गया.....क्रॉस निकलते ही उसका शरीर धीमे धीमे से जागृत होने लगा.....यह अत्यंत अशुभ घड़ी थी.....ड्रैकुला के कहर से दुनिया सिर्फ दो वजहों से सुरक्षित थी....एक तो उसके सीने में धंसा वह अभिमंत्रित क्रॉस,जिसने ड्रैकुला के शरीर को सदियों से सुप्त अवस्था मे डाल रखा था......और दूसरी वजह थी..…तिलिस्मी चक्रवात की वह कैद जिसने ड्रैकुला के शरीर को अपने अंदर समेट रखा था.....
आज ड्रैकुला एक लंबी नींद से उठ चुका था... शैतानी नजरो से उसने सबसे पहले अपने शरीर को निहारा.....सदियों से निष्क्रिय उसका जिस्म आज भी पूरी तरह सुरक्षित था.............यह देखकर ठठा कर हंस पड़ा शैतान सम्राट ड्रैकुला..... गर्दन को 360 डिग्री घुमा लेने के बाद एक जोरदार अंगड़ाई की उसने.......और फिर चक्रवात की इस कैद से बाहर निकलने के लिए अपना दाहिना पैर जैसे ही आगे बढ़ाया.....उस चक्रवाती कैद से टकराकर निकली तेज रोशनी ने चीखने को मजबूर कर दिया ड्रैकुला को.......
"आआआहहहहहह..... वैम्पायर बनने के पहली बात मेरे अमृत्व प्राप्त शरीर को दर्द का अहसास हुआ हूं...... वह भी मस्तिष्क को झकझोर कर देने वाला दर्द.....कैसी अजीब कैद है ये.....…प पर.मेरी रक्त पीने की तीव्र इच्छा मुझे अधिक समय तक इस कैद में नही रोक सकती...... क्योकि अब मैं जाग चुका हूं......... मैं इस कैद को तोड़ दूंगा बहुत जल्दी......उसके बाद बनाउंगा इस पूरी दुनिया को अपना गुलाम....…......"
होश में आ चुका ड्रैकुला इस दुनिया मे आने के लिए बेताब था......और उधर .....लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ एक नरभक्षी चमगादड के चंगुल में आ चुके थे........सिद्धार्थ पर झपट्टा मार के अपने पंजो में जकड़ लेने के बाद ये वैम्पबैट आसमान की ओर उड़ान भर चुका था।
चीत्कार करता हुआ पेट्रो लगातार कमजोर होते जा रहे जाल को तोड़ देने पर आमादा था...... विवेक ने पास जाकर उस पर पत्थरों से हमला कर दिया .....पत्थरो की मार से मजबूत चमड़ी वाले पेट्रो का कोई नुकसान तो नही हो रहा था.....पर लगातार पत्थरो की मार से वह झुंझला पड़ा...
पर इस जाल के अंदर फिलहाल वह अपनी ऐसी किसी शैतानी शक्ति का प्रयोग नही कर पा रहा था जिससे दूर से ही विवेक पर हमला कर सके.....
पेट्रो बुरी तरह से चिढ़ गया था.....अगर गलती से भी विवेक उसके पास जाता तो यकीनन वह जाल में कैद होने के बाद भी विवेक को अपने पंजो से ही नोंच डालता।
कुछ सेकेंडस के लिए विवेक पेट्रो की नजरो से ओझल हो गया......
लीसा पास में ही कटीले पेड़ो के तनों से कोई पदार्थ निकाल के एकत्रित कर रही थी....यह लिजलिजा पदार्थ गोंद था जो बबूल एवं अन्य जंगली वृक्षो पर आसानी से मिल जाता है.....इस गोंद को बैग से बोतल निकाल कर उन्होंने पानी के साथ घोल लिया...और फिर बोतल को अपने हाथों से पकड़ कर पीछे छिपाते हुए विवेक एक बार फिर पेट्रो के पास खड़ा था.....विवेक को अपने पास देख पेट्रो बौखला गया....और अपने जबड़ो को भींचने लगा....विवेक ने बोतल में भरा चिपचिपा घोल दूर से ही फेंकते हुए पेट्रो के चेहरे पर उड़ेल दिया.....सारे मुंह के साथ साथ यह उसकी आँखों मे भी भर गया......चिपचिपाती आँखों से कुछ देर के लिए पेट्रो को कुछ देर के लिए दिखना लगभग बंद ही हो गया....हालांकि वैम्पायर्स बिना आंखों के अपनी शैतानी इंद्रियों की सहायता से भी देख सकते है....पर इस जाल के अंदर पेट्रो ऐसा कर पाने में असहज महसूस कर रहा था......
विवेक ने मुक्कों और ठोकरों से हमला कर दिया था पेट्रो पर....देखने मे तो यह बेवकूफी भरा निर्णय था क्योंकि एक शक्तिशाली वैम्पायर को आप इस तरह कभी नुकसान नही पहुंचा सकते पर विवेक के इस निर्णय के पीछे वजह कुछ और ही थी।
क्रोध से चिंघाड़ता हुआ पेट्रो के पंजो में एक गर्दन आ गयी थी .....बिना देर किए उसने अपने खूनी दांतो से उस गर्दन को भींच लिया....टपकता हुआ ताजा रक्त बता रहा था कि पेट्रो ने आज फिर किसी का काम तमाम कर दिया।
पर यह क्या....पेट्रो अचानक से बहुत बुरी तरह से तड़पने लगा था....उसके साथ क्या हुआ है वह अब भलीभांति समझ चुका था।
चीखता,तड़पता पेट्रो का शरीर अचानक से धुंए में बदलता जा रहा था.....जी हां पेट्रो खत्म हो रहा था.....
सामने खड़ा था विवेक...जीवित....पर उसके चेहरे पर वो खुशी ,वो जोश नही था जो होना चाहिए...एक खतरनाक वैम्पायर के खत्म होने पर.....उसके जिगरी दोस्त के हत्यारे के खत्म होने पर......सारी इंसानियत के दुश्मन के खत्म होने पर.........आँसुओ से डबडबाती हुई आंखे लिए विवेक के चेहरे पर दुख साफ झलक रहा था....किसी और को खोने का दुख.....
पास में ही जमीन पर लीसा पड़ी हुई थी......शरीर का सारा रक्त नष्ट हो जाने के कारण एकदम सफेद पड़ चुकी थी वह.....आंखे खुली थी....और हल्की मुस्कान के साथ सुकून भरा चेहरा.....जो कहना चाह रहा था कि आज मैं नही हूँ तो क्या हुआ....कम से कम इस दुनिया को तो बचा लिया मैंने...... लीसा अब इस दुनिया मे नही थी .........पेट्रो के जबड़ो में आई गर्दन उसी की थी.....उसकी योजना अब सफल हो चुकी थी।
आसमान में उड़ते नरभक्षी चमगादड वैम्पबैट अचानक से गायब होने लगे थे.......शायद लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ की नियति उन्हें भी जिंदा रखना चाहती थी तभी तो इतनी देर मौत के पंजो में रहने के बाद भी वह बचे रहे.....और वैम्पबैट के गायब होने के बाद नीचे गिरते समय एक पेड़ की टहनियों से उलझ कर सुरक्षित बच गए।
टास्क फोर्स का टास्क पूरा हो चुका था..ड्रैकुला का इस दुनिया में आने का मंसूबा विफल हो गया....अब वह होश में तो है पर वह चक्रवाती कैद उसे बाहर नही निकलने देगी।
लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ के साथ विवेक ने कैथोलिक रीतिरिवाजों के साथ लीसा के मृत शरीर की अंत्येष्टि करके...उनकी कब्र पर ढेर सारे फूल अर्पण करके सारे देश एवं मानवजाति की तरफ से धन्यवाद किया ....और फिर दोनों पहुंच गए इंसपेक्टर हरजीत सिंह के हालचाल लेने अस्पताल।
हरजीत सिंह अब काफी बेहतर थे.....ईश्वर की कृपा से उनके प्राण बच गए थे.....विवेक को देखते ही कराहते हुए उसके गले से लग गए।
इस वैम्पायर अटैक में कई लोगो की जान गई....जनधन का काफी नुकसान हुआ पर फिर भी दुनिया पर आए संकट के टल जाने से सभी खुश थे......देहरादून और दिल्ली दोनों शहर अब सामान्य हो चुके थे।
बस विवेक चाह कर भी सामान्य नही हो पा रहा था...उसके कानों में लीसा का एक एक शब्द गूंज रहा था...... "ड्रैकुला हमला जरूर करेगा और तब तुम ही उसका सामना करोगे।"
क्या सच मे ड्रैकुला कभी हमला करेगा....और अगर करेगा भी तो मुझ जैसा अतिसाधारण इंसान उसका सामना कैसे कर सकेगा?
यह सवाल अक्सर विवेक की रातों की नींद भी उड़ा देते थे..पर इन सब का जबाब वक्त के अलावा और कोई दे भी नही सकता.......यही सोच कर विवेक ने अपने भविष्य को नियति के भरोसे छोड़कर अपनी सामान्य जिंदगी फिर से जीने का निर्णय लिया....
फिलहाल दुनिया सुरक्षित थी।
..........समाप्त........