वेद-पुराण-उपनिषद चमत्कार या भ्रम
भाग 2
गुरु : श्रुति का शाब्दिक अर्थ है, सुना हुआ. वेदों को पहले लिखा नहीं जाता था, क्योंकि तब तक कागज़ का आविष्कार नहीं हुआ था. इनको गुरु अपने शिष्यों को सुनाकर याद करवा देते थे, और इसी तरह यह परम्परा आगे चलती रहती थी.
तत्कालीन समाज में किसी भी नियम को पुर्ण प्रमाणिक बनाने या लागू करवाने के लिए उसे भगवान् से जोड़ देते थे. श्रुति वचन को बताया गया है कि, यह परमात्मा की वाणी है, इसे सबसे पहले परमात्मा ने ध्यानमग्न ऋषियों को उनके अन्तर्मन में सुनाया था. इस तरह वेद शब्द श्रद्धा और आस्था का प्रतीक बन गया. बाद में जब किसी भी शास्त्र की रचना की जाती थी, शास्त्र का लेखक, उसे प्रमाणिक बनाने के लिए शास्त्र के नाम के पीछे वेद शब्द जोड़ देते थे, जेसे कि धनुष चलाने के शास्त्र को धनुर्वेद तथा चिकित्सा के शास्त्र को आयुर्वेद कहा गया.
इस तरह वेद के नाम पर, पीढ़ी दर पीढ़ी, तत्कालीन समाज की जरूरतों को देखते हुए, शास्त्र विकसित होते रहे, ओर यही हिन्दू धर्म की खूबी बनी, ज्ञान की सरिता बहती रही .
प्रश्न : शास्त्र का क्या अर्थ है?
गुरु : शास्त्र का अर्थ विज्ञान है. शास्त्र वह विज्ञान है, जिसमे किसी कला, विद्या या विशिष्ट विषय का वैज्ञानिक ढंग से वर्णन और विश्लेषण किया जाता है. शास्त्र एक वैज्ञानिक पुस्तक ही है, जिसमे विज्ञान को धर्म की चाशनी में लपेट कर लोगों को दिया जाता था, ताकी व् इसको माने व् अनुपालना करें.
शास्त्र में, किसी विशिष्ट विषय या पदार्थसमूह से सम्बन्धित, मौलिक सिद्धान्तों से लेकर, अन्य समस्त ज्ञान को, ठीक क्रम से संग्रह करके रखा जाता है. भौतिकशास्त्र, वास्तुशास्त्र, अर्थशास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, आदि इसके उदहारण हैं.
किन्तु धर्म के सन्दर्भ में,
'शास्त्र' ऋषियों और मुनियों के बनाए हुए उन प्राचीन ग्रंथों को कहते हैं, जिनमें लोगों को क्या करना है व् क्या नहीं करना है, बतलाया गया है. शास्त्र की शिक्षा अनुशासन प्रदान कर हमारा मार्गदर्शन करती है, कभी-कभी हमारी उँगली पकड़कर हमें चलाती है.
शास्त्र और विज्ञान में मुख्य अन्तर यह है कि विज्ञान तो उन तथ्यों का वर्णन है, जो हमें अपने अनुभवों, निरीक्षणों आदि के आधार पर प्राप्त होता हैं, परन्तु शास्त्र का ज्ञान, विज्ञान से आगे बढ़ कर उन तथ्यों का आध्यात्मिक मनन करने पर प्राप्त होता हैं.
इसके अतिरिक्त विज्ञान का क्षेत्र तो वही तक सिमित रहता है, जहाँ तक वस्तुओं का संबंध प्रकृति से होता है, परन्तु शास्त्र का क्षेत्र इसके आगे विस्तृत होकर उस सीमा की ओर बढ़ता है जहाँ उस पदार्थ का संबंध हमारी आत्मा से स्थापित होता है, यानी जहां ध्यान में स्थित साधक को उस पदार्थ के गुण अवगुण का दर्शन होता है, यह एकदम सच है, इसी आत्म दर्शन से ऋषियों ने हजारों लाखों जड़ी बूटियों के गुण अवगुण के बारे में जाना, अजमाया व विश्व को चिकित्सा का उपहार दिया. चार वेद हैं,ऋग्वेद, यजुर्वेद,सामवेद, व अर्थव वेद । अर्थववेद में औषधीय ज्ञान का वर्णन मिलता है .
प्रश्न : ऋग वेद क्या है ?
आगे कल ......भाग 3
Refrence
हम बचपन से ही ये सुनते आये हैं, की हमारे वेद पुराण अंग्रेज चुरा कर ले गये और उन्होंने हमारे वेद पुराण पड कर, नये- नये आविष्कार किए, अब कुछ लोग पूछते हैं, भाई उन्होंने किये तो हमने क्यों नहीं किये,उसका जवाब यह है, हमने भी किये तभी तो भारत सोने की चिड़िया कहलाता था, परन्तु बाद में हजारों वर्षों की गुलामी में हमे ये अवसर नहीं मिला, फिर ये सवाल अक्सर उठता है, कि वेद पुराण वास्तव में चमत्कारी हैं, या ये केवल कल्पना है ?
मेरा मत है, वैद पुराण ना केवल चमत्कारी व् विज्ञानिक दृष्टिकोण से एकदम प्रमाणित हैं, बल्कि ये मानवता की शुरुआत व् विकास की कहानी है, जिसकी मैंने जन साधारण और सरल भाषा में आप तक पहुचाने की कौशिश की है.
तो आइये पहले ये तो जान लें की आखिर वेद, पुराण श्रुति, शास्त्र, मन्त्र, उपनिषद हैं क्यां. ये जानकारी आप पहुंचाने के लिए गुरु शिष्य परम्परा का सहारा लिया गया है, जहां शिष्य यानी जिज्ञासु जो अज्ञात को जानना चाहता है,सवाल करता है व् गुरु जिज्ञासा शांत करता है, तो शुरू करते हैं: