Banzaran - 9 in Hindi Thriller by Ritesh Kushwaha books and stories PDF | बंजारन - 9

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बंजारन - 9

रात के तीन(3) बज रहे थे और मनोज अमरपुरा के जंगलों को पार कर रहा था। चारो ओर गहरा अंधेरा छाया हुआ था। जंगल के ऊपर आसमान में काले बादल मंडरा रहे थे जिन्हे देखकर ऐसा लग रहा था मानो वे किसी भी पल बरस सकते हो। मनोज कोई और नहीं बल्कि तारपुरा गांव के सरपंच " वीरेंद्र चौधरी " का बेटा था, जिसकी रितिक ने कुछ घंटों पहले ही धुनाई की थी। मनोज घायल था और उसके मुंह से अभी तक खून निकले जा रहा था। वो मन ही मन रितिक को गालियां दे रहा था, क्योंकि रितिक ही उसकी इस हालत का जिम्मेदार था। मनोज खुद में ही बड़बड़ाता है–" छोडूंगा नही साले को, उसकी हिम्मत कैसे हुई मुझ पर हाथ उठाने की, उसको जिंदा नही दफना दिया तो मेरा नाम भी मनोज चौधरी नही।"

मनोज को कहा पता था कि रितिक को दुश्मनों की कोई कमी नहीं है, उसके दोस्त भी किसी दुश्मन से कम थोड़ी है। जिंदा दफनाने का काम तो वो लोग खुद भी कर सकते है। इधर मनोज अपनी ही धुन में चलता जा रहा था अभी कि तभी उसे कही से पायलों की आवाज सुनाई देने लगती है। पायलों की आवाज सुन मनोज जहा था वही पर रुक जाता है और अपने आस पास देखने लगता है। उसे अपने चारो ओर सिवा अंधेरे और झाड़ियों के कुछ दिखाई नहीं देता। मनोज मन ही मन कहता है–" ये तो पायल की आवाज है, इतनी रात में यहां कौन होगा? नही.. शायद ये मेरा बहम होगा।"

इतना कहकर वो वापस से आगे की ओर बड़ जाता है, तभी उसकी नजर अपने आस पास लगे पेड़ो पर पड़ती है। वो पेड़ देखने में किसी काले साए की तरह लग रहे थे, जो एकटक बस मनोज को ही घूरे जा रहे थे। मनोज डर के मारे अपनी आंखे बंद कर लेता है और आगे बड़ने लगता है। वही एक बरगद के पेड़ के पीछे से किसी की सुर्ख लाल आंखे उसे ही घूरे जा रही थी।

कुछ दूर आगे जाने पर मनोज का दम घुटने लगता है, उसे सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। ऐसा लग रहा था जैसे वहा ऑक्सीजन ना के बराबर थी। जो पेड़ अभी तक नॉर्मल लग रहे थे अब उनमें मूवमेंट होने लगी थी। पेड़ो की लताएं धीरे धीरे मनोज की ओर बड़ रही थी। जंगल में एक अजीब सी शांति सी छा गई थी जो किसी तूफान के आने से पहले की शांति थी। मनोज को अहसास होता है जैसे कोई उसके साथ साथ ही चल रहा हो। उसे घबराहट होने लगती है। घबराहट के मारे उसके कदम लड़खड़ाने लगते है। उसका पूरा बदन पसीने से भीग चुका था। तभी उसकी नजर जमीन पर पड़ती है और वो डर के मारे कांप जाता है। वो देखता है उसकी परछाई के साथ ही एक और परछाई वहा खड़ी थी। मनोज को अहसास होता है जैसे उसके पीछे कोई काला साया खड़ा है।

मनोज डरते हुए पीछे मुड़ता है लेकिन सिवाए अंधेरे के उसे कुछ दिखाई नहीं देता। मनोज तुरंत उस परछाई की ओर देखता है लेकिन वो परछाई भी अब गायब थी।

मनोज एक राहत की सांस लेता है और वापस से आगे बड़ने लगता है। उसकी घबराहट कम नही हुई थी और साथ ही वो जमीन पर देखे जा रहा था। तभी मनोज को एक खयाल आता है और वो मन ही मन कहता है–" आज तो अमावस्या है..."

इस ख्यालभर से ही उसकी रूह तक कांप जाती है और अगले ही पल उसे फिर से पायल बजने की आवाज सुनाई देती है। इस बार ये आवाज ठीक उसके पीछे से आ रही थी और उसकी तरह ही बड़ रही थी। मनोज कांपते हुए जमीन की ओर देखता है और उसे एक परछाई अपनी ओर आती हुई दिखाई देती है। वो डरते हुए पीछे मुड़ता है और तभी उसे एक काला साया उसके सामने खड़ा नजर आता है। उस साए की सुर्ख लाल आंखे अंधेरे में चमक रही थी। मनोज को उसकी आंखो में अपनी मौत नजर आने लगती है और उसके मुंह से एक शब्द निकलता है–" " बंजारन..."

इतना कहकर वो कांपते हाथों से टॉर्च उस काले साए पर मारता है। जब टॉर्च की रोशनी उस काले साए पर पड़ती है तो मनोज देखता है, वो काला साया किसी और का नही बल्कि एक खूबसूरत लड़की का था। उस लड़की की उम्र लगभग चौबीस(24) साल थी। उसने बंजारन वाले कपड़े पहने हुए थे, उसका वदन किसी गुलाब की तरह मुलायम था, जिस पर उसने काले रंग का लहंगा और लाल रंग की चोली पहनी हुई थी। उसके गले में एक काले रंग की चुनरी थी। वो लड़की देखने में किसी अप्सरा से कम नही लग रही थी। उसे देख तो कोई भी लड़का उसका दीवाना हो जाए। उसका यौवन इतना मदहोश करने वाला था की कोई भी मर्द उसकी बाहों में सिमटना चाहे। सामने खड़ी लड़की को देख मनोज अपनी लार टपकाने लगता है। ऐसा लग रहा था जैसे वो उसके सम्मोहन में चला गया हो। उसके कदम अपने आप ही उस लड़की की ओर बड़ जाते है। उस लड़की का यौवन देख मनोज के शरीर में एक आग सी लग जाती है। मनोज उस लड़की के पास जाकर खड़ा हो जाता है और उसके बदन को घूरने लगता है।

तभी वो लड़की कुछ कदम पीछे लेती है और पलटकर जंगल की ओर जाने लगती है। मनोज भी उसके पीछे पीछे जंगल की गहराइयों में जाने लग जाता है। वो लड़की मनोज को लेकर एक कोठी के सामने ले आती है और उसके अंदर चली जाती है। मनोज भी उसके पीछे पीछे उस कोठी के अंदर चला जाता है। कुछ देर तक सब कुछ शांत रहता है और अगले ही पल मनोज की एक दर्द भरी चीख चारो दिशाओं में गूंज जाती है। उसकी चीख के साथ ही जानवरो के रोने की आवाजे सुनाई देने लगती है।

सुबह के सात बज रहे थे। हवेली में ठाकुर साहब हॉल में बैठे हुए थे और पास ही में मोहन और दोनो लड़किया खड़ी हुई थी। शालिनी ने कल रात बाला किस्सा ठाकुर साहब को बता दिया था और साथ ही ये भी कि कैसे रितिक ने उसकी जान बचाई। शालिनी की बात सुनकर ठाकुर साहब का चहरा गुस्से से लाल हो गया था और उनके चहरे पर गुस्सा साफ दिखाई दे रहा था। ठाकुर साहब गुस्से के साथ मोहन से कहते है–" हमारे आदमियों को इक्कठा करो, हम अभी तारपुरा जाएंगे, उस वीरेंद्र के बेटे की हिम्मत कैसे हुई हमारे खानदान की इज्जत पर हाथ डालने की?"

मोहन सर झुकाए ही जवाब देता है–" जी ठाकुर साहब.."

इतना कहकर वो वहा से जाने लगता है, तभी ठाकुर साहब उसे रोकते हुए कहते है–" उन चारो लडको को हमारे पास भेजो।"

"जी.." इतना कहकर मोहन हवेली से बाहर चला जाता है।

हवेली से बाहर निकलकर मोहन रितिक और उसके दोस्तो के पास जाता है। घर के सामने पहुंचकर वो उनका दरवाजा खटखटाता है और तभी अंदर से किसी की आवाज आती है और दरवाजा खुल जाता है। रोमियो बाहर आता है और मोहन को देख उससे पूछता है–" क्या बात है मोहन भाई, इतनी सुबह सुबह यहां?"

मोहन कहता है–" हा वो तुम लोगो को ठाकुर साहब ने बुलाया है।"

" ये ठाकुर साहब आए दिन हमे ही क्यों बुलाते है? कोई काम धंधा नहीं है इनके पास।"

" ये तो वो ही जाने किस काम से बुला रहे है।"

" ठीक है, हम थोड़ी देर से आते है।"

इतना कहकर रोमियो वापस घर के अंदर चला जाता है और मोहन किसी को फोन करने लगता है। घर के अंदर आकर रोमियो अमर से कहता है–" हम लोगो को ठाकुर साहब ने बुलाया है।"

" क्यूं..." अमर पूछता कहता है और अमर की बात सुन रोमियो कंधे उचका देता है।

अमर आगे कहता है–" रितिक को उठ जाने दे, उसके बाद हम हवेली चलते है।"

" ये कुंभकरण की औलाद अभी तक सो रहा है, रुक अभी इसे उठाता हूं।"

करन मना करते हुए रोमियो से कहता है–" सोने दे बेचारे को, क्यूं परेशान कर रहा है?"

रोमियो चिड़ते हुए करन से कहता है–" क्या कहा बेचारा, ,कल की मार भूल गया, कैसे ये हम दोनो को मार रहा था?"

करन रोमियो को समझाते हुए कहता है–" वो बस एक गलतफहमी थी और कुछ नही और कहा तू इस बात को लेकर बैठा है, कल रात तूने देखा था ना, रितिक कितना घबराया हुआ लग रहा था, अभी इसे आराम करने दे, इसकी दिमागी हालत ठीक नहीं है।"

" हम्म्म ठीक है ठीक है, अब ज्यादा उसकी तरफदारी मत कर।" रोमियो मुंह बनाते हुए कहता है और बस चुप हो जाता है। कुछ ही देर में रितिक की नींद भी खुल जाती है और वो अंगड़ाई लेते हुए उठता है। उन तीनो को अपनी ओर घूरते देख रितिक उनसे पूछता है–" तुम लोगो को क्या हुआ?"

अमर कहता है–" हमे क्या होगा, हम तो तेरे उठने का ही इंतजार कर रहे थे?"

" क्यूं..मुझसे कोई काम था क्या?"

" नही, काम तो कुछ नही था, बस ठाकर साहब ने हवेली में बुलाया हैं।"

अमर की बात सुन रितिक के चहरे पर चमक आ जाती है। उसे तो बहाना मिल गया था चांदनी को देखने का इसीलिए वो खुश होते हुए कहता है–" हा तो चलो ना, देर क्यूं कर रहे हो?"

रितिक की बात सुन रोमियो चिड़ते हुए उससे कहता है–" साले खुद तो सुबह से सो रहा है और देर हम कर रहे है।"

रोमियो की बात सुन रितिक घड़ी में टाइम देखता है और झूठी हसी हस्ते हुए हुए जवाब देता है–" वो बस गहरी नींद लग गई थी इस वजह से।"

करन रितिक से कहता है–" ठीक है तू जल्दी से जाकर तैयार होजा। हम बाहर तेरा इंतजार कर रहे है।"

" ठीक है..." इतना कहकर तुरंत रितिक तैयार होने चला जाता है और उसके बाद वे लोग हवेली की ओर चले जाते है। कुछ ही देर में वे लोग हवेली पहुंच जाते है। इस समय हवेली के बाहर चालीस पचास लोग इक्कठा थे। भीड़ को देख रितिक और बाकी सब काफी ज्यादा हैरान थे।

अमर हैरानी के साथ कहता है–" यहां इतनी भीड़ क्यूं जमा है,?"

रितिक अपने आस पास देखते हुए कहता है–" पता नही, शायद भंडारा चल रहा होगा, तभी तो यहां इतनी भीड़ जमा है।" बात करते करते वे लोग हवेली के अंदर चले जाते है जहा ठाकुर साहब, वहा खड़े कुछ लोगो से बाते रहे थे। उन लोगो को देखते ही ठाकुर साहब उनके पास आते है और कहते है–" आ गए तुम लोग।"

" जी..." रितिक कहता है। उसके बाद ठाकुर साहब उन लोगो को लेकर एक कमरे में चले जाते है जहा शालिनी और चांदनी पहले से ही वहा मौजूद थी। चांदनी पर नजर पड़ते ही रितिक की सांस उसके गले में ही अटक जाती है। उसका दिल जोरो से धड़कने लगता है। चांदनी की चमकदार आंखे और ऊपर से उसके गुलाबी होंठ, रितिक को अपनी ओर आकर्षित करने लगते है। रितिक पर नजर पड़ते ही चांदनी भी अपना सर नीचे झुका लेती है और शर्माने लग जाती है। इधर कमरे में आ जाने के बाद ठाकुर साहब हाथ जोड़ते हुए रितिक से कहते है–" तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया हमारी इज्जत बचाने के लिए। अगर तुम नही होते तो आज पता नही क्या हो जाता, हम तो कही मुंह दिखाने लायक नही बचते, तुमने सही समय पर आकर हमारी बेटी की इज्जत बचा ली?"

ठाकुर साहब बोलते जा रहे थे और इधर रितिक का ध्यान तो कही और ही था। वो तो बस चांदनी को ही एकटक देखे जा रहा था। रितिक की हरकते देख शालिनी अपना माथा पीट लेती है और फिर इशारों इशारों में रितिक से कुछ कहने लगती है। शालिनी के इशारों का रितिक पर कोई असर नहीं होता, उसका ध्यान तो केबल चांदनी के शरमाते चहरे पर टिका हुआ था। तभी शालिनी चांदनी के सामने आकार खड़ी हो जाती है और बस फिर क्या था, रितिक अपने ख्यालों से बाहर आता है शालिनी को देख बुरा सा मुंह बना लेता है। तभी रितिक की नजर ठाकुर साहब पर पड़ती है और वो हैरान हो जाता है। वो देखता है कि ठाकुर साहब उसके सामने हाथ जोड़े खड़े है।

रितिक तुरंत ठाकुर साहब के हाथ पकड़ता है और हड़बड़ाते हुए कहता है–" ये..ये आप क्या कर रहे है?, आप हाथ मत जोड़िए, आप बड़े है मुझसे और रही बात भंडारे कि तो आप चिंता मत करिए, हम भंडारा खाकर ही जाएंगे।"

" भंडारा..." ठाकुर साहब हैरानी के साथ कहते है और कन्फ्यूजन के साथ रितिक को घूरने लग जाते है। रितिक की बात सुन तो वही खड़े सभी लोग अपना माथा पीट लेते है और शालिनी तो अपना बाल ही नोचने लगती है। उसके पापा यहां उसके सामने हाथ जोड़े खड़े है और उसे भंडारे की सूझ रही है। शालिनी रितिक के पास आती है और उसे पूरी बात बता देती है। शालिनी की बात सुन तो रितिक का रोना ही निकल आता है और वो रोनी सुरत लेकर ठाकर साहब को देखने लगता है। कहा तो वो चांदनी को देखने आया था और कहा तो उसने अपनी ही बेज्जती करा ली।