युवा ,रोज़गार और सरकार ---
देश भर में बेरोजगारी पर बहस हो रही है.संसद से लेकर सड़क तक हंगामा बरपा है.बेरोजगार युवाओं की लम्बी लम्बी कतारें कहीं भी देखि जा सकती है.सरकार एक पद का विज्ञापन करती है तो हजारों आवेदन आते है.लोग बेरोजगारों को पकोड़े बेचने तक की सलाह दे रहे हैं.कुछ लोग कह रहे है की रोजगार मांगने वाले नहिं रोजगार देने वाले बनो.लेकिन क्या यह सब इतना आसान है ?
भारत एक युवा देश है चालीस प्रतिशत आबादी के युवा है जिन्हें रोज़गार चाहिए.स्टेट को आइडियल रोज़गार प्रदाता माना गया है लेकिन कोई भी राज्य शत प्रतिशत लोगों को नौकरी नहीं दे सकता ,वो रोजगार के साधन बढा सकता है,यहीं पर केंद्र व् राज्य सरकारे गलत हो जाती हैं,वे रोजगार की योजनाओं को चला ने में असफल हो जाती है.जो थोड़े बहुत पद सरकार निकालती है उन पर भी नियुक्तियां टाइम पर नहीं हो पाती .कई बार तो सालों गुजर जाते हैं,बेरोजगारों पर फार्म की फीस,इंटरव्यू में आना .जाना , और एक कभी ख़त्म नहि होने वाला इंतजार.स्पष्ट लिखे तो नौकरी के लिए रिश्वत का जुगाड़ भी करना पड़ता है.और कई बार रिश्वत डूब जाती है.ऐसे उदाहरणों की कोई कमी नहीं है.
स्टार्टअप और बैंकों से लोन लेकर का म शुरू करना आसन नहीं हैं और जो काम शुरू किया चल जायगा इसकी कोई गारेंटी नहीं है ,हो सकता है कोई बड़ी कम्पनी आपके काम को खा जाये.और आप सड़क पर आजाये.परीक्षाओं की हालत ये की शायद जल्दी ही सिएटल में बैठा टेकी कुकस में नक़ल करा देगा,कर ले व्यवस्था क्या करती है?
एक विचार यह भी हो सकता है की बढती जनसँख्या की तुलना में रोज़गार नहीं है और एक विकल्प ये है की जनसख्या नियंत्रण पर ध्यान दिया जाये.लेकिन कोई सरकार इस मुद्दे पर बात करने की हिम्मत नहीं करती.केरल में जीरो जनसख्या वृद्धि है लेकिन रोज़गार की स्थिति ठीक नहीं है,कुछ युवाओं का यह कहना भी विचारणीय है की रोज़गार में युवतियां बा जी मार ले जाती है और पुरुष रोज़गार से वंचित रह जाते हैं .
तेज़ी से बेरोज़गारी बढ़ने का एक कारण शिक्षा के नाम पर तेज़ी से खोली गयी शिक्षा की दुकाने भी हैं.ये दुकाने बाज़ार के हिसाब से लोग नहीं बना रही है ये केवल पैसे लेकर डिग्री दे रही है जाओ बाज़ार में काम ढूढो.बाज़ार में काम का आदमी मिलता नहीं.रोज़गार देने वाला कम पैसे देगा.हायर एंड फायर की बात करता है.पक्की नौकरी या धंधा तो सरकार भी नहिं दे रहीं फिर निजी संस्था कहाँ से देगी.कोढ़ में खाज़ मानव संसाधनों को लेने के लिए टेंडर प्रक्रिया .काम को आउट सौर्स कर देना.मशीन के साथ मानव को ठेके पर लिया जा रहा है.कम्पनी उनका दोहरा शोषण कर रही है.मेडिकल नहीं पि ऍफ़ नहीं आधा वेतन.
सरकार की एक और बड़ी गलती ये है की वो साठ साल के उपर के लोगों को रख रही है.पैसठ सत्तर साल तक के लोग सरकार,संस्थाओं में जमे रहते है और इस कारण नयी पीढ़ी को रोज़गार नहीं मिलता है.नयी पीढ़ी में निराशा व् अवसाद व्याप्त है जो अक्सर आंदोलनों में दीखता है.
सरकारों को अपने नैतिक दायित्व को समजना चाहिये .खा ली दिमाग शैतान का घर वाली कहावत चरितार्थ हो रही हैं.युवाओं को काम धंधा नहीं मिलने के कारण उनकी शादी-विवाह में भी अडचनें आरही है इस कारन उनमे दोहरी निराशा व्याप्त हो रही हैं.पहले सरकारी स्कूल कालेज में पढ़ कर लड़का सरकारी नौकरी पा जाता था और नौकरी के साथ ही छोकरी भी मिल जाती थी अब सरकारी नौकरी तो भूल ही जाओ,तमाम तरह की बदिशों ,आरक्षणों व् रिश्वतों के बाद हज़ार में से एक अगर नौकरी पा भी जाता है तो बाकि ९९९ बन्दे क्या करे?कहाँ जाये?नौकरी की एक अंत हीन तलाश में आज का युवा हैरान परेशान है.युवा देश का युवा परेशां तो देश परेशान.
आखिर इस मर्ज़ की दवा क्या है?नए रोजगारों का नियमित स्रजन किया जाना चाहिए.पालिसी मेकर्स को यह बात समझनी चाहिए की बिन रोज़गार सब सून.विदेशों में जनसख्या के हिसाब से रोज़गार बनते हैं.भारत में अभी ऐसा होने में काफी समय लग जायगा.बेरोज़गारी के साथ ही कमतर रोज़गार भी एक बड़ी समस्या है अंडर एम्प्लॉयमेंट से निपटना संभव नहीं है.हर रोज़गार शुदा व्यक्ति अपने आपको अंडर एम्प्लोयेड बता सकता है.यहाँ तक की केबिनेट मंत्री भी खुद को ऐसा ही मानता है.
रोज़गार की अपनी मजबूरियां है लोकसेवा आयोग वर्षों तक भरती नहीं निकालते.निका लते तो प्रक्रिया पूरी नहीं होती, हो जाती है तो सरकार नियुक्ति नहीं देती.कुल मिला कर बेरोज़गारी से कोई सरकार जीत नहीं सकती.हर सरकार को इस लडाई में मुहं की खाना पड़ती हैं.युवाओं का कोई सुनहरा भविष्य किसी भी सरकार के पास नहीं हैं.००००००००००००