नीलिमा और सौरभ अब दो ही लोग घर में बचे थे। जब तक सास-ससुर ज़िंदा थे हालातों से जूझती नीलिमा ने सच्चे मन से उनकी ख़ूब सेवा की लेकिन ढलती उम्र के कारण वे दोनों भी उनका साथ छोड़ कर चले गए। अपनी व्यस्ततम ज़िन्दगी से समय निकालकर बच्चे कभी-कभी मां-बाप को याद कर लिया करते थे, जिसे केवल औपचारिकता ही कहा जा सकता है।
विवाह के कुछ वर्ष बाद पराग की पत्नी प्रेगनेंट हो गई। तब एक दिन पराग का फ़ोन आया, “हैलो मम्मा”
“हैलो पराग, कैसे हो बेटा?”
“माँ सब ठीक है, आपकी बहू प्रेगनेंट है। आप लोगों को यहाँ आना पड़ेगा। अब आपके बिना और कौन यहाँ सब संभालेगा।”
बिना सोचे, बिना देर लगाए, नीलिमा ने कहा, “हाँ बेटा, तुम लोग बिल्कुल चिंता मत करना। मैं कल ही आ जाती हूँ।”
सौरभ अभी रिटायर नहीं हुए थे इसलिए नीलिमा ने अकेले ही जाने का मन बना लिया। रात को उन्होंने सौरभ को अपनी बहू के प्रेगनेंट होने की बात बताते हुए कहा, “बच्चों को मदद की ज़रूरत है, मुझे जाना चाहिए।”
“हाँ तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो, चली जाओ।”
“पर सौरभ तुम अकेले …”
“मेरी चिंता मत करो, मैं ठीक तो हूँ। कुछ दिनों की बात है, मैं रह लूंगा।”
उसके बाद नीलिमा पराग के घर आ गई।
यहाँ भी उन्होंने अपनी बहू का बहुत ख़्याल रखा। घर में एक नन्ही परी भी आ गई। सब कुछ हो गया, अब नीलिमा वापस जाना चाह रही थीं लेकिन कुछ दिनों के लिए आई नीलिमा अब सब कुछ हो जाने के बाद भी वापस नहीं जा पा रही थीं।
एक दिन उन्होंने पराग से कहा, “पराग अब तो गुड़िया छः माह की हो गई है। वहाँ तुम्हारे पापा अकेले हैं, मुझे जाना होगा। अब तुम बहू की माँ को बुला लो, कुछ दिन वह संभाल लेंगी।”
“अरे नहीं मम्मा, अभी तो वहाँ भी पापा रिटायर नहीं हुए हैं, उनका ख़्याल कौन रखेगा?”
नीलिमा पराग के चेहरे को यह बोलते हुए देख रही थीं किंतु कुछ बोल नहीं पाईं।
इसी बीच सौरभ रिटायर हो गए और वह भी पराग के पास आ गए। पराग की बेटी को उन्होंने तीन साल का कर दिया।
एक दिन सौरभ और नीलिमा बैठे बात कर रहे थे। सौरभ ने कहा, “नीलू चलो, अब हम अपने घर चलते हैं। थोड़ा घूमेंगे फिरेंगे, तुमने तो कभी ख़ुद के लिए ज़िया ही नहीं है।”
नीलिमा ने कहा, “कैसी बात कर रहे हो आप? मैं अपनों के लिए जी, मतलब मेरे लिए ही तो जी हूँ। यह सब मेरे अपने ही तो हैं।”
“मैं कुछ नहीं जानता, मैं चाहता हूँ तुम्हें कम से कम चारों धाम की यात्रा तो करवा ही दूं।”
उनकी बात चल ही रही थी कि तभी उनके बेटे अनुराग का फ़ोन आ गया और फिर से एक बार वही परिस्थिति उनके सामने आकर खड़ी हो गई। अब अनुराग की पत्नी प्रेगनेंट थी।
अनुराग ने कहा, “पापा पराग भैया की बेटी तो अब बड़ी हो गई है। आप दोनों को अब यहाँ आना पड़ेगा, हमारे लिए, हमारे बच्चे के लिए भी तो आपका फ़र्ज़ बनता है ना पापा।”
यह सुनकर सौरभ ने अपनी इच्छा को अंदर ही किसी कोने में छुपा लिया और दोनों पति-पत्नी अनुराग के घर पहुँच गए, उन्हें मदद करने के लिए। पराग के समय में नीलिमा अकेली थी लेकिन अब कम से कम सौरभ उनके साथ थे, इसलिए उन्हें संतोष था। अनुराग के बच्चे की देखरेख में दो वर्ष निकले कि चिराग के घर भी उन्हें अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए जाना पड़ा।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः