जब घर में सुख और शांति का वास होता है तब कहीं ना कहीं से ऐसा कोई हादसा हो जाता है, जिससे सुख और शांति को विघ्न बाधा बाहर का रास्ता दिखा कर ख़ुद घर में प्रवेश कर जाते हैं। मालती की मौत ने उसके पति को तोड़ दिया उन्हें ऐसा सदमा लगा कि वह अपने आप को बहुत दिनों तक संभाल ना पाए। समय के काल चक्र ने उनका जीवन भी समाप्त कर दिया।
धीरे-धीरे समय की रफ़्तार के साथ बच्चे बड़े होने लगे। नीलिमा के ऊपर बूढ़े सास ससुर की जवाबदारी तो थी ही साथ में बच्चों के नाज़ नखरे भी उन्हें ही उठाने पड़ते थे। सब की अलग-अलग पसंद, अलग-अलग फरमाइश। नीलिमा सभी की इच्छा का पूरा-पूरा ध्यान रखती थीं। यदि कोई छूटता था तो सिर्फ़ वह स्वयं ही होती थीं। जिसका वह कभी ध्यान नहीं रखती थीं। सबसे बड़ा बेटा पराग इंजीनियरिंग कर रहा था। अनुराग और चिराग एम बी ए कर रहे थे। छोटी बिटिया मेडिकल में थी। पराग की पढ़ाई पूरी होते ही उसकी दूसरे शहर में नौकरी लग गई।
पराग की नौकरी लगने से नीलिमा जितनी खुश थीं उतनी ही दुखी वह उसके दूसरे शहर जाने के कारण थीं। लेकिन नौकरी तो करना ही थी इसलिए वह अपने आँसुओं को धैर्य के अंदर घोल कर पी गईं। इसी बीच नीलिमा और उनके पति सौरभ ने पराग का विवाह भी निश्चित कर दिया ताकि उसे अकेले रह कर परेशान ना होना पड़े। विवाह होते से ही पराग अपनी पत्नी को लेकर चला गया।
पराग की ही तरह अनुराग और चिराग की भी नौकरी लगते से ही नीलिमा और सौरभ ने उनका भी विवाह कर दिया। विवाह के बाद वे दोनों भी अपनी-अपनी पत्नी को लेकर घर से दूर चले गए।
नीलिमा का दिल दुखी था पर कहें किससे, बच्चों को अपने पल्लू से बांध कर तो वह नहीं रख सकती थीं। वह सोच रही थीं कि जब-जब जो-जो होना है तब-तब वो-वो होता है। भाग्य के लिखे को कोई नहीं बदल सकता। अब घर में बची थी शुभांगी, जो उसके साथ मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाले एक लड़के से प्यार करती थी।
पढ़ाई पूरी होते से उसने भी अपनी माँ नीलिमा के सामने प्यार का इज़हार करते हुए कहा, “मम्मा मैं राहुल से प्यार करती हूँ। वह दो तीन बार मेरे साथ घर भी आया था।”
“हां-हाँ मुझे याद है शुभांगी, प्यार करती हो, यह तो हम दोनों ही जानते हैं। लड़का अच्छा है, डॉक्टर है लेकिन इतनी भी क्या जल्दी है बेटा? अभी आगे पी जी भी कर लो।”
“नहीं मम्मा पी जी तो शादी के बाद भी हो जाएगा। राहुल के माता-पिता जल्दी कर रहे हैं। उनकी बात तो मानना ही पड़ेगा वरना उन्हें बुरा लगेगा।”
नीलिमा ने सोचा अपनी ख़ुद की माँ को बुरा लगेगा, दुख होगा, शायद यह शुभांगी सोचना ही नहीं चाहती है। जबकि वह जानती है कि उसके तीनों भाइयों के जाने से घर सूना हो गया है, उसे थोड़ा इंतज़ार करना चाहिए था। अब वह भी चली जाएगी, खैर उन्होंने उसकी इच्छा के मुताबिक उसका भी विवाह कर दिया।
अब चारों बच्चे अपने परिवार के साथ अलग-अलग अपना जीवन व्यतीत करने लगे। जो आँगन भरा पूरा था, जहाँ खुशियाँ उछालें मारा करती थीं वह आँगन जैसे धीरे-धीरे भरा था, वैसे ही धीरे-धीरे खाली भी होता चला गया। सूना पन अपने पैर पसारे हर तरफ़ झलकता था।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः