some questions on the judicial system in Hindi Anything by Kishanlal Sharma books and stories PDF | कुछ सवाल न्याय व्यवस्था पर

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कुछ सवाल न्याय व्यवस्था पर

शनिवार 1 जुलाई गुजरात हाईकोर्ट ने तीस्ता को जमानत देने से इनकार कर दिया और तुरंत सरेंडर करने के लिए कहा।
वह सुप्रीम कोर्ट चली गयी।जैसे हर नागरिक को अधिकार है,उसे भी न्याय पाने का अधिकार है।एक जगह से न्याय नही मिलता तो आदमी उच्च अदालत में जा सकता है।यह अधिकार हमारा सविधान हर भारतीय नागरिक को देता है।
लेकिन क्या इस अधिकार का उपयोग हर नागरिक कर पाता है।
हमारे देश की आबादी 130 करोड़ से ऊपर है।सरकार हर माह कोविड काल से 80 करोड़ लोगों को हर माह फ्री राशन दे रही है।इसका मतलब इतने लोग आर्थिक रूप से कमजोर है।
कुछ महीने पहले हमारी महा महिम राष्ट्रपति ने भी एक कांफ्रेंस में न्याय का मुद्दा उठाया था और कहा था कि लोग छोटे छोटे अपराधों में जेल में बंद है और उनकी पैरवी करने वाला कोई नही है।अगर लोग न्याय के लिये लड़ना चाहे तो या तो उनके घर बिक जाते है या वे कर्जदार बन जाते है।इस बात का सीधा सा मतलब है।न्याय पाने के लिए पैसा चाहिए।पैसा है तब ही एक आम भारतीय न्याय का दरवाजा खटखटा सकता है।अगर पैसा नही है तो न्याय पाना मुश्किल है।
एकदम सीधे सुप्रीम कोर्ट के बड़े और महंगे वकीली कि फीस पर आते है।मैं फीस के बारे में वो ही कह रहा हूँ,जो मैने मीडिया या अन्य सूत्रो से सुना है।कितना सच है,मैं नही कह सकता।सुना था राम जेठमलानी 25 लाख फीस लेते थे।अब राम जेठमलानी तो है नही।आज भी सुप्रीम कोर्ट में बड़े बड़े वकील जो राजनेता भी है।10 से 15 लाख तक फीस लेते हैं।अब सरकर की नजर में 80 करोड़ लोग गरीब है।वो तो एक साल में लाख,दो लाख से ज्यादा नही कमा पाते।फिर उसके पास वकील के लिए 10 या 15 लाख कहा रखा हैं।मेरी राय में ऐसे लोगोकी संख्या 80 करोड़ से ज्यादा है।
न्याय पैसे से खरीदा जाता है।यह बात आम जनमानस में प्रचलित है।इसके लिए पहले आपका ध्यान एक केस की तरफ ध्यान दिलाना चाहता हूं।आपको कुछ साल पहले का सलमान खान का केस याद होगा।जब लोअर कोर्ट में मामला अटका तो उसी दिन हाई कोर्ट से जमानत मिल गयी थी।अब आप कह सकते है।यह मुम्बई का ही मामला था।अब सुप्रीम कोर्ट पर आते है।आप को भी याद होगा कैसे आधी रात को अपराधियो के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रात में सुनवाई की है।पवन खेड़ा का मामला तो बिल्कुल ताजा है।सुप्रीम कोर्ट तुरन्त सुनवाई के लिए तैयार हो गया और जमानत दे दी।
अब आते है तिस्ता पर
गुजरात और दिल्ली की दूरी आपको मालूम है। 1 जुलाई को शनिवार को गुजरात हाई कोर्ट में तीस्ता को जमानत देने से कोर्ट ने साफ इंकार कर दिया और उसे तुरंत सरेंडर करने के लिए कहा।लेकिन तिस्ता सुप्रीम कोर्ट चली गयी।
कोई भी जा सकता है।न्याय पाने का अधिकार हमारा सविधान सब को देता है।
फिर सवाल क्या है?
सवाल यह है कि वह इतनी जल्दी दिल्ली कैसे पहुंच गई।।या वह दिल्ली में ही थी।दूसरे उसे पता था कि जमानत अर्जी खारिज हो सकती है।इसलिए उसने पहले से ही वकील तैयार कर रखे थे।और हो सकता है(सम्भावना)वकीलों ने भी पहले से ही सेटिंग कर रखी हो तभी तो शनिवार को रजिस्ट्रार भी तैयार और तुरन्त सुनवाई और जब दो जजो के फैसले में विभिनता थी तुरन्त 3 जजो की बेंच भी बैठ गयी।
इस प्रक्रिया में तीस्ता ने कितना रुपया खर्च किया।क्या आम आदमी कर सकता है?अगर नही तो फिर न्याय पैसे से ही खरीदा जा सकता है।
और अंत मे
सरकार बदल गयी तो क्या
सिस्टम तो हमारा ही है