‘नेंसी हेंक्स’ नाम की एक अच्छे स्वभाव की सुंदर लडक़ी थी। थोड़ी उम्र में उसका हैनरी स्पेरो नामक व्यक्ति से विवाह हो गया, किंतु कुछ काल मे वह रिश्ता टूट गया। नेंसी वर्जीनिया के चाय बागान के मालिक के संपर्क में आकर उससे गर्भवती हो गयी। इसी दशा में नेंसी ने थॉमस लिंकन से विवाह कर लिया। आगे चलकर नेंसी से जो बालक पैदा हुआ उसका नाम अब्राहम लिंकन पड़ा। इस प्रकार अब्राहम लिंकन की माता का नाम नेंसी हेंक्स था और उनका पिता वर्जीनिया के चाय बागान का मालिक था, परंतु उससे अब्राहम लिंकन का सामना जीवन मे कभी नही हुआ। अब्राहम को जो प्रसिद्ध पिता के रूप में मीले वे थॉमस लिंकन थे।
थॉमस लिंकन कुल्हाड़ी से लकड़ी चीरकर बाजार में बेचते थे और कभी-कभी उनको लकड़ी चीरने के लिए कोई मजदूरी पर बुला लेता था कुल मिलाकर कुल्हाड़ी से लकड़ी चीरना उनका पेशा था। इसमे आमदनी बहुत कम थी और परिवार में नौ सदस्य थे। उनके भोजन-वस्त्र का इंतजाम करना कठिन होता था। अब्राहम लिंकन जिस कमरे में जन्मे थे वह 16×18 फिट मिट्टी की फर्श का था। उसमे ही एक मिट्टी की चिमनी थी जिससे रसोई पकाने का धुआं बाहर निकलता था। नौ सदस्यों का परिवार इसी एक कमरे में रहता था।
थॉमस लिंकन द्वारा नेंसी हेंक्स से तीन बच्चे हुए। इस प्रकार अब्राहम लिंकन चार भाई-बहन थे। थॉमस लिंकन और नेंसी हेंक्स दोनों अब्राहम लिंकन को प्यार से ‘एबी’ कहकर पुकारते थे।
संयुक्त राज्य अमेरिका होजिनविली के पास 'केंटुकी' नामक स्थान में 12 फरवरी, 1809 ई. में अब्राहम लिंकन का जन्म हुआ था। अब्राहम लिंकन छह वर्ष के हुए तब उन्हें केंटुकी की प्राथमिक शाला में पड़ने के लिए प्रवेश कराया गया। वे एक वर्ष तक इस पाठशाला में पढ़ते रहे। गरीबी के कारण उन्हें ठीक कपड़े और जूते नही मिलते थे। अपने साथ के सजे-धजे बच्चो को देखकर अब्राहम हीनभावना से भर जाते थे। किंतु अब्राहम लिंकन पढ़ने-लिखने में तीव्र थे और उनकी लिखावट सुंदर होती थी। उनकी दृष्टि तीव्र थी। उनकी अभिव्यक्ति-शक्ति भी तीव्र थी। ‘एबी’ खेलता भी अच्छा था। मित्र बनाने में भी कुशल था। उसकी व्यवहार कुशलता अन्य बच्चों को आकर्षित करती थी। वह बच्चों को प्यार और आत्मीयता देता था। अतएव एबी सबका प्यारा रहता था।
काम-धंधे को लेकर थॉमस लिंकन अपना परिवार लेकर केंटुकी को छोड़कर स्पेंसर काउंटी आ गए। इस समय एबी की उम्र सात वर्ष की थी। परिवार का निर्वाह होना कठिन हो गया था इसलिए थॉमस लिंकन ने सात वर्ष के एबी की पढ़ाई छुड़ाकर उसके हाथ मे कुल्हाड़ी पकड़ा दी और उसे अपने साथ लकड़ी काटने-चीरने के काम मे लगा लिया।
लेकिन एबी सबेरे जल्दी नित्यक्रिया से निपटकर बाइबिल, कहानियां, यात्रावृत्तांत, अमेरिका के महान नेता तथा राष्ट्रपति वाशिंगटन की जीवनी पड़ता और शाम लकड़ी चीरने का काम निपटाकर बच्चो के साथ खेलने के लिए भाग जाता।
नेंसी हेंक्स व्यवहार कुशल और सह्रदय थी। वह बच्चों और पति से सुंदर और प्रेम का बर्ताव करती थी, परंतु दुर्भाग्य यह कि जब एबी नौ वर्ष का था तभी नेंसी हेंक्स की मृत्यु हो गयी। एबी (अब्राहम लिंकन) को सम्बन्धियो से अपने बालपन में ही पता लग गया था कि जिसके पास वह रहता है वह उसका जन्मदाता पिता नही है। इससे एबी के मन मे एक विभाजक रेखा उभर आई थी, परंतु वह माता नेंसी और पोषक पिता थॉमस लिंकन से भरपूर प्यार पाता था। अतएव माता के मरने पर नौ वर्ष का ऐबी अपने को अनाथ अनुभव करने लगा और वह बार-बार माँ के मोह में रो पड़ता था। उन्होंने आगे चलकर अपनी माँ के प्रति कहा था
“मैं जो कुछ आज हूं, सब माँ का प्रताप है।”थॉमस लिंकन अपने छोटे बच्चों को दारिद्रय दशा में पाल नही सकता था। अतएव उसने साराह जोंस्टन नाम की स्त्री से विवाह कर लिया। साराह जोंस्टन को पहले पति से तीन बच्चे थे। वे भी साथ मे थे। ऐबी की सौतेली माँ अब साराह जोंस्टन थी। साराह जोंस्टन ने जब थॉमस लिंकन से विवाह किया तब वह साराह लिंकन कहलाने लगी। सौतेली माँ के घर मे आने से एबी और सिमट कर रहने लगा। एबी पिता के साथ लकड़ी चीरता और सुबह-शाम समय निकालकर बाइबिल आदि पुस्तके पढ़ लेता और बच्चों के साथ खेल लेता।
घर मे एबी ही बड़ा बच्चा था। साराह लिंकन एबी के मन का अध्ययन करने लगी और उसे एबी को संभालने की चिंता सताने लगी।
एक दिन एबी शाम को खेलकर घर मे आया, पानी पिया ओर घर के पिछवाड़े जाकर घुटनों पर मुह रखकर रोने लगा। साराह लिंकन एबी के पीछे पहुंच गई और उसे रोते पाया। साराह ने ऐबी के मुंह को उठाकर उसे अपनी गोद मे रख लिया और कहा कि बेटा! तुम परिवार के बड़े बच्चे हो और तुम ही जब इस तरह रोओगे तब तुम्हारे अन्य भाई-बहन की क्या दशा होगी?
एबी ने कहा कि मुझे माँ की याद आती है। साराह ने कहा कि अब तो वह लौट नही सकती। आज से मैं तुम्हारी माँ हूँ और दुःख बंटाने वाली मित्र भी हूं। तुम आज से अपनी हर पीड़ा मुझसे अवश्य बताओ। मैं तुम्हारी हर पीड़ा को मिटाने का प्रयत्न करूंगी। मैं तुम्हे दुःखी नही रहने दूंगी। सौतेली माँ से एबी इतना प्यार पाकर भावविभोर हो गया।
सौतेली माँ से सगी माँ जैसा प्यार पाकर एबी आश्वस्त हो गया और अपनी माँ के वियोग का दुःख भूलने लगा।
साराह लिंकन शिक्षित और सुसंस्कृत महिला थी। उसने एबी को स्कूली शिक्षा में लगा दिया। अब तक एबी सात स्कूल छोड़ चुका था। जीवन की समस्या से उसे हर स्कूल छोड़ना पड़ा था।
थॉमस लिंकन स्पेंसर काउंटी भी छोड़कर परिवार सहित इंडियाना चले गये और वहा पर वे खेती का काम करने लगे। वे 1830 ई. तक इंडियाना में रहे। एबी की उम्र अब इक्कीस (21) वर्ष की हो गई थी और वह लकड़ी चीरने का काम करते हुए पढ़ाई भी करते रहे। सन् 1830 में ही थॉमस लिंकन अपनी पूरी जमीन 125 डॉलर में बेचकर इलीनाइस नामक प्रदेश में चले गये।
अब्राहम लिंकन यहां से अपने पिता का साथ छोड़कर और अपने सौतेले भाई जॉन हेंस्टन तथा चचेरे भाई जॉन हेंक्स के साथ न्यू आरलीन्स चले गये। परंतु वे वहां भी नही रहे, अपितु ऑफेट नामक व्यक्ति के साथ न्यू सलेम नाम के एक छोटे गांव में जाकर रहने लगे। एक वर्ष तक अब्राहम लिंकन भटकते रहे। सन 1831 ई. तक अब्राहम लिंकन छह फुट चार इंच का लंबा युवक हो गया।
अब्राहम लिंकन युवक थे, चुलबुले थे, मित्रो को चुटकुले सुनाने में प्रवीण थे। उनको देखकर लोग बोल पड़ते थे– “लंबू! चुटकुले सुनाओगे?” फिर उनके चुटकुले शुरू हो जाते थे। उन्हें सुनते-सुनते लोग हँसते-हँसते भावविभोर हो जाते थे। अब्राहम लिंकन अपनी व्यवहार कुशलता से लोगो मे प्रिय हो गये थे। उन्हें लोग प्यार से 'नॉटी बॉय' कहते थे। साथ-साथ उनके लेख प्रभावशाली हो गये थे। उनके लेखों के विषय मे वहां कहावत चल पड़ी थी–
Abraham Lincoln his hand and pen! He well be good but God knows when लिंकन के हाथ और उनकी कलम! सचमुच वह अच्छा लिखेंगे पर भगवान जाने कब!
बाइस वर्ष के युवक लिंकन एक बार मित्रो के साथ न्यू ओरिलयंस शहर गये। वहां उन्होंने पहली बार गुलाम-प्रथा का वीभत्स रूप देखा– गोरे काले नीग्रो को जिनके प्रति भागने का डर होता था, लोहे की जंजीर में बांधकर रखते थे। उन्हें कोड़े लगाते थे, भूखे रखते थे। नीग्रो सब अपमान सहनकर उनके काम करते थे।
लिंकन ने बाजार में बिकती हुई एक नीग्रो युवती को देखा। उसे ऊंची जगह पर खड़ी कर दिया गया था, जिससे उसे लोग देख सके। उसका मालिक गोरा उस काली युवती के अंगों पर हाथ फेरता जाता, उसकी बनावट की प्रशंसा करता जाता। वह उस युवती को धीरे-धीरे चलाता जिससे खरीदने वाले उसकी कीमत समझ सके। जैसे पशु को खरीदते-बेचते समय उसकी परख की जाती है वैसे उसकी कीमत की परख की जाती थी।
इस दृश्य को देखकर युवा लिंकन सन्न रह गया। उनका मन कराह उठा। उसी समय से उनका मन इस घृणित व्यवस्था के प्रति विद्रोही हो गया। उन्होंने अपने मित्रों से कहा– “हे प्रभु! चलो, हम यहां से निकल भागे। यदि जीवन मे इस गुलाम प्रथा को बंद किया जा सके तो मैं इसे बंद करने में पीछे नही हटूंगा।”
सन 1865 ई. का ऐसा समय आया कि इसी महापुरुष ने घोर पाप गुलाम-प्रथा को बंद करवा दिया।
अब्राहम लिंकन जिसके लिए अमर वंदनीय है, वह घटना उनके बाइस-तेइस वर्ष की उम्र में घटने लगी। उन्होंने जबसे होश सम्हाले तब से देखते थे कि अमेरिका में गुलाम-प्रथा है अमेरिका के मूल निवासी जो काले होते है और जिन्हें रेड इंडियन कहा जाता है और ब्रिटेन के अंग्रेजो द्वारा अफ्रीका से लाये गये, चालीस लाख नीग्रो, वे भी काले होते है, उन्हें गुलाम बनाकर रखा जाता था।
अंग्रेज लोग दक्षिणी अमेरिका के जंगलों को काटकर इन्ही काले लोगो से खेती करवाते थे। इन्हें समय पर बेचते थे, पुरस्कार में देते थे और इनके साथ घोर अत्याचार करते थे। नीग्रो और रेड इंडियनों पर गोरों का अत्याचार देखकर युवक अब्राहम लिंकन का ह्रदय विदीर्ण हो जाता था। उनके मन मे यह बात बराबर उठने लगी कि इस अत्याचार को समाप्त करने के लिए कुछ करना चाहिए और पूरे अमेरिका में गुलाम-प्रथा समाप्त होना चाहिए। अब्राहम लिंकन का यह अमर वाक्य है
(If the negro is a man, why then my ancient faith teaches me that "All Men Are Equal" and that there can be no moral right in connection with one man's making a slave of another.)अर्थात यदि नीग्रो मनुष्य है, तो मेरा प्राचीन विश्वास मुझे शिक्षा देता है कि सभी मनुष्य मूलतः एक समान है, अतएव नैतिक विधान मुझे यह आदेश नही देते है कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को गुलाम बनाये।
अभी तक अब्राहम लिंकन लकड़ी चीरकर अपना गुजर करते थे। न्यू सलेम गांव में इस बात के लिए वे प्रसिद्ध हो चुके थे कि वे गांव में सबसे लंबे है और हंसमुख तथा व्यवहारकुशल है। वे इस गांव में जिसके सहारे से आये थे वह ऑफेट नाम का व्यक्ति था। उसका इस गांव में एक स्टोर था। उसकी कमाई अच्छी थी। उसने एक दिन अब्राहम लिंकन से कहा– “मित्र एबी, तुम लकड़ी चीरने के चक्कर मे कब तक रहोगे? तुम अच्छे शिक्षित युवक हो। तुम्हारे पास डिग्री नही है, परंतु अच्छा दिमाग है। तुम्हारी जनसंपर्क-कला भी अच्छी है। तुम्हारे में नेता के गुण है।
उक्त बातें सुनकर अब्राहम लिंकन भड़क उठे। उन्होंने कहा “मित्र! तुम क्या बात करते हो? इन राजनीतिक नेताओ से तो मुझे घृणा है। इन नेताओं को मैं देखता हूँ कि ये जनता को आपस मे लड़ाते है और देश को दुर्बल बनाते है। जो अमेरिका के मूल निवासी है उन रेड इंडियनों या अश्वेत अफ्रीकियों को मार-पीटकर गुलाम बनाते है। उन्हें बाजारों में बेचते है, रिश्तेदारों को गिफ्ट रूप में देते है। उन्हें जड़ वस्तु की तरह ये बेचते है और पीटते है। जो लोग इस विपत्ति से बचना चाहते है, वे जंगलो में मारे-मारे फिरते है।”
ऑफेट ने कहा– “एबी मित्र! यही तो तेरे में नेता बनने के गुण है। तू जिस तरह गुलामो की और उनको चूसने वाले नेताओं की सच्चाई समझता है और साथ-साथ उन पीड़ितों के प्रति तेरे मन मे करुणा है, यही अच्छे नेता के लक्षण हैं। हृदयहीन नेता तो बहुत है, जिनका उद्देश्य है कुर्सी पाना और उसमें चिपके रहना और बड़े नेताओं की चापलूसी करना। उनको न जनता के दुःख-दर्द से मतलब है न उनके निवारण की चिंता से।”
ऑफेट ने कहा– “मैं अपने स्टोर में तुम्हे नौकरी देता हूं। एबी मित्र! लकड़ी चीरना बंद करो। मेरे स्टोर का हिसाब-किताब देखो। मैं तुम्हे पंद्रह डॉलर मासिक दूंगा। साथ-साथ तुम कानून की किताब पढ़ो; क्योकि नेता बनने के लिए कानून जानना जरूरी है। जब पांच फुट ऊंचा लड़का ‘डगलस’ राजनीति में उतर सकता है तब साढ़े छह फुट जवान अब्राहम लिंकन क्यो नही उतर सकता।”
ऑफेट की उक्त बातें सुनकर अब्राहम लिंकन खुश हो गया और वह तीन काम करने लगा। स्टोर का हिसाब-किताब देखना, कानून की किताब पढ़ना और राजनीति के लिए जनसंपर्क करना।
ऑफेट ने अब्राहम लिंकन का न्यू सलेम डिबेटिंग सोसाइटी से साक्षात करवाया। सोसाइटी के सदस्य लिंकन के उदार विचारो से अत्यंत प्रभावित हुए और उन्होंने शीघ्र ही लिंकन को अपना नेता मान लिया कुछ ही दिनों में न्यू सलेम में लिंकन लोकप्रिय हो गए। वह जिधर निकलते, लोग उनका आदर करते। न्यू सलेम में रहते एक वर्ष भी नही बिता था कि ऑफेट और सोसाइटी के सदस्यों ने लिंकन को 'इलिनॉइस' राज्य विधानसभा की सदस्यता के लिए चुनाव में खड़ा कर दिया।
लिंकन की चुनाव में जीत तो नही हुई, परंतु उनका जनसंपर्क बढ़ा और आगे के लिए भूमिका तैयार हुई। लिंकन न्यू सलेम में छह वर्षो तक रहे। इसी अवधि में लिंकन ने अपनी शिक्षा-शक्ति मजबूत की, कानून पढ़े, साहित्य-शक्ति प्राप्त की और राजनीति-पथ प्रशस्त किया।
इधर ऑफेट के स्टोर की स्थिति गिरने लगी। लिंकन ने अपने एक मित्र के साथ स्टोर चलाने के लिए ले लिया, किन्तु उसकी दशा बिगड़ती गयी। इसी बीच लिंकन का पार्टनर मर गया। अतएव स्टोर बंद हो गया और उससे संबंधित ग्यारह सौ डॉलर का कर्ज लिंकन के सिर पर आ गया। यह लिंकन के ऊपर आर्थिक संकट था, परंतु उन्होंने इसे प्रसन्नता से स्वीकारा। सन 1833 ई. में लिंकन ने आर्थिक क्षतिपूर्ति के लिए लोहारगीरी करने को सोचा, परंतु मित्रों के सहयोग से उसे पोस्टमास्टर का पद मिल गया। उसमे तेरह डॉलर महीने वेतन मिलता था। पैसा बहुत कम था, कर्ज चुकाना था। अतएव उन्होने नौकरी के साथ कई काम करना चालू किये। वह कभी रेल की पटरियों को अलग करने का काम करते, कभी किसी के खेत में फसल उगाने और काटने का काम करते, कभी किसी फेक्ट्री में रात की ड्यूटी करते, कभी क्षेत्रीय समाचार पत्रों के दफ्तरों में काम करते। लिंकन गरीब घर मे जन्मे थे, साथ-साथ मनुष्य जो काम करते है, मनुष्य होने से हम भी कर सकते है, यह उनका विचार था, अतएव उन्हें किसी काम मे लज्जा नही थी।
सन 1833 ई. की बात है। भीग पार्टी नाम से एक विचारपूर्ण दल अस्तित्व में आया था। उस पार्टी के राष्ट्रीय नेता थे 'जॉन स्टुआर्ट'। वे न्यू सलेम में एक अच्छे प्रत्याशी की खोज में आये थे, क्योकि आगे 1834 ई. में राज्य विधानसभा का चुनाव होना था। उन्होंने लिंकन की प्रसंसा सुन रखी थी। लिंकन से मिलकर उनको अपनी पार्टी का प्रत्याशी चुना और उन्होंने लिंकन को कानून का गहरा अध्ययन करने की राय दी।
शिक्षा की कमी, डिग्री का अभाव, धनाभाव आदि के कारण लिंकन में आत्मविश्वास की कमी बराबर बनी रही, परंतु अपनी सत्यता और गरीबो के प्रति सह्रदयता तथा मानव मात्र के प्रति करुणा की भावना के कारण वे आगे बढ़ते रहे। अबकी बार वे चुनकर राज्य विधानसभा में पहुंच गये। राजनीति में यह उनकी पहली जीत थी। इसके बाद लिंकन का मनोबल बढ़ गया और वे लगन से कानून की पढ़ाई करने लगे।
लिंकन गुलामों की मुक्ति और गरीबो के कल्याण के लिए राजनीति में आये थे। वे गरीबी के भुक्तभोगी थे और समझते थे कि सम्पन्न देश मे भी किस तरह गरीबो की दुर्दशा होती है।
1776 ई. से पहले ग्रेट ब्रिटेन के अंग्रेजो द्वारा दक्षिण अफ्रीका से नीग्रो अमेरिका में लाकर और उन्हें गुलाम बनाकर उनसे खेती करवाई जाती थी। देश मे ग्यारह प्रतिशत आबादी नीग्रो आदिवासियों की थी। 1776 ई. तक इन पर ब्रिटेन का शासन था। 1776 ई. में इन्हें स्वतंत्रता मिली और काले और गोरे लोगो को मिलाकर अमेरिकी संघ का निर्माण हुआ। परंतु संविधान में इनके साथ भेदभाव रखा गया। गोरे चाहते थे कि कालो को समान अधिकार न् दिया जाये और अमेरिकी गोरों को यह छूट हो कि वे कालो को गुलाम बनाकर रखें। अमेरिकी संघ के सदस्य होने पर भी काले लोग गोरो की गुलामी में रहते थे। इनके विरुद्ध थोड़ा-थोड़ा कही मंद स्वर उठता था, परंतु इसको लेकर कोई अपने हाथों में लाठी ले अपना घर फूंककर आगे आने वाला न था। इतने में अब्राहम लिंकन नाम का एक गरीब घर का युवक आगे आया और उसने अपना घर फूंककर आगे बढ़ने का साहस किया।
अब्राहम लिंकन भीग पार्टी द्वारा सन 1834 ई. में राज्य विधानसभा में पहुंचे और उन्होंने घोषणा कर दी कि उनकी पार्टी उन सभी कानूनों और प्रवृत्तियों का विरोध करेगी जिनके आधार पर मनुष्य के द्वारा मनुष्य को गुलाम बनाया जाता है और किसी प्रकार शोषण किया जाता है। उनकी भीग पार्टी अल्पमत में थी और विरोधी डेमोक्रेटिक पार्टी बहुमत में थी। उसके सदस्य भीग पार्टी के सदस्यों को सदन में टिकने नही देते थे। अमेरिका में सत्तासी (87) प्रतिशत गोरे थे और केवल तेरह (13) प्रतिशत काले; परंतु गोरे समझते थे कि काले लोग गोरों की सेवकाई ओर गुलामी करने के लिए पैदा हुए है। उस समय अमेरिका में औद्योगिक प्रगति नही थी। केवल कृषि पर ही सारी उन्नति निर्भर थी, और कृषि कार्य काले लोगो से करवाया जाता था। काले लोगो की खून पसीने की कमाई पर गोरे गुलछर्रे उड़ाते थे और उन्हें गुलाम बनाकर रखते थे। अतएव गोरे सोचते थे कि यदि गुलाम-प्रथा उठा दी जायेगी तो खेत मे काम कौन करेगा। अधिकतम गोरे नही चाहते थे कि गुलामी समाप्त कर दी जाये, किंतु लिंकन ने सत्य पर विश्वास रखकर गुलाम-प्रथा के विरोध में अपना युद्ध शुरू कर दिया।
भीग पार्टी के नेता तथा प्रसिद्ध वकील 'जॉन टी. स्टुआर्ट' की सलाह से अब्राहम लिंकन वकालत पड़ने लगे थे और सन 1837 ई. में उन्हे वकालत की डिग्री मिल गयी। वे इसी समय न्यू सलेम छोड़कर स्प्रिंगफील्ड चले आये और जॉन टी. स्टुआर्ट के साथ वकालत करने लगे। जब वे न्यू सलेम से किराये के एक घोड़े पर अपना सामान लादकर स्प्रिंगफील्ड पहुंचे, तो जोशुआ स्पीड नाम के वकील के घर के सामने आ खड़े हुए। उन्होंने उनसे पूछा कि यहां एक कमरे का मकान तथा पलंग-बिस्तर का किराया और मूल्य कितना होगा। जोशुआ स्पीड ने एक अंदाज बताया तो लिंकन हतप्रभ हो गये। उनके पास उतने रुपये नही थे। परंतु लिंकन के निर्मल मन और सरल बातचीत से वे इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने कहा कि मेरा कमरा बड़ा है और बिस्तर बड़ा है और घर मे केवल अकेला मैं रहता हूं। यदि आप मेरे बिस्तर पर मेरे साथ-साथ रह सकते है तो मैं आपको बेड पार्टनर बनाने के लिए तैयार हूं। लिंकन गद्गद हो गये। उन्होंने पूछा कि आपका सामान कहा है? लिंकन ने कहा कि सामने किराये का घोड़ा खड़ा है और उसके ऊपर लदा सामान मेरा ही है। दोनों हँसने लगे और दोनों घोड़े से सामान उतारकर लिंकन जोशुआ स्पीड के घर पर उनके साथ रहने लगे।
लिंकन 1837 ई. से जॉन टी. स्टुआर्ट के साथ उनके सहयोगी बनकर चार वर्ष तक वकालत करते रहे; और उनकी ही भीग पार्टी से राजनीति में आकर उसमे अपना आधार मजबूत करते रहे। इसके बाद उन्होंने स्टीफन टी. के साथ वकालत की। लिंकन ने 1844 ई. में अपना अलग कार्यालय स्थापित किया और एक छब्बीस वर्षीय वकील 'विलियम एच. हैंडरसन' को अपना सहयोगी बनाया। इस समय लिंकन पैतीस वर्ष के थे। वकालत और राजनीति सगी बहने है। वकालत करने वाला राजनीति में अच्छा काम कर सकता है। लिंकन की इस समय अच्छी प्रगति हो गयी; और उन्होंने अपने ऊपर लदे ग्यारह सौ डॉलर का कर्ज पूरा उतार दिया।
लिंकन राजनीतिक गोष्ठियों तथा सभाओ में भाग लेते। लोग गुलाम-प्रथा को मिटाने की बात करते, परंतु सामने कोई आने का साहस नही करता, क्योकि सत्तासी (87) प्रतिशत गोरो की आबादी से ही वोट मिलना होता था। जिनमे अधिकतम लोग गुलाम प्रथा बनाये रखना चाहते थे। विचारक सोचते थे कि धीरे-धीरे गुलाम-प्रथा तो मिटेगी ही। काले लोग स्वयं जागरूक होंगे और कभी अपना हक मांगेंगे। लिंकन का भी समय-समय से साहस टूटता, परंतु उनके मन के भीतर कुछ ऐसा बैठा था कि जितना शीघ्र हो गुलाम-प्रथा मिटना चाहिए।
आरंभिक जीवन मे लिंकन की दो लड़कियों से मित्रता हुई परंतु उनसे विवाह न हो सका। 'मैरी टॉड' नाम की पांच फुट की एक सुंदर सुशिक्षित युवती थी जो सम्भ्रांत घर की लड़की थी। उससे उनका विवाह 14 नवम्बर 1842 ई. में हुआ। 'मैरी टॉड' बन-ठनकर रहने वाली रजोगुणी लड़की थी, और लिंकन राग-रंग से उदासीन और गरीबों के उद्धार के लिए तपस्यारत थे। किंतु मैरी टॉड लिंकन की प्रतिभा, साहस और समाज-सेवा के उत्कट उत्साह के गुणों से उन पर न्यौछावर थी। इसलिए वह अपने रजोगुण को दबाकर लिंकन का सहयोग करती रही और छाया की तरह उनके पीछे चलती रही।
विवाह के पहले लिंकन ने ग्लोब टार्बन में दो कमरों का एक छोटा मकान खरीद लिया था। उसी में दोनों प्राणी रहते थे। मैरी टॉड ने अपने मां-बाप के घर में कभी अपने हाथों से मोटा काम नही किया था, परंतु लिंकन के साथ रहकर घर का सारा काम खुद करती थी, क्योकि लिंकन के पास इतना पैसा नही था कि नौकर रख सकते। मैरी टॉड ने समझ लिया था कि लिंकन के साथ इसी ढंग से रहा जा सकता है। वह समझती थी कि जो दुनिया का बड़ा काम करना चाहता है वह राग रंग में नही डूबता।
मैरी टॉड से दस वर्षों में चार बच्चे हुए। एक मर गया। तीन बच्चे जीवित रहे। लिंकन 1844 से 1861 ई. तक इसी घर मे रहे। 1861 ई. में राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद वे वाशिंगटन गये। इन सत्तरह वर्षो में लिंकन और मैरी टॉड एक दूसरे को अच्छी तरह समझकर आपस मे सामंजस्य स्थापित कर चुके थे।
मैरी टॉड ने अब्राहम लिंकन के विचारों का सदा आदर किया और उनकी भावनाओं को अपनी तरफ से कभी ठेस नही लगने दी। उन्होंने अपनी आवश्यकताओ को घटाया। वे एक भारतीय पतिव्रता महिला की तरह पति के उद्देश्य-प्राप्ति के पीछे अपना सब कुछ न्यौछावर कर छाया की तरह उनके पीछे लगी रही। मैरी टॉड को जो बन-ठनकर रहने और खूब खर्च कर ऐश्वर्य संवारने का लोभ था उसे उसने सत्तरह वर्षो तक दबाकर रखा और वह पति के देश-सेवा रूपी यज्ञ में अपनी इच्छा का हवन करती रही। कहा जाता है कि उसने लिंकन के राष्ट्रपति हो जाने पर अपना शौक पूरा किया था।
गुलाम प्रथा मिटाने की चर्चा राजनेताओ में होती थी, परंतु कोई पार्टी खुलकर उसके विरोध में कहने का साहस नही करती थी। जिस पार्टी से लिंकन इस समय राज्य-विधानसभा के सदस्य थे, वह भीग पार्टी भी गुलाम-प्रथा के विरोध में सीधे बोलने की हिम्मत नही करती थी। सीधा इंकलाब करने से अमेरिकी संगठन टूट जाने का खतरा था, क्योकि पूंजीपति जो गुलामो के खून-पसीने से अपना ऐश्वर्य संवार रहे थे, वे कालो को गुलाम बनाये रखने के हठ में थे और उन्ही का बहुमत था।
उक्त बातो पर ध्यान रखकर लिंकन ने भी एक बार वक्तव्य जारी किया था कि अमेरिका में जहाँ गुलाम प्रथा है, उसे वही रहने दिया जाय। उसे देश के अन्य स्थानों में नही बढ़ने दिया जाय। एक दिन यह अपनी मौत मर जायेगी। यह भी किया जा सकता है कि सरकार एक फंड ऐसा स्थापित करे कि गुलामो के मालिकों को धन देकर गुलामो को गुलामी से मुक्त कराया जाये।
अब्राहम लिंकन सन 1846 ई. में कांग्रेस के सदस्यता के लिए चुन लिए गये। वे चुनाव में जीत गये। लिंकन स्प्रिंगफील्ड में निजी घर मे परिवार सहित रहकर वकालत करते थे। परिवार को स्प्रिंगफील्ड में छोड़कर लिंकन को वाशिंगटन जाना पड़ा। वे वहां कांग्रेस के सदस्यों को मिलने वाले निवास में रहते थे और समय से स्प्रिंगफील्ड आकर परिवार में रह लेते थे।
सन 1847 ई. से लिंकन वाशिंगटन में रहने लगे थे। उन्होंने सोचा था कि वाशिंगटन में रहने पर हमारा दायरा बढ़ जायेगा। परंतु अनुभव उल्टा हुआ। उन्होंने यहां राष्ट्रीय राजनीति का महासागर देखा, जहां एक-से-एक दिग्गज नेता है। उन्हें दुसरो के लिए अवकाश ही नही है। लिंकन को न्यू सलेम और स्प्रिंगफील्ड में जो आनंद मिला वह वाशिंगटन में नही मिला।
लिंकन की पत्नी मैरी टॉड की रजोगुणी स्वभाव प्रवृत्ति उभड़ आयी। कीमती कपड़े पहनना, घर की साज-सज्जा सँवारना, बच्चो पर खुलकर खर्च करना और इन सबको लेकर सहेलियों में अपनी डींग हांकना, इन सब का प्रोग्राम उनके मन मे बन रहा था। परंतु थोड़े दिनों में उनको यह समझ मे आ गया कि यह सब इस त्यागी पति के साथ रहकर संभव नही है। लिंकन का सिद्धांत था― “सरकारें जनता की गाड़ी कमाई से चलती हैं। इसलिए सरकारी धन पर जनता का अधिकार है, राजनेता का नहीं।”
मैरी टॉड ने बहुत जल्दी स्वयं को पति के त्यागी स्वभावानुसार वाशिंगटन में भी बना लिया।
अब्राहम लिंकन सन 1847-1849 ई. में वाशिंगटन में रहे। उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति मिस्टर पोक थे। उन्होंने 1846 ई. में मैक्सिको देश पर आक्रमण किया था। अमेरिका चाहता था कि कैलिफोर्निया, नवादा, ऊटा, एरिजोना, न्यू मैक्सिको, कोलोरोडो, वियोमिंग आदि को मैक्सिको के कब्जे से छुड़ा लिया जाये। युद्ध मे रक्तपात होता है और वही हुआ। युद्ध को लेकर अमेरिका में दो मत बने। एक मत मानता था कि अमेरिका ने मैक्सिको से युद्ध करके अच्छा काम किया। किसी भी देश का अपना स्वाभिमान है कि हानि पहुंचाने वाले देश को सिख दे और जो उसे उचित लगे शत्रुपक्ष से ले ले। दूसरा पक्ष था कि मैक्सिको से युद्ध करके बुरा किया गया। व्यर्थ में जवानों का खून बहाया गया। भीग पार्टी जिसमे लिंकन थे उसका युद्ध विरोधी मत था। लिंकन ने सदन में इस बात को बड़े जोश-खरोश से उठाया। सभा में बड़ा हंगामा हुआ। लिंकन ने राष्ट्रपति पोक का सदन में घोर विरोध एवं कटु आलोचना की कि व्यर्थ में अमेरिकी जवानों को युद्ध मे झोंककर उनका खून-खराबा किया गया।
सरकार ने संसद में बहस करके उसे पारित करने के लिए युद्ध सम्बन्धी प्रस्ताव रखा, जिसका उद्देश्य था मैक्सिको पर हमला उचित मानना और इसके लिए मैक्सिको-सरकार को पूरी तरह दोषी ठहराना। भीग पार्टी ने प्रस्ताव के विरोध में मत दिया। परंतु प्रस्ताव गिरा नही, अपितु पास हो गया। लेकिन इसको लेकर पूरे देश मे भीग पार्टी बदनाम हो गयी। अमेरिका पूरा देश प्रायः यह स्वीकारता था कि मैक्सिको पर उसका हमला करना उचित था। मीडिया ने अमेरिका में यह संदेश फैलाया कि भीग पार्टी का युवा नेता अब्राहम लिंकन अर्धविक्षिप्त है जो वह इस युद्ध के संबंध में अमेरिका को ही दोषी सिद्ध कर रहा है।
लिंकन पूरे देश मे बदनाम हो गए। उनके चुनाव क्षेत्र की जनता भी उनके विरुद्ध हो गई, और उसने सोच लिया कि अब दुबारा लिंकन को नही चुनना है। सन 1849 ई. में पुनः चुनाव हुआ। पार्टी ने लिंकन को खड़ा किया। लिंकन हार गये। पार्टी के लोग तथा स्वयं लिंकन हतप्रभ हो गये। जनता इतना विरुद्ध हो जायेगी, यह उन्हें गुमान नही था। लिंकन वाशिंगटन छोड़ कर अपने गृहनगर स्प्रिंगफील्ड आ गये और राजनीति को छोड़कर वकालत करने लगे।
स्प्रिंगफील्ड में भी जनता लिंकन के विरुद्ध में बोलती, लिंकन को देशद्रोही भी कहती थी। लिंकन के सहयोगी वकील बिली हेंडरसन दुःखी हुए और वे
स्प्रिंगफील्ड की जनता को समझाने का प्रयास करते थे। वे लिंकन के पक्षधर थे।
बिली ने लिंकन से कहा― “तुमने यह क्या किया लिंकन, अपने आप को जनता की नजरों में गिरा लिया?”
“मैन वही किया जो मेरी अंतरात्मा ने मुझसे करने को कहा।”
“लेकिन, लिंकन! यह राजनीति है। राजनीति में शब्द देते समय दस बार विचार किया जाता है। केवल उन्हीं बातो को शब्द देते है जो जनता को अच्छी लगे। जो जनता की नजरों में गिरा दे, ऐसे शब्द नही कहे जाते।“
“मैं इस तरह चालाकी से शब्दों का चयन नही कर सकता। अपने असली चेहरे पर एक और चेहरा चढ़ाना मुझे नही आता। मैं तो केवल एक ही चेहरा रखता हूं और उसी को सबको दिखाता हूं, फिर किसी की इच्छा, भला माने या बुरा।”
लिंकन के ये शब्द सुनकर बिली हेंडरसन चुप हो गया। उसे लगा कि उसने लिंकन की दुखती रग दुखा दी है। थोड़ी देर वह यह भूल गया था कि लिंकन दूसरे राजनीतिज्ञो से बिल्कुल अलग है। सच पूछो तो वह राजनीतिज्ञ है ही नही। वह एक सीधा और सरल इंसान है। राजनैतिक छलकपट की चादर वह ओढ़ ही नही सकता।
“शायद मैं कुछ अधिक कह गया” हेंडरसन थोड़ी चुप्पी के बाद बोला “माफी चाहता हूं।”
“नही करूँगा माफ” लिंकन ने आत्मीयता से कहा “तूने मुझे समझने में भूल क्यो की? तू मेरा अंतरंग साथी है। मैं उन साथियो को भी कभी माफ नहीं कर सकता जो मेरे बिल्कुल अपने होकर भी मुझे समझने में भूल कर देते है।”
हेंडरसन चुप रहा।
फिर लिंकन ने हेंडरसन का हाथ पकड़ लिया और बोले– “बिली! अमेरिका की जनता मुझे समझे या न समझे मैं अपने आप को अच्छी तरह समझता हूं। मुझे तनिक भी अफसोस नही है इस बात का कि लोगो को मेरे विचार समझ मे नही आये। मेरे विचार कड़वे और चुभने वाले जरूर है। उनमें से सच्चाई की लपटें निकलती है जिन्हें लोग सह नही पाते, इसलिए तिलमिला कर मेरे बारे में जल्दबाजी में कोई राय बना लेते है। मुझे जल्दी नही है। मुझे विश्वास है कि मेरे यही विचार लोगो का और देश का भला करेंगे। एक दिन वे लोगो के समझ मे भी जरूर आ जायेंगे। भले ही तब तक इतनी देर हो चुकी हो कि मैं लोगो के बीच मौजूद न रहूं।”
“तू सच कह रहा है” हेंडरसन ने लिंकन के दोनों हाथ अपने हाथों में पकड़ते हुए कहा― “मैं समझ गया, लोग भी एक दिन समझ लेंगे..... पर ये दिल तोड़ने वाली बात न कर, चल बाहर चलते है। बाहर मौसम बहुत सुहावना है।” इस तरह बाते करते हुए बिली हेंडरसन लिंकन को केबिन से बाहर ले आया। बाहर बड़ी सुहावनी हवा चल रही थी। आकाश में बादल थे। दोनो हाथो में हाथ डाले कोर्ट के अहाते से बाहर निकलते देखे गये।
सन 1848 ई. आया। राष्ट्रपति का चुनाव होना था। मैक्सिको को मात देने में अमेरिका के जनरल टेलर देश मे हीरो मान लिये गये थे। वह गुलाम-प्रथा का भी पक्षधर था। उसके घर की सेवा में गुलाम रहते थे। इस प्रकार भीग पार्टी का जनरल टेलर से विचार न मिलने पर भी पार्टी ने उसे ही अपना प्रत्याशी चुना। लिंकन ने पार्टी की तरफ से उसके समर्थन में जगह-जगह भाषण दिये। जनता ने लिंकन को पसंद नही किया। इसलिए वाशिंगटन, शिकागो, न्यूयार्क आदि नगरों में लिंकन को बोलते समय जनता का कोप-भाजन बनना पड़ा, परंतु जनरल टेलर को लोगो ने भारी समर्थन दिया। जनरल टेलर अमेरिका के राष्ट्रपति चुन लिये गये। लिंकन अपनी पार्टी की जीत समझकर संतुष्ट हुए।
लिंकन वाशिंगटन की यात्रा में थे। रथ पर केंटुकी का एक धनी व्यक्ति भी बैठा था। उसने कुछ समय बाद तंबाकू निकाला और पास में बैठे अजनबी लिंकन को उसे देना चाहा। लिंकन ने विनम्रता से कहा– “नो सर, आई नेवर चिऊ।” (नही सर मैं कभी तंबाकू नही खाता।)
कुछ समय बाद उसने सिगार निकाला और बड़े प्रेम से लिंकन को देना चाहा। लिंकन ने सिगार भी सादर लौटा दिया। एक जगह कोच का घोड़ा बदलना था। कोच रुका। उस सज्जन ने शराब के दो प्याले तैयार किये और बड़े प्रेम से एक प्याला लिंकन को देना चाहा। लिंकन बड़े संकोच में पड़ गये, परंतु उन्होंने अत्यंत विनम्रता से कहा– “सर, मैंने कभी भी इसको पीया होता तो अवश्य ले लेता। आपको अबकी बार भी मुझे क्षमा करना पड़ेगा।”
वे सज्जन लिंकन से बहुत प्रभावित और गद्गद हुए। उस सज्जन ने कहा― “ऐ अजनबी! अब जीवन मे तुमसे मिलना न हो। परंतु तुम बड़े बुद्धिमान और विलक्षण हो। तुम्हारी अपनी खास हैसियत है।”
लिंकन ने अपनी आठ वर्ष की उम्र में एक बतख का शिकार किया था। उसके बाद उन्होंने कभी किसी जानवर को नही मारा। वे प्राणीमात्र पर दयालु थे।
केंटुकी ही लिंकन का जन्मस्थान था और उसी जगह का उक्त धनी व्यक्ति था। परंतु जब तक कोई परिचय न पूछे या स्वयं के लिए आवश्यक न हो तब तक लिंकन अपना परिचय नही देते थे। अतएव अपना परिचय दिये बिना लिंकन उन सज्जन से अलग हुए।
मनुष्य का सबसे बड़ा धन उसका जीवन है जो उसे बुराइयों से बचाकर रखता है उसे कभी पश्चाताप नही करना पड़ता।
सन 1849 ई. में लिंकन को ओरगन का सचिव बनाने का प्रस्ताव आया। ओरगन तत्काल ही नया राज्य बनने वाला था। अतएव नया राज्य बन जाने पर लिंकन ओरगन के गवर्नर हो जाते, जो अमेरिका में महत्व का पद है।
लिंकन की पत्नी मैरी टॉड ने उन्हें उसे स्वीकार करने से रोक दिया, और कहा कि आपकी योग्यता राष्ट्रीय नेता की है। अभी तत्काल राष्ट्रीय राजनीति में स्थान नही मिल पा रहा है तो कोई हर्ज नही है। अभी आप मन लगाकर वकालत करे। जब समय अनुकूल आये तब राष्ट्रीय राजनीति में आगे बढ़े। राज्य के पद में उलझने से राष्ट्रीय राजनीति बाधित होगी। लिंकन ने सचिव पद अस्वीकार दिया।
लिंकन अब वकालत कर अच्छी कमाई करते थे, अच्छे साहित्य का अध्ययन करते थे और देश और मानव कल्याण को केंद्र में रखकर राष्ट्रीय राजनीति पर विचार और अनुसंधान करते थे। समीक्षकों ने लिखा है कि लिंकन के पांच वर्ष तक राजनीति से अलग रहकर उस पर अनुसंधान ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर का उच्च नेता बना दिया। इन पांच वर्षों में जो उनके निकट रहे वे है वकालत के सहयोगी वकील मिस्टर हेंडरसन। उन्होंने कहा था कि इन पांच वर्षों में लिंकन ने खूब अध्ययन किया, परंतु विद्वान बनने के लिये नही, अपितु सही ज्ञान ग्रहण करने के लिए। वे अधिक बाइबिल ओर साहित्य का अध्ययन करते थे। वस्तुतः वे पड़ने से अधिक मनन करते थे।
लिंकन और मिस्टर हेंडरसन दोनो वकालत करते थे और दोनों को जो मिलता था उसे आधा-आधा बांट लेते थे। ये दोनों हिसाब नही लिखते थे, परंतु दोनो के दिल इतने साफ थे कि दोनों को जो आमदनी और खर्च होते थे उसे समझकर आधा-आधा बांट लेते थे। एक महत्वपूर्ण मुकदमे की जीत में लिंकन को पंद्रह हजार डॉलर का मेहनताना मिला, जो उस समय की बड़ी संपत्ति थी। लिंकन ने तुरंत हेंडरसन के पास पहुंचकर साढ़े सात हजार की गड्डी उनके हाथों में थमा दी और इस खुशखबरी को बताने के लिये अपनी पत्नी के पास पहुंचे। लिंकन वकालत के समय अपने मुवक्किल को जिताने का घोर प्रयास करते थे। उनके उद्देश्य में पैसा दूसरे स्थान पर था।
अब्राहम लिंकन झूठे मुकदमे नही लड़ते थे। जब एक मुकदमे के मुवक्किल को उन्होंने जाना कि वह झूठ बोलता है और झूठा मुकदमा लड़ने के लिए मुझे दिया है, तब वे मुवक्किल से नाराज हो गए। जब मुकदमे में पुकार हुई और मुवक्किल दौड़कर लिंकन के पास आया और कहा कि साहब, पुकार हुई है, आप शीघ्र कोर्ट में चले, तब लिंकन ने कहा कि जज से कह दो कि मेरे पास समय नही है। मेरे हाथ गंदे है मैं उन्हें धोने जा रहा हूं। लिंकन जज के सामने नही गये और मुकदमा खारिज हो गया। मुवक्किल खीजकर चला गया।
एक बार लिंकन ने अपने मुवक्किल की झुठाई जान जाने पर उसे पत्र लिखा कि तुम अपना मुकदमा वापस ले लो, अन्यथा तुम्हारे पैसे नष्ट होंगे और मुकदमा भी हार जाओगे।
विधवाओं, अनाथो, गरीबो के मुकदमे में कई बार लिंकन जज के सामने इतने भावुक हो जाते थे कि उनकी दयनीय दशा पर पूरा भाषण ही दे डालते थे। ऐसी दशा में जज लिंकन की दयालुता और सत्य की पक्षधरता पर दहल जाते थे।
एक विधवा, जिसके पुत्र की भी हत्या हो गई थी, उसका मुकदमा हार जाने की स्थिति आ गई, क्योकि गवाह नही मिल रहा था। अब्राहम लिंकन उसकी हमदर्दी में लेक्चर देते हुए रो पड़े। जज दंग रह गया और उसने मुकदमे को नए सिरे से जांचकर विधवा को न्याय दिया। इस मुकदमे में लिंकन ने निशुल्क पैरवी की थी।
लिंकन अपनी इसी ईमानदारी के कारण अच्छे वकील होकर भी संपत्ति इकट्ठी नही कर सके, परंतु उनकी मूल आवश्यकताओ की पूर्ति तो होती ही थी। वस्तुतः उनके पास अतुल आत्मिक धन था।
वादी-प्रतिवादी का मुकदमा कोर्ट में चल रहा था। लिंकन समझते थे कि ये व्यर्थ लड़ रहे है। इनकी लड़ाई में मन की मलिनता ही कारण है। अतएव उन्होंने दोनों को बुलाकर अपने कमरे में बैठाया और दोनों को समझया कि आप लोग अपने धन और मन की बरबादी न करे, मुकदमा उठा ले और समझौता कर लें। परंतु वे दोनों एक-दूसरे से तने हुए थे और परस्पर बात नही करते थे।
लिंकन ने कहा, “आप लोग आपस मे बात करे। मैं थोड़े समय के लिए दूसरा काम देख लूं।” लिंकन कमरे से निकलकर और फाटक बंद कर ताला लगाकर चले गये और काफी देर तक नही आये। ये दोनों सज्जन धीरे-धीरे एक-दूसरे की तरफ उन्मुख हुए, बात करने लगे और घुलमिल गये। बहुत देर के बाद जब लिंकन ने ताला खोलकर कमरे में प्रवेश किया तो उन्होंने देखा कि वे दोनों आपस मे हंस रहे थे। लिंकन के आते ही तीनो हंस पड़े।
उन लोगों ने कहा, “आप अजीब वकील हैं। आपने हम लोगो को एक साथ बंद कर सारा समाधान कर दिया।”
सन 1850 ई. तक गुलाम-प्रथा को लेकर अमेरिका के दक्षिणी और उत्तरी हिस्सो में तनाव बढ़ गया। लिंकन के अलावा भी अनेक नेता तथा चिंतक थे जो गुलाम-प्रथा के विरुद्ध थे, किन्तु दक्षिणी अमेरिका के गोरे जिनकी संपत्ति काले लोगो की मेहनत से खड़ी हुई थी वे गुलाम प्रथा को मिटाने नही देना चाहते थे। अधिकतर राजनेता ऐसे थे जिन्हें गुलाम प्रथा के रहने या न रहने से कोई मतलब नही था। उनका मतलब चुनाव में जीतकर कुर्सी पर आना था। ऐसे एक प्रसिद्ध नेता उभरकर सामने आये और ये डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता थे। इनका नाम था 'स्टीफन ए. डगलस'। ये पांच फुट दो इंच ऊंचे थे, लिंकन से चौदह इंच नीचे। सन 1834 ई. में लिंकन और डगलस दोनोँ इलिनॉइस विधानसभा के सदस्य थे। दोनो को 1838 ई.में एक ही दिन इलिनॉइस के सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करने के लिए स्वीकृति मिली थी। लिंकन की 1842 ई. में मैरी टॉड से शादी हुई थी। इसी मैरी टॉड से पहले डगलस शादी करना चाहते थे। 1846 में डगलस चुनकर अमेरिका के सीनेट में पहुंचे और लिंकन चुनकर प्रतिनिधि सभा मे पहुंचे। 1858 ई. में लिंकन डगलस के विरुद्ध सीनेट की सदस्यता के चुनाव में खड़े हुए किन्तु हार गये और डगलस सीनेट के सदस्य बन गये।
अमेरिका के अधिकतम गोरे गुलाम-प्रथा के समर्थक थे, और उन्ही से वोट लेकर नेताओ को कुर्सी पर आना था। इसलिए हर पार्टी के नेता अपना साफ मंतव्य जनता के सामने कह नही पाते थे। गुलाम-प्रथा के विरोध में सह्रदय लोगो का जोर बढ़ रहा था। इसलिए नेता किंकर्तव्यविमूढ़ थे। जिस भीग पार्टी के लिंकन थे वह भी साफ कहने में कतराती थी। डेमोक्रेटिक पार्टी के जबरदस्त नेता डगलस उभरे थे। उनका एक ही उद्देश्य था कुर्सी पर पहुंचना। इसलिए उनके विचारों में स्पष्टता नही थी। अतएव उनकी पार्टी के लोग ही उनसे असंतुष्ट थे। डगलस दक्षिणी अमेरिका के गोरो को जो गुलाम-प्रथा के पक्षधर थे खुश करने में लगे थे और उत्तरी अमेरिका में भी अपनी लोकप्रियता बनाने के चक्कर मे थे।
डगलस और लिंकन समकालीन थे, समान वकालत पेशा वाले तथा राजनीति में दोनों उतरे थे। डगलस को गुलामो की चिंता नही थी और वे राजनीति में आगे बढ़ रहे थे। लिंकन ने उनके विरोध में अपना वक्तव्य देना शुरू किया।
गुलाम-प्रथा के संबंध में नीतियों का सामंजस्य न होने से भीग पार्टी टूट गयी। विचारक नेताओ को डेमोक्रेटिक पार्टी के विकल्प में एक पार्टी के गठन की चिंता हुई और उसके परिणाम में रिपब्लिकन पार्टी का गठन हुआ। इस पार्टी की नीति से लिंकन के विचारो का मेल था। अतएव जब इस पार्टी का निमंत्रण मिला तब लिंकन हर्षपूर्वक इसमे सम्मिलित हो गये। इससे उनके स्वाभिमान को आदर मिला। 1856 ई. में रिपब्लिकन पार्टी का पीटर्सबर्ग में सम्मेलन हुआ। यही अवसर था लिंकन का इस पार्टी में सम्मिलित होने का।
इसके पहले सन 1854 में तीन अक्टूबर को स्प्रिंगफील्ड में डगलस ने विशाल सभा की। लिंकन बाहर से खड़े सुन रहे थे। जैसे डगलस का भाषण समाप्त हुआ, लिंकन ने आगे बढ़कर सभा से अपील की कि कल इसी जगह पर डगलस के विधेयक के विरोध में मैं भाषण दूंगा, आप लोग अवश्य आवें।
दूसरे दिन सभा मे भारी भीड़ हुई। लिंकन ने कहा कि डगलस की नीतियों से अमेरिका संघ कमजोर होगा। इनका विधेयक भ्रम फैलाने वाला है। सर्वत्र लिंकन की प्रशंसा हुई।
लिंकन ने गुलाम-प्रथा के विरोध में जमकर भाषण किया। आज तक अमेरिका में इस विषय पर किसी ने इतना साफ नही कहा था। लिंकन पारदर्शी सच्चे इंसान है इस तथ्य का आभास जनता को हुआ। लिंकन ने कहा गुलाम व्यक्ति है, वस्तु नही। उसका अधिकार वैसा ही है जैसा हम गोरी चमड़ी वालो का है।
सन 1858 ई. में सीनेट की सदस्यता के लिए डगलस डेमोक्रेटिक पार्टी से तथा लिंकन रिपब्लिकन पार्टी से चुनाव में उतरे। लिंकन के प्रति प्रसन्नता व्यक्त करते हुए डगलस ने कहा― “लिंकन अपनी पार्टी का अच्छा और चोटी का नेता है, उसकी अच्छी प्रतिभा है, वे तथ्यों के अच्छे जानकार तथा पश्चिम अमेरिका के उच्चतम प्रवक्ता है, परंतु वे मुझे हरा नही पायेंगे।”
डगलस ओर लिंकन के सात बार प्रभावशाली भाषण हुए जिसमें दस, बारह ओर पंद्रह हजार की जनता इकट्ठी होती थी। लिंकन दस घोड़ो के रथ पर चलते थे। उनके आगे बेंड बाजा जुलूस चलता था। उनके भाषण सुनने को जनता उमड़ पड़ती थी। भाषण के बाद चौराहों, दुकानों, जलपानगृहों, ऑफिसों आदि में लिंकन के उदार विचारो की चर्चा होती थी। समाचार पत्र लिंकन के विचारों से भरे रहते थे। चुनाव प्रचार में लिंकन ने डगलस को पछाड़ दिया था। लोग मानने लगे थे कि डगलस हार जायेंगे और लिंकन जीत जाएंगे। परंतु डगलस जीत गए और लिंकन हार गए।
अपनी हार की समीक्षा में लिंकन ने कहा था कि― यह ठीक है कि मैं सीनेट का चुनाव हार गया हूं। परंतु मुझे बड़ी खुशी है कि चुनाव प्रचार के बहाने मुझे गुलाम-प्रथा पर खुलकर बोलने का अवसर मिला। यदि मैं यह चुनाव नही लड़ा होता तो शायद गुलामो के हित में बोलने का इतना अच्छा अवसर मुझे कभी न मिल पाता। यह हार अंत नही है। यह तो एक छोटी-सी शुरुआत है। अपने चुनाव अभियान के दौरान मैंने एक महत्वपूर्ण बात समझ ली है। लोगो को, देश को अब मेरी तरह साफ ढंग से बात कहने वालों की जरूरत है। अतः मैंने यह फैसला ले लिया है कि अब मैं वकालत के व्यवसाय को तुरंत समेट दूंगा, और पूरी तरह खुलकर राजनीति में सक्रिय हो जाऊंगा। मैन जो बाते कही है, लोगो को वे बहुत पसंद आयी है। लोग इतने कठोर ह्रदय नही है जितना कि स्वार्थ की राजनीति करने वालो ने उन्हें बना दिया है। मैन स्वार्थ से ऊपर उठकर राजनीति में उतरने का संकल्प लिया है। गरीबो, शोषितों और गुलामी का त्रास झेलते उन असंख्य लोगो की बात को ऊपर तक पहुंचाने के लिए मैं अब पूरे मन से राजनीति करूँगा।
लिंकन के चुनाव हार जाने से उनकी पार्टी तथा उनके साथियों को धक्का लगा जो स्वाभाविक था। परंतु लिंकन ने अपने विवेक से उसे आत्मसात कर लिया और कहा– “चुनाव में दो विरोधी पक्ष लड़ते है, तो एक को तो हारना ही है। हम चुनाव में अवश्य हारे है, किंतु हमारे विचार जनता में गये है। बड़े विचारो को सफल होने में समय लगता है।”
लिंकन के चुनाव अभियान में दिये गये भाषण जिसमे गुलाम-प्रथा पर मुख्य बात थी से सदन में दो दल हो गये। एक लिंकन के समर्थन में और एक उनके विरोध में। डगलस ने उन पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपने भाषण से सदन में फूट डाल दी है। यह उनका अपराध है।
लिंकन ने उत्तर में कहा कि गुलामी को लेकर सदन विभाजित हुआ-जैसा लगता है, परंतु मेरा प्रश्न है कि क्या कुछ लोगो को स्वतंत्रता देकर और कुछ लोगो को गुलाम बनाकर राष्ट्र का शासन लंबे समय तक चलाया जा सकता है? मैं न सदन का विभाजन चाहता हूं और न अमेरिका संघ का विघटन। मैं चाहता हूं कि सदन एकबद्ध हो और अमेरिका संघ अखंड हो। बात है कुछ लोगो को गुलाम बनाकर उनका शोषण करने की। अब सदन यह निर्णय एकतरफा साफ करे कि गुलामी बनाये रखना है कि उसे पूरा समाप्त करना है। जो इस समस्या को बीच मे उलझाये रखकर इसके आधार पर राजनीति करते है, वे देश के शत्रु है। वे गुलामो और उनके मालिको, दोनो को भ्रम में रख रहे है।
लिंकन यह नही चाहते थे कि गुलाम-प्रथा के आंदोलन को लेकर अमेरिका संघ टूट जाये। क्योकि एक बार देश टूट जाने पर उसका संभलना कठिन हो जायेगा; और गुलाम-प्रथा को आज नही तो कल जाना ही है। लिंकन चाहते थे कि गुलाम-प्रथा समाप्त हो और अमेरिका की संघीय एकता बनी रहे। यही उनकी ऊंचाई थी।
कूपर यूनियन न्यूयार्क में लिंकन का महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक भाषण हुआ। इसमे बुद्धिजीवियों की भी संख्या थी उन्होंने कहा– “दक्षिण के लोग गुलामी उन्मूलन को लेकर बहुत उत्तेजित है। शायद वे यह सोचते है कि चाहे भले ही संघ नष्ट हो जाये, पर गुलामी का कलंक अब मिट जाना चाहिए। वही उनके विरोधी उन्हें सबक सिखाने के लिए तैयार खड़े है। गुलाम-प्रथा को लेकर माहौल इतना गरम है कि यदि ये दोनों पक्ष उग्र हुए तो पूरा देश जल उठेगा। हम नही चाहते कि गुलामी-उन्मूलन का रास्ता कुछ इस तरह निकाला जाये कि संघ को क्षति पहुंचे और देश बर्बाद हो जाये। हम एक ऐसा रास्ता निकालना चाहते है कि अमरीका के सत्तासी (87) प्रतिशत गोरे लोगो के दिलो में अपने तेरह (13) प्रतिशत काले रंग के भाइयों के प्रति सच्ची सहानुभूति पैदा हो और वे उन्हें गुलामी के चंगुल से मुक्त करके भाइयो की तरह गले से लगायें।और फिर काले और गोरे दोनो नस्लो के लोग मिलकर इस देश की सर्वांगीण उन्नति के लिए काम करें और अमेरिका विश्व मे एक महान देश बनकर उभरे।”
उपर्युक्त लिंकन के भाषण से बुद्धिजीवियों को लगा कि यह सुलझा हुआ व्यक्ति ही अमेरिका का राष्ट्रपति बनने योग्य है। लिंकन सरल इंसान थे। राजनीतिक दांव-पेंच से अलग थे, इसलिए वे राष्ट्रपति पद के लिए अपने को योग्य नही समझते थे।
लिंकन ने अंततः राष्ट्रपति पद के लिए अपना नामांकन भर दिया। विपक्ष में डगलस थे और दो अन्य भी; परंतु लिंकन चुनाव जीत गये।
लिंकन जब चुनाव प्रचार में थे तब उन्हें सुनने के लिए अपने भाइयों के साथ एक नन्ही बच्ची ग्रेस बीडिल आयी थी। उसने देखा लिंकन दुबले-पतले है। उनके गाल पिचके है। उसको उनका चेहरा सुंदर नही लगा। उसने घर जाकर लिंकन को पत्र लिखा―
“मेरे चार भाई है। उनमें से दो आपको वोट देना चाहते है और दो किसी ओर को। यदि आप यह वादा करे कि मेरा पत्र पाते ही आप अपने चेहरे पर दाढ़ी और मूंछे बड़ा लेंगे तो मैं वादा करती हूं कि मैं अपने उन दोनों भाइयों को भी मना लूंगी और चारो भाइयो से आपको वोट दिलाऊंगी, फिर आप जरूर जीतेंगे। देख लेना तब आपका चेहरा बहुत सुंदर लगेगा। जब आप अमेरिका के राष्ट्रपति बनेगे तब मैं आपसे मिलने आऊंगी और देखूंगी कि आपने मेरी बात मानी कि नही। मेरे अच्छे राष्ट्रपति! वादा करो, आप दाढ़ी-मूंछें बढ़ाओगे और मुझे अवश्य बुलाओगे।”
–आपकी छोटी-सी-बेटी
―ग्रेस बीडिलअब्राहम लिंकन उक्त पत्र पढ़कर भाव विभोर हो गये और उत्तर लिखा―
“मेरी नन्ही सी बेटी ग्रेस! मैन तुम्हारा कहना मानकर आज से ही अपनी दाढ़ी बढ़ानी शुरू कर दी है, परंतु मुझे अफसोस है कि तुम्हारी दूसरी मांग पूरी नही कर पा रहा हूं। मैं मूंछें नही बढ़ा पाऊंगा; क्योकि मूंछें बढ़ाने से मेरी पहचान बदल जायेगी। फिर मेरे दोस्त भी मुझे नही पहचान पायेंगे। मैं वादा करता हूं कि राष्ट्रपति बना तब भी, और न बना तब भी, मैं तुमसे मिलने जरूर आऊंगा। फिर तुम देख लेना मेरा पतला और पिचके गालों वाला चेहरा दाढ़ी बनाने से कैसा लग रहा हूं।” ग्रेस बीडिल नाम की छोटी बच्ची ने अब्राहम लिंकन को इतना प्रभावित किया कि उसके कहने से उन्होंने दाढ़ी बढ़ायी और दाढ़ी वाले वे पहले राष्ट्रपति हुए और चुनाव-प्रचार में व्यस्त होने पर भी वे उस बच्ची से मिलने आये।
लिंकन अब राष्ट्रपति हो गये थे। अब वे स्प्रिंगफील्ड से वाशिंगटन व्हाइट हाउस में रहने के लिए जाने की तैयारी कर रहे थे। पूरा माहौल गद्गद था कि हमारे घर-नगर का आदमी राष्ट्रपति बनकर व्हाइट हाउस जा रहा है।
जिनके साझे में लिंकन वकालत कर रहे थे वे थे हेंडरसन। लिंकन ने उनसे कहा कि “हमारे-आपके साझे के व्यवसाय का साइनबोर्ड लटका है जिस पर लिखा है― ‘ला फार्म ऑफ लिंकन एण्ड हेंडरसन।’ इसे आप लटका रहने दे जिससे लोगो को लगे कि लिंकन की साझेदारी अभी भी हेंडरसन से है और अपना कार्यकाल व्हाइट हाउस में बिताकर यदि जीवन रहा तो पुनः तुम्हारे साथ आकर वकालत करूंगा।” हेंडरसन ने कहा कि “मुझे गर्व है कि मेरा मित्र राष्ट्रपति हुआ, परंतु तुम ये दिल दुखाने वाली बात क्यों कहते हो कि यदि जीवन रहा तो।”
लिंकन ने कहा– “हेंडरसन! ध्यान दे। आज जैसा देश का उत्तेजक माहौल किसी राष्ट्रपति के समय नही था। दक्षिण राज्यो में विद्रोह का स्वर उठ रहा है। गुलाम-प्रथा को लेकर देश का वातावरण गृहयुद्ध का हो गया है। मुझे अच्छी स्थिति नही दिखती है।”
हेंडरसन ने कहा– “हम सबकी आपके लिए मंगलकामना है। आप साधारण आदमी नही है।”
अब्राहम लिंकन ने चार (4) मार्च 1861 ई. को राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण की। वे संयुक्त राज्य अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति बने। जब अब्राहम लिंकन के राष्ट्रपति बनने की संभावना बढ़ गयी थी, तब दक्षिण राज्यों के गोरे यह मन बना चुके थे कि हमे अपने दक्षिण के राज्यो को अमेरिका संघ से सर्वथा अलग कर लेना है। दक्षिण के गोरे समझते है कि उत्तरी अमेरिका के लोग गुलाम-प्रथा के कट्टर विरोधी हो गये है। अतएव उनके साथ रहना अब संभव नही है।
अमेरिका के कई दक्षिण राज्य अलग होकर उन्होंने अंतरिम सरकार का गठन कर लिया और 'कांफेडरेट स्टेट्स ऑफ अमेरिका' नाम से नया संघ बना लिया।
लिंकन के सामने भयंकर समस्या आ गयी। नेता पूछते थे कि ये अलग हुए राज्य अमेरिका संघीय कानून लागू करेंगे या नही। लिंकन चुप। यदि संघीय कानून लागू करते है तो दक्षिण के ग्यारह राज्य और उत्तर के तेईस राज्य बंटकर अलग हो जाएंगे और युद्ध की स्थिति बनेगी; और यदि लागू नही करते है तो मानो दक्षिण के नये संघ की स्वीकृति देते है।
लिंकन नही चाहते थे कि गृहयुद्ध हो। परंतु दक्षिण वाले अमेरिका संघ में मिलने के लिए राजी नही थे। लिंकन समझते थे कि दक्षिण तथा उत्तर के सभी लोग मेरे भाई है। परंतु स्थिति आ गई थी कि युद्ध के अलावा कोई रास्ता नही। अतएव लिंकन ने सेना के जनरलों को बुलाकर दक्षिणी राज्यो पर हमला करने की आज्ञा दे दी।
लिंकन ने राष्ट्रपति-पद की शपथ ली और गृहयुद्ध की आग में अमेरिका के जलने की तीव्र संभावना उभरी। इससे वे घबराये हुए थे। राष्ट्रपति के रूप में जब वे अपना पहला भाषण देने के लिए मंच पर चढ़े, तब उनका चित्त अस्त-व्यस्त था। वे एक हाथ मे छड़ी और दूसरे हाथ मे हैट पकड़े थे। वे समझ नही पा रहे थे कि इनको क्या करें। उनके विरोधी समकक्ष नेता डगलस उनके भ्रांत चित्त को समझ गये और सह्रदयता से मंच पर चढ़कर उनके हाथों से छड़ी और हैट ले लिए। बाद में उन्होंने उनको वापस कर दिया।
लिंकन ने जनरल स्टॉक को बुलाकर कहा कि तुम जनरलों को बुलाकर युद्ध के लिए हमला करने का आर्डर दो। अमेरिका संघ की सेना के सबसे योग्य जनरल 'ली' को आर्डर दो कि वह सेना लेकर 'रिचमोंड' पर हमला करे। स्कॉट ने ली को बुलाया और हमला करने की आज्ञा दी। परंतु उसने कुछ सोचने का अवसर मांगा और जल्द ही अपने सबसे श्रेष्ठ सफेद घोड़े पर बैठकर दक्षिण जंगल को निकल गया और विरोधी दक्षिण संघ की सेना में मिल गया और उसकी सेना के बड़े अफसर की हैसियत से अमेरिका संघ के विरोध में खड़ा हो गया। इस प्रकार 'ली' विरोधी सेना का नायक बन गया। उसने कहा―मैं दक्षिण के विरोध में युद्ध नही कर सकता, यह मेरी विवशता है। अतएव मैने निर्णय लिया है कि क्यों न मैं दक्षिण की ओर से लड़ूं।
यह युद्ध सन 1861 से 1864 ई. तक चला और इसमें दोनो पक्ष के लाखों सैनिक मरे और ली की रणकुशलता के कारण दक्षिण पर शीघ्र विजय करना कठिन हो गया। इस बीच अनेक जनरल बदले गये। बहुत से सैनिक अफसरो ने धोखा दिया और बहुत अफसर कुशलता से लड़ते रहे। इन चार वर्षों में लिंकन चैन की सांस नही ले सके।
इसी बीच लिंकन का एक प्यारा पुत्र ‘विली’ बीमार हुआ और मर गया। इससे लिंकन और मैरी टॉड बहुत आहत हुए। मैरी टॉड तो कुछ दिन के लिए अर्धविक्षिप्त जैसी रहने लगी। लिंकन को उसे खिलाना और सुलाना पड़ता था। जब पुत्र मरा, मैरी टॉड पछाड़ खाकर गिर पड़ी। लिंकन उसे उठा न सके, अन्यो ने उठाया। लिंकन से आर्डर लेने के लिए सेना के जनरल खड़े थे। युद्ध जोर पर था। लिंकन जनरल से बात करने लगे।
युद्ध के दौरान लिंकन को पांच लाख नए सैनिक भर्ती करने पड़े। बीच-बीच मे हजारों नये सैनिक भर्ती किये गये। युद्ध मैदान में समय-समय हजारो लाशें पड़ी दिखती थी और रक्त नहायी हुई धरती।
लिंकन की पत्नी मैरी टॉड के नैहर के लोग अमीर घरानों के थे और उनमें कुछ उत्तरी अमेरिका और कुछ दक्षिणी अमेरिका में थे और वे उन दोनों विरोधी पक्षों के पक्षधर भी थे। मैरी टॉड के तीन भाई दक्षिणी अमेरिका की ओर से लड़ते हुए उत्तरी अमेरिका की सेना द्वारा मारे गये थे। मैरी के कुछ रिश्तेदार वाशिंगटन के थे जो उत्तरी अमेरिका की ओर से लड़ रहे थे। यह अमेरिका का गृहयुद्ध भारत के महाभारत के युद्ध की तरह था जिसमे परिवार और देश के लोग ही मार और मर रहे थे।
लिंकन की पत्नी के परिवार तथा रिश्तेदारों को लेकर उस समय यह कहावत थी कि दो तिहाई गुलाम-प्रथा-विरोधी और एक तिहाई गुलाम-प्रथा-समर्थक है।
लिंकन गृहयुद्ध में फंसे थे और वे उसी समय अपनी पत्नी मैरी टॉड के अपव्यय के कारण बदनाम हो रहे थे। इसको लेकर लिंकन के अनेक शत्रु खड़े हो गये। कांग्रेस ने राष्ट्रपति भवन व्हाइट हाउस को सजाने के लिए बीस हजार डॉलर स्वीकारा था, परंतु लिंकन की पत्नी मैरी टॉड ने उस पर सत्ताईस हजार डॉलर खर्च कर डाला था। उन्होंने अपने लिए बहुमूल्यवान कपड़े और आभूषण के लिए बड़ी रकम खर्च कर डाली। एक तरफ गृहयुद्ध की विभीषिका में लाखों लाशें जमीन पर बिछ गई थी। वे राजभवन में महारानी की तरह रहना चाहती थी। वे अपने बच्चों तथा नौकरो-चाकरों पर खुलकर खर्च कर रही थीं और इससे उनमे प्रशंसित भी थीं। परंतु सदन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा था। “श्रीमती लिंकन के विरुद्ध सीनेट कमेटी गठित हो गयी। यह शर्म की बात थी कि लिंकन को अपनी पत्नी की फिजूलखर्ची के कारण सीनेट कमेटी के सामने उपस्थित होना पड़ा। श्रीमती लिंकन पर यह भी आरोप था कि उनकी सहानुभूति दक्षिण के विद्रोहियों के साथ है। लिंकन केवल तीन मिनट पत्नी के विरुद्ध लगे आरोपों पर बोले और उसका ऐसा प्रभाव पड़ा कि कमेटी ने उनकी पत्नी के विरुद्ध लगे आरोप वापस ले लिये।”
लिंकन और उनकी पत्नी 1862 ई. में व्हाइट हाउस में कुछ विशेष लोगों के स्वागत में थे। लिंकन की पत्नी बहुत कीमती और सुंदर परिधान में थी और वे बहुत सुंदर लग रही थी। लिंकन ने अपने पास में बैठी महिला से कहा―
My wife is as handsome as she was a girl, and I, a poor nobody then, fell in love with her, and what is more, I have never fallen out. अर्थात मेरी पत्नी अभी भी उतनी ही सुंदर है जितना वह अपनी युवावस्था में थी। उन दिनों मैं एक दीन-गरीब था और उससे प्रेम कर बैठा, और खास तो यह है कि मैं आज भी उससे अलग नही हो सका।
लिंकन की उक्त बातें सुनकर सब हंसने लगे और श्रीमती लिंकन लजा गयीं। अब्राहम लिंकन विनोद प्रिय थे। वह गंभीर स्थिति में भी सबको हंसा देते थे।
एक बार एक व्यक्ति लिंकन से मिलने आया। श्रीमती लिंकन भी पास में बैठी थी। वे बीच-बीच मे बोल पड़ती थी। यह बात आगंतुग को बुरी लगती थी। जब श्रीमती लिंकन वहां से चली गयीं, आगंतुक ने लिंकन से पूछा, “साहब! यह कौन महिला है?”
लिंकन ने कहा– “अरे भाई! श्रीमती लिंकन है।” आगंतुक ने कहा– “क्षमा कीजियेगा।”
लिंकन ने कहा, “क्षमा मुझे मांगना चाहिए, आप क्यों क्षमा मांगते है?”
एक बार एक छात्र ने लिंकन से कहा, “साहब! आप मुझे बीस डॉलर का सहयोग कर दें, तो मेरी इस वर्ष की पढ़ाई पूरी हो जाये।” लिंकन ने कहा, “जब मैं अपनी पत्नी के साथ बैठा रहूं, उस समय सामने आना और चालीस डॉलर मांगना।” वह लड़का दोनो की उपस्थिति में आया और उसने लिंकन से चालीस डॉलर की याचना की। लिंकन ने पत्नी से कहा, “यह लड़का अपनी पढ़ाई के सहयोग में चालीस डॉलर मांग रहा है।” श्रीमती लिंकन ने कहा, “बीस डॉलर देना काफी है।” छात्र का काम बन गया।
राष्ट्रपति लिंकन ने दक्षिणी विद्रोही राज्यों को सेना से घेर लिया और उसका समुद्र का रास्ता भी इसलिए घेर लिया कि उनका विदेश से व्यापार रुक जाये और वे आर्थिक संकट से ऊबकर शीघ्र आत्मसमर्पण कर दें। इससे यह हुआ कि दक्षिणी अमेरिकी राज्यों से ब्रिटेन कपास जाना बंद हो गया, अतएव ब्रिटेन की मिलें बंद हो गयीं और ब्रिटेन-सरकार ने लिंकन पर क्रुद्ध होकर दक्षिणी विद्रोही राज्यों के अंतरिम सरकार कंफेडरेट को मान्यता दे दी। इतना ही नही, विद्रोही दक्षिणी राज्य को उसने सैनिक सहायता भी देना शुरू कर दी। इससे विद्रोहियों की हिम्मत बढ़ गयी। उसने उत्तरी अमेरिका के अनेक जल-जहाज समुद्र में डुबो दिये। लिंकन इस संभावना से कंपित हो गये कि विदेशी ताकतें विद्रोहियों की तरफ से यदि युद्ध मे उतर आयीं तो अमेरिका राख का ढेर हो जायेगा। इधर अमेरिका की सेना एक वर्ष तक विद्रोही 'ली' को पीछे नही धकेल सकी।
जो जनरल सेना के साथ भेजा जाता वह विद्रोही सेना के जनरल ली का सामना करने से कतराता था अथवा सामना करता तो हार जाता था। घमासान युद्ध चलता था और हजारों लाशें गिरती थी। लिंकन ने नीग्रो को भी अपनी सेना में भरती किया। युद्ध समाप्ति के बाद संघीय सेना में एक लाख छियासी हजार नीग्रो सैनिक थे।
अंततः विरोधी पक्ष का अजेय जनरल 'ली' पराजित हुआ और उसने आत्मसमर्पण कर दिया। घमासान युद्ध के बाद संघीय सेनाओं ने पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। पर इस युद्ध मे इतनी लाशें गिरी कि दूर-दूर तक जहां तक नजर जाती थी, मैदान में लाशें ही नजर आती थीं। सितम्बर 1863 ई. में गैटिस्वर्ग पर कब्जा हुआ। परंतु लाशें अक्टूबर तक ठिकाने न लगाई जा सकीं। संघीय सैनिकों की लाशों को अक्टूबर के अंत तक दफन करने का काम शुरू किया, परंतु कंफेडरेट सैनिकों की लाशें यूं ही पड़ी रही। वर्षो के लंबे अंतराल के बाद भी उन्हें दफनाने का काम शुरू नही हो सका। पेंसिलवानिया में सत्तरह एकड़ जमीन संघीय सैनिकों के दफनाने के लिए तय की गयी थी।
विजय के उपलक्ष्य में राष्ट्रपति लिंकन को भाषण के लिए बुलाया गया। लोग समझते थे कि लिंकन विजय के उत्साह में हर्षित होकर भाषण देंगे। परंतु उन्होंने कहा– “हमारे सामने हजारो बहादुरों की लाशें पड़ी है। आओ, हम सब अमेरिकावासी मिलकर संकल्प लें कि दोनों ओर से इस गृहयुद्ध में मारे गये लाखों लोगों का बलिदान व्यर्थ नही जाएगा। ईश्वर की छत्रछाया में यह राष्ट्र नया जन्म लेगा। उसकी स्वाधीनता नयी होगी, और जनता का जनता पर तथा जनता द्वारा शासन का धरती से कभी अंत नही होगा।”
8 नवम्बर 1864 ई. में अब्राहम लिंकन पुनः राष्ट्रपति हुए। 31 जनवरी 1865 ई. को लिंकन ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली और उन्होंने पहला काम यह किया कि संविधान में संशोधन कर गुलाम-प्रथा का अंत कर दिया। इसको लेकर गुलाम-प्रथा विरोधियो में उनका जय-जयकार हुआ। सदन तालीयों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
गुलाम-प्रथा समाप्त करने के बाद लिंकन ने देश को सम्हालने में अपना मन लगा दिया। उनके प्रेमियों ने उन्हें सावधान किया कि गुलाम-प्रथा-समर्थक लोग आपकी जान के लिए खतरा है। आप अपनी सुरक्षा बढ़ा दें। परंतु लिंकन ने कहा– “जब मेरा पूरा देश घायल पड़ा कराह रहा है, जब अमेरिकी अमेरिकी का खून बहाने पर विवश है, ऐसे में मैं अपनी जान की हिफाजत करने में लग जाऊं, यह घोर कायरता होगी और सच्चाई से पलायन भी। मैन जो किया है, अमेरिका के हित में किया है, मानवता के हित मे किया है। अब यदि कुछ लोग यह मानते है कि मैं गलत हूं, तो उनके हाथ खुले है। इस देश के नागरिक होने के नाते वे अपने राष्ट्रपति को जो चाहे सजा दे सकते है। राष्ट्रपति को इससे इंकार नही है।”
लिंकन को तो युद्ध मे मारे गये दोनो पक्षो के लाखों जवानों की विधवाओं और बच्चों की रक्षा, सेवा तथा पूरे अमेरिका के संघीय राज्य की सुव्यवस्था की चिंता थी। लिंकन दक्षिण सेनाओं के कमांडर इन चीफ जनरल 'ली' तथा अन्य जनरलों से मिले। उनको सांत्वना दी। लिंकन के मन मे इनके प्रति थोड़ा भी द्वेष नही था। उन्होंने उन सबको क्षमाकर उनको साथ मे ले लिया।
लिंकन ने 'ली' से कहा―
“Frighten the hatred and revenge out of country. Enough blood has been shed. Open the gates, let down the bars, scare them off.” घृणा और बदले की भावना को देश से हटाओ। बहुत रक्तपात हो चुका है। अब दिल के दरवाजे खोलो, मन को ग्रंथियों से रहित करो।
लिंकन अपनी पत्नी के साथ रथ पर बैठकर घूमने निकले और उन्होंने उनसे कहा कि मेरे चार वर्ष राष्ट्रपति-पद के बीत गये और वे युद्ध काल मे गये। इसी बीच मेरा बेटा बिली मुझे छोड़ गया। अब लगता है कि भविष्य ठीक रहेगा। अमेरिका संघ को मजबूत बनाना है। उसकी सेवा करनी है। जब वे घूमकर व्हाइट हाउस आये तो वे प्रसन्न थे।
14 अप्रेल, 1865 का दिन था। लिंकन ने सोचा कि वर्षो से युद्ध की पीड़ा ढोते-ढोते मन भारी हो गया है। थियेटर में ‘America Cousin’ नामक नाटक चल रहा था। वहां चलकर उसे देखें और मन हल्का करें। वे अपनी पत्नी मैरी टॉड और मित्रों के साथ रथ पर बैठकर थियेटर गये। वहां उन्हें एक विशेष स्थान पर बैठाया गया।
'जॉन विल्कस बूथ' नाम का एक युवक था। वह गुलाम-प्रथा का समर्थक था। वह अब्राहम लिंकन की जान का प्यासा था। उसने जान लिया था कि अब्राहम लिंकन नाटक देख रहे है और उनके पास न कोई अंगरक्षक है और न कोई हथियार। उसे यह अवसर अपने काम के लिए उत्तम लगा। वह दाहिने हाथ मे पिस्तौल और बायें हाथ में खंजर लेकर पीछे से आया और लिंकन के सिर में गोली मार दी। उनके दिमाग मे गोली घुस गयी। वे आगे की ओर गिर पड़े। लिंकन के मित्र हत्यारे पर झपटे परंतु वह उन्हें खंजर से घायल कर भाग निकला। भागते समय वह गिरा और उसका पैर टूट गया, फिर भी वह भाग निकला। बाद में उसे पकड़ लिया गया।
मैरी टॉड के रुदन से पूरा थियेटर गूंज गया। भगदड़ मच गयी। लिंकन का खून फर्श पर बह रहा था। डॉक्टरों ने बड़ा प्रयत्न किया, परन्तु अपने राष्ट्रपति को बचा न सके।
राष्ट्रपति लिंकन की मृत्यु से पूरा अमेरिका दहल गया। लाखों नर-नारी फुट-फुटकर रो पड़े। सैनिक, प्रजा सब बहुत पीड़ित हुए। सर्वाधिक रोये दक्षिण राज्यो के चालीस लाख नीग्रो जिनको गुलामी से मुक्ति दिलाने में उनका रक्त बहा।
लिंकन का परिवार तो बेहाल हो गया। मैरी टॉड अपने तीनो पुत्रो को सीने से लगाकर रोती, विक्षिप्तों की तरह चीखती और अचेत हो जाती।
लिंकन की शव-यात्रा निकली, जिसमे चालीस लाख आंसू बहाते लोग थे। वाशिंगटन से शव स्प्रिंगफील्ड लाया गया। जुलूस उसके पीछे चला। जो रास्ते मे मिलता वही जुलूस के साथ चलता और जहाँ तक चल पाता चलता। स्प्रिंगफील्ड जहां लिंकन का अपना घर था, वहां उनके शव को दफनाया गया।
लिंकन के साथी वकील हेंडरसन ने अपने ऑफिस पर लगे उस बोर्ड को देखकर जिस पर लिखा था―'ला फार्म ऑफ लिंकन एण्ड हेंडरसन।' कहा― “तू मुझे धोखा दे गया न! तू तो कहता था, राष्ट्रपति काल पूरा करके फिर स्प्रिंगफील्ड आयेगा और मेरे साथ फिर वकालत करेगा। इसी दशा में यह बोर्ड तेरे कहे अनुसार मैने नहीं हटाया। अब तू स्प्रिंगफील्ड आया भी है तो इस हालत में..... मेरे राष्ट्रपति मेरे दोस्त। बता अब मैं क्या करूं? क्या अब भी यह बोर्ड यूं ही लगा रहने दूं या इसे उखाड़ फेंकू।” कहते-कहते हेंडरसन रो पड़े।
पति की मृत्यु के बाद मैरी लिंकन अपने बेटों के साथ अपने घर मे न रह सकीं। वे अपनी बहन के साथ उन्ही के घर मे आ गयी। जिस पलंग पर मैरी लिंकन अपने राष्ट्रपति पति के साथ सोया करती थी, उसे वे अपने साथ ले आयी थीं। अपनी बहन के घर के एक कमरे में उन्होंने वह पलंग डलवाया था। वे बिल्कुल चुप रहती थी। रात को जब सोती तो पलंग की वह जगह खाली छोड़ देती थी। जिस पर राष्ट्रपति लिंकन सोया करते थे।
श्रीमती लिंकन मैरी टॉड अमीर घर की लड़की थीं। ठाट-बाट, शान-शौकत से रहने वाली थी। उनकी विशेषता थी कि उन्होंने एक अस्त-व्यस्त, किंतु मानवता के प्रेमी प्रतिभावान पुरुष अब्राहम लिंकन को पति के रूप में वरण किया, और उनके त्यागमय जीवन से अपना सामंजस्य बैठाया। राष्ट्रपति पति को काल ने निर्दयतापूर्वक उनके सामने छीन लिया। वे अपने पुत्रों के साथ न रह सकी। सबसे छोटा प्यारा पुत्र पहले ही दुनिया से चला गया; और वे अकिंचन होकर एक कमरे में मौन भाव से रहने लगी।
संतो का अनुभव और उपदेश ही सच्चाई है। सबको दीनता, अल्पता और अकेलेपन में पहुंचना है चाहे वह सम्राट ही क्यों न हो। वह धन्य है जो ज्ञानपूर्वक स्वेच्छा से इन्हें स्वीकार कर लेता है। जो थोड़े में गुजर, विनम्र और अपनी असंगता एवं अकेलेपन में तृप्त हो जाता है, वह कृतार्थ हो जाता है।
आप ऊपर पढ़ आये है कि जब अब्राहम लिंकन दोबारा राष्ट्रपति हुए, उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में संशोधन कर गुलाम-प्रथा को बंद करवा दिया और उसके बाद ही उनका जीवन नही रहा।
अमेरिका में रहने वाले अश्वेतों को गुलामी से तो छुट्टी मिल गयी, परंतु वे गोरो के मोहल्ले में नही रह सकते थे, बस तथा ट्रेन में गोरो के साथ नही बैठ सकते थे। अश्वेतों के लिए बस में पीछे चिन्हित सीटें होती थीं। यदि दस सीटें है और पंद्रह अश्वेत आ गये, तो उसी में ठसकर चलें। आगे गोरो वाली सीटें चाहे खाली हो, अश्वेत नही बैठ सकते थे। इसी तरह ट्रेन-यात्रा की भी बात थी। स्मरण होना चाहिए कि इन्ही गोरों ने अफ्रीका में ट्रेन-यात्रा में गांधीजी को ट्रेन की प्रथम श्रेणी के डब्बे से उतर जाने के लिए कहा था। तब गांधीजी ने प्रथम श्रेणी का टिकट दिखाया। गोरों ने डांटा। तब भी जब गांधीजी नही हटे तब उन्हें डिब्बे से बाहर फेंक दिया गया। अमेरिका में अश्वेत लोग चुनाव में वोट नही दे सकते थे। कुल मिलाकर यही था कि अब्राहम लिंकन के प्रयास से अमेरिका के अश्वेतों को गुलामी से छुट्टी मिल गयी थी। अब उन्हें गोरे बेच-खरीद नही सकते थे, वे किसी की संपत्ति नही थे, और स्वतंत्रता से मेहनत-मजदूरी करके खा-जी सकते थे। परंतु उन्हें अमेरिका के गोरों के समान सामाजिक और राष्ट्रीय अधिकार नही थे। अब्राहम लिंकन के बलिदान के बाद अमेरिका-निवासी अश्वेतों को समान अधिकार प्राप्त करने में ठीक सौ वर्ष लगे।
मार्टिन लूथर किंग जूनियर जिन्होंने अब्राहम लिंकन के मानवतावादी सफल अभियान से प्रभावित होकर अमेरिका के अश्वेतों को समान अधिकार दिलाने के लिए अहिंसात्मक अभियान चलाया।
आज-कल की अमेरिकी उन्नति में नीग्रो लोगों का प्रबल हाथ है। यहां तक कि खेल में भी वे आगे है। अब नीग्रो शब्द भी मानवता विरोधी माना जाता है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ‘बराक ओबामा’ जो अफ्रीकी मूल के अमेरिकावासी अश्वेत नीग्रो है और 62 वर्ष की उम्र के लगभग है और प्रबल जनमत से राष्ट्रपति पद पर आये थे। अमेरिकी इतिहास में बराक ओबामा प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति है
जो स्वप्न जॉर्ज वाशिंगटन, अब्राहम लिंकन तथा मार्टिन लूथर किंग जूनियर आदि ने देखा था वह आज पूरा होते दिख रहा है।