जब कर्बला को अत्यधिक खोजने पर वो ना मिली तो अचलराज ने अपने पिता व्योमकेश जी से अनुमति माँगते हुए कहा....
"पिताश्री!यदि आपको कोई आपत्ति ना हो तो मैं कर्बला को खोजने जाऊँ"
"नहीं!पुत्र!तुम्हें उसके विषय में कोई जानकारी नहीं है कि वो कहाँ है तो उसे खोजने तुम कहाँ जाओगे ? " , व्योमकेश बोले...
"पिताश्री!उसके विषय में जानकारी ना सही किन्तु उसे खोजने का प्रयत्न तो किया ही जा सकता है", अचलराज बोला...
"ईश्वर करें ऐसा ना हुआ हो किन्तु यदि उस हत्यारे ने उसके साथ कुछ बुरा किया हो तब क्या होगा"?, व्योमकेश जी बोले...
"आप ऐसा क्यों सोच रहे हैं कि ये कार्य उस हत्यारे का ही है,ऐसा भी तो हो सकता है कर्बला पर और कोई संकट आन पड़ा हो",अचलराज बोला...
"अब जो भी हो किन्तु मुझे अत्यधिक भय लग रहा है,मैं तुम्हारे लिए अत्यधिक चिन्तित हूँ पुत्र"!,व्योमकेश जी बोले...
"तो क्या आपको कर्बला की कोई चिन्ता नहीं?,वो तो हमारी अतिथि है और हमारी शरण में है",अचलराज बोला....
"तो क्या करूँ मैं?मैं भी अत्यधिक दुविधा में हूँ,मेरे भीतर एक अन्तर्द्वन्द्व चल रहा है उधर उस कर्बला की चिन्ता क्या कम थी जो तुम उसे खोजने जाने की बात कहकर मेरी चिन्ता बढ़ा रहे हो",व्योमकेश जी बोले....
"किन्तु!पिताश्री!कर्बला को खोजने तो जाना होगा ना!",अचलराज बोला...
"अब क्या बोलूँ मैं?मना भी तो नहीं कर सकता",व्योमकेश जी बोलें...
"इसका आशय मैं क्या समझूँ कि आपने मुझे अनुमति दे दी है कर्बला को खोजने की",अचलराज ने पूछा...
"अब इसके सिवाय और कोई मार्ग भी तो शेष नहीं बचता",व्योमकेश जी बोले....
"तो मैं जाऊँ पिताश्री"अचलराज ने आज्ञा माँगते हुए कहा....
"हाँ!तुम जा सकते हो",व्योमकेश जी बोले....
अचलराज को व्योमकेश जी की अनुमति मिलते ही वो ज्यों ही कर्बला को खोजने जाने लगा तो कुबेर बना कौत्रेय बोला....
"ठहरो!अचलराज !मैं भी तुम्हारे संग चलूँगा उसे खोजने क्योंकि कर्बला मेरी बहन है",
"हाँ!तुम कुबेर को अपने संग ले जाओ तो मुझे चिन्ता तनिक कम होगी",व्योमकेश जी बोलें....
"हाँ!ये उचित रहेगा,एक से दो भले ठीक होते हैं,मार्ग में यदि कोई असुविधा हुई तो एक दूसरे का साथ तो दे सकते हैं",दुर्गा बनी भैरवी बोली....
"हाँ!दुर्गा ने सही कहा",व्योमकेश जी बोले...
अन्ततः कुबेर और अचलराज कर्बला को खोजने घर से निकलने लगे तो दुर्गा बनी भैरवी बोली...
"तुम दोनों अपना ध्यान रखना और कर्बला के संग सुरक्षित घर लौटना"
"पुत्री!दुर्गा!तुम्हारे वचन सत्य हो जाएं",व्योमकेश जी बोले....
अन्ततः अचलराज और कुबेर दोनों संग में कर्बला को खोजने निकल पड़े और दोनों दिनभर कर्बला को नगर के सभी स्थानों पर खोजते रहे किन्तु उन्हें कर्बला कहीं नहीं मिली,अब तो कुबेर भी चिन्तित था कि अन्तोगत्वा कालवाची गई कहाँ? पुनः उस पर कोई संकट तो नहीं आ पड़ा,कहीं ऐसा तो नहीं किसी ने उसे हत्या करते देख लिया और कड़ा दण्ड दे दिया हो,यही सब विचार कुबेर बने कौत्रेय के मन में चल रहे थे,जब कर्बला को खोजते खोजते अत्यधिक रात्रि हो गई तो दोनों ने मंदिर के पास बनी एक कुटिया में शरण ली एवं वहीं विश्राम करने लगें और इधर जब अर्द्धरात्रि बीत गई तो कालवाची पुनः अपने भोजन की खोज में उस कन्दरा से बाहर निकली और अपने लिए भोजन खोजने लगी और उस रात्रि उसके भाग्य ने उसका साथ दिया इसलिए उसे एक वृद्ध व्यक्ति मिल गया जो बेचारा दृष्टिहीन था,उस बेचारे को दिशाभ्रम हो गया था और इसका लाभ कालवाची ने उठाया,वो उसे मार्ग दिखाने के बहाने नगर से अत्यधिक दूर एकान्त में ले गई जिससे कोई भी उस वृद्ध व्यक्ति का मृत शरीर ना पा सके एवं वहीं पर उसने उसकी हत्या करके उसका हृदय ग्रहण कर लिया, हृदय ग्रहण करते ही कालवाची के मुँख की कान्ति लौट आई और उसके केशों का रंग भी बदल गया,उसकी खोई ऊर्जा पुनः लौट आई थी,किन्तु अभी वो इतनी रात्रि को घर नहीं लौट सकती थी इसलिए उसने भोर होने तक प्रतीक्षा की एवं पुनः उसी कन्दरा में जाकर विश्राम करने लगी...
भोर हुई तो इधर अचलराज और कुबेर भी जागें और पुनः उन्होंने कर्बला को खोजने का विचार किया,अन्ततः दोनों पुनः कर्बला की खोज में निकल पड़े एवं वें इस बार नगर से दूर जाकर कर्बला को खोजना चाहते थे और दोनों उसी मार्ग की ओर चल पड़े और इधर कर्बला भी उसी मार्ग से घर को लौट रही थी और अन्त में तीनों की भेट उसी मार्ग में एक दूसरे से हो गई,कर्बला को देखकर अचलराज अत्यधिक प्रसन्न हुआ और शीघ्रता से उसने कर्बला को अपने अंकपाश में ले लिया,अचलराज के ऐसे व्यवहार से कर्बला कुछ सकुचाई परन्तु उसे अच्छा भी लगा,कुछ समय तक अचलराज कर्बला को यूँ ही अपने अंकपाश में जकड़े रहा और उससे बोला.....
"ईश्वर की दया से तुम सुरक्षित हो कर्बला!तुम्हें ज्ञात है कि तुम्हारे ना मिलने से हम सभी कितने चिन्तित थे,कहाँ चली गई थी तुम हम सबको बिना बताएं",
तब कुबेर बोला....
"पहले उसे अपने अंकपाश से तो मुक्त करो,कहीं बेचारी का श्वास ना रूक जाएं तो हमें इसका मृत शरीर लेकर घर जाना पड़े",
कुबेर की बात सुनकर अचलराज बोला....
"हाँ!ये तो मैं भूल ही गया था,मैं कर्बला को सुरक्षित देखकर इतना प्रसन्न हो गया कि अपनी सुधबुध ही खो बैठा",अचलराज बोला....
"हाँ!कर्बला!पहले ये बताओ कि तुम कहाँ चली गई थी"?,कुबेर ने पूछा....
तब कर्बला झूठ बोलते हुए बोली...
"भोर हुए नदीतट पर विचरण करने चली गई थी और उसके पश्चात घर का मार्ग भूल गई,भटकते भटकते ना जाने कहाँ पहुँची,दिनभर किसी वन में घूमती रही और रात्रि को एक वृक्ष तले विश्राम किया,कोई मुझे मार्ग में मिला भी नहीं जिससे घर जाने का मार्ग पूछ लेती",
"हाँ!सभी उन हत्याओं से भयभीत हैं इसलिए कोई भी रात्रि को क्या ,दिन को भी घर से बाहर नहीं निकल रहा",अचलराज बोला....
"तो अब कैसें नगर की ओर आने का मार्ग मिला"?,कुबेर ने पूछा...
"बस यूँ ही अनुमान लगाते हुए इस ओर चली आई",कर्बला बोली....
इसके पश्चात सभी वार्तालाप करते हुए घर की ओर चल पड़े और जब सभी घर पहुँचे तो कर्बला ,कुबेर और अचलराज को सुरक्षित देखकर व्योमकेश जी और दुर्गा के मुँख पर प्रसन्नता के भाव थे,किन्तु सबसे अधिक प्रसन्नता के भाव कर्बला के मुँख पर थे क्योंकि आज उसे अचलराज ने अपने अंकपाश में लिया था और अचलराज के अंकपाश में जाते ही कर्बला को एक अद्भुत आनन्द की प्राप्ति हुई थी और उसे ये भी विश्वास हो चला था कि कदाचित कौत्रेय की बातें सत्य हैं, अचलराज उससे प्रेम करता है तभी तो मेरी इतनी चिन्ता थी उसे,उसके पिता के ना चाहते हुए भी वो मुझे खोजने निकल पड़ा....
और ये साधारण सी बात थी,यदि कर्बला के स्थान पर और कोई भी खो जाता तो अचलराज को उसकी भी उतनी ही चिन्ता होती जितनी की कर्बला की थी,किन्तु इस बात को कर्बला ने अपने अनुसार अपने मस्तिष्क में बैठा लिया था कि अचलराज उसे प्रेम करता है और ये बात सर्वप्रथम कौत्रेय ने ही कालवाची के मन में बैठाई थी कि अचलराज उसे प्रेम करता है और कालवाची कौत्रेय की कही बात को बोधभ्रम (गलतफहमी) समझकर अपने मन और मस्तिष्क में बैठा बैठी....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....