नाना साहब पेशवा जयंती:
धूंधूपंत को कभी पकड़ नहीं पाई थी अंग्रेजी सेना, जनक्रांति की चिंगारी बनी थी ज्वाला
वनाना साहब पेशवा ने वर्ष 1857 में जो चिंगारी जगाई वो 1947 में आजादी प्रदान करने वाली ज्वाला बनी। इन्हीं के आंगन में खेलकर झांसी की रानी ने शौर्य का कौशल सीखा था। नाना साहब पेशवा को अंग्रेजी सेना आजीवन पकड़ नहीं पाई।
नाना साहब पेशवा जयंती: धूंधूपंत को कभी पकड़ नहीं पाई थी अंग्रेजी सेना, जनक्रांति की चिंगारी बनी थी ज्वाला
कानपुर, जागरण संवाददाता। प्रथम स्वाधीनता संग्राम में कानपुर और बिठूर से जुड़ी तमाम यादें देशवासियों को क्रांतिकारियों की वीरता और शौर्य से परिचित कराती हैं। बिठूर में नाना साहब पेशवा की अगुवाई में तात्याटोपे, अजीमुल्ला के साथ लड़ी गई लड़ाई और पेशवा के आंगन में खेलकर बड़ी हुई झांसी की रानी के प्रमाण मौजूद हैं। 1857 क्रांति के नायक रहे नाना साहब पेशवा को अंग्रेजी सेना आजीवन पकड़ नहीं पाई। उनकी शौर्य गाथा बिठूर को कण-कण में समाई हुई है। बिठूर में आज भी ऐतिहासिक कुआं और महज के खडंहर मौजूद हैं जो नाना साहब पेशवा की शौर्य गाथा से जन-जन को परिचित करा रहे है। पेश है नाना साहब पेशवा की जयंती पर संवाददाता अंकुश शुक्ल व फोटो जर्नलिस्ट संजय यादव की एक रिपोर्ट...
1857 की क्रांति के नायक नाना साहब पेशवा धूंधूपंत का जन्म 1824 में महाराष्ट्र के गांव वेणु में हुआ था। पिता माधव नारायण राव व माता गंगा बाई के पुत्र को महज ढाई वर्ष की उम्र में सात जून 1827 में बाजीराव पेशवा द्वितीय ने गोद लिया। वर्ष 1851 में पेशवा बाजीराव की मृत्यु के बाद नाना साहब ने गद्दी संभाली और वर्ष 1857 में जनक्रांति के जरिए अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने का आह्वान किया। उनके द्वारा जगाई गई चिंगारी 90 वर्ष बाद 1947 में ज्वाला बनी और देश को अंग्रेजी शासन से मुक्ति मिली। नाना साहब के बारे में इतिहासकारों के मत हैं कि उनकी युद्ध नीति व कौशल के कारण अंग्रेजी सेना उन्हें कभी पकड़ नहीं पाई। वे एक दीप बनकर जिए जब तक जिए स्वाभिमान की प्रचंड ज्योति जलाकर जिए। अपना सर्वस्व दांव पर लगाकर जिए। हमें गुलामी से स्वतंत्र होना है यह सपना जगाकर जिए।
पेशवा की कर्मशक्ति थे तात्या टोपे और चिंतन शक्ति अजीमुल्ला खां
1857 क्रांति के नायक रहे नाना साहब पेशवा की अंग्रेजी शासन से जंग में तात्या टोपे उनकी कर्मशक्ति व अजीमुल्ला खां चिंतन शक्ति के लिए पहचाने जाते थे। नाना साहब के प्रमुख सिपहसलार तात्या टोपे की गोरिल्ला युद्ध नीति ने अंग्रेजी सेना की नाक में दम किया था। वहीं, अजीमुल्ला खां नाना साहब के प्रमुख रणनीतिकार थे।
यहीं पेशवा के आंगन में खेली झांसी की रानी...
नाना साहब पेशवा के ऐतिहासिक महल का खंडहर बिठूर में आज भी मौजूद है। जहां झांसी की रानी नाना के संग पढ़ती थी वह नाना के संग खेली थी, बरछी ढाल कृपाण कटारी उसकी यही सहेली थी। यहीं पेशवा के आंगन में खेली मनु बाद में झांसी की रानी बनीं और अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। उनके लिए कहा जाता है कि खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी।
महज के सामने थी चार्ल्स बिल्डिंग, जहां लगती थी सेनानियों की संसद
नानाराव पार्क के सामने चार्ल्स बिल्डिंग थी। जिसमें नूर मोहम्मद का होटल था। यह होटल कभी स्वतंत्रता सेनानियों की संसद के नाम से चर्चित था। जहां पर नाना पेशवा, अजीमुल्ला खां, तात्याटोपे और अन्य विद्रोही गुप्त बैठक करते थे।