एक बार की बात है, भगवान महादेव और देवी पार्वती संसार भ्रमण करने के लिए निकले थे| तभी देवी पार्वती ने देखा कि दुनिया में सर्वत्र बहुत प्रकार की परेशानियां है| लोग अपनी अलग-अलग चिंताओं के कारण अतिशय अप्रसन्न और व्याकुल दिखाई पड़ते थे| किसी को कोई दुख तो किसी को कोई| देवी का हृदय तो मां का हृदय था तुरंत ही पिघल गया|
संसार में लोगों को दुखी देखकर उनका कल्याण करने की इच्छा से देवी पार्वती ने अति करुण वाणी में भगवान शंकर से प्रार्थना की " स्वामी आप तो सब जानने वाले हैं , दुनिया के हर कोने में आपका ही निवास है ! दुनिया में रहने वाले जितने भी जीव जंतु है यह सब आपकी ही तो संताने हैं |हे प्रभु! आप इन सब के दुखों का निवारण करने का कोई उपाय क्यों नहीं करते? मुझे बताइए, इन सब के दुखी होने का क्या कारण है?
यह सुनकर भगवान भोलेनाथ हल्का सा मुस्कुरा दिए। उन्होंने देवी अंबिका से कहा, "हे उमा! संसार के लोगों के दुखी होने का केवल एक ही कारण है और वह है उनका असंतोष। इस संसार के लोगों को चाहे तुम कितना भी सुख दे दो, इन्हें और अधिक पाने की लालसा रहती है और इसी असंतोष के कारण ही अनेक प्रकार के दुख इनको सताते हैं। इसीलिए अगर मैं इन्हें समस्त त्रिलोकी का राज्य भी दे दूं तो भी यह पूर्णता सुखी नहीं होंगे । किसी न किसी रूप में दुखी होने का कारण यह स्वयं ही ढूंढ लेंगे।
यह सुनकर देवी गिरिजा ने भगवान शिव से कहा, "हे प्रभु! मुझे इस बात पर विश्वास नहीं होता कि यह दुनिया इतनी ज्यादा असंतोषी है कि हर बात में ही दुखी होने का कारण स्वयं ढूंढ लेगी। कृपया करके मुझे यह प्रमाणित करके दिखाएं, तो मैं मानूं। देवी पार्वती का संशय दूर करने के लिए भगवान श्री भूतनाथ ने स्वयं एक बूढ़े आदमी का वेश धारण किया और देवी पार्वती को युवती स्त्री का वेश धारण करने को कहा। दोनों अपना भेष बदल कर नंदी बैल के साथ संसार में भ्रमण करने के लिए निकल पड़े।
भगवान शंकर और देवी पार्वती दोनों पैदल चल रहे थे और नंदी बैल उनके साथ चल रहा था। तभी वहां से कुछ युवकों की टोली जाती हुई दिखाई दी। जब उस टोली ने भगवान शिव, देवी पार्वती और नंदी महाराज को देखा, तो व्यंग करते हुए कहने लगे "हे भगवान ! कैसा जमाना आ गया है, पति-पत्नी दोनों मूर्ख है। साथ में इतना हट्टा कट्टा बैल है उसके बाद भी दोनों पैदल चल रहे हैं । मुर्ख कहीं के !! छोड़ो हमें क्या, हम तो अपना काम करते हैं।
यह सुनकर देवी उमा झेंप गई और उन्होंने भगवान शंकर से कहा कि हम दोनों को नंदी के ऊपर बैठकर चलना चाहिए, यह लोग सत्य कह रहे हैं । इसके बाद भगवान शंकर और देवी पार्वती नंदी महाराज के ऊपर बैठकर चलने लगे। तभी कुछ दूर आगे जाने पर पानी भरने वाली औरतें दिखाई पड़ी, उन्होंने जब भगवान को देखा तो वे लोग व्यंग कसते हुए कहने लगी, "हे भगवान! कैसा घोर कलयुग है, इस बेचारे बेजुबान बेल के ऊपर पति-पत्नी दोनों लदे जा रहे हैं । इन्हें तो जरा तरस भी नहीं आता । बड़ा अन्याय हो रहा है बैल के साथ राम-राम!!
इतना सुनना था कि देवी उमा नंदी पर से उतर गई और कहने लगी," यह औरतें भी सही कह रही है , एक काम करते हैं मैं पैदल चलती हूं। इस तरह कुछ दूर आगे बढ़े ही थे कि चौपाल पर बुजुर्ग व्यक्ति बैठे हुए थे। उन्होंने जब देखा तो वे लोग दुखी होते हुए कहने लगे , "हे भगवान! कैसा जमाना आ गया है , इतनी धूप में बेचारी पत्नी पैदल चल रही है और उसका पति ठाठ से बेल के ऊपर बैठा जा रहा है । इसको अपनी पत्नी के ऊपर बिल्कुल भी दया नहीं आती ।
अबकी बार भगवान शंकर नंदी पर से उतर गए और देवी पार्वती को नंदीबैल पर चढ़ा दिया । इस तरह थोड़ा दूर और आगे बढ़े थे कि कुछ स्त्रियों ने उन्हें जाते हुए देखा । उन स्त्रियों ने भी इसी प्रकार व्यंग कसते हुए कहा , "हे भगवान ! घोर कलयुग है! बेचारा बूढ़ा पति तो पैदल चल रहा है और यह पत्नी तो देखो कैसे बेल के ऊपर ठाठ से जा रही है। इसको जरा भी शर्म नहीं आती कि पति को बेल पर बिठा दे और खुद उसके साथ नीचे चले।"
यह सब सुनने के बाद देवी पार्वती और भगवान शंकर दोनों ठहाका लगाकर हंसने लगे। देवी पार्वती अब अच्छी तरह समझ चुकी थी कि चाहे हम कुछ भी कर ले यह दुनिया कभी भी संतुष्ट नहीं हो सकती। इसीलिए तो कहते हैं कि यह दुनिया गोल है गोल!!