separation... in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | जुदाई...

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जुदाई...

फरहान घर से रेलवें स्टेशन के लिए निकला तो बहुत परेशान था,क्योंकि उसका रिजर्वेशन कन्फर्म नहीं था और उसे आर.ए.सी. सीट मिली थी,इसलिए उसका मूड बहुत खराब था वो सोच रहा था कि ना जाने आर.ए.सी. सीट में किस किस्म का इन्सान हो,खड़ूस हुआ तो फिर उसका तो सारा सफ़र ही खराब हो जाएगा,रातभर का सफ़र है लखनऊ से दिल्ली तक का,वो ऐसे इन्सान को कैसे झेलेगा रातभर और यही सब सोचते सोचते वो लखनऊ रेलवें स्टेशन आ पहुँचा,फिर उसने आटो वाले को उसका किराया दिया,अपना सामान उठाया और आ गया प्लेटफार्म पर,फिर उसने एक खाली बेंच देखकर उस पर अपना डेरा जमा लिया,वो उस पर पसर गया और कोई किताब पढ़ने लगा,तभी उसकी बेंच के पास एक लड़की बुर्का पहने आई और उससे बोलीं....
"अगर आपको एतराज ना हो तो क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ"?
फरहान ने उस लड़की की ओर देखा ,बुर्के में से केवल उसकी खूबसूरत सुरमे वाली भूरी भूरी बड़ी आँखें ही दिख रही थीं,ना जाने उस लड़की की आँखों में कौन सा जादू था फरहान उस लड़की की आँखों को देखकर अपना होश खो बैठा और उस लड़की के सवाल का जवाब नहीं दे पाया,तभी उस लड़की ने फरहान से दोबारा पूछा....
"जनाब!कहीं और कोई भी बेंच खाली नहीं है,क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ"?
फरहान ने अपना होश सम्भाला और बोला...
"जी!मोहतरमा!आप बैठ सकतीं हैं"
फिर वो लड़की वहाँ बैठ गई और फिर उसने अपना सामान रखकर बैग से पानी की बोतल निकाली और चेहरे से बुर्का हटाकर पानी पीने लगी फिर फरहान से बोली...
"आज बहुत गर्मी है ना! "
उस लड़की ने जैसे ही अपना बुर्का हटाया तो फरहान ने देखा कि लड़की बेहद हसीन थी और वो एक ही नजर में उसकी मौहब्बत में गिरफ्तार हो गया,लड़की के होठों का काला तिल और गाल के गड्ढों ने फरहान का चैन चुरा लिया था,फिर लड़की ने चिप्स का एक पैकेट खोला और फरहान से पूछा...
"जी!आप भी लीजिए"
"जी!नहीं!शुक्रिया" और ऐसा कहकर फरहान ने चिप्स लेने से मना कर दिया...
तब लड़की बोली...
"घबराइए नहीं मैं जहरखुरानी नहीं हूँ"
लड़की की बात सुनकर फरहान हँसने लगा फिर उसने पैकेट से एक दो चिप्स लीं और खाने लगा, फरहान भी बड़े इत्मीनान से उस लड़की को चिप्स खाते देख रहा था,लड़की के होंठ बिना सुर्खी लगाए ही गुलाबी और मखमली थे....
इसी बीच ट्रेन प्लेटफार्म पर आ पहुँची और फरहान अपनी वोगी में चढ़ गया और सीट ढूढ़कर उसमें जा बैठा,लेकिन तभी उसने देखा कि वो लड़की भी उसी ओर आ रही है और उसने फरहान से पूछा...
"क्या आपकी सीट आर.ए.सी. है?"
"जी!हाँ!,फरहान बोला...
"जी!फिर आप तो मेरे हमसफर निकले,क्योंकि मेरी सीट भी आर.ए.सी. है",लड़की बोली....
"ओह...ये तो बड़ा अच्छा इत्तेफाक हुआ",फरहान बोला....
और फिर दोनों अपनी अपनी सीटों पर जा बैठे,ट्रेन चलने तक फरहान उस लड़की को देखता रहा और उसके ख्यालों में गुम सा हो गया,फरहान ने मन में सोचा कि मालूम होता है कि लड़की किसी अच्छे घराने से ताल्लुक रखती है,उसकी कलाइयों में सोने के कंगन थे,कानों में शायद हीरें के एयरिंग्स थे,नेलपॉलिश लगी ऊँगलियों में सोने की हीरे जड़ी अँगूठियाँ थीं,गले में मोटी सोने की चेन और उसका लिबास भी महँगा लग रहा था,चूँकि ट्रेन में बैठते ही उस लड़की ने अपना बुर्का उतार दिया था,इसलिए फरहान अब उसे ठीक से निहार पा रहा था,लेकिन फरहान को ये देखकर हैरानी हो रही थी कि ये अगर इतने अच्छे घर से है तो फिर फर्स्ट क्लास में भी तो सफर कर सकती थी और ये अकेली क्यों सफर कर रही है वो भी रात में,क्या इसे डर नहीं लग रहा?,फिर फरहान को शक़ हुआ कि कहीं वो शादीशुदा तो नहीं.....
फरहान ये सब सोच ही रहा था कि तभी टी.सी. आया और दोनों ने अपना अपना टिकट चेक कराया तब फरहान को मालूम हुआ कि वो भी दिल्ली तक ही जा रही है,फिर वो फरहान को देख कर मुस्कुराई और फरहान का दिल बाग़ बाग़ हो गया फिर वो ख्यालों की दुनिया में सैर करने लगा,कुछ देर बाद वो फिर से मुस्कुराई और उसने अपनी सुरीली आवाज़ में फरहान से कहा...
"अगर आपको एतराज़ ना हो तो मैं आपको एक तकलीफ़ देना चाहती हूँ"
"जी!कहिए",फरहान बोला...
"जी!अगले स्टेशन पर जब ट्रेन रूके तो मेरे लिए दो समोसे ला देगें,बहुत जोर की भूख लग रही है",वो बोली...
"आपने पहले क्यों नहीं कहा कि आपको भूख लगी है,मेरी अम्मी ने पराँठें और सब्जी दिए थे सफ़र के लिए ,चाहें तो आप वो खा सकतीं",फरहान बोला...
"नहीं!रहने दीजिए",वो बोली...
"घबराइए नहीं,मैं जहरखुरानी नहीं हूँ",फरहान बोला...
फरहान की बात सुनकर वो हँसने लगी और फरहान से बोली...
"जी!आप इतना कह रहे हैं तो फिर सब्जी पराठें ही खा लेती हूँ"वो बोली.....
फिर दोनों मिलकर खाना खाने लगे,खाने के बाद फरहान अपनी ही सीट से टेक लगाकर फिर से सोचने लगा कि अब तक मेरी उम्र पच्चीस बरस के क़रीब हो गई है और मैं अब तक कितना शुष्क जीवन जी रहा था,लेकिन आज मालूम हुआ है कि मौहब्बत इंसान को कितना तर-ओ-ताज़ा बना देती है,लगता है मुझे भी इस लड़की से मौहब्बत हो गई है,लेकिन मैं कितना मूर्ख हूँ कि मैनें अब तक उससे उसका नाम पता ही नहीं पूछा,मैं अब घर जाकर अम्मी से कहूंँगा कि मैंने एक लड़की देख ली है, उससे मेरी शादी करवा दीजिए,अम्मी मेरी बात कभी नहीं टालेंगीं... बस एक दो महीने के भीतर ही मेरी शादी हो जाएगी,
फिर थोड़ी देर बाद फरहान ने उससे हिम्मत करके पूछा....
"आपको किसी और चीज़ की ज़रूरत हो तो जरूर कहिएगा”
फिर लड़की दिलफ़रेब मुस्कुराहट के साथ मुस्कुराई और फरहान से बोली..
“अगले स्टेशन पर से अगर आप मेरे लिए सिगरेट ला देगें तो बड़ी मेहरबानी होगी,बड़ी देर से सिगरेट पीने की तलब लग रही है,कमबख्त पर्स में रखना भूल गई”
"फिर फरहान ने उससे बड़ी हैरत के साथ पूछा...
“आप सिगरेट पीती हैं?”
वो लड़की फिर मुस्कुराई और बोली...
“जी!हाँ!क्या आपको कोई एतराज़ है"?
"जी!नहीं!मुझे कोई एतराज़ नहीं,ये तो अपने अपने शौक हैं,अगले स्टेशन पर ट्रेन रुकते ही ला दूँगा",फरहान बोला...
फिर फरहान ने सोचा,बड़े घर की लड़की है इसलिए शायद सिगरेट पीने की आदत हो गई होगी और फिर ट्रेन रूकते ही वो स्टाल की तरफ़ दौड़ा और वहाँ से उसने सिगरेट के दो पैकेट लिए फिर ट्रेन में वापस आकर उस लड़की के हवाले कर दिए,फरहान अब और भी ख़ुश था कि उस लड़की ने उससे सिगरेट पीने की बात नहीं छुपाई, मगर अभी भी उसे इस बात की उलझन थी कि वो उसका नाम नहीं जानता था, उसने कई बार ख़ुद को कोसा कि उसने उसका नाम क्यों न पूछा? इतनी बातें होती रहीं लेकिन वो उससे इतना भी नहीं पूछ सका कि आपका नाम क्या है? क्योंकि उसे उसका नाम पूछते बड़ा अटपटा सा लग रहा था,
कई स्टेशन यूँ ही गुजर गए लेकिन फरहान उस लड़की से उसका नाम नहीं पूछ पाया और आखिरकार दिल्ली भी आ गया, प्लेटफार्म पर जब गाड़ी रुकी तो उसने अपना सामान उठाया और उस लड़की से बोला....
"लाइए मैं आपका सामान भी ले लूँ"
"मैं उठा लूँगी,आप खामख्वाह तकलीफ़ मत उठाइए",लड़की बोली....
लेकिन फिर भी फरहान ने उसका सामान उसके हाथ से ले लिया और दोनों ट्रेन से बाहर आए,फिर फरहान उस लड़की का सामान और अपना सामान लेकर प्लेटफार्म के बाहर आया, इसके बाद फरहान ने एक टैक्सी रूकवाई और उस लड़की से पूछा....
"कहाँ जाएगीं आप"?
लड़की ने बड़े नर्म-ओ-नाज़ुक लहजे में जवाब दिया,
“जी!जीबी रोड”
फरहान बौखला सा गया और उससे बोला,
“क्या आप वहांँ रहती हैं?”
लड़की ने बड़ी सादगी के साथ जवाब दिया,
“जी हाँ! मैं वहीं तो रहतीं हूँ"
तब फरहान ने पूछा....
"मतलब क्या है आपका?वो तो बदनाम गली है वहाँ तो वैसी वाली लड़कियांँ रहतीं हैं"
तब वो बोली...
"आपको क्या लगा कि मैं किसी शरीफघराने से हूँ,मैं भी वैसीं ही वाली लड़की हूँ"
उस लड़की की बात सुनकर फरहान आसमान से सीधे जमीन पर मुँह के बल आ गिरा और फिर कुछ नहीं बोला,उसने उस लड़की को टैक्सी में बैठाया और खुद दूसरी टैक्सी में बैठकर उस लड़की के बारें में सोचने लगा कि ये क्या था,मुझे ऐसे प्यार होना था,मैंने तो उसके संग शादी का सपना भी देख लिया था,इस सफ़र के दौरान वो मेरी हमसफ़र बनी और खूबसूरत सा ख्वाब दिखाकर जुदा भी हो गई,वो मुझे ऐसी जुदाई देकर गई है जिसकी भरपाई ताउम्र नहीं हो सकती और ये सब सोचकर फरहान अपनी मंजिल की ओर चल पड़ा....

समाप्त....
सरोज वर्मा....