Prem Ratan Dhan Payo - 14 in Hindi Fiction Stories by Anjali Jha books and stories PDF | Prem Ratan Dhan Payo - 14

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Prem Ratan Dhan Payo - 14






" क्या हुआ रमा क्यों इतना शोर कर रही हो ? " पीछे से किसी की आवाज आई तो रमा बोली" आपकी भतीजी मुझे मजबूर कर रही हैं । पहले ही समझाया था आपको । रिश्ता भाई भाभी तक ही रहेगा । बच्चे अपना रंग दिखा देंगे और देखो महारानी अभी से रंग दिखाने लगी हैं । "

रमा जी के जो जी में आया कहती चली गई । जानकी चुपचाप खडी बस उनकी कडवी बातों को सुन रही थी । उसने मीठी का हाथ थामा हुआ था और मीठी आंसू भरी नजरों से बस अपनी जीजी मां की ओर देख रही थी । जानकी के चाचाजी मनोज अपनी पत्नी से एक शब्द नही कह रहे थे । वो लोग अपनी गाडी में बैठकर वहां से निकल गये । जानकी और मीठी वही बरामदें में चबूतरे पर बैठ गयी । अब तो साथ सिर्फ अपने आंसू थे ।

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फ़्लैश बैक एंड

जानकी की आंखें खुल गयी । चेहरा अब भी आंसुओं से भीगा हुआ था । जानकी उठकर बैठ गयी । उसकी नज़र अपने फ़ोन पर गयी जो की साइलेंट पर था । जानकी ने देखा मीठी के चार मिस्ड कॉल आए हुए थे । जानकी ने उसे कॉल बैक किया । दो से तीन रिंग में ही मीठी ने फोन रिसीव कर लिया । " हेल्लो जीजी मां हो गयी आपकी पूजा , कही आप सो तो नही रही थी न । ओफ ओ मैं भी कैसा सवाल पूछ रही हूं । मेरी जीजी मां दिन में कभी सोती हैं भला । " मीठी कुछ न कुछ कहे जा रही थी । जानकी ने अपने आंसु संभाले और खुद की आवाज को ठीक किया । " अब बस भी कर शैतान अपनी जीजी मां को कुछ कहने का मौका तो दे । "

" ओह सॉरी जीजी मां मैं तो एक्साइटमेंट में सब भूल ही जाती हूं ‌‌। बताइए न कैसा रहा आपका व्रत । माना की व्रत में आप कुछ खाना पसंद नही करती , लेकिन जीजी मां आप भूखी नही रहेंगी ‌‌। प्लीज कुछ खा लीजिएगा । " मीठी की बात पर जानकी मुस्कुराते हुए बोली ' अच्छा मेरी मां तेरी बात को मैंने गांठ बांध ली । तु बस अपना ख्याल रख । "

" ठीक है जीजी मां , अच्छा मैं अब फ़ोन रखती हूं । ' इतना कहकर मीठी ने फ़ोन काट दिया । जानकी फ़ोन को देखते हुए कुछ सोचने लगी ।

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दोपहर का वक्त, शिव मंदिर ( अयोध्या )




आज करूणा अकेली मंदिर आई थी । इस वक्त वो पूजा कर रही थी । वही दूसरी तरफ गायत्री और दिशा भी मंदिर आए हुए थे । उनके गार्डस बाहर खडे पहरा दे रहे थे । करूणा को परी की वजह से मंदिर से जल्दी निकलना पडा ।

गायत्री और दिशा इस वक्त शिवलिंग पर जल चढा रही थी । गायत्री ने दूध से भरा कलश उठाया । उसने शिवलिंग पर जल चढाना शुरू ही किया था , की तभी सामने से किसी और ने भी अपना हाथ बढ़ाकर शिवलिंग का अभिषेक किया । सारा दूध चढाने के बाद गायत्री ने नजरें ऊपर उठाई । सामने रागिनी थी जो होंठों पर तिरछी मुस्कुराहट लिए उसे ही देख रही थी । गायत्री की नज़र उसके चेहरे से होकर गले के हार पर गयी जो काफी चमक रहा था । रागिनी उठकर खडी हो गयी । गायत्री भी उठ खडी हुई । दिशा गायत्री के कंधे पर हाथ रखकर बोली " भाभी ये नौलखा हार तो आपका ..... इससे आगे दिशा कुछ कह नही पाई , क्योंकि गायत्री ने उसके हाथ को थाम लिया था । दिशा ने उसकी ओर देखा तो गायत्री ने उसे चुप रहने का इशारा किया । वो दोनों ही आगे बढ गयी की तभी रागिनी पीछे से टोकते हुए बोली " कहा चल दी ठकुराइन जरा हमारी बात भी तो सुनती जाइए । ' रागिनी की आवाज सुनकर गायत्री के कदम रूक गए । रागिनी चलते हुए उसके आगे चली आई । उसने इतराते हुए कहा " अरे ठकुराइन इतनी जल्दी किस बात की हैं । बैठिए अच्छे से पूजा कर लीजिए । हमसे बचने की जरूरत नहीं है । "

" तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा हैं की मैं तुमसे बच रही हूं ? तुम बस अपने काम से काम रखो । " गायत्री ये बोल जाने लगी की तभी रागिनी अपना हाथ बढ़ाकर उसे रोकते हुए बोली " क्यों .... जाने से पहले ये नही पूछेंगी की मुझे ये हार किसने दिया ? "

गायत्री थोडा गुस्से से बोली " तुम जैसी लड़कियो की फितरत में अच्छे से जानती हूं । न जाने कितनो का आना जाना तुम्हारी चौखट पर होता हैं । अब तुम्हरे ग्राहकों का लेखा जोखा मैं तो नही रखूंगी । "

रागिनी फीकी सी मुस्कुराहट के साथ बोली " अब आप से क्या छुपाना ठकुराइन । आपके ठाकुर भवन का रास्ता भी हमारी चौखट से होकर गुजरता है और ये नौ लखा हार भी आपकी चौखट से चलकर ही आया हैं । यकीन न हो तो पूछ लीजिएगा अपने पती से । "

" तुम अपनी गंदी ज़ुबान बंद ही रखो तो अच्छा होगा । वरना हमारे आदमी किस पाताल में फेंककर आएंगे किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा । " दिशा ने बीच में कहा तो रागिनी की नज़र उसपर गयी । "'ओह तो छोटी मालकिन भी यहां आई हैं । देखिए मैं ये तो नही कहूगी की आप बच्ची हैं इन बातों को समझ नही पाएगी । मैं तो बस इतना कहुगी आपकी समझदारी इतनी नही की इस दुनिया को समझ पाओ । "

" मुझे किसे समझना चाहिए और किसे नही ये तुमसे सीखने की जरूरत नहीं है । वैसे भी तुम ..... दिशा इतना ही कह पाई थी की तभी गायत्री बीच में बोली " दिशा अब आप कुछ नही बोलोगी । देखो रागिनी हमे तुमसे बात करने में कोई दिलचस्पी नही हैं । तुम हमारे रसते से दूर ही रहा करो तो अच्छा है । " इतना कहकर गायत्री दिशा का हाथ पकड वहां से निकल गयी ।

रागिनी उसे जाते हुए देख रही थी । उसने मन में कहा " मेरा रास्ता तो आपकी चौखट तक जाता है । अब तो मंजिल भी वही । रस्ता वही , मंजिल वही भेंट होना तो लगा ही रहेगा । "

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सुबह का वक्त , जनकपुर




जानकी इस वक्त किचन में खाना बना रही थी । चंचल बाहर का काम कर रही थी । तकरीबन घंटे भर बाद उसने अपना काम ख़त्म किया । चंचल अंदर आकर बोली " जानकी दीदी हमारा काम हो गया हम चलते हैं । "

" चंचल रुको "

जानकी की आवाज सुनक चंचल रूक गयी । जानकी उसके पास चली आई । उसने चंचल की ओर एक लिफ़ाफ़ा बढ़ाया । चंचल उसे हैरानी से देखते हुए बोली " जानकी दीदी इसमें क्या हैं ? "

" तुम्हारा अब तक का मैंने पूरा हिसाब कर दिया हैं । अब तुम्हें कल से आने की जरूरत नहीं पडेगी । " जानकी ने कहा ‌।

चंचल हैरान नजरों से उसे देखते ही बोली " इसका मतलब आप हमे काम से निकाल रही हैं दीदी । हमसे भी अच्छा कोई मिल गया हैं क्या ? " जानकी उसके पास चली आई और उसके गाल पर हाथ रखकर बोली " नही चंचल ऐसी कोई बात नहीं है । जब हम ही यहां नही रहेंगे तो तुम क्या करोगी ? हम नौकरी की तलाश में दूसरी जगह जा रहे हैं , इसलिए हमने तुमहारा हिसाब कर दिया । "

" मतलब दीदी आप जनकपुर छोड़कर जा रही हैं । " चंचल ने कहा ।

जानकी बिना किसी भाव से बोली " अब क़िस्मत जहां ले जाए चंचल । हमे नही मालूम आगे क्या होगा ? बस इतना जानते हैं हमारे राम जी ने जैसे अब तक हमारा साथ दिया हैं वैसे ही वो आगे भी हमारा साथ देंगे । "

" जरुर देंगे दीदी , आपके जीवन में उन्होंने ढेर सारी खुशियां लिखी होंगी । देर से ही सही लेकिन वो आपको जरूर मिलेंगी । " चंचल की बातों पर जानकी मुस्कुरा दी । चंचल के जाने के बाद जानकी संध्या के घर चली आई । इस वक्त संध्या के पिताजी बाहर बरामदे में बैठे किसी से बात कर रहे थे । जानकी हाथ जोड़कर बोली " प्रणाम चाचाजी ! "

" खुश रहो जानकी । "

" संध्या अंदर हैं चाचाजी । " जानकी ने पूछा ।

" हां बेटा अंदर ही होगी जाओ मिल लो ।" संध्या के पिताजी ने कहा । संध्या अंदर चली गई ‌‌ । अंदर आंगन में संध्या की मां गेहूं सुखा रही थी । उनकी नज़र संध्या पर पडी तो वो मुस्कुराते हुए बोली " जानकी ओतअ किया ठार छी अंदर आईब जाऊ । आई काईल तो दिखाईए नयी दयी छी । "

जानकी अंदर आते हुए बोली " से बला बात नयी छय चाची । कुनू काज छेले तयी द्वारे नयी ओबई छलुऊ हे । संध्या कता छई । "

' छोत पर हेतए जाऊ मिल लिए ग । " संध्या के मां ने कहा । जानकी छत पर चली आई । संधया मुंडेर के पास खडी बाहर का नजारा देख रही थी । जानकी उसके पास जाकर खडी हो गयी । संध्या को जब किसी की मौजूदगी महसूस हुइ तो उसने अपना चेहरा घुमाया । जानकी उसके बगल मे खडी थी । जानकी सामने की ओर देखकर बोली " ले चलोगी मुझे अयोध्या ? "

संध्या ने जैसे ही ये सुना उसके होंठों पर मुस्कुराहट तैर गई । वो जानकी की बांह पकड अपनी ओर घुमाते हुए बोली " तूने क्या कहा अभी जरा एक बार फिर से बोलिए । "

" तूने ठीक सुना संध्या , मैंने तेरे साथ जाने का फैसला कर लिया है । मुझे अपनी मीठी के लिए कुछ भी करना पडे मैं पीछे नही हटूगा । हालात से मजबूर होकर मैंने अपने सपनों से समझौता कर लिया , लेकिन मैं नही चाहती की मेरी मीठी को भी यही सब करना पड़े , इसलिए मैंने तेरे संग चलने का फैसला ले लिया हैं ‌‌। " तूने बिल्कुल ठीक फैसला लिया हैं जानू । कल सुबह की ट्रेन है , तू जाकर पैकिंग कर । " इतना कहकर संध्या ने उसे गले से लगा लिया ।

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सुबह का वक्त , महाराजा इंटर कालेज




दिशा आज डरते हुए कॉलेज आई थी । जब से राकेश ने उससे वो सब बाते कही तब से उसके मन मे एक अजीब सा डर बैठ गया था । दिशा आज अपने दोस्तों से भी नही मिली और सीधा लाइब्रेरी की ओर बढ गयी ‌‌। वो जब लाइब्रेरी पहुची तो देखा बाहर स्टूडेंट्स की भीड इकट्ठा थी दिशा को देखकर आश्चर्य हुआ । उसने वहां से गुजर रहे एक लडके को रोककर पूछा " ये सब क्या हो रहा है ? यहां भीड़ क्यों इकट्ठा है ? "

" अरे आज फिर कोई परवाना अपनी शमा के लिए जान देने पर तुला हैं । इश्क के रोग से ग्रसित इंसान ने खुद को अंदर से लॉक करके रखा है । अब तो ये रोज का ड्रामा हो चुका हैं । " ये बोलता हुआ वो लडका वहां से चला गया । दिशा की पकड अपने किताबों पर कस गयी । एक अजीब से डर ने उसके मन को घेर लिया था । दिशा ने अपनी किताब से एक लेटर निकाला और भीड को चीरती हुई दरवाजे तक पहुंची । उसने झुककर नीचे से वो लेटर अंदर डाल दिया और फिर वहां से चली गई । अंदर राकेश दरवाजे से टिककर जमीन पर बैठा था । उसकी नजर उस लिफाफे पर पडी । उसने कांपते हाथों से वो लिफाफा उठा लिया ‌‌। उसने जब उसे खोला तो उसके चेहरे की रंगत बदल गयी । उसने तुरंत दरवाजा खोला और भागने लगा ।

" अरे राकेश सुन तो सही । " राकेश के दोस्तों ने उसे पीछे से आवाज दी लेकिन वो नही रूका । भागते भागते वो हर उस क्लास के आगे रुकता जिसमें दिशा क्लास अटैंड किया करती । राकेश को वो कही दिखाई नही दी । राकेश इस वक्त जिस क्लासरूम में आया प्रोफेसर वहां पढा रहे थे । वो रूककर बोले " व्हाट हैपन बॉय ? "

" नथिंग सर " ये बोलकर राकेश बाहर की ओर भागा । सारी जगह दिशा को तलाशने के बाद वो टेरिस पर चला आया । उसन लाल रंग का एक उडता हुआ दुपट्टा नज़र आया । राकेश ने एक गहरी सांस ली । वो अपने दोनों हाथ घुटने पर रख हांफते हुए सामने की ओर देख रहा था ।

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क्या जानकी का अयोध्या जाने का फैसला ठीक हैं ? क्या होने वाला है उसके जीवन में बदलाव ?

क्या जवाव दिया है दिशा ने राकेश को ? वो क्यो उसे तलाश रहा है ? क्या इनकी प्रेम कहानी शुरू होने से पहले ही खतम हो जाएगी ? कैसा होगा इनका सफर ? जानने के लिए इसका अगला भाग जरूर पढे ।

प्रेम रत्न धन पायो

( अंजलि झा )


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